छीतस्वामी आठ कवियों (अष्टछाप कवि) में एक। जिन्होने भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का अपने पदों में वर्णन किया। इनका जन्म १५१५ ई० में हुआ था। मथुरा के चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। घर में जजमानी और पंडागिरी होती थी। प्रसिद्ध है कि ये बीरबल के पुरोहित थे। पंडा होने के कारण पहले ये बड़े अक्खड़ और उद्दण्ड थे।
छीतस्वामी श्री गोकुलनाथ जी (प्रसिद्ध पुष्टिमार्ग के आचार्य ज. सं. 1608 वि.) कथित दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता के अनुसार अष्टछाप के भक्त कवियों में सुगायक एवं गुरु गोविंद में तनिक भी अंतर न माननेवाले "श्रीमद्वल्लभाचार्य" (सं. 1535 वि.) के द्वितीय पुत्र गो. श्री विट्ठलनाथ जी (ज.सं.- 1535 वि.) के शिष्य थे। जन्म अनुमानत: सं.- 1572 वि. के आसपास "मथुरा" यत्र सन्निहिओ हरि: (श्रीमद्भागवत : 10.1.28) में माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण के एक संपन्न परिवार में हुआ था। अष्टछाप के कवियों में छीतस्वामी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने जीवनपर्यन्त गृहस्थ-जीवन बिताते हुए तथा अपने ही घर रहते हुए श्रीनाथजी की कीर्तन-सेवा की।
ये मथुरा के रहने वाले चौबे थे। इनका जन्म अनुमानत: सन् 1510 ई. के आसपास, सम्प्रदाय प्रवेश सन् 1535 ई. तथा गोलोकवास सन् 1585 ई. में हुआ था। वार्ता में लिखा है कि ये बड़े मसखरे, लम्पट और गुण्डे थे। एक बार गोसाई विट्ठलनाथ की परीक्षा लेने के लिए वे अपने चार चौबे मित्रों के साथ उन्हें एक खोटा रुपया और एक थोथा नारियल भेंट करने गये, किन्तु विट्ठलनाथ को देखते ही इन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने हाथ जोड़कर गोसाईं जी से क्षमा याचना की और उनसे शरण में लेने की प्रार्थना की। शरण में लेने के बाद गोसाईं जी ने श्रीनाथ जी की सेवा-प्रणाली के निर्माण में छीतस्वामी से बहुत सहायता ली। महाराज बीरबल के वे पुरोहित थे और उनसे वार्षिक वृत्ति पाते थे। एक बार बीरबल को उन्होंने एक पद सुनाया, जिसमें गोस्वामी जी की साक्षात कृष्ण के रूप में प्रशंसा वर्णित थी। बीरबल ने उस पद की सराहना नहीं की। छीतस्वामी विट्ठलनाथ जी के शिष्य और अष्टछाप के अंतर्गत थे। पहले ये मथुरा के सुसम्पन्न पंडा थे और राजा बीरबल जैसे लोग इनके जजमान थे।
इनकी रचनाओं का समय सन् 1555 ई. के आसपास माना जाता हैं। छीतस्वामी के केवल 64 पदों का पता चला है। उनका अर्थ-विषय भी वही है, जो अष्टछाप के अन्य प्रसिद्ध कवियों के पदों का है यथा-आठ पहर की सेवा, कृष्ण लीला के विविध प्रसंग, गोसाईं जी की बधाई आदि। इनके पदों का एक संकलन विद्या-विभाग, कांकरौली से 'छीतस्वामी' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। पुष्टि संप्रदाय में नित्य उत्सव विशेष पर गाए जानेवाले उनके हस्तलिखित एवं मुद्रित संग्रहग्रंथ- "नित्यकीर्तन", "वर्षोत्सव" तथा "वसंतधमार" पदविशेष मिलते हैं। कीर्तन रचनाओं में संगीत सौंदर्य, ताल और लय एवं स्वरों का एक रागनिष्ठ मधुर मिश्रण देखा जा सकता है।
Citswami
Citswami eight poets (Ashtchhap poet) a. Various pastimes of Lord Krishna, who is described in their posts. He was born in 1515 AD at 0. Chaturvedi of Mathura were Brahmins. Jjmani at home and was Pandagiri. Birbal known that these were the priests. Panda before being arrogant and rude they were older.
Citswami Mr. Gokulnath G (famous Pustimarg teacher b. Ed. 1608 v.) According to the said two hundred fifty two Vaishnavas Ashtchhap man of dialogue and Guru Gobind poets Sugaik not bring about much in difference "Srimdwllbachary" (no. 1535 V. ) Go to the second son. Mr. Vittlnath G (V Jlsnk- 1535.) Was a disciple of. Birth estimated 1572 No. V. Around "Mathura" Yatra Snnihio Hari: (Shrimad Bhagwat: 01/10/28) was born in an affluent family of Brahmins in the Mathur Chaturvedi. Ashtchhap Citswami the poets were such a person, who spend forever householder-life and of your own home while chanting Srinathji-served.
The resident of Mathura were chaube. His birth approximately the year 1510. E., around the year 1535 AD sect. And decease year 1585. E. was in. Negotiations have written that these big clown, dissolute and were hooligans. Once St. Vittlnath to test their four Chaubey rupee and an empty coconut with friends to meet them were moldy, but such influence that he had on Vittlnath Given these apologies and her folded hands Gosain law taking refuge in prayer. After taking refuge in the service of G-system manufacturing Gosain G Srinath sought help from the Citswami. Birbal chef they were priests and they had to find an annuity. Birbal, a post he once ruled, the face of G Krishna Goswami was praised as described. Birbal not appreciate his position. Citswami Vittlnath were living under the pupil and Ashtchhap. These were the first king of Mathura Susampnn Panda Birbal were Jjman their ilk.
The compositions year 1555 AD the time. There are thought to be around. Citswami showed only 64 positions. Their meaning is the same subject, which Ashtchhap other famous poets such as positions serving eight o'clock, Krishna Leela diverse context, Gosain G Congratulations on. A compilation of these positions academic department, from Kankruli 'Citswami titled' has been published. Confirmed to be performed on their particular sect continual celebration handwritten and printed Sngrhgrnth- "Nitykirtn", "Warsotsv" and "Vsntdmar" Pdvisesh meet. Kirtan music compositions beauty, rhythm and melody and a Ragnisht melodious voices blend can be seen.
छीतस्वामी श्री गोकुलनाथ जी (प्रसिद्ध पुष्टिमार्ग के आचार्य ज. सं. 1608 वि.) कथित दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता के अनुसार अष्टछाप के भक्त कवियों में सुगायक एवं गुरु गोविंद में तनिक भी अंतर न माननेवाले "श्रीमद्वल्लभाचार्य" (सं. 1535 वि.) के द्वितीय पुत्र गो. श्री विट्ठलनाथ जी (ज.सं.- 1535 वि.) के शिष्य थे। जन्म अनुमानत: सं.- 1572 वि. के आसपास "मथुरा" यत्र सन्निहिओ हरि: (श्रीमद्भागवत : 10.1.28) में माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण के एक संपन्न परिवार में हुआ था। अष्टछाप के कवियों में छीतस्वामी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने जीवनपर्यन्त गृहस्थ-जीवन बिताते हुए तथा अपने ही घर रहते हुए श्रीनाथजी की कीर्तन-सेवा की।
इनकी रचनाओं का समय सन् 1555 ई. के आसपास माना जाता हैं। छीतस्वामी के केवल 64 पदों का पता चला है। उनका अर्थ-विषय भी वही है, जो अष्टछाप के अन्य प्रसिद्ध कवियों के पदों का है यथा-आठ पहर की सेवा, कृष्ण लीला के विविध प्रसंग, गोसाईं जी की बधाई आदि। इनके पदों का एक संकलन विद्या-विभाग, कांकरौली से 'छीतस्वामी' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। पुष्टि संप्रदाय में नित्य उत्सव विशेष पर गाए जानेवाले उनके हस्तलिखित एवं मुद्रित संग्रहग्रंथ- "नित्यकीर्तन", "वर्षोत्सव" तथा "वसंतधमार" पदविशेष मिलते हैं। कीर्तन रचनाओं में संगीत सौंदर्य, ताल और लय एवं स्वरों का एक रागनिष्ठ मधुर मिश्रण देखा जा सकता है।
Citswami
Citswami eight poets (Ashtchhap poet) a. Various pastimes of Lord Krishna, who is described in their posts. He was born in 1515 AD at 0. Chaturvedi of Mathura were Brahmins. Jjmani at home and was Pandagiri. Birbal known that these were the priests. Panda before being arrogant and rude they were older.
Citswami Mr. Gokulnath G (famous Pustimarg teacher b. Ed. 1608 v.) According to the said two hundred fifty two Vaishnavas Ashtchhap man of dialogue and Guru Gobind poets Sugaik not bring about much in difference "Srimdwllbachary" (no. 1535 V. ) Go to the second son. Mr. Vittlnath G (V Jlsnk- 1535.) Was a disciple of. Birth estimated 1572 No. V. Around "Mathura" Yatra Snnihio Hari: (Shrimad Bhagwat: 01/10/28) was born in an affluent family of Brahmins in the Mathur Chaturvedi. Ashtchhap Citswami the poets were such a person, who spend forever householder-life and of your own home while chanting Srinathji-served.
The resident of Mathura were chaube. His birth approximately the year 1510. E., around the year 1535 AD sect. And decease year 1585. E. was in. Negotiations have written that these big clown, dissolute and were hooligans. Once St. Vittlnath to test their four Chaubey rupee and an empty coconut with friends to meet them were moldy, but such influence that he had on Vittlnath Given these apologies and her folded hands Gosain law taking refuge in prayer. After taking refuge in the service of G-system manufacturing Gosain G Srinath sought help from the Citswami. Birbal chef they were priests and they had to find an annuity. Birbal, a post he once ruled, the face of G Krishna Goswami was praised as described. Birbal not appreciate his position. Citswami Vittlnath were living under the pupil and Ashtchhap. These were the first king of Mathura Susampnn Panda Birbal were Jjman their ilk.
The compositions year 1555 AD the time. There are thought to be around. Citswami showed only 64 positions. Their meaning is the same subject, which Ashtchhap other famous poets such as positions serving eight o'clock, Krishna Leela diverse context, Gosain G Congratulations on. A compilation of these positions academic department, from Kankruli 'Citswami titled' has been published. Confirmed to be performed on their particular sect continual celebration handwritten and printed Sngrhgrnth- "Nitykirtn", "Warsotsv" and "Vsntdmar" Pdvisesh meet. Kirtan music compositions beauty, rhythm and melody and a Ragnisht melodious voices blend can be seen.
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