शहीद भगत सिंह,  शहीद राजगुरु शहीद सुखदेव की शहादत., - Study Search Point

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शहीद भगत सिंह,  शहीद राजगुरु शहीद सुखदेव की शहादत.,

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शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत को आजाद होने में मुख्य भूमिका निभाई थी। इनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।
 क्या आप जानते हैं कि इनको तय दिन और समय से 11 घंटे पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं। उन तमाम अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मानुष की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंती हैं।
➲ भगतसिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। 'आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।' बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था।
➲ भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था।
➲ इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला।
➲ यह मुकदमा भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगतसिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा।
➲ फांसी पर जाने से पहले तक भी वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई।
➠ शहीद भगत सिंह : भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को, परन्तु तत्कालीन अनेक साक्ष्यों के अनुसार उनका जन्म 19 अक्तूबर 1907 ई० को हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक जाट सिक्ख परिवार था।
➣ अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। को  भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया।
➣ 8 वर्ष की छोटी उम्र में ही वह भारत की आजादी के बारे में सोचने लगे थे और 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। भगत सिंह के माता-पिता ने जब उनकी शादी करवानी चाही तो वह कानपुर चले गए थे। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि “अगर गुलाम भारत में मेरी शादी होगी तो मेरी दुल्हन मौत होगी। इसके बाद वह “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” में शामिल हो गए थे।
➣ भगत सिंह ने अंग्रेजों से कहा था कि “फांसी के बदले मुझे गोली मार देनी चाहिए” लेकिन अंग्रेजों ने इसे नहीं माना। इसका उल्लेख उन्होंने अपने अंतिम पत्र में किया है। इस पत्र में भगत सिंह ने लिखा था, चूंकि “मुझे युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया है। इसलिए मेरे लिए फाँसी की सजा नहीं हो सकती है। मुझे एक तोप के मुंह में डालकर उड़ा दिया जाय।
➣ भगत सिंह ने जेल में 116 दिनों तक उपवास किया था। आश्चर्य की बात यह है कि इस दौरान वे अपने सभी काम नियमित रूप से करते थे, जैसे- गायन, किताबें पढ़ना, लेखन, प्रतिदिन कोर्ट आना, इत्यादि।
➣ कहा जाता है कि भगत सिंह मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। वास्तव में निडरता के साथ किया गया उनका यह अंतिम कार्य "ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नीचा” दिखाना था।
➣ कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट भगत सिंह की फांसी की निगरानी करने के लिए तैयार नहीं था। मूल मृत्यु वारंट की समय सीमा समाप्त होने के बाद एक मानद न्यायाधीश ने फांसी के आदेश पर दस्तखत किया और उसका निरीक्षण किया।
➣ जब उसकी मां जेल में उनसे मिलने आई थी तो भगत सिंह जोरों से हँस पड़े थे। यह देखकर जेल के अधिकारी भौचक्के रह गए कि यह कैसा व्यक्ति है जो मौत के इतने करीब होने के बावजूद खुले दिल से हँस  रहा है।

➠ शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ।
➣ भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगतसिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था। शहीद सुखदेव फंसी की सजा मिलने पर डरने की बजाय खुश थे।
➣ फांसी से कुछ दिन पहले महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि "लाहौर षडयंत्र मामले के तीन कैदी को मौत की सजा सुनाई गई है और उन्होंने देश में सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त की है जो अब तक किसी क्रांतिकारी पार्टी को प्राप्त नहीं है। वास्तव में, देश को उनके वक्तव्यों से बदलाव के रूप में उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना लाभ उन्हें फांसी देने से प्राप्त होगा।
➣ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सुखदेव ने ही भगत सिंह को असेम्बली हॉल में बम फेंकने के लिए राजी किया था। वास्तव में “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन “ द्वारा असेम्बली हॉल में बम फेंकने के लिए बटुकेश्वर दत्त के साथ किसी दूसरे व्यक्ति को नियुक्त किया गया था।
➣ लेकिन सुखदेव द्वारा भगत सिंह को कायर एवं डरपोक कहने के बाद भगतसिंह ने खुद असेम्बली हॉल में बम फेंकने का निर्णय लिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के 7 महानायक जिन्होंने आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई।
➣ सुखदेव अपने बचपन के दिनों से ही काफी अनुशासनात्मक और कठोर थे। स्कूल के दिनों में भी जब एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी को सलामी न करने के कारण उन्हें छड़ी से पीटा गया तो उन्होंने उफ तक नहीं की। उन्होंने सैन्य अधिकारी द्वारा दी गई सजा को धीरज के साथ सहन किया और अपने हाथ पर “मारखाना” खुदवाया था जिसका मतलब है कि वह दूसरों द्वारा पीटे जाने के लिए ही पैदा हुए हैं।
➣ इसके अलावा एक बार सुखदेव ने अपने बाएं हाथ पर छपे "ओम" के टैटू को निकलने के लिए उस नाइट्रिक अम्ल डाल दिया था और उस घाव को मोमबत्ती की लौ के सामने रख दिया था। यह उनके सहनशक्ति का द्दयोतक है

➠ शहीद राजगुरु : शहीद राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ।
➣ राजगुरू शिवाजी और उनकी गुरिल्ला युद्ध पद्धति (छापा मार शैली) से काफी प्रभावित थे, साथ ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे। पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे।
➣ शिवराम हरि राजगुरू बहुत ही कम उम्र में वाराणसी आ गए थे, जहां उन्होंने संस्कृत और हिंदू धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन किया था। वाराणसी में ही वह भारतीय क्रांतिकारियों के साथ संपर्क में आए। स्वभाव से उत्साही राजगुरू स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए इस आंदोलन में शामिल हुए और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सक्रिय सदस्य बन गए।
➣ राजगुरू महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन में विश्वास नहीं करते थे। उनका मानना था कि उत्पीड़न के खिलाफ क्रूरता ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक प्रभावी था, इसलिए वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए थे, जिनका लक्ष्य भारत को किसी भी आवश्यक माध्यम से ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था।
➣ उन्होंने भारत की जनता को अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए इच्छुक नवयुवकों को इस क्रांतिकारी संगठन के साथ हाथ मिलाने का आग्रह किया।
➣ इस महान स्वतंत्रता सेनानी के जन्मस्थान खेड़ का नाम बदलकर उनके सम्मान में राजगुरूनगर कर दिया गया है। हरियाणा के हिसार में भी उनके नाम पर एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का नाम रखा गया है।
➣ राजगुरू को उनकी निडरता और अजेय साहस के लिए जाना जाता था। उन्हें भगत सिंह की पार्टी के लोग “गनमैन” के नाम से पुकारते थे

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