सामाजिक न्याय का विश्व दिवस (विश्व सामाजिक न्याय दिवस) -
शुरुआत - मनाने की पहल 20 फ़रवरी, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गयी। इसके तहत वैश्विक सामाजिक न्याय विकास सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर यह घोषणा की गयी कि 20 फ़रवरी को प्रत्येक वर्ष विश्व न्याय दिवस मनाया जायेगा।
उद्देश्य - यह दिवस विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे- बहिष्कार, बेरोजगारी तथा ग़रीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लोगों से सामाजिक न्याय हेतु अपील जारी की जाती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सामाजिक न्याय देशों के मध्य समृद्ध और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए एक अंतर्निहित सिद्धांत है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस का वर्ष 2019 में मुख्य विषय (Theme)- ‘यदि आप शांति और विकास चाहते हैं, तो सामाजिक न्याय के लिए काम करें’ "If You Want Peace & Development, Work for Social Justice"
विशेष - संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापना - 24 October 1945 मुख्यालय - मैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन Paris Peace Conference, के तहत 1919 में (193 (यूएन) सदस्य राष्ट्र के इसमें लगभग 187 सदस्य राष्ट्र हैं) मुख्यालय - जनेवा, स्विट्जरलैंड।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि- "इस दिवस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ग़रीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना चाहिए। सभी स्थानों पर लोगों के लिए सभ्य काम एवं रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए तभी सामाजिक न्याय संभव है।
सामाजिक न्याय का अर्थ -
सामाजिक न्याय का अर्थ है- लिंग, आयु, धर्म, अक्षमता तथा संस्कृति की भावना को भूलकर समान समाज की स्थापना करना। समाज में हर तबका एक अलग महत्व रखता है। कई बार समाज की संरचना इस प्रकार होती है कि आर्थिक स्तर पर भेदभाव हो ही जाता है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था पर भी इसका असर पड़े, यह सही बात नहीं है। समाज में फैली असमानता और भेदभाव से सामाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है। सामाजिक न्याय के बारे में कार्य और उस पर विचार तो बहुत पहले से शुरू हो गया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी विश्व के कई लोगों के लिए सामाजिक न्याय सपना बना हुआ है। सामाजिक न्याय का अर्थ निकालना बेहद मुश्किल कार्य है। सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों को एक समान विकास और विकास के मौकों को उपलब्ध कराना है। सामाजिक न्याय यह सुनिश्चित करता है कि समाज का कोई भी शख्स वर्ग, वर्ण या जाति की वजह से विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब समाज से भेदभाव को हटाया जाए।
गलत धारणा -
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिकाओं के बारे में कुछ चौकाने वाले आँकड़े प्रस्तुत किए। इन आँकड़ों के अनुसार भारत की आबादी में 50 मिलियन बालिकाएँ व महिलाओं की गिनती ही नहीं है। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाली 12 मिलियन लड़कियों में से 1 मिलियन अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाती हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों से अधिक है। 5 से 9 वर्षों की 53 प्रतिशत बालिकाएँ अनपढ़ हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं में 4 में से 1 के साथ दुर्व्यवहार होता है। प्रत्येक 6ठीं बालिका की मृत्यु लिंग भेद के कारण होती है। इस सबके पीछे मुख्य कारण अभिभावकों की यह गलत धारणा भी है कि लड़कों से ही उनका वंश आगे बढ़ता है।
शुरुआत - मनाने की पहल 20 फ़रवरी, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गयी। इसके तहत वैश्विक सामाजिक न्याय विकास सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर यह घोषणा की गयी कि 20 फ़रवरी को प्रत्येक वर्ष विश्व न्याय दिवस मनाया जायेगा।
उद्देश्य - यह दिवस विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे- बहिष्कार, बेरोजगारी तथा ग़रीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लोगों से सामाजिक न्याय हेतु अपील जारी की जाती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सामाजिक न्याय देशों के मध्य समृद्ध और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए एक अंतर्निहित सिद्धांत है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस का वर्ष 2019 में मुख्य विषय (Theme)- ‘यदि आप शांति और विकास चाहते हैं, तो सामाजिक न्याय के लिए काम करें’ "If You Want Peace & Development, Work for Social Justice"
विशेष - संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापना - 24 October 1945 मुख्यालय - मैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन Paris Peace Conference, के तहत 1919 में (193 (यूएन) सदस्य राष्ट्र के इसमें लगभग 187 सदस्य राष्ट्र हैं) मुख्यालय - जनेवा, स्विट्जरलैंड।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि- "इस दिवस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ग़रीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना चाहिए। सभी स्थानों पर लोगों के लिए सभ्य काम एवं रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए तभी सामाजिक न्याय संभव है।
सामाजिक न्याय का अर्थ है- लिंग, आयु, धर्म, अक्षमता तथा संस्कृति की भावना को भूलकर समान समाज की स्थापना करना। समाज में हर तबका एक अलग महत्व रखता है। कई बार समाज की संरचना इस प्रकार होती है कि आर्थिक स्तर पर भेदभाव हो ही जाता है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था पर भी इसका असर पड़े, यह सही बात नहीं है। समाज में फैली असमानता और भेदभाव से सामाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है। सामाजिक न्याय के बारे में कार्य और उस पर विचार तो बहुत पहले से शुरू हो गया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी विश्व के कई लोगों के लिए सामाजिक न्याय सपना बना हुआ है। सामाजिक न्याय का अर्थ निकालना बेहद मुश्किल कार्य है। सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों को एक समान विकास और विकास के मौकों को उपलब्ध कराना है। सामाजिक न्याय यह सुनिश्चित करता है कि समाज का कोई भी शख्स वर्ग, वर्ण या जाति की वजह से विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब समाज से भेदभाव को हटाया जाए।
गलत धारणा -
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिकाओं के बारे में कुछ चौकाने वाले आँकड़े प्रस्तुत किए। इन आँकड़ों के अनुसार भारत की आबादी में 50 मिलियन बालिकाएँ व महिलाओं की गिनती ही नहीं है। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाली 12 मिलियन लड़कियों में से 1 मिलियन अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाती हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों से अधिक है। 5 से 9 वर्षों की 53 प्रतिशत बालिकाएँ अनपढ़ हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं में 4 में से 1 के साथ दुर्व्यवहार होता है। प्रत्येक 6ठीं बालिका की मृत्यु लिंग भेद के कारण होती है। इस सबके पीछे मुख्य कारण अभिभावकों की यह गलत धारणा भी है कि लड़कों से ही उनका वंश आगे बढ़ता है।
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