सूरदास (Surdas) हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने शृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 विक्रमी के आसपास मानी जाती है। सूरदास जी के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के बारे में 'भक्तमाल' और 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल जाती है। 'आईना-ए-अकबरी' और 'मुंशियात अब्बुलफजल' में भी किसी संत सूरदास का उल्लेख है, किन्तु वे बनारस के कोई और सूरदास प्रतीत होते हैं। जनुश्रुति यह अवश्य है कि अकबर बादशाह सूरदास का यश सुनकर उनसे मिलने आए थे। 'भक्तमाल' में इनकी भक्ति, कविता एवं गुणों की प्रशंसा है तथा इनकी अंधता का उल्लेख है। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के अनुसार वे आगरा और मथुरा के बीच साधु के रूप में रहते थे। वे वल्लभाचार्य के दर्शन को गए और उनसे लीलागान का उपदेश पाकर कृष्ण-चरित विषयक पदों की रचना करने लगे। सूरदास के जीवनवृत्त की कुछ घटनाओं की सूचना देती है। नाभादास के 'भक्तमाल' पर लिखित प्रियादास की टीका, कवि मियासिंह के 'भक्त विनोद', ध्रुवदास की 'भक्तनामावली' तथा नागरीदास की 'पदप्रसंगमाला' में भी सूरदास सम्बन्धी अनेक रोचक अनुश्रुतियाँ प्राप्त होती हैं परन्तु विद्वानों ने उन्हें विश्वसनीय नहीं माना है। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध मुग़ल सम्राट् अकबर ने सूरदास से भेंट की थी परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि उस समय के किसी फ़ारसी इतिहासकार ने 'सूरसागर' के रचयिता महान भक्त कवि सूरदास का कोई उल्लेख नहीं किया। इसी युग के अन्य महान भक्त कवि तुलसीदास का भी मुग़लकालीन इतिहासकारों ने उल्लेख नहीं किया। अकबरकालीन प्रसिद्ध इतिहासग्रन्थों-आईने अकबरी', 'मुशि आते-अबुलफ़ज़ल' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में सूरदास नाम के दो व्यक्तियों का उल्लेख हुआ है परन्तु ये दोनों प्रसिद्ध भक्त कवि सूरदास से भिन्न हैं। 'आईने अकबरी' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में अकबरी दरबार के रामदास नामक गवैया के पुत्र सूरदास का उल्लेख है। ये सूरदास अपने पिता के साथ अकबर के दरबार में जाया करते थे।
सूरदास की जाति के सम्बन्ध में भी बहुत वाद-विवाद हुआ है। 'साहित्य लहरी' के उपर्युक्त पद के अनुसार कुछ समय तक सूरदास को भट्ट या ब्रह्मभट्ट माना जाता रहा।भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने इस विषय में प्रसन्नता प्रकट की थी कि सूरदास महाकवि चन्दबरदाई के वंशज थे किन्तु बाद में अधिकतर पुष्टिमार्गीय स्रोतों के आधार पर यह प्रसिद्ध हुआ कि वे सारस्वत ब्राह्मण थे। बहुत कुछ इसी आधार पर 'साहित्य लहरी' का वंशावली वाला पद अप्रामाणिक माना गया। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में मूलत: सूरदास की जाति के विषय में कोई उल्लेख नहीं था परन्तु गोसाई हरिराय द्वारा बढ़ाये गये 'वार्ता' के अंश में उन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहा गया है। उनके सारस्वत ब्राह्मण होने के प्रमाण पुष्टिमार्ग के अन्य वार्ता साहित्य से भी दिये गये है। अत: अधिकतर यही माना जाने लगा है कि सूरदास सारस्वत ब्राह्मण थे यद्यपि कुछ विद्वानों को इस विषय में अब भी सन्देह है। डॉ. मंशीराम शर्मा ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि सूरदास ब्रह्मभट्ट ही थे। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में सूर का जीवनवृत्त गऊघाट पर हुई वल्लभाचार्य से उनकी भेंट के साथ प्रारम्भ होता है। गऊघाट पर भी उनके अनेक सेवक उनके साथ रहते थे तथा 'स्वामी' के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी। कदाचित इसी कारण एक बार अरैल से जाते समय वल्लभाचार्य ने उनसे भेंट की और उन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया। 'वार्ता' में वल्लभाचार्य और सूरदास के प्रथम भेंट का जो रोचक वर्णन दिया गया है, उससे व्यंजित होता है कि सूरदास उस समय तक कृष्ण की आनन्दमय ब्रजलीला से परिचित नहीं थे और वे वैराग्य भावना से प्रेरित होकर पतितपावन हरि की दैन्यपूर्ण दास्यभाव की भक्ति में अनुरक्त थे और इसी भाव के विनयपूर्ण पद रच कर गाते थे। सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर देशाधिपति अकबर ने उनसे मिलने की इच्छा की। गोस्वामी हरिराय के अनुसार प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के माध्यम से अकबर और सूरदास की भेंट मथुरा में हुई। सूरदास का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न हुए किन्तु उन्होंने सूरदास से प्रार्थना की कि वे उनका यशगान करें परन्तु सूरदास ने 'नार्हिन रहयो मन में ठौर' से प्रारम्भ होने वाला पद गाकर यह सूचित कर दिया कि वे केवल कृष्ण के यश का वर्णन कर सकते हैं, किसी अन्य का नहीं। इसी प्रसंग में 'वार्ता' में पहली बार बताया गया है। सूरदास के काव्य से उनके बहुश्रुत, अनुभव सम्पन्न, विवेकशील और चिन्तनशील व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। उनका हृदय गोप बालकों की भाँति सरल और निष्पाप, ब्रज गोपियों की भाँति सहज संवेदनशील, प्रेम-प्रवण और माधुर्यपूर्ण तथा नन्द और यशोदा की भाँति सरल-विश्वासी, स्नेह-कातर और आत्म-बलिदान की भावना से अनुप्रमाणित था। साथ ही उनमें कृष्ण जैसी गम्भीरता और विदग्धता तथा राधा जैसी वचन-चातुरी और आत्मोत्सर्गपूर्ण प्रेम विवशता भी थी।
सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना 'सूरसागर' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है।'सूरसागर' के अतिरिक्त 'साहित्य लहरी' और 'सूरसागर सारावली' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है। सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित रचनाएँ भी प्रसिद्ध हुई हैं परन्तु वे या तो 'सूरसागर' के ही अंश हैं अथवा अन्य कवियों को रचनाएँ हैं। 'सूरसागर' के अध्ययन से विदित होता है कि कृष्ण की अनेक लीलाओं का वर्णन जिस रूप में हुआ है, उसे सहज ही खण्ड-काव्य जैसे स्वतन्त्र रूप में रचा हुआ भी माना जा सकता है। प्राय: ऐसी लीलाओं को पृथक रूप में प्रसिद्धि भी मिल गयी है। यह सूरदास की लोकप्रियता और महत्ता का ही प्रमाण है कि 'सूरदास' नाम किसी भी अन्धे भक्त गायक के लिए रूढ़ सा हो गया है। मध्ययुग में इस नाम के कई भक्त कवि और गायक हो गये हैं अपने विषय में मध्ययुग के ये भक्त कवि इतने उदासीन थे कि उनका जीवन-वृत्त निश्चित रूप से पुन: निर्मित करना असम्भवप्राय हैं परन्तु इतना कहा जा सकता है कि 'सूरसागर' के रचयिता सूरदास इस नाम के व्यक्तियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध और महान थे और उन्हीं के कारण कदाचित यह नाम उपर्युक्त विशिष्ट अर्थ के द्योतक सामान्य अभिधान के रूप में प्रयुक्त होने लगा। ये सूरदास विट्ठलनाथ द्वारा स्थापित अष्टछाप के अग्रणी भक्त कवि थे और पुष्टिमार्ग में उनकी वाणी का आदर बहुत कुछ सिद्धान्त वाक्य के रूप में होता है।
सूरदास का देहावसान संवत 1642 विक्रमी (सन 1585 ई.) में हुआ। 'वार्ता' से सूचित होता है कि सूरदास को देहावसान गोसाई जी के सामने ही हो गया था। सूरदास ने गोसाई जी के सत्संग का एकाध स्थल पर संकेत करते हुए ब्रज के जिस वैभवपूर्ण जीवन का वर्णन किया है, उससे विदित होता है कि गोसाई जी को सूरदास के जीवनकाल में ही सम्राट अकबर की ओर से वह सुविधा और सहायता प्राप्त हो चुकी थी, जिसका उल्लेख संवत 1634 (सन 1577 ई.) तथा संवत 1638 विक्रमी (सन 1581 ई.) के शाही फ़रमानों में हुआ है।
Surdaas : -
Surdaas (Surdas) Bktikal in Hindi literature devotee of Krishna bhakti poets is leading. Poet Emperor surdaas G Watsly juice are considered. He describes poignant even bigger dressing room and quiet juices. He was born in a village called Mathura-Agra was Runkta located. Some people say that a poor village called Sihi surdaas live birth was Saraswat Brahmin family. Later he would have lived at Agra and Mathura Gugat between. Acharya Ramchandra Shukla Ji dogma surdaas VIKRAM imminent birth of resolutions 1540 and 1620 resolutions VIKRAM near death is considered. Surdaas Ramdas Ji's father was a singer. About surdaas 'Bktmal' and 'eighty-four talks Vashnvn' is the little information. "Mirror-e-Akbari 'and' Munsiat Abbulfjl 'surdaas also mentions a saint, but they are no more surdaas of Benares appear. It must Jnusruti emperor Akbar came to see him, to hear surdaas renown. "Bktmal" His devotion, praise poetry and properties and their blindness to mention. "Vashnvn eighty-four talks" between the monk as they lived in Agra and Mathura. They find Vallabhacharya the philosophy and teachings of Krishna Leelagan them Ranjit began writing for related posts. Surdaas gives biographical sketches of some of the incidents reported. Nabadas's Bktmal 'Priyadas written on the vaccine, Miasinh poet's devotees Vinod', Dhruvdas's Bktnamavli 'and Nagridas's Pdprasngmala' Anusrutiya also receive a lot of interesting, but scholars surdaas related to them is considered to be reliable. 'Eighty-four talks Vashnvn' famed Mughal emperor Akbar known that met surdaas but it is surprising that a Persian historian of that time, "Sursagr" No mention of the Creator great devotee poet Surdas. This era also of other great devotee poet Tulsidas Mughlkalin historians did not mention. Akbrkalin famous Itihasgrnthon-Akbari ',' come Mushi-Abulfjhl 'and' Muntkbuttwarik 'surdaas name two persons have been reported, but the two are distinct from the well-known devotee poet Surdas. "Akbari 'and' Muntkbuttwarik 'den of the court called Akbari mentions surdaas son of singer. These surdaas with his father used to go to Akbar's court.
Surdaas the race has been much debate about the details. 'Literature Lahiri' according to the above post for some time to surdaas Rhakbartendu Babu Bhatt or considered Brahmbhatt Harishchandra expressed pleasure in the subject that were descendents of surdaas Poet Chandbrdai Pustimargiy sources but mostly based on the famous that they were Saraswat Brahmins. On much the same basis' literature Lahiri's pedigree was considered a rank unsound. 'Eighty-four talks Vashnvn' originally surdaas concerning the race, but no mention was extended by St. Hriray the 'dialogue' Saraswat Brahmin fraction of them have been asked. Saraswat Brahmin Pustimarg other evidence of their talks have been given to literature. So mostly it is considered that surdaas Saraswat Brahmin, although some scholars still doubt the subject. DR. Mnshiram Sharma tried to prove that it was surdaas Brahmbhatt. "Vashnvn eighty-four talks in 'Life of Tyre occurred at Gugat Vallabhacharya begins with their meeting. Gugat also lived with them and their many servants 'master' as his fame had spread far and wide. For this reason, when the once seemingly Arail Vallabhacharya to meet him and he was initiated into Pustimarg. 'Dialogue' and the Vallabhacharya surdaas interesting are descriptions of the first call, it would Wynjit surdaas by that time and they were not familiar with Krishna's blissful Brajleela Ptitpavn quietness Guided by the spirit of God in devotion to Dasybav Danypuarn and similar expressions as enamored by creating modest vocals. Surdaas of diction and singing-dancing hearing Deshadipti Akbar desire to meet her to fame. According to Goswami Hriray famous musician Tansen and Akbar through the offering of surdaas in Mathura. Akbar hear devotional songs of surdaas post but he was very pleased that they prayed to surdaas to their Yashgan But by Surdas' Narhin Rhyo occasion in mind from the start position to be informed that they sing the glory of Krishna described Can not someone else. In this context 'Dialogue' is mentioned first. Poetic surdaas their erudite, experience rich, intelligent and meditative personality to get introduced. His heart like a simple and sinless children Gope, Braja gopis like a spontaneous, sensitive, love-prone and Madhurypuarn and sister Yashoda like a simple faith, affection-timid and self-sacrificing spirit was attested. Krishna them seriously, as well as the ingenuity and commitment of Radha-tact and helplessness was Atmotsrgpuarn love.
Surdaas the unanimous authentic creation "Sursagr is'. In a way, 'Sursagr' as is implied by its name, the entire collection can be said of compositions Hak'sursagr than '' literature Lahari 'and' Sursagr Saravli 'but they are also some scholars believe their authentic compositions authenticity is suspect. Some of the names of the other so-called Surdas compositions are also well known, but they are either 'Sursagr' compositions are the only traces or other poets. "Sursagr 'study is known that many pastimes of Krishna, as it is described, it naturally also staged as part poetry can be considered as independent. Often such pastimes were separately found fame. The popularity and importance of surdaas evidence that 'surdaas name any blind has become customary for devout singer. In medieval times the names of many poets and singers have become devout in his medieval poet These devotees were so indifferent that their life-circle definitely re-forming Asambvpray but much can be said that 'Sursagr' creator surdaas the names of individuals and those of the most famous and noble seemingly emblematic of the names above specified meaning came to be used as a generic connotation. These surdaas Vittlnath Ashtchhap established by leading devotee poet and Pustimarg respect their voice is as much principal sentence.
Surdas dies VIKRAM 1642 era (1585 AD Sun.) Happened. 'Dialogue' is informed that the death saint Surdas Ji was in front. Surdaas the St. Ji satsang at the site, referring to one or more of the luxurious life of Braj have described, it is known that the lifetime of St. g surdaas benefit and on behalf of the Emperor Akbar had aided, mentioned 1634 era (1577 AD Sun.) and the era VIKRAM 1638 (the year 1581 AD.) is in the royal Frmanon.
सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना 'सूरसागर' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है।'सूरसागर' के अतिरिक्त 'साहित्य लहरी' और 'सूरसागर सारावली' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है। सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित रचनाएँ भी प्रसिद्ध हुई हैं परन्तु वे या तो 'सूरसागर' के ही अंश हैं अथवा अन्य कवियों को रचनाएँ हैं। 'सूरसागर' के अध्ययन से विदित होता है कि कृष्ण की अनेक लीलाओं का वर्णन जिस रूप में हुआ है, उसे सहज ही खण्ड-काव्य जैसे स्वतन्त्र रूप में रचा हुआ भी माना जा सकता है। प्राय: ऐसी लीलाओं को पृथक रूप में प्रसिद्धि भी मिल गयी है। यह सूरदास की लोकप्रियता और महत्ता का ही प्रमाण है कि 'सूरदास' नाम किसी भी अन्धे भक्त गायक के लिए रूढ़ सा हो गया है। मध्ययुग में इस नाम के कई भक्त कवि और गायक हो गये हैं अपने विषय में मध्ययुग के ये भक्त कवि इतने उदासीन थे कि उनका जीवन-वृत्त निश्चित रूप से पुन: निर्मित करना असम्भवप्राय हैं परन्तु इतना कहा जा सकता है कि 'सूरसागर' के रचयिता सूरदास इस नाम के व्यक्तियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध और महान थे और उन्हीं के कारण कदाचित यह नाम उपर्युक्त विशिष्ट अर्थ के द्योतक सामान्य अभिधान के रूप में प्रयुक्त होने लगा। ये सूरदास विट्ठलनाथ द्वारा स्थापित अष्टछाप के अग्रणी भक्त कवि थे और पुष्टिमार्ग में उनकी वाणी का आदर बहुत कुछ सिद्धान्त वाक्य के रूप में होता है।
सूरदास का देहावसान संवत 1642 विक्रमी (सन 1585 ई.) में हुआ। 'वार्ता' से सूचित होता है कि सूरदास को देहावसान गोसाई जी के सामने ही हो गया था। सूरदास ने गोसाई जी के सत्संग का एकाध स्थल पर संकेत करते हुए ब्रज के जिस वैभवपूर्ण जीवन का वर्णन किया है, उससे विदित होता है कि गोसाई जी को सूरदास के जीवनकाल में ही सम्राट अकबर की ओर से वह सुविधा और सहायता प्राप्त हो चुकी थी, जिसका उल्लेख संवत 1634 (सन 1577 ई.) तथा संवत 1638 विक्रमी (सन 1581 ई.) के शाही फ़रमानों में हुआ है।
Surdaas : -
Surdaas (Surdas) Bktikal in Hindi literature devotee of Krishna bhakti poets is leading. Poet Emperor surdaas G Watsly juice are considered. He describes poignant even bigger dressing room and quiet juices. He was born in a village called Mathura-Agra was Runkta located. Some people say that a poor village called Sihi surdaas live birth was Saraswat Brahmin family. Later he would have lived at Agra and Mathura Gugat between. Acharya Ramchandra Shukla Ji dogma surdaas VIKRAM imminent birth of resolutions 1540 and 1620 resolutions VIKRAM near death is considered. Surdaas Ramdas Ji's father was a singer. About surdaas 'Bktmal' and 'eighty-four talks Vashnvn' is the little information. "Mirror-e-Akbari 'and' Munsiat Abbulfjl 'surdaas also mentions a saint, but they are no more surdaas of Benares appear. It must Jnusruti emperor Akbar came to see him, to hear surdaas renown. "Bktmal" His devotion, praise poetry and properties and their blindness to mention. "Vashnvn eighty-four talks" between the monk as they lived in Agra and Mathura. They find Vallabhacharya the philosophy and teachings of Krishna Leelagan them Ranjit began writing for related posts. Surdaas gives biographical sketches of some of the incidents reported. Nabadas's Bktmal 'Priyadas written on the vaccine, Miasinh poet's devotees Vinod', Dhruvdas's Bktnamavli 'and Nagridas's Pdprasngmala' Anusrutiya also receive a lot of interesting, but scholars surdaas related to them is considered to be reliable. 'Eighty-four talks Vashnvn' famed Mughal emperor Akbar known that met surdaas but it is surprising that a Persian historian of that time, "Sursagr" No mention of the Creator great devotee poet Surdas. This era also of other great devotee poet Tulsidas Mughlkalin historians did not mention. Akbrkalin famous Itihasgrnthon-Akbari ',' come Mushi-Abulfjhl 'and' Muntkbuttwarik 'surdaas name two persons have been reported, but the two are distinct from the well-known devotee poet Surdas. "Akbari 'and' Muntkbuttwarik 'den of the court called Akbari mentions surdaas son of singer. These surdaas with his father used to go to Akbar's court.
Surdaas the race has been much debate about the details. 'Literature Lahiri' according to the above post for some time to surdaas Rhakbartendu Babu Bhatt or considered Brahmbhatt Harishchandra expressed pleasure in the subject that were descendents of surdaas Poet Chandbrdai Pustimargiy sources but mostly based on the famous that they were Saraswat Brahmins. On much the same basis' literature Lahiri's pedigree was considered a rank unsound. 'Eighty-four talks Vashnvn' originally surdaas concerning the race, but no mention was extended by St. Hriray the 'dialogue' Saraswat Brahmin fraction of them have been asked. Saraswat Brahmin Pustimarg other evidence of their talks have been given to literature. So mostly it is considered that surdaas Saraswat Brahmin, although some scholars still doubt the subject. DR. Mnshiram Sharma tried to prove that it was surdaas Brahmbhatt. "Vashnvn eighty-four talks in 'Life of Tyre occurred at Gugat Vallabhacharya begins with their meeting. Gugat also lived with them and their many servants 'master' as his fame had spread far and wide. For this reason, when the once seemingly Arail Vallabhacharya to meet him and he was initiated into Pustimarg. 'Dialogue' and the Vallabhacharya surdaas interesting are descriptions of the first call, it would Wynjit surdaas by that time and they were not familiar with Krishna's blissful Brajleela Ptitpavn quietness Guided by the spirit of God in devotion to Dasybav Danypuarn and similar expressions as enamored by creating modest vocals. Surdaas of diction and singing-dancing hearing Deshadipti Akbar desire to meet her to fame. According to Goswami Hriray famous musician Tansen and Akbar through the offering of surdaas in Mathura. Akbar hear devotional songs of surdaas post but he was very pleased that they prayed to surdaas to their Yashgan But by Surdas' Narhin Rhyo occasion in mind from the start position to be informed that they sing the glory of Krishna described Can not someone else. In this context 'Dialogue' is mentioned first. Poetic surdaas their erudite, experience rich, intelligent and meditative personality to get introduced. His heart like a simple and sinless children Gope, Braja gopis like a spontaneous, sensitive, love-prone and Madhurypuarn and sister Yashoda like a simple faith, affection-timid and self-sacrificing spirit was attested. Krishna them seriously, as well as the ingenuity and commitment of Radha-tact and helplessness was Atmotsrgpuarn love.
Surdaas the unanimous authentic creation "Sursagr is'. In a way, 'Sursagr' as is implied by its name, the entire collection can be said of compositions Hak'sursagr than '' literature Lahari 'and' Sursagr Saravli 'but they are also some scholars believe their authentic compositions authenticity is suspect. Some of the names of the other so-called Surdas compositions are also well known, but they are either 'Sursagr' compositions are the only traces or other poets. "Sursagr 'study is known that many pastimes of Krishna, as it is described, it naturally also staged as part poetry can be considered as independent. Often such pastimes were separately found fame. The popularity and importance of surdaas evidence that 'surdaas name any blind has become customary for devout singer. In medieval times the names of many poets and singers have become devout in his medieval poet These devotees were so indifferent that their life-circle definitely re-forming Asambvpray but much can be said that 'Sursagr' creator surdaas the names of individuals and those of the most famous and noble seemingly emblematic of the names above specified meaning came to be used as a generic connotation. These surdaas Vittlnath Ashtchhap established by leading devotee poet and Pustimarg respect their voice is as much principal sentence.
Surdas dies VIKRAM 1642 era (1585 AD Sun.) Happened. 'Dialogue' is informed that the death saint Surdas Ji was in front. Surdaas the St. Ji satsang at the site, referring to one or more of the luxurious life of Braj have described, it is known that the lifetime of St. g surdaas benefit and on behalf of the Emperor Akbar had aided, mentioned 1634 era (1577 AD Sun.) and the era VIKRAM 1638 (the year 1581 AD.) is in the royal Frmanon.
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