भारतीय इतिहास की प्रमुख लड़ाईयाॅ/युद्ध संक्षिप्त विवरण Part-1, - Study Search Point

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भारतीय इतिहास की प्रमुख लड़ाईयाॅ/युद्ध संक्षिप्त विवरण Part-1,

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सीताबल्डी का युद्ध - का युद्ध 1817 ई. में लड़ा गया था। तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के पश्चात यह युद्ध भोंसला शासक अप्पा साहब तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुआ। इस युद्ध में भोंसला के नेतृत्व में मराठों की सेना पूर्णतया पराजित हो गई। युद्ध में अप्पा साहब ने आत्म समर्पण कर दिया।


मच्छिवारा का युद्ध - 15 मई, 1555 ई. को लड़ा गया था। यह युद्ध लुधियाना से लगभग 19 मील पूर्व में सतलुज नदी के किनारे स्थित 'मच्छीवारा' स्थान पर मुग़ल बादशाह हुमायूँ एवं अफ़ग़ान सरदार नसीब ख़ाँ एवं तातार ख़ाँ के बीच हुआ था। इस संघर्ष का परिणाम हुमायूँ के पक्ष में रहा, जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण पंजाब मुग़लों के अधिकार में आ गया।

धरमत का युद्ध - 15 अप्रैल, 1658 ई. को लड़ा गया था। 15 अप्रैल, 1658 को जब शाहजहाँ बीमार था, तब इस स्थान पर शाही सेना, जिसका नेतृत्व दारा के साथ राजा जसवंतसिंह एवं कासिम अली कर रहे थे और औरंगजेब, जिसके साथ मुराद था, के मध्य युद्ध हुआ।


दादो का युद्ध - मार्च, 1843 ई. में सर चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में भारतीय ब्रिटिश सेना और अमीर मुहम्मद की सेना के मध्य हुआ था। 'दादो का युद्ध' अंग्रेज़ी सेना द्वारा यह युद्ध मीरपुर (सिन्ध) के सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न अमीर मुहम्मद के ख़िलाफ़ छेड़ा गया। इस युद्ध के बाद लगभग सम्पूर्ण सिन्ध क्षेत्र पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। विजय के फलस्वरूप सिन्ध को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया था। 

धरमत का युद्ध - 15 अप्रैल, 1658 ई. को लड़ा गया था। 15 अप्रैल, 1658 को जब शाहजहाँ बीमार था, तब इस स्थान पर शाही सेना, जिसका नेतृत्व दारा के साथ राजा जसवंतसिंह एवं कासिम अली कर रहे थे और औरंगजेब, जिसके साथ मुराद था, के मध्य युद्ध हुआ। यह युद्ध उज्जैन से 14 मील की दूरी पर हुआ था। धरमत के युद्ध में एक ओर से बीमार मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का पुत्र दारा शिकोह अपने पिता का पक्ष लेते हुए, राजा जसवन्त सिंह तथा कासिम अली की फ़ौजों को साथ लेकर लड़ रहा था। वहीं दूसरी ओर से विद्रोही औरंगज़ेब तथा मुराद की फ़ौजों ने भाग लिया। इस युद्ध में शाही फ़ौज की बुरी तरह से हार हुई, और उसे मुँह की खाकर पराजय का सामना करना पड़ा। औरंगज़ेब ने विजयी होकर दिल्ली की ओर तेज़ी से प्रयाण किया। वह चम्बल नदी पार करके आगरा से पूर्व में आठ मील की दूरी पर सामूगढ़ पहुँचा। सामूगढ़ में दारा शिकोह के नेतृत्व में औरंगज़ेब की शाही फ़ौज से पुन: मुठभेड़ हुई। इस बार भी दारा शिकोह पराजित हुआ और वह युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ।

खेड़ा का युद्ध - 'भारतीय इतिहास' में लड़े गये प्रसिद्ध युद्धों में से एक है। यह युद्ध छत्रपति शिवाजी के पौत्र शाहू और ताराबाई की सेना के मध्य अक्टूबर, 1707 ई. में हुआ। इस युद्ध में शाहू की विजय हुई और उसने22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषक करवाया। शाहू के नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पेशवा लोग थे, जो छत्रपति शाहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे, जिनकी सहायता से शाहू मराठों का एकछत्र शासक बन गया। शाहू, जिसे 'शिवाजी द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता था, छत्रपति शिवाजी का पौत्र तथा शम्भुजी और येसुबाई का पुत्र था। 1689 ई. में रायगढ़ के पतन के बाद शाहू, उसकी माँ येसूबाई एवं अन्य महत्त्वपूर्ण मराठा लोगों को क़ैद कर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शिविर में नज़रबन्द कर दिया गया। औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद शाहू अपने कुछ साथियों के साथ वापस महाराष्ट्र वापस आ गया था, जहाँ पर परसोजी भोंसले (रघुजी भोंसले तृतीय), भावी पेशवा बालाजी विश्वनाथ और रणोजी सिन्धिया ने उसका साथ दिया। शाहू ने सुयोग्य व्यक्ति बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के पद पर आसीन किया। शाहू ने सतारा पर घेरा डालकर वहाँ की तत्कालीन शासिका राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई (शाहू की चाची) के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। ताराबाई ने धनाजी जादव के नेतृत्व में एक सेना को शाहू का मुक़ाबला करने के लिए भेजा। अक्टूबर, 1707 ई. में प्रसिद्ध 'खेड़ा का युद्ध' हुआ, परन्तु कूटनीति का सहारा लेकर शाहू ने जादव को अपनी ओर मिला लिया। ताराबाई ने अपने सभी महत्त्वपूर्ण अधिकारियों के साथ पन्हाला में शरण ली। शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषक करवाया।

आगे पढ़ें  - पार्ट-2 प्रमुख लड़ाईयाॅ/युद्ध के लिए क्लिक करे 

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