ब्रह्माण्ड और मन्दाकिनी - Study Search Point

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ब्रह्माण्ड और मन्दाकिनी

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ब्रह्माण्ड शब्द के विषय में समस्त भाषा विदों को ये भलिभाँति ज्ञात है कि ये शब्द, पूर्णतया भारतीय एवं विश्व के प्राचीनतम् भाषाओं में से प्राचीनतम् सर्वश्रेष्ठ भाषा, संस्कृत के लुप्त होते शब्दों में से लुप्त होता एक सर्वश्रेष्ठ शब्द है। जिसका सृजन भारतीय असूचिबद्ध वैज्ञानिक पूर्वजों ने अपने ब्रह्माण्डिय खोज के आधार पर किया था। जिसको कालान्तर में रह-रह कर जगत, विश्व, संसार, सृष्टि आदि जैसे कई हिन्दी उपशब्दों से अलंकृत भी किया गया। 

ब्रह्माण्ड का अर्थ

ब्रह्माण्ड शब्द और इसके उपशब्दों पर हिन्दी भाषा (प्रस्तुत खोज में हिन्दी भाषा को भारत की समस्त भाषाओं के प्रतिनिधि के रुप प्रस्तुत में किया जा रहा है) के व्याकरण के दृष्तिकोंण से अगर थोड़ा सा भी ध्यान दिया जाए तो स्वतः ही स्पष्ट हो जात्ता है कि वास्तव में ये सभी अलंकृत उपशब्द, ब्रह्माण्ड शब्द को अलंकृत ना करके एक अन्य भाषा अंग्रेजी, के शब्द यूनवर्स को अलंकृत करते हैं। क्योंकि ब्रह्माण्ड शब्द का हिन्दी व्याकरण के आधार पर जो अर्थ स्पष्ट होकर आता है, उससे तो कदापि स्पष्ट नहीं होता कि ये अलंकृत उपशब्द वास्तव में ब्रह्माण्ड शब्द के ही उपशब्द हैं। तो आखिर क्यूं? उसी परिभाषा को जो परिभाषा वर्तमान में यूनवर्स की सम्पूर्ण विश्व में "थल चिन्ह" की तरह प्रचलित है, हिन्दी भाषा के विद्वान भी ब्रह्माण्ड की परिभाषा मानने के लिये बाध्य हैं, जबकि यथार्थत: यूनवर्स तो ब्रह्माण्ड का एक भाग है। इसका एक ही कारण हो सकता है कि हिन्दी भाषा के विद्वानों ने ब्रह्माण्ड शब्द पर कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी होगी। अत: ब्रह्माण्ड शब्द के अर्थ को समझने तथा यूनवर्स की परिभाषा से ब्रह्माण्ड की भिन्न परिभाषा स्थापित करने के लिए, नितान्त आवश्यक है कि सर्वप्रथम इस शब्द का हिन्दी भाषा के व्याकरण के अनुसार उचित "शब्द विन्यास" किया जाए। क्योंकि हिन्दी भाषा में अधिकांशतः देखा गया है कि एक शब्द के अविष्कार के लिए अनेक शब्दों, जिनका अर्थ भिन्न भिन्न होता है, का आपस में योग कराया जाता है, जिससे अविष्कृत शब्द का अर्थ एक अलग अर्थ वाले शब्द के रुप में प्रस्तुत होने लगता है।
अतः ब्रह्माण्ड शब्द का शब्द विन्यास किया जाए तो वो इस प्रकार से स्पष्ट होगा :- ब्रह्माण्ड = ब्रह्न + अण्ड
ब्रह्माण्ड शब्द के विन्यास के उपरान्त, "दीर्घ स्वर सन्धि (अ+अ=आ) और संबन्ध तत्पुरुष समास" के अनुसार ब्रह्माण्ड शब्द का अर्थ जो निकल कर आता है वो है "ब्रह्म का अण्ड अर्थात् जीव का अण्डा", क्योंकि ब्रह्म का अर्थ होता है जीव और अण्ड का अर्थ होता है अण्डा अर्थात् हमारा ब्रह्माण्ड जीव के अण्डे जैसा है।

तुलनात्मक व्याख्या

ब्रह्माण्ड शब्द के उपरोक्त अर्थ के आधार पर अगर ब्रह्माण्ड शब्द की यूनवर्स शब्द के साथ तुलनात्मक व्याख्या की जाए तो स्वतः ही स्पष्ट होता है कि :-
१) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ पूर्ण विश्वास के साथ ब्रह्माण्ड की प्रत्येक इकाई में जीवन को सिद्ध करता है, वहीं यूनवर्स शब्द सम्पूर्ण यूनवर्स में जीवन व्याप्त है इस विषय पर अति तुक्ष सोच रखता है।
२) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ ब्रह्माण्ड को अण्डे के खोल जैसे एक खोल में सीमाबद्ध होने और एक निश्चीत आकृति वाला होना सिद्ध करता है, वहीं यूनवर्स शब्द यूनवर्स को अनन्त और निराकार मानता है।
३) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ पूर्णता लिए है, वहीं यूनवर्स शब्द मात्र ब्रह्माण्ड के आन्तरिक भाग का ही प्रतिनिधित्व करता हुआ दृष्ट होता है।
४) ब्रह्माण्ड शब्द के अनुसार जहाँ ब्रह्माण्ड के बाहर और भी कुछ है सिद्ध होता है, वहीं यूनवर्स शब्द के अनुसार यूनवर्स में ही खोज करना अभी शेष ही शेष है।
५) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ अपने आपको एक निष्कर्ष के रुप में प्रस्तुत करता है, वहीं यूनवर्स शब्द उलझे हुए खोजों का एक समूह दृष्ट होता है।
६) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ ब्रह्माण्ड को किसी तन्त्र की कार्यकारी इकाई के रुप में प्रस्तुत करता है, वहीं यूनवर्स शब्द यूनवर्स की ही कार्य प्रणाली समझने में असमर्थ है।
७) ब्रह्माण्ड शब्द जहाँ ब्रह्माण्ड में निहित जीवों को मात्र एक उद्देश्य, जीवन में वृद्धि के लिए प्रेरीत करता है, वहीं यूनवर्स शब्द यूनवर्स में निहित जीवों को अपना ही जीवन किसी भी प्रकार से बचाने के लिए, किसी भी प्रकार के उद्देश्य को अपनाने के लिए बाध्य करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोंण

जबकि आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोंण से देखा जाए तो, उपरोक्त अर्थ और व्याख्या के आधार पर कदापि ये सिद्ध नहीं होता कि हमारा ब्रह्माण्ड वास्तव में जीव के अण्डे जैसा ही है। क्योंकि ये तभी सिद्ध हो सकता है जब कोई बुद्धिजीवी आधुनिक विज्ञान के माध्यम से इस यूनवर्स से (सशरीर या मानसिक आधार पर) बाहर जाए और तथाकथित ब्रह्माण्ड के वाह्य स्वरुप का पूर्णरुप से दृष्टावलोकन करे और पुनः इस यूनवर्स में वापस लौटकर हमें ब्रह्माण्ड के स्वरुप के विषय में सूचित करे कि हमारा यूनवर्स जीव के अण्डे के स्वरुप वाला ही है। किन्तु हम सभी धर्म और आधुनिक विज्ञान के तकनीकों तथा उनके समस्त प्रमाणों और उपलब्धियों के आधार पर निर्विवाद रुप से अच्छी तरह से ये जानते हैं कि ना ही ऐसा कभी हमारे भूतकाल में सम्भव हो पाया है और ना ही भविष्य में ऐसा कुछ होने की कोई प्रबल सम्भावना दिखायी दे रही है। जबकि आधुनिक विज्ञान वर्तमान में भी मात्र यूनवर्स शब्द पर ही अपना सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रीत करते हुए इसके गूढ़ रहस्यों को सुलझाने के लिए अनवरत प्रयत्नशील है। किन्तु अब तक किए गये सम्पूर्ण आधुनिक वैज्ञानिक खोजों का अगर सरल रुप से भी अवलोकन किया जाए तो स्वतः ही स्पष्ट होता है कि ये खोजें भी यूनवर्स शब्द के समान ही अनन्त और निराकार सिद्ध हो रही हैं, जिनकी ना तो कोई सीमा है और ना ही कोई आकार।
तो क्या हमारे पूर्वजों ने मात्र पृथ्वी के जीवों के अण्डों को ही देखकर ये निर्णय लिया कि हमारा ब्रह्माण्ड जीव के अण्डे जैसा ही है, या किसी अत्यधिक विकसित वैज्ञानिक प्रयोग तथा गणना द्वारा खोजे गये सिद्धान्त के आधार पर ये निर्णय लिया कि हमारा ब्रह्माण्ड जीव के अण्डे जैसा है? जिस सिद्धान्त के अभाव में यूनवर्स आज भी आधुनिक विज्ञान के लिये रहस्य का विषय बना हुआ है। वर्तमान विज्ञान के दृष्टिकोंण से अगर उपरोक्त केन्द्र बिन्दु को देखा जाए तो, निष्कर्ष रूप में अभी तक एक ही मूल कारण स्पष्ट हो पाया है कि - "हमारे ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण ग्रह, उपग्रह और सूर्य तथा तारे आदि इसलिए अपनी कक्षा से बाहर नहीं निकल पाते तथा अपनी ही गोलाकार कक्षा में ही स्थित रहते हुए, अपने-अपने केंद्र की निरंतर परिक्रमा करते रहते है क्योंकि, ये अपने-अपने गोलाकार केन्द्र के गोलाकार चुम्बकीय क्षेत्र में फँसे हुए हैं।"
उदाहरण स्वरुप - जैसेकि हमारे सौर्य मण्डल के सम्पूर्ण ग्रह हमारे सौर्य मण्डल के केन्द्र सूर्य के चुम्बकीय क्षेत्र में फँसे होने के कारण, अपनी कक्षा से बाहर नहीं निकल पाते और अपनी-अपनी गोलाकार कक्षा में ही स्थित रहते हुए, सूर्य की निरंतर परिक्रमा करते रहते हैं।
अतः उपरोक्त व्याख्याओं के आधार पर निष्कर्ष के रुप में ब्रह्माण्ड की परिभाषा जो हमारे समक्ष स्पष्ट होकर आती है, उसे हम सरल भाषा में ऐसे प्रस्तुत कर सकते हैं कि - ब्रह्माण्ड वो है जिसका स्वरुप जीव के अण्डे के समान है। जिसकि परिधि एक ठोस तत्व से निर्मित है तथा जिसके आन्तरिक क्षेत्र में सम्पूर्ण ग्रहउपग्रह् और तारे आदि स्थित हैं और साथ ही साथ जिसके आन्तरिक क्षेत्र को हम जगत, संसार, विश्व, सृष्टि, यूनवर्स आदि-आदि के नाम से सम्बोधित करते हैं। इसके आन्तरिक क्षेत्र और इसमें स्थित सम्पूर्ण ग्रह, उपग्रह् और तारों आदि के मध्य मात्र इतना सा अन्तर है कि इसका आन्तरिक क्षेत्र "मूल तत्व" के मूल रूप से निर्मित है, जबकि सम्पूर्ण ग्रह, उपग्रह् और तारे आदि "मूल तत्व" के, ब्रह्माण्ड के "मूल तापमान" में अस्थिरता आने के कारण, आपस में जुड़ने और जुड़ कर टुटने से निर्मित हैं।

मन्दाकिनी तारों का ऐसा समूह है, जो धुँधला सा दिखाई पड़ता है तथा जो तारा निर्माण प्रक्रिया की शुरुआत का गेसपुँज है। हमारा ब्रह्माण्ड करोड़ों मन्दाकिनियों से मिलकर बना हुआ है।

अंग्रेज़ी भाषा में मन्दाकिनी को 'गैलेक्सी' कहा जाता है। हमारी पृथ्वी की अपनी एक अलग मन्दाकिनी है, जिसे 'दुग्धमेखला' या 'आकाशगंगा' कहते हैं। अब तक ज्ञात इस मन्दाकिनी का 80% भाग सर्पिला है। इस मन्दाकिनी को सबसे पहले 'गैलिलियों' ने देखा था। आकाशगंगा की सबसे नजदीक की मन्दाकिनी को 'देवयानी' नाम दिया गया है। नवीनतम ज्ञात मन्दाकिनी है- ड्वार्फ़ मन्दाकिनी। 
आकाशगंगामिल्की वेक्षीरमार्ग या मन्दाकिनी हमारी गैलेक्सी को कहते हैं, जिसमें पृथ्वी और हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। आकाशगंगा में 100 अरब से 400 अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 50 अरब ग्रह होंगे, जिनमें से 50 करोड़ अपने तारों से जीवन-योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। सन् 2011 में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार आकाशगंगा में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं। संस्कृत और कई अन्य हिन्द-आर्य भाषाओँ में हमारी गैलॅक्सी को "आकाशगंगा" कहते हैं। पुराणों में आकाशगंगा और पृथ्वी पर स्थित गंगा नदी को एक दुसरे का जोड़ा माना जाता था और दोनों को पवित्र माना जाता था। प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में आकाशगंगा को "क्षीर" (यानि दूध) बुलाया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी कई सभ्यताओं को आकाशगंगा दूधिया लगी। "गैलॅक्सी" शब्द का मूल यूनानी भाषा का "गाला" (γάλα) शब्द है, जिसका अर्थ भी दूध होता है। फ़ारसी संस्कृत की ही तरह एक हिन्द-ईरानी भाषा है, इसलिए उसका "दूध" के लिए शब्द संस्कृत के "क्षीर" से मिलता-जुलता सजातीय शब्द "शीर" है और आकाशगंगा को "राह-ए-शीरी" (راه شیری) बुलाया जाता है। अंग्रेजी में आकाशगंगा को "मिल्की वे" (Milky Way) बुलाया जाता है, जिसका अर्थ भी "दूध का मार्ग" ही है।

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