होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार या रंग पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. इस त्यौहार को फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है। इस दिन होलिका दहन का पूजन होता है। इसी दिन गाँव के किसान अपनी फसल के नये दाने अग्नि को चढ़ाते हैं।होलिका की अग्नि में नये अन्न चढ़ाने के बाद ही किसान नया अन्न खाना शुरू करता हैं।
प्राचीन काल में होली केवल फूलों से, या फूलों से बने रंगों से ही खेलने का प्रचलन था। परंतु आधुनिक समय में रंगों एवं गुलाल से होली खेली जाती है। इस दिन तरह-तरह के पकवान बनते हैं जैसे गुझिया, मठरी आदि। रंगों के इस त्यौहार में लोग गीले-शिकवे भूलकर एक दूसरे को गले लगाते है और खूब मस्ती करते हैं। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक माना जाता है। आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे क्या इतिहास है आदि।
होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
होली का त्यौहार मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं हैं : -
1. शिव पुराण के अनुसार, शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे और हिमालय की पुत्री पार्वती भी शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं। शिव-पार्वती के विवाह से इंद्र का स्वार्थ छिपा था क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा होना था। इसी कारण इंद्र ने शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा परन्तु शिव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था। लेकिन शिव जी की तपस्या भंग हो गई थी और फिर बाद में देवताओं ने शिव जी को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया था। इस कथा के आधार पर होली को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
होली का त्यौहार मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं हैं : -
1. शिव पुराण के अनुसार, शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे और हिमालय की पुत्री पार्वती भी शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं। शिव-पार्वती के विवाह से इंद्र का स्वार्थ छिपा था क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा होना था। इसी कारण इंद्र ने शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा परन्तु शिव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था। लेकिन शिव जी की तपस्या भंग हो गई थी और फिर बाद में देवताओं ने शिव जी को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया था। इस कथा के आधार पर होली को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
2. वसुदेव और देवकी के विवाह के पश्चात कंस जब देवकी को विदा कर रहा था तब आकाशवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। तभी कंस ने उन दोनों को कारागार में डाल दिया. देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने मार दिया था और सातवें पुत्र जो कि शेष नाग के अवतार बलराम थे। उनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था। फिर श्रीकृष्ण का अवतार आठवें पुत्र के रूप में हुआ। उसी समय वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए। परन्तु कंस उस कन्या का वध नहीं कर सका और फिर से आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है। इस कारण कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा दिया था। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया. उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी। अत: बुराई का अंत हुआ और इस खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
3. राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है रंगों वाला होली का त्यौहार, श्रीकृष्ण लीला का एक अंग बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना भी माना गया है। इसलिए मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है।
Source: www.inkhabar.com
4. हम सभी प्रह्लाद और होलिका से जुड़ी कथा को जानते हैं जिसमें हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को भक्त विष्णु प्रह्लाद का अंत करने के लिए अग्नि में प्रवेश करा दिया था परन्तु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। इसी प्रकार अहंकार की, बुराई की हार हुई और प्रह्लाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
5. एक पृथु राजा था, उसके समय में एक ढुंढी नाम की राक्षसी थी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी क्योंकि उसको वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र उसे नहीं मार सकेगा। इसी कारण रजा की प्रजा बहुत परेशान थी। और तो और ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। तभी राजा के राजपुरोहित ने एक मार्ग बताया उस राक्षसी को खत्म करने के लिए। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और गर्मी, क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखेंगे और जलाएंगे, मंत्र पढ़ेंगे और अग्रि की परिक्रमा करेंगे तो राक्षसी मर जाएगी। इतने बच्चों को राक्षसी ढुंढी एक साथ देखकर उनके नजदीक आ गई और उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से भी होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
साभार - जागरण जोश
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