21 : मार्च अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस -
तिथि - 21 मार्च को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया गया।
शुरुवात - 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया। 1979 में इस दिन महासभा ने जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के प्रति कार्रवाई के लिये कुछ कार्यक्रम अपनाए। इसी अवसर पर महासभा ने निर्णय लिया कि 21 मार्च से विश्व में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाएगा।
उद्देश्य - नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान करना।
इस (2019) वर्ष का विषय (थीम) - (‘मिटीगेटिंग एंड काउंटरिंग राइज़िंग नेशनलिस्ट पोपुलिज़्म एंड इक्सट्रीम सुपरमेसिस्ट आईडियोलॉजी’) "बढ़ते राष्ट्रवादी लोकलुभावनवाद और चरम वर्चस्ववादी विचारधाराओं का शमन और मुकाबला" है।
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जातिवादी व अतिवादी विचारधाराओं पर आधारित राष्ट्रवाद का प्रसार हो रहा है। इसके कारण नस्लवाद, विदेशियों के प्रति घृणा (ज़ेनोफोबिया) और असहिष्णुता तेज़ी से बढ़ रही है। साथ ही विभिन्न देशों में प्रवासियों, शरणार्थियों, अश्वेतों खासकर अफ्रीकी मूल के लोगों के प्रति हिंसात्मक घटनाएँ भी बढ़ रही हैं। ऐसे परिदृश्य में अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाने का महत्त्व बढ़ जाता है।
पृष्ठभूमि -
➨ 21 मार्च, 1960 को पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा नस्लभेदी कानून के खिलाफ किये जा रहे एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान आग लगा दी और 69 लोगों को मार डाला।
➨ 1966 में इस दिन को याद करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया। 1979 में इस दिन महासभा ने जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के प्रति कार्रवाई के लिये कुछ कार्यक्रम अपनाए। इसी अवसर पर महासभा ने निर्णय लिया कि 21 मार्च से विश्व में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाएगा।
नस्लीय भेदभाव -
किसी व्यक्ति या समुदाय से उसके जाति, रंग, नस्ल इत्यादि के आधार पर घृणा करना या उसे समान्य मानवीय अधिकारों से वंचित करना नस्लीय भेदभाव कहलाता है।
नस्लीय भेदभाव की चुनौती -
नस्लीय भेदभाव के हर स्वरूप के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि के 1969 में लागू होने के 50 साल बाद भी यह चुनौती बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से अपील करता रहा है कि नस्लवाद के अंत के लिए और सभी के लिए समानता और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन राजनीतिक वजहों से इसे जल्द समाप्त किए जाने की अहमियत को नहीं समझा गया। इसके बजाए राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे भाषणों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे प्रभुत्ववादियों के हौसले बुलंद होते हैं जबकि नस्लीय समूहों को बदनाम किया जाता है। यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि असहिष्णुता और भेदभाव से निपटना सिर्फ़ देशों या प्रशासनिक अधिकारियों की ही ज़िम्मेदारी नहीं है बल्किन हर व्यक्ति को इसमें अपनी भूमिका अदा करनी होगी। यूनेस्को प्रमुख ऑड्री अज़ोले ने अपने संदेश में कहा कि भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ाई में सभी को आगे बढ़कर हिस्सा लेने की ज़रूरत है। "नस्लीय भेदभाव, विदेशियों की नापसंदगी, और वर्चस्ववादी विचारधाराओं को भड़काने में इंटरनेट एक उर्वर भूमि की तरह काम करता है. कई बार इसके निशाने पर प्रवासी, शरणार्थी और अफ़्रीकी मूल के लोग होते हैं। इससे निपटने के लिए यूनेस्को जागरूकता के प्रसार पर बल देता है। इन्ही प्रयासों के तहत यूनेस्को ने ऑनलाइन जगत में कायम भेदभाव से मुक़ाबले और इंटरनेट इस्तेमाल का अनुभव सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से मीडिया और सूचना साक्षरता के लिए नए औज़ार विकसित किए हैं। इससे आपसी समझ, विवेचनात्मक सोच और अंतरसांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। "हर रोज़, नस्लीय भेदभाव लोगों को रोज़गार, आवास और सामाजिक जीवन में उनके आधारभूत अधिकारों से ख़ामोशी से वंचित कर रहा है।
यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशलेट ने अपने एक वीडियो संदेश में ध्यान दिलाया कि हम जिन मूल्यों के लिए खड़े होते हैं, नस्लवाद उनके विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि नस्लीय, धार्मिक, जातीय और राष्ट्रीय तौर पर वर्चस्ववाद का वास्तविकता में कोई आधार नहीं है।
तिथि - 21 मार्च को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया गया।
शुरुवात - 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया। 1979 में इस दिन महासभा ने जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के प्रति कार्रवाई के लिये कुछ कार्यक्रम अपनाए। इसी अवसर पर महासभा ने निर्णय लिया कि 21 मार्च से विश्व में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाएगा।
उद्देश्य - नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान करना।
इस (2019) वर्ष का विषय (थीम) - (‘मिटीगेटिंग एंड काउंटरिंग राइज़िंग नेशनलिस्ट पोपुलिज़्म एंड इक्सट्रीम सुपरमेसिस्ट आईडियोलॉजी’) "बढ़ते राष्ट्रवादी लोकलुभावनवाद और चरम वर्चस्ववादी विचारधाराओं का शमन और मुकाबला" है।
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जातिवादी व अतिवादी विचारधाराओं पर आधारित राष्ट्रवाद का प्रसार हो रहा है। इसके कारण नस्लवाद, विदेशियों के प्रति घृणा (ज़ेनोफोबिया) और असहिष्णुता तेज़ी से बढ़ रही है। साथ ही विभिन्न देशों में प्रवासियों, शरणार्थियों, अश्वेतों खासकर अफ्रीकी मूल के लोगों के प्रति हिंसात्मक घटनाएँ भी बढ़ रही हैं। ऐसे परिदृश्य में अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाने का महत्त्व बढ़ जाता है।
पृष्ठभूमि -
➨ 21 मार्च, 1960 को पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा नस्लभेदी कानून के खिलाफ किये जा रहे एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान आग लगा दी और 69 लोगों को मार डाला।
➨ 1966 में इस दिन को याद करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने के अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया। 1979 में इस दिन महासभा ने जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के प्रति कार्रवाई के लिये कुछ कार्यक्रम अपनाए। इसी अवसर पर महासभा ने निर्णय लिया कि 21 मार्च से विश्व में प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाएगा।
नस्लीय भेदभाव -
किसी व्यक्ति या समुदाय से उसके जाति, रंग, नस्ल इत्यादि के आधार पर घृणा करना या उसे समान्य मानवीय अधिकारों से वंचित करना नस्लीय भेदभाव कहलाता है।
नस्लीय भेदभाव की चुनौती -
नस्लीय भेदभाव के हर स्वरूप के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि के 1969 में लागू होने के 50 साल बाद भी यह चुनौती बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से अपील करता रहा है कि नस्लवाद के अंत के लिए और सभी के लिए समानता और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन राजनीतिक वजहों से इसे जल्द समाप्त किए जाने की अहमियत को नहीं समझा गया। इसके बजाए राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे भाषणों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे प्रभुत्ववादियों के हौसले बुलंद होते हैं जबकि नस्लीय समूहों को बदनाम किया जाता है। यूएन विशेषज्ञों का कहना है कि असहिष्णुता और भेदभाव से निपटना सिर्फ़ देशों या प्रशासनिक अधिकारियों की ही ज़िम्मेदारी नहीं है बल्किन हर व्यक्ति को इसमें अपनी भूमिका अदा करनी होगी। यूनेस्को प्रमुख ऑड्री अज़ोले ने अपने संदेश में कहा कि भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ाई में सभी को आगे बढ़कर हिस्सा लेने की ज़रूरत है। "नस्लीय भेदभाव, विदेशियों की नापसंदगी, और वर्चस्ववादी विचारधाराओं को भड़काने में इंटरनेट एक उर्वर भूमि की तरह काम करता है. कई बार इसके निशाने पर प्रवासी, शरणार्थी और अफ़्रीकी मूल के लोग होते हैं। इससे निपटने के लिए यूनेस्को जागरूकता के प्रसार पर बल देता है। इन्ही प्रयासों के तहत यूनेस्को ने ऑनलाइन जगत में कायम भेदभाव से मुक़ाबले और इंटरनेट इस्तेमाल का अनुभव सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से मीडिया और सूचना साक्षरता के लिए नए औज़ार विकसित किए हैं। इससे आपसी समझ, विवेचनात्मक सोच और अंतरसांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। "हर रोज़, नस्लीय भेदभाव लोगों को रोज़गार, आवास और सामाजिक जीवन में उनके आधारभूत अधिकारों से ख़ामोशी से वंचित कर रहा है।
यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशलेट ने अपने एक वीडियो संदेश में ध्यान दिलाया कि हम जिन मूल्यों के लिए खड़े होते हैं, नस्लवाद उनके विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि नस्लीय, धार्मिक, जातीय और राष्ट्रीय तौर पर वर्चस्ववाद का वास्तविकता में कोई आधार नहीं है।
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