सुप्रसिद्ध उपन्यासकार लेखक परदेशी., - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार लेखक परदेशी.,

Share This
उपन्यासकार परदेशी जी का जन्म: 26 जुलाई 1923 (ग्राम पानमोड़ी प्रतापगढ़, राजस्थान) निधन: 20 अप्रैल, 1977 (इंदौर, मध्य प्रदेश) परदेशी देश के सुप्रसिद्ध लेखक थे। प्रेमचंद और यशपाल के बाद परदेशी ही ऐसे लेखक थे, जिनकी रचनाओं का सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। प्रेमचंद के बाद उपन्यासकारों में परदेशी का विशिष्ट स्थान है। परदेशी ने उपन्यास, कहानियां, राजनीति, धर्म, दर्शन, बाल साहित्य, सभी विधाओं में लिखा है। वे अपने कुछ उपन्यासों के कारण काफी चर्चित रहे हैं। परदेशी का वास्तविक नाम मन्नालाल शर्मा था। नौ वर्ष की उम्र में परदेशी उपनाम रखकर काव्य लेखन आरंभ किया। चैदह वर्ष की उम्र में परदेशी का लिखा ‘चितौड़’ खंड काव्य प्रकाशित हुआ, जिसकी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने काफी प्रशंसा की थी। 1941 में उनका विवाह अरनोद कस्बे की लक्ष्मी देवी के साथ हुआ। विवाह के बाद उन्होंने लक्ष्मी को ‘तारा’ नाम दिया। 1942 में आजीविका के लिए मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर चले गए। जहां क्लर्क की नौकरी की। सात माह पुरानी क्लर्की छोड़कर वहां साहित्यिक पत्रिका ‘ज्योति’ का संपादन-प्रकाशन किया। इस प्रकाशन में उनका सबकुछ बिक गया, यहां तक कि पत्नी तारा परदेशी के सारे जेवर भी बिक गए। दिल्ली प्रेस की ‘सरिता’ के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया, लेकिन यह प्रस्ताव अस्वीकार कर, आजीविका के लिए बंबई चले गए। वहां परदेशी ने प्रेस मैनेजर, फिल्म कंपनी ‘कलाकार चित्र’ के मैनेजर, वोरा एंड कंपनी नामक प्रकाशक के संपादक, ‘धर्मयुग’ का संपादन (1955) किया। कलाकार चित्र की फिल्म ‘प्रीत का गीत’ बनी, लेकिन असफल रही और कंपनी बंद हो गई। ‘चेतना’ मासिक का संपादन किया। बंबई में साम्यवादी दल के साथी मिले। परदेशी ‘भारत सोवियत मैत्री संघ’ और ‘प्रगतिशील लेखक संघ बंबई’ के संस्थापक सदस्य थे। 1954 में धर्मयुग में प्रथम उपन्यास ‘चट्टानें’ धारावाहिक प्रकाशित हुआ। 1962 में राजस्थान साहित्य अकादमी ने परदेशी के उपन्यास ‘जय महाकाल’ को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास का पुरस्कार दिया। 1939 से 1947 की अवधि में सोलह काव्य संग्रह प्रकाशित हुए।
विश्व विश्रुत उपन्यासकार श्री यशपाल ने (धर्मयुग, बम्बई, 1957) ने ‘भगवान बुद्ध की आत्मकथा’ की समीक्षा में लिखा था : -
‘‘भगवान बुद्ध के व्यक्तित्व, दर्शन और उनसे सम्बंधित कल्पनाओं में भारतीय संस्कृति की जितनी निधि है, उतनी किसी दूसरे व्यक्तित्व में नहीं। चतुर शिल्पी परदेशी ने ‘भगवान बुद्ध की आत्मकथा’ में भारतीय समाज की आधुनिक समस्याओं और अनुभूतियों को बुद्ध की नैतिकता की कसौटी पर कसकर समाज के सामने रख दिया है। बुद्ध की मानवी नैतिक दृष्टि से हमारी समस्याओं का क्या विश्लेषण हो सकता है, यही परदेशी का कथावस्तु का मापदण्ड है... बुद्ध, जैसे प्रकांड चरित्र को आत्मस्थ कर उसकी वाणी ग्रहण करने में परदेशी ने कम साहस और परिश्रम नहीं किया है!
दैनिक नवभारत टाइम्स, बम्बई, 30 दिसम्बर 1956 ने लिखा-
‘‘बुद्ध की यह जीवन-कथा लेखक ने अपने अनोखे ढंग से कथा-रूप में प्रस्तुत की है, जो पाठक को भारतीय संस्कृति और धर्म, इतिहास और राजनीति, जीवन-दर्शन और जीवन की अगम्य अनुभूतियों में एक साथ अवगत कराती है। स्वाधीनता-प्राप्ति के बाद भारत के क्षितिज पर उदित जागरण की नई बेला मे ऐसी कृति का व्यापक स्वागत होगा, इसमें जरा भी संदेह नहीं। सात्विक विचारों से ओतप्रोत ऐसी कृतियां भारत के प्रत्येक बालक और बालिका के हाथ में पहुंचनी चाहिए, ताकि वे देश के सुपुत्र और सुपुत्रियां कहलाने योग्य बन सकें। परदेशी की प्रतिभापूर्ण लेखनी को धन्यवाद है कि वह इतनी सुन्दर कृति हिन्दी-जगत को से सकी.....’’
प्रसिद्ध लेखक, आलोचक श्री रामविलास शर्मा ने परदेशी के उपन्यास ‘बड़ी मछली: छोटी मछली के लिए लिखा-
‘‘यह उपन्यास रोचक है और केवल संवादों की विशेषता और सरसता के लिए भी पाठकों से इसे पढ़ने की सिफारिश की जाती है....
‘‘गुजराती या मराठी से मिली हुई या इनसे प्रभावित हिन्दी के नमूनों से पुस्तक के संवाद बहुत रोचक बन गए हैं। अमृतलाल नागर की रचनाओं के अलावा बोलचाल के ऐसे नमूने यहां पहली बार देखने को मिले।
‘‘उपन्यास के अनेक अंश बहुत मार्मिक हैं, विशेषकर तन बेचने वाली स्त्रियों के उत्पीड़न के चित्र।
‘‘इस उपन्यास में बम्बई के चकलों के गुण्डों और राजनैतिक नेताओं के एक सूत्र में बंधे जीवन का चित्रण किया गया है. सेठ रुस्तम, स्वामी शमानन्द, गोविन्द, कासिम आदि का चित्रण बहुत सजीव हुआ है।’’
प्रमुख कृतियां : - 
उपन्यास - चट्टानें (1954 में ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक), पाप की पुजारिन, न्याय के सींग (1974 में ‘रंग’ में धारावाहिक), कच्ची धूप (1954 में ‘मानव मासिक’ में धारावाहिक), दूध के बादल, औरत, रात और रोटी (1956), भगवान बुद्ध की आत्मकथा, औरत एक: चेहरे हजार (1954 में ‘गोरी’ में धारावाहिक), बड़ी मछली: छोटी मछली (1958), जय महाकाल (1961), त्याग का देवता (1965), सपनों की जंजीरें (1961), मैला सपना, जय एकलिंग, कुआरी किरण, जयगढ़ का जोगी, आत्मसिद्धा, काला सोना, मोम की पुतली, सिंदूर की हथकडियां (उपन्यास)।
कहानी - चंपा के फूल, संदेह का सिंदूर, बंद कमरा, राजस्थान के शौर्य एवं पराक्रम की कहानियां, खातू रावत और अन्य कहानियां, विश्वयुद्ध की रोमांचकारी कहानियां (कहानी संग्रह), लगभग 20 से अधिक कहानी संग्रह प्रकाशित। 
➥ सेठ जमनालाल बजाज को गांधीजी के पत्र (हरिभाऊ उपाध्याय के साथ संपादन), चित्तौड़, बादल, धरती माता, मदालसा, प्यार, रक्तदान, जयहिंद, कश्मीर को छोड़ दो, वातायन, परदेशी के गीत, लाल तारा, हंसिया, हथौड़ा और लेखनी, 42 के बाद का वर्ग संघर्ष, चालीस करोड़, परिंदा, पूर्व-अपूर्व  (कविता संग्रह)। 
➥ कल्पना, जनता की जीत, धरती का सिंगार (नाटक)। 
➥ एशिया की राजनीति, कश्मीर का सवाल, दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद क्या है? (राजनीति)। 
➥ सपनों के विधाता, सौदागर सुंदर, डॉ. अल्बर्ट स्वीत्जर, गुजरात की लोककथाएं, गढ़बंका और रणबंका, भारत की लोककथाएं, सोए आलसी की आंख (बाल साहित्य)। 
➥ अर्जन और सर्जन (लेख, निबंध संग्रह)। 
➥ बेंजामिन फ्रेंकलिन, कोनटिकी, तूफान, हेनरी फोर्ड, व्यापार के नव क्षितिज, लता, राय हरिहर, राय रेखा, कृष्णाजी नायक, महात्मा माधव, एक परछाईं दो दायरे, मगधपति, काम और कामिनी (अंग्रेजी, गुजराती और मराठी से अनूदित)। 
➥ सेठ जमनालाल बजाज को प्राप्त गांधीजी के पत्र (हरिहर उपाध्याय के साथ सहायक संपादक, 1953)।

साभार - अनुपम परदेशी, प्रतापपुर राजस्थान 

1 टिप्पणी:

Pages