परिसीमन आयोग या भारतीय सीमा आयोग., - Study Search Point

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परिसीमन आयोग या भारतीय सीमा आयोग.,

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➠ भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी दुनिया देखती हैइतनी बड़ी जनसंख्या अलग-अलग समुदाय संस्कृतिखान-पान और रहन-सहन वाले लोग इतने प्रेम पूर्वक शांति से अपना जीवन यापन करते हैं।
➠ भारत में हर राज्य की अपनी अलग खूबसूरती हैअपनी लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण राज्य और राज्य के हर गांव और शहर का गणित भी बदलता रहता है। लोगों के पलायन करते हैं तो जनसंख्या की  अनिश्चितता लगातार बनी रहती है।
➠ आजादी के बाद से भारत में चुनाव हो रहे हैं और इन चुनावों में सीटों के बंटवारे में सीमाओं का अपना अलग ही महत्व हैक्योंकि ये सीमाएं आबादी के हिसाब से तय होनी जरूरी है।
➠ तभी सही मायने में एक निश्चित आबादी के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकेंगे। जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 82 में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करने के लिएसरकार हर 10 साल में परिसीमन आयोग का गठन करती है।
➠ इसे भारतीय सीमा आयोग भी कहा जाता हैये आयोग सीटों की संख्या में तब्दील नहीं कर सकती बल्कि ये जनगणना के बाद सही आंकड़ों से सीटों की सीमाएं तय करती हैऔर अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सीटों की संख्या आरक्षित करती है।
➠ परिसीमन आयोग की सिफारिशें लोकसभा और विधानसभाओं के सामने पेश की जाती हैलेकिन उनमें किसी भी तरह के संशोधन की अनुमति नहीं होतीक्योंकि इस संबंध में सूचना राष्ट्रपति की ओर से जारी की जाती है। परिसीमन आयोग के फैसलों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
➠ 1952 से जारी हुआ यह सफर आज भी लगातार जारी है। परिसीमन से जुड़ा ताजा मामला जम्मू कश्मीर से जुड़ा हुआ हैपिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म कर दिया था।
➠ राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश में जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। जम्मू कश्मीर और लद्दाख में नए सिरे से सीटों का बंटवारा होने जा रहा है अर्थात परिसीमन होने जा रहा हैइसी के साथ केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के 4 राज्यों में भी परिसीमन की मंजूरी दे दी है।
 ➠ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर पूर्वोत्तर के 4 राज्यों असमअरुणाचल प्रदेशमणिपुर और नागालैंड के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होने जा रहा है इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया है।
➠ जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा सीटें बढ़ने जा रही हैं
इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन कर दिया गया हैसुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई को इस परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
➠ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई को 1 साल के लिए अगले आदेश तक इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा।
➠ इसमें जो भी पहले हो उसी से उनका कार्यकाल निर्धारित होगा। कानून मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना के चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर और चार राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त आयोग का पदेन सदस्य बनाया गया है।
परिसीमा अधिनियम 2002 की धारा 3 के तहत शक्तियों से ही केंद्र सरकार ने परिसीमन आयोग का गठन किया है
➠ कानून मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में बताया गया है कि परिसीमन आयोग जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 के प्रावधानों के तहत जम्मू कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करेगा यानी परिसीमन आयोग जम्मू-कश्मीर गठन अधिनियम 2019 के तहत केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा और लोकसभा सीट तय करेगा।
➠ पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश और जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था।
➠ इसके बाद 31 अक्टूबर 2019 से जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए थे।
➠ जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून की धारा 60 के तहत जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 की जाएगी।
➠ दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 111 सीटे थी इनमें से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर में पडती हैबाकी बची 87 सीटों में से 46 सीटें कश्मीर घाटी, 37 सीटें जम्मूऔर चार सीटें लद्दाख में पडती थी।
➠ लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश पर जाने के बाद मौजूदा जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में  83 विधानसभा सीटें है चुनाव होते हैं।
➠ पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें मिलाकर फिलहाल जम्मू कश्मीर विधानसभा में 107 सीटें हैजो परिसीमन के बाद 114 हो जाएगी।
➠ इस तरह के पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटों को छोड़कर जम्मू कश्मीर में अब विधानसभा सीट 83 से 90 हो जाएंगीजिन पर चुनाव होते हैं।
➠ जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया एक वर्ष में पूरी होने की उम्मीद हैराज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें हैं और लद्दाख कश्मीर में एक सीट है।
जम्मू कश्मीर में आखरी बार परिसीमन 1995 में हुआ था।
➠ अब सवाल उठता है कि असमअरुणाचल प्रदेशमणिपुर और नगालैंड में परिसीमन की जरूरत क्यों पड़ी?
➠ आखरी बार परिसीमन अधिनियम 2002 के तहत एक परिसीमन आयोग बनाया गया था।
इसका मकसद 2001 की जनगणना आंकड़ों के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों का परिसीमन किया जाना थालेकिन असमअरुणाचल प्रदेशमणिपुर और नगालैंड में उस वक्त परिसीमन नहीं किया गयाउस वक्त परिसीमन आयोग ने इन चार पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों के संबंध में परिसीमन अभ्यास और आदेश 2008 पूरा किया।
➠ इस साल 28 फरवरी को केंद्र सरकार ने सुरक्षा संबंधी मुद्दों के कारण असमनगालैंडमणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में परिसीमन को स्थापित करने वाले अपने पहले के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था।
➠ नोटिफिकेशन के रद्द होने के बाद इन राज्यों में परिसीमन का रास्ता साफ हुआ।
➠ परिसीमन कानून 2002 के प्रावधानों के मुताबिक असमअरुणाचल प्रदेशमणिपुर और नगालैंड में परिसीमन होगा।
➠ परिसीमन आयोग के जरिए केंद्र सरकार का मकसद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के अलावा असमअरुणाचल प्रदेशमणिपुर और नगालैंड राज्यो में संसदीय क्षेत्रों और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करना है।आयोग जम्मू कश्मीर के संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन और चार पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं का भी पुनर्गठन करेगा।

परिसीमन होता क्या है ?
➤ जब जनसंख्या में बदलाव होता हैतब लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को नए सिरे से तय किया जाता है। यानी उनकी राजनीतिक सीमाओं को दोबारा से निर्धारित करना होता है।
इससे यह तय होता है किकिस क्षेत्र के लोग किस विधानसभा लोकसभा के लिए वोट डालेंगेइस पूरी प्रक्रिया को परिसीमन यानी सीमा निर्धारण कहते हैं।
➤ दूसरे शब्दों में कहें तो परिसीमन का मतलब किसी भी राज्य की लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की राजनीतिक सीमाओं का रेखांकन करना है।
➤ परिसीमन के तहत लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या में बिना छेड़छाड़ किए उनकी सीमाओं का निर्धारण किया जाता है।
लोकसभा या विधानसभा सीटों की सीमाओं को पुनर्निर्धारण यानी परिसीमन करने का मकसद जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी समान प्रतिनिधित्व तय करना होता है
➤ इस प्रक्रिया के चलते लोकसभा में अलग-अलग राज्यों को आवंटित सीटों की संख्या और किसी विधानसभा की कुल सीटों की संख्या में बदलाव भी आ सकता है।
➤ परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के समान खंडों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना होता है।
➤ इसके साथ ही इसका लक्ष्य भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन करना भी हैताकि चुनाव में सभी राजनीतिक दलों को समान लाभ मले।
➤ परिसीमन का उद्देश्य सभी मतदाताओं के लिए समान रूप से मत डालने के अधिकार को सुनिश्चित करना भी हैयानी देशभर में जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन करनाताकि एक नागरिक एक वोट की मूल भावना सुरक्षित रहें।
➤ साथ ही जनगणना के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी में हुए परिवर्तन के बाद उनके लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के लिए दोबारा कोटे का निर्धारण करना।
➤ परिसीमन एक संवैधानिक जरूरत हैक्योंकि संविधान में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य को लोकसभा में उसी अनुपात में सीटों का आवंटन किया जाएगाजिस मात्रा में वह देश की आबादी में योगदान करता है।
➤ राज्य के भीतर भी प्रत्येक जिले के लिए विधानसभा की सीटों के आवंटन में इसी नियम को आधार बनाया गया है।
➤ परिसीमन का कार्य एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता हैसंविधान इसके आदेश को अंतिम घोषित करता हैऔर इसे किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकताक्योंकि यह अनिश्चित काल के लिए चुनाव को बाधित करेगा।

परिसीमन निर्धारण के कारक -
➤ जब भी परिसीमन किया जाता है तो उसके निर्धारण में कुछ बातों का ध्यान रखा जाता है इसमें क्षेत्रफलजनसंख्याक्षेत्र की प्रकृतिसंचार सुविधा और अन्य कारण है।
➤ परिसीमन के तहत सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को सम्मान करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमा को निर्धारित किया जाता है।
➤ ऐसे क्षेत्र जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या अधिक हैउन क्षेत्रों को उनके लिए आरक्षित किया जाता है।
➤ यह सभी निर्धारण नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के आधार पर तय किए जाते हैं।
➤ वही परिसीमन आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर निर्णय बहुमत के आधार पर कर लिया जाता है।
➤ दरअसल परिसीमन के तहत पूरे राज्य को कई इकाइयों में बांटकर उस पूरे राज्य को कई लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में बांटा जाता हैताकि वहां के निवासी अपने-अपने विधानसभा या फिर लोकसभा क्षेत्र के लिए अपना वोट डालकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार और सरकार का चुनाव कर सकें।

भारत में गठित परिसीमन आयोग -
➤ परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधाई निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया।
संविधान के अनुच्छेद 82 के मुताबिक संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमा अधिनियम लागू करती हैअधिनियम लागू होने के बाद परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
➤ परिसीमन आयोग निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करती है।
➤ जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है। साथ ही जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति और जनजाति सीटों की संख्या भी बदल जाती है।
➤ परिसीमन का काम एक उच्चाधिकारी निकाय को सौंपा जाता हैजिसे परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के नाम से जाना जाता है।
➤ इसके सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशमुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ ही संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
➤ परिसीमन आयोग के आदेशों को काननू की तरह जारी किया जाता हैऔर इन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
➤ ये आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होते हैंइन आदेशों की प्रतियां संबंधित लोकसभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैलेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन की अनुमति नहीं होती है।

गठन का इतिहास -
➤ भारत में परिसीमन आयोग के गठन की बात करें तो अब तक चार परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है।
➤ देश में पहला परिसीमन आयोग 1952 के अधिनियम के तहत 1952 में गठित किया गया।
➤ जबकि दूसरा परिसीमन आयोग 1962 के परिसीमन अधिनियम के तहत 1963 में गठित किया गया।
➤ इसी तरह तीसरा परिसीमन आयोग 1972 के अधिनियम के तहत 1973 मेंऔर चौथा परिसीमन आयोग 2002 के अधिनियम के तहत साल 2002 में गठित किया गया।
➤ 1952 में गठित पहले परिसीमन आयोग ने केंद्र के लिए लोकसभा और राज्यों के लिए विधानसभा सीटों की सीमाएं तय की थी।
➤ इस प्रकार गठित आयोग ने 1974 में लोकसभा में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के स्थानों का आवंटन किया थाजिसके अनुसार 530 स्थान राज्यों के लिए और 13 स्थान संघ राज्य क्षेत्रों के लिए आवंटित किए गए थे।
➤ चौथे परिसीमन आयोग का गठन 12 जुलाई 2002 को उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में किया गया था।
➤ आयोग ने अपनी सिफारिश 2007 में तत्कालीन केंद्र सरकार को सौंप दी थीलेकिन इसे लागू नहीं किया गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद जनवरी 2008 में कैबिनेट कमेटी ऑफ पब्लिक अफेयर्स ने परिसीमन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी
➤ उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद देश के कई राज्यों में परिसीमन लागू हुआ।
कर्नाटक पहला राज्य थाजिसमें परिसीमन आयोग 2002 की सिफारिशों के आधार पर विधानसभा चुनाव हुए थे।
➤ संविधान के 84 वे संविधान संशोधन (2001) के मुताबिक 2026 के बाद जब पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित हो जाएंगे तो उसके बाद ही लोकसभा का परिसीमन किया जाएगाऔर जब तक ऐसा नहीं होता हैलोकसभा का परिसीमन 1971 की जनगणना के मुताबिक ही होगा।
➤ वहीं राज्यों की विधानसभाओं का परिसीमन 2001 की जनगणना के मुताबिक होगा।

ब्यूरो रिपोर्ट : राज्यसभा टेलीविजन,

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