क्या होते है ? धूमकेतू (Comet), तारापुंज (Galaxy), ताराभौतिकी (Stellar physics) नक्षत्र दिवस, सौर दिवस - Study Search Point

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क्या होते है ? धूमकेतू (Comet), तारापुंज (Galaxy), ताराभौतिकी (Stellar physics) नक्षत्र दिवस, सौर दिवस

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धूमकेतू (Comet)
धूमकेतू सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थरधूलबर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रह/ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है। छोटे पथ वाले धूमकेतू सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग 6 से 200 वर्ष में पूरी करते है। कुछ धूमकेतू का पथ परबलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतू एक परिक्रमा करने में हजारों वर्ष लगाते है। अघिकतर धूमकेतू बर्फ, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अन्य पदार्थ जैसे सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते है। धूमकेतू के तीन मुख्य भाग होते है -
  1. नाभि
  2. कोमा
  3. पूछ
नाभि धूमकेतु का केन्द्र होता है जो पत्थर और बर्फ का बना होता है। नाभि के चारों ओर गैस और घूल के बादल को कोमा कहते है। नाभि तथा कोमा से निकलने वाली गैस और धूल एक पूंछ का आकार ले लेती है। जब धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, सौर-विकिरण के प्रभाव से नाभि की गैसों का वास्पीकरण हो जाता है। इससे कोमा का आकार बढ़कर करोडों मील तक हो जाता है। कोमा से निकलने वाली गैस और घूल अरवों मील लम्बी पूछ का आकार ग्रहण कर लेती है। सौर-हवा के कारण यह पूछ सूर्य से उल्टी दिशा में होती है। जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, पूंछ का आकार बढता जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार धूमकेतु का आगमन अपशकुन लाने वाला माना जाता था | कुछ लोगो ने इसे गिरते तारे की संज्ञा दी थी | अरस्तू ने अपनी प्रथम पुस्तक मिट्रियोलोजी में धूमकेतु की चर्चा की थी | पहले के कई बुद्धिजीवियों ने इसे सौरमंडल के ग्रहों के रूप में मान्यता दी थी | परन्तु अरस्तू ने इस धारणा को नकार दिया क्योंकि ग्रह आकाश में एक निश्चित नक्षत्र में दिखाई देते है जबकि धूमकेतु आसमान में कहीं भी देखे जा सकते है | अरस्तू के अनुसार धूमकेतुओं का जन्म पृथ्वी के बाहरी वातावरण में हुआ था | धूमकेतुओं की तरह उल्का, एरोरा, बोरोलियास और आकाशगंगा के लिए भी अरस्तू की यही मान्यता थी | अरस्तू के इस मत से कई तत्कालीन बुद्धिजीवीयों ने असहमति जताई थी | सेनेका ने नेचरल क्वेश्चन में इस मत पर असहमति व्यक्त की है | उनके अनुसार धूमकेतुओं पर बाहरी वातावरण या पवन का कोई असर नहीं होता है | तब के मानव को अंतरिक्ष के बारे में बहुत कम ज्ञान था |

हैली धूमकेतु (Halley's Comet)
हैली धूमकेतु (आधिकारिक तौर पर नामित 1P/Halley) को एक लघु-अवधि धूमकेतु के रूप में बेहतर जाना जाता है। यह प्रत्येक 75 से 76 वर्ष के अंतराल में पृथ्वी से नजर आता है। हैली ही एक मात्र लघु-अवधि धूमकेतु है जिसे पृथ्वी से नग्न आँखों से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है और यह नग्न आँखों से देखे जाने वाला एक मात्र धूमकेतु है जो मानव जीवन में दो बार दिखाई देता है। नग्न आँखों से दिखाई देने वाले अन्य धूमकेतु चमकदार और अधिक दर्शनीय हो सकते है लेकिन वह हजारों वर्षों में केवल एक बार दिखाई देते है।
हैली के भीतरी सौरमंडल में लौटने पर इसका खगोलविज्ञानियों द्वारा 240 इ.पू. के बाद से अवलोकन और रिकार्ड दर्ज किया जाता रहा है। इस धूमकेतु के दिखने के स्पष्ट रिकॉर्ड चीनी, बेबीलोनियन और मध्यकालीन यूरोपीय शासकों द्वारा दर्ज किए गए थे परन्तु उस समय इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में नहीं पहचाना जा सका था। इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में सर्वप्रथम सन् 1705 में अंग्रेज खगोलविज्ञानी एडमंड हैली द्वारा पहचाना गया था तथा बाद में उनके नाम पर इसका नाम हैली धूमकेतु रखा गया था। हैली धूमकेतु भीतरी सौरमंडल में आखरी बार सन् 1986 में दिखाई दिया था और यह अगली बार सन् 2061 के मध्य में दिखाई देगा। सन् 1986 में प्रवेश के दौरान हैली प्रथम धूमकेतु बना जिसका अंतरिक्ष यान द्वारा बारीकी से और विस्तार से अध्ययन किया गया। इसने हैली की नाभि की संरचना तथा कोमा और पूंछ के गठन के तंत्र का सबसे पहला अवलोकन डाटा उपलब्ध कराया। इस अवलोकन ने धूमकेतु की संरचना के बारे में लम्बे समय से चली आ रही अवधारणाओं को, विशेष रूप से फ्रेड व्हिपल के ' डर्टी स्नो बॉल ' मॉडल को आधार प्रदान किया। उन्होंने हैली की संरचना का सही अनुमान लगाया था कि यह अस्थिर पदार्थों के मिश्रण से बना है जैसे कि - पानी, कार्बन डाईआक्साइड, अमोनियाऔर धूल। इस मिशन ने जो डाटा उपलब्ध कराया है, उससे हैली के बारे में हमारे विचारो में काफी सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए हमें अब यह समझ में आ रहा है कि हैली की सतह मोटे तौर पर धूल और गैर वाष्पशील पदार्थों से बनी है तथा उसका मात्र छोटा सा हिस्सा ही बर्फ या अस्थिर पदार्थ से बना हुआ है।
तारापुंज (Galaxy)
तारापुंज आकाश के थोड़े से स्थान में बहुत तारों का घना जमघट सा है, जो निर्मल आकाश में कहीं कहीं पर दिखाई देता है। दूरदर्शी से देखने पर इसमें हमको सैकड़ों हजारों तारे दिखलाई देते है। तारापुंजों की आकृति बहुत से विभिन्न तारों के एक दृष्टिसूत्र में होने के कारण हमें दिखाई नहीं देती। यह आकृति उनके एक सामान्य परिवार का सदस्य होने के कारण है। हियाडीज (Hyades) आदि कुछ तारापुंज भ्रमणशील हैं। इनके सदस्यों की निजी गति के अध्ययन से पता चला है कि वे सब एक साथ एक दिशा में चलते हें, जिससे उनका पुंज आकार बना रहता है। तारापुंज के सदस्यों कर रचना, उनके मूलतत्व तथा विकास में भी परस्पर घनिष्ठ संबंध रहता है।

तारापुंजों के भेद -
तारापुंज दो श्रेणियों में विभक्त है: आकाश-गंगीय अथवा खुले तारापुंज, तथा गोलाकार तारापुंज। गोलाकार तारापुंज भी हमारी आकाशगंगा के सदस्य हैं, तथापि इन दोनों श्रेणियों में बहुत से मौलिक भेद हैं। आकाशगंगीय तारापुज आकाशगंगा के समतल में, या उसके अति निकट, उपलब्ध होते हैं, जबकि गोलाकार तारापुंज आकाशगंगा के समतल से सभी दूरियों पर मिलते हैं। आकाशगंगीय तारापुंज सर्पिल भुजाओं के आसपास मिलते हैं तथा गोलाकार तारापुंज सर्पिल से दूर, प्राय: आकाशगंगा के केंद्रिय भागों के पास, मिलते हैं। आकाशगंगीय तारापुजों में तारों की संख्या 20 से 2,000 तक रहती है, जबकि गोलाकार तारापुंजों की संख्या 10,000 से 1,00,000 तक या उसके अधिक रहता है। आकाशगंगीय तारापुंज पॉपुलेशन प्रथम तथा गोलाकार तारापुंज पॉपुलेशन द्वितीय वर्ग में आते हैं। समीपवर्ती आकाशगंगीय तारापुंजों के तारे किसी छोटे से दूरदर्शी से विभेदित हो जाते हैं, पर गोलाकार तारापुंजों के तारों को विभेदित करने के लिये बड़े दूरदर्शियों की आवश्यकता पड़ती है।

ताराभौतिकी (Stellar physics) 
ताराभौतिकी (Stellar physics) खगोलभौतिकी की एक शाखा है जो तारों से सम्बन्धित भौतिकी का अध्ययन करती है। इसमें तारों के जन्म, उनके क्रम-विकास के अन्तर्गत जीवन-चक्र, उनके ढांचे और अन्य पहलुओं पर जानकारी प्राप्त की जाती है। भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए, ndian Institute of Astrophysicsभारत का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है, जो खगोल शास्त्रताराभौतिकी एवं संबंधित भौतिकी में शोधकार्य को समर्पित है। इसका मुख्यालय बेंगलूर में है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अवलंब से संचालित यह संस्थान आज देश में खगोल एवं भौतिकी में शोध एवं शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र बन गया है। संस्थान की प्रमुख प्रेक्षण सुविधायें कोडैकनालकावलूरगौरीबिदनूर एवं हान्ले में स्थापित हैं। इसका उद्गम मद्रास (चेन्नै) में 1786 में स्थापित की गई एक निजी वेधशाला से जुड़ा है, जो वर्ष 1792 में नुंगम्बाकम में मद्रास वेधशाला के रूप में कार्यशील हुई। वर्ष 1899 में इस वेधशाला को कोडैकनाल में स्थानांतरित किया गया। 1971 में कोडैकनाल वेधशाला ने एक स्वायत्त संस्था भारतीय ताराभौतिकी संस्थान का रूप ले लिया। संस्थान का मुख्यालय कोरमंगला, बेंगलूर में अपने नए परिसर में वर्ष 1975 में स्थानांतरित हो गया।

नक्षत्र दिवस (Star Day)
नक्षत्र दिवस की गणना सूर्य को आकाशगंगा का चक्कर लगाते हुए मानकर की जाती है। यह दिवस 23 घण्टे 56 मिनट की अवधि का होता है। इससे स्पष्ट है कि सौर दिवस नक्षत्र दिवस से लगभग 4 मिनट लम्बी अवधि का होता है। यही 4 मिनट संकलित होकर 4 वर्षों पश्चात् जुड़ जाता है तथा फरवरी को बढ़कर 29 दिन का करके चौथे वर्ष को अधिवर्ष घोषित किया जाता है।
सौर दिवस (Solar Day)
सौर दिवस की गणना सूर्य को गतिहीन मानकर पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना के रूप में की जाती है। इसकी अवधि पूर्णतः 24 घण्टे होती है।

नवतारा (NOVA)
नवतारा अथवा नोवा(Nova) उस तारे को कहते हैं जो एकाएक चमक उठता है और पुन: धीरे-धीरे अपनी पहले जैसी धूमिल अथवा अदृश्य दशा में पहुँच जाता है। ऐसे तारे को कभी कभी 'अस्थायी तारा' भी कहते हैं। नवतारे की चमक बड़ी तेजी से बढ़ती है, यहाँ तक कि दो तीन दिन में अथवा इससे भी कम समय में कई हजार गुनी बढ़ जाती है, परंतु चमक के घटने में काफी समय लगता है। परमाधिक चमक की अवस्था प्राप्त हो जाने पर तुरंत चमक का घटना प्रारंभ हो जाता है। आरंभ में चमक बड़ी तेजी से घटती है, परंतु कुछ समय बाद चमक के घटने की गति मंद पड़ जाती है। चमक के घटते समय चमक के उतार चढ़ाव भी होता रहता है। तारे को अपनी पूर्वस्थिति प्राप्त करने में साधारणत: 10 से 20 वर्ष तक लगते हैं

आवर्तक नवतारा : -नवतारे साधारणत: अपने जीवनकाल में केवल एक बार प्रस्फुटित होकर शांत हो जाते हैं, परंतु तीन तारे ऐसे भी देखे जा चुके हैं, जो एक से अधिक बार प्रस्फुटित हुए हैं। ये नवतारे 'आर-एस ओफ्युची', 'टी कारोनी वोरियालिस' (Coronae Borealis) और 'टी पिक्सिडिस' है। इनमें से पहले दो, दो बार प्रस्फुटित हो चुके हैं और तीसरा चार बार। बार-बार प्रस्फुटित होने वाले तारे को 'आवर्तक नवतारा' (recurrent nova) कहते हैं।


स्थायी नवतारा : - किसी किसी तारे में नवतारे के लक्षण सदैव पाए जाते हैं। ऐसे तारे को 'स्थायी नवतारा' कहते हैं। ऐसे तारे का सबसे अच्छा उदाहरण 'पी सिग्नी' (Cygni) हैं।

अधिनवतारा : - कोई-कोई नवतारा प्रस्फुटन के समय इतना चमकदार हो जाता है कि वह जिस आकाशगंगा में स्थित होता है उसकी संपूर्ण चमक का मुकाबला करने लगता है। ऐसे नवतारे को 'अधिनवतारा' (Supernova) कहते हैं। अधिनवतारे अधिकतर अगांग नीहारिकाओं में मिलते हैं, परंतु हमारी अपनी आकाशगंगा में ऐसे तारों का अभाव नहीं है। पिछले 900 वर्षों में तीन अधिनवतारे हमारी आकाशगंगा में देखे जा चुके हैं, जिनमें से पहला 1054 ईसवी में देखा गया था, जो अब एक बढ़ती हुई नीहारिका के रूप में है और क्रैव नीहारिका (Crab Nabula) के नाम से प्रसिद्ध है, दूसरा जो सन्‌ 1572 में कश्यपमंडल में दिखाई पड़ा और टाइको ब्राए (Tycho Brahe) का नवतारा कहलाता है, और तीसरा केपलर (Kepler) का नवतारा है जो सन्‌ 1604 में दिखाई दिया। सन्‌ 1944 तक लगभग 100 नवतारों के देखे जाने का उल्लेख मिलता है। ये आकाशगंगा में या उसके आसपास देखे गए हैं। अधिनवतारों की चमक सूर्य की चमक से भी अधिक तेज होती है।

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