कुंवर नारायण ( Kunwar Narayan, 19 सितम्बर, 1927, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। 'आत्मजयी' का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। 'युगचेतना' और 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं।
19 सितम्बर, 1927 ई. को कुंवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु साहित्य में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1973 से 1979 तक वे'संगीत नाटक अकादमी' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने 1975 से 1978 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की माता, चाचा और फिर बहन की असमय ही टी.बी. की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी। कार चलाना कुंवर जी का पैतृक व्यवसाय रहा था। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत में भी अपना प्रवेश कर लिया।
लेखन कार्य
कुंवर नारायण इस दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता ही रही है, किंतु इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज ही संप्रेषणीयता आई, वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं और कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 'तनाव' पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया।
- चक्रव्यूह
कुँवर नारायण हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की।
- परिवेश हम तुम
उनके संग्रह 'परिवेश हम तुम' के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या हम सबके सामने आई।
- आत्मजयी
उन्होंने अपने प्रबंध 'आत्मजयी' में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ हमारे सामने रखा। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, 'मृत्य वे त्वा ददामीति' अर्थात मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ, को शिरोधार्य करके यम के द्वार पर चला जाता है, जहाँ वह तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहकर यमराज के घर लौटने की प्रतीक्षा करता है। उसकी इस साधना से प्रसन्न होकर यमराज उसे तीन वरदान माँगने की अनुमति देते हैं। नचिकेता इनमें से पहला वरदान यह माँगता है कि उसके पिता वाजश्रवा का क्रोध समाप्त हो जाए।
- वाजश्रवा के बहाने
कुँवर नारायण ने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। नचिकेता के इसी कथन को आधार बनाकर कुँवर नारायणजी की जो कृति 2008 में आई, 'वाजश्रवा के बहाने', उसमें उन्होंने पिता वाजश्रवा के मन में जो उद्वेलन चलता रहा उसे अत्यधिक सात्विक शब्दावली में काव्यबद्ध किया है। इस कृति की विरल विशेषता यह है कि 'अमूर्त'को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर आत्मजयी में कुँवरनारायण जी ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने'कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है।
प्रमुख कृतियाँ
इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
कविता संग्रह - चक्रव्यूह (1956), तीसरा सप्तक (1959),परिवेश : हम-तुम (1961), अपने सामने (1979), कोई दूसरा नहीं (1993), इन दिनों (2002)।खंड काव्य - आत्मजयी (1965) और वाजश्रवा के बहाने (2008)।
कहानी संग्रह - आकारों के आसपास (1973)।
समीक्षा विचार - आज और आज से पहले (1998), मेरे साक्षात्कार (1999), साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ (2003)।
संकलन - कुंवर नारायण-संसार(चुने हुए लेखों का संग्रह)2002,कुँवर नारायण उपस्थिति (चुने हुए लेखों का संग्रह)(2002), कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ (2007), कुँवर नारायण- प्रतिनिधि कविताएँ (2008)
कहानी संग्रह - आकारों के आसपास (1973)।
समीक्षा विचार - आज और आज से पहले (1998), मेरे साक्षात्कार (1999), साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ (2003)।
संकलन - कुंवर नारायण-संसार(चुने हुए लेखों का संग्रह)2002,कुँवर नारायण उपस्थिति (चुने हुए लेखों का संग्रह)(2002), कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ (2007), कुँवर नारायण- प्रतिनिधि कविताएँ (2008)
पुरस्कार व सम्मान
कुंवर नारायण को 2009 में वर्ष 2005 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।[3] 6 अक्टूबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया। कुंवर जी को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'प्रेमचंद पुरस्कार', 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान', 'शलाका सम्मान', 'मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी', पोलैंड और रोम के 'अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान' और 2009 में 'पद्मभूषण' से भी सम्मानित किया जा चुका है।