15 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट., - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

15 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट.,

Share This

15 वें वित्त आयोग -

15 वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत 27 नवंबर 2017 को किया गया था।

 15 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसदअर्थशास्त्री एन.के. सिंह को बनाया गया है।

 15 वें वित्त आयोग के सदस्यों में अजय नारायण झाअशोक लाहडेअनूप सिंह और रमेश चंद्र शामिल है।

 15 वें वित्त आयोग के सचिव अरविंद मेहता है।

➠ वित्त आयोग का मुख्य कार्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना शामिल है।

 15 वें वित्त आयोग के आधार पर सबसे ज्यादा कर हिस्सा उत्तर प्रदेश राज्य को 17.93% (14 वें वित्त आयोग में यह 19.95% था)

➠ बिहार को इस वित्त वर्ष में 0.396% कर अधिक मिलेगा जो वर्ष 2019-20 में 9.665% थाबढ़ कर 10.06% होगा।

➠ मध्य प्रदेश की 7.886%, पश्चिम बंगाल को 7.519%, महाराष्ट्र को 6.135% करों का हिस्सा मिलेगा।

➠ उत्तराखंड को 1.1% कर मिलेगाइस वित्त वर्ष में राज्य के कर अंश को 0.44% से बढ़ा कर 0.45 किया गया है।

➠ आयोग से 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2025 तक, 5 वित्त वर्षों के लिए सुझाव देने को कहा गया है।

➠ वर्ष 2019 के गैजेट सूचना के आधार पर 15 वित्त आयोग को वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अपनी रिपोर्ट 30 नवंबर 2019 तक सौंपने को कहा गया था।

➠ वित्त आयोग 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2026 तक के लिए अपनी अंतिम रिपोर्ट 30 अक्टूबर 2020 तक सौंपेगा।

करो का बंटवारा -

➠ आयोग ने करो के बंटवारे के लिए ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज अंतरण के सूत्र (फार्मूले) को अपनाया हैजिससे कि प्रत्येक राज्य को बिना भेदभाव के उन्हें कर का उचित हिस्सा मिल सके।

 10 वें वित्त आयोग तक आयकर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क के लिए अलग-अलग मापदंड अपनाए जाते थे।

➠ संविधान के 80 वें संशोधन (2000) (88 वें संविधान संशोधन 2003 में भी केंद्र राज्य के बीच राजस्व बटवारे से प्रावधान जोड़े गए) के बाद संघ द्वारा किए गए संग्रहित करो की कुल प्राप्तियों को राज्यों के साथ बांटा जाता है।

 11 वित्त आयोग ने करो के हिस्से में राज्यों को 29.5%,

 12वें वित्त आयोग ने 30.5%,

 13वें वित्त आयोग ने 32%,

➠ और 14 वित्त आयोग ने 42% कर हिस्सा राज्यों को देना निश्चित किया था।

➠ यह कर भाग राज्यों के संसाधनों का प्राथमिक साधनकरों का बंटवारे करनेतथा मजबूत राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देने के लिए बताया गया था।

➠ राज्यों को अधिक कर देने के लिए राज्यों के समग्र हस्तांतरण में संरचनात्मक बदलाव किया गया था।

 15 वित्त आयोग ने भी करों को वित्त वर्ष 2021 के लिए 14 वित्त आयोग के उर्ध्वाधर विभाजन को ही जारी रखा है। किंतु नए केंद्र शासित जम्मू कश्मीर और लद्दाख के अस्तित्व में आने के बादइन केंद्र शासित राज्यों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए करो का हिस्सा राज्यों के लिए 42% से घटा के 41% निर्धारित किया है।

➠ क्षैतिज हिस्सेदारी में तीन मापदंड अपनाए गए हैंयह है - १- राज्य की आवश्यकता२- इक्विटी (हिस्सेदारी गरीब क्षेत्रों की)३- कुशलता,

➠ इसके अलावा राज्यों में राजकोषीय क्षमता में समानता लानासमान व्यय के लिए राज्यों में लागत अंतर को कम कर भरपाई करना,

आवश्यकता में - आबादीक्षेत्रफलवन एवं पारिस्थितिकी को शामिल किया है।

इक्विटी (हिस्सेदारी) में - आय की असमानता को शामिल किया है।

कुशलता (निष्पादन) में - जनसांख्यिकीय निष्पादनऔर कर प्रयास शामिल है।

इन उक्त मापदंडों को भारांक (%) भी दिए गए हैं -

 आबादी को 15%, क्षेत्रफल को 15%, वन एवं पारिस्थितिकी को 10%, आय अंतर को 45%, जनसांख्यिकी निष्पादन को 12.5%, कर प्रयासों के लिए 2.5% भारांक दिए गए हैं।

➠ राज्यों के पास स्वयं के राजस्व जुटाने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देनाइसमें स्वयं इन करों का कुशलतापूर्वक खर्च करना शामिल है।

वित्त आयोग का गठन -

➤ वर्ष 1951 में वित्त आयोग का गठन किया गया।

➤ संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संविधान प्रारंभ होने के 2 वर्षों के भीतर एक वित्त आयोग का गठन किए जाने का प्रावधान था तथा इसके उपरांत प्रत्येक 5 वर्ष की समाप्ति पर वित्त आयोग में एक अध्यक्ष चार अन्य सदस्यों को शामिल किया जाएगा।

➤ संसद कानून बनाकर इन सदस्यों की योग्यताओं को निर्धारित कर सकती है।

➤ चयनित सदस्यों को दोबारा भी नियुक्त किया जा सकता है।

योग्यताएं -

➤ वर्ष 1951 में ही यह निर्धारित किया गया कि वित्त आयोग के अध्यक्ष को सार्वजनिक मामलों में विशेषज्ञ एवम् जानकार होना चाहिए।

➤ अन्य 4 सदस्यों में से एक सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता रखने वाला हो

➤ दूसरा सदस्य वित्त ओर  लेखों का जानकार हो।

➤ तीसरा सदस्य वित्तीय मामलों और प्रबंधन का जानकार हो।

➤ चौथा सदस्य अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ हो।

हटाने की प्रक्रिया -

➠ वित्त आयोग के सदस्यों को हटाने की प्रक्रिया संविधान की वर्णित प्रक्रिया अनुसार ही हटाया जा सकता है।

वित्त आयोग के कार्य -

➠ वित्त आयोग का मुख्य कार्य केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करना।

➠ करो की कुल प्राप्तियों को केंद्र तथा राज्य के बीच बांटना।

➠ भारत की संचित निधि से राज्यों को दी जाने वाली सहायता अनुदान के संबंध में सिफारिशें देना।

➠ राष्ट्रपति को वित्तीय मजबूती के हितों पर संस्तुति देना। (राष्ट्रपति द्वारा मांगे जाने पर)

➠ वित्त और आर्थिक संकेतो के बारे में राष्ट्रपति को सूचित करना।

➠ वित्त आयोग की सिफारिश पूरी तरह से मानना केंद्रीय सरकार की बाध्यता नहीं है।

राज्य वित्त आयोग -

➤ वर्ष 1993 से संघ की भांति सभी राज्यों में वित्त आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।

➤ अनुच्छेद 243 आई(I) तथा अनुच्छेद 243 वाई(Y) में राज्य वित्त आयोग के गठन के बारे में प्रावधान किए गए हैं

➤ राज्य वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है।

➤ राज्य वित्त आयोग का कार्य पंचायतों के वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना।

➤ राज्य के करोशुल्कोंटोलफीसऔर राज्य की आय को राज्य तथा पंचायतों के मध्य बांटने का कार्य शामिल है।

वित्त आयोग का इतिहास -

➠ सर्वप्रथम 22 नवंबर 1951 में वित्त आयोग का गठन किया गया।

➠ यह राजकीय संघवाद को सुनिश्चित करने का कार्य करता है।

➠ अब तक 15 वित्त आयोगों का गठन किया गया किया जा चुका है।

➠ पहले वित्त आयोग का गठन 22 नवंबर 1951 के सी नियोगी की अध्यक्षता में किया गया।

➦ इनका कार्यकाल 1952 से 1957 तक रहा था।

➦ पहले वित्त आयोग ने वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने का कार्य किया था।

➠ दूसरा वित्त आयोग 1956 में के. संथानम की अध्यक्षता में किया गया।

➦ इनका कार्यकाल 1957 से 1962 तक रहा था।

➦ दूसरे वित्त आयोग ने आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों को कुछ अधिक आर्थिक मदद देने की बात कही थी।

➠ तीसरे वित्त आयोग का गठन 1960 में ए. के. चंदा की अध्यक्षता में किया गया।

➦ इनका कार्यकाल 1962 से 1966 तक रहा था।

➦ तीसरे वित्त आयोग ने - कर बंटवारे के अलावा आयकर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क के बंटवारे की बात कही थी 

➠ चौथे वित्त आयोग ने जरूरतमंद राज्य की सहायता की बात की थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Pages