➠ पृथ्वी
का इतिहास 400 करोड़ वर्ष से भी अधिक पुराना है। पृथ्वी अपने
विकास के दौरान चार अवस्थाओं से गुजरी है।
➠ चौथी
अवस्था क्वाटर्नरी कहलाती है, इसे दो भागों में विभाजित किया
जाता है।
अधिनूतन
(प्लाइस्टोसीन), अद्यतन (होलोसीन)
➠ प्लाइस्टोसीन
होलोसीन से पूर्व बीस लाख और दस हजार वर्ष पहले शुरू हुआ। होलोसीन आज से लगभग दस
हजार वर्ष पहले शुरू हुआ।
➠ मानव
धरती पर प्लाइस्टोसीन के आरंभ में पैदा हुआ। इसी समय असली गाय हाथी घोड़ा उत्पन्न
हुआ।
➠ मानव के
प्राचीनतम अस्तित्व का संकेत द्वितीय हिमावर्त्तन (ग्लेसिएशन) कल में संचय पत्थरों
और औजारों से मिलता है। इसका काल 2 लाख 50 हजार ईसा पूर्व रखा जाता है।
➠ महाराष्ट्र
के बोरी नामक स्थान के अनुसार मानव की की उपस्थिति 14 लाख
वर्ष पूर्व रखी जाती है।
➠ अफ्रीका
की अपेक्षा भारत में मानव बाद में बसे, मोटे तौर पर पाषाण
तकनीक अफ्रीका के समान रही। इस काल में मानव के लिए खाद्य बटोरने में कठिनाइयां थी,
वह शिकार पर जीवन जीता था। खेती करना, घर बनाना
नहीं जानता था। यह अवस्था सामान्यतः 9 हजार ईसा पूर्व तक बनी
रही।
➠ पुरापाषाण
काल के औजार छोटा नागपुर के पठार से मिलते हैं, जो 1 लाख ईसा पूर्व के हो सकते हैं।
➠ 20 हजार
ईसा पूर्व से 10 हजार ईसा पूर्व के बीच के औजार आंध्र प्रदेश
के कुर्नल शहर से 55 किलोमीटर दूरी से मिलते हैं।
➠ उत्तर
प्रदेश के मिर्जापुर जिले के बेलन नदी घाटी से मिले अवशेषों से पता चलता है,
कि यह लोग बकरी, भेड़, गाय,
भैंस आदि मवेशियों का पालन करते थे।
➠ भारत में
पाषाण युग युगीन सभ्यता का विकास प्लाइप्टोसीन काल (हिम युग) में हुआ।
➠ पत्थरों
के औजारों के संबंध साथ मानव अवशेष जो अफ्रीका से मिले हैं, वह
26 लाख वर्ष पुराने हैं।
➠ भारतीय
पुरापाषाण युग को पत्थरों के औजारों तथा जलवायु के परिवर्तन के आधार पर तीन अवस्था
में बांटा जा सकता है।
१-
निम्न पुरापाषाण काल, २- मध्य पुरापाषाण काल, ३- ऊपरी ( उच्च) पुरापाषाण काल।
निम्न पुरापाषाण
काल - 5 लाख ईसा पूर्व से 50 हजार ईसा
पूर्व तक।
मध्य पुरापाषाण
काल - 50 हजार ईसा पूर्व से 40 हजार
ईसा पूर्व तक।
ऊपरी या उच्च
पुरापाषाण काल - 40 हजार ईसा पूर्व से 10 हजार
ईसा पूर्व तक रहा।
➠ 40 हजार
ईसा पूर्व से 15 हजार ईसा पूर्व के बीच दक्कन के पठार से
मध्य पुरापाषाण काल व ऊपरी या उच्च पुरापाषाण काल के औजार मिलते हैं।
➠ आरंभिक
पुरापाषाण युग हिम युग से गुजरा इसमें कुल्हाड़ी या हस्त कुठार (हैंड एक्स)
विदारणी (क्लीवर) खडग (चॉपर) का उपयोग रहा।
➠ भारत की
कुल्हाडियों पश्चिम एशिया, यूरोप
तथा अफ्रीका की कुल्हाड़ी से मिलती है।
➠ आरंभिक
पुरापाषाण के स्थल पाकिस्तान के पंजाब की सोहन नदी घाटी से मिलते हैं। और वही
आरंभिक पुरापाषाण के औजार भारत में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के बेलन नदी
घाटी से मिलते हैं।
➠ जो औजार
राजस्थान की मरू भूमि के दिदवाना क्षेत्र बेलन नदी घाटी और नर्मदा नदी घाटी
मध्यप्रदेश के भोपाल में भीमबेटका गुफा, और शैलाश्रयों में
पाए गए हैं वह लगभग 1 लाख ईसा पूर्व के आसपास के हैं।
➠ हस्त
कुठार द्वितीय हिमालयी अंतरीमावर्तन (इंटरग्लेशियशन) के समय का जमाव मिलता है।
➠ मध्य
पुरापाषाण युग में मुख्यतः उद्योग पत्थरों की पपड़ी से बनी वस्तुओं का था। यह औजार
फलक, वेधनी, छेदनी, और खुरचनी, इसमें बेदनी, फलक,
बड़ी संख्या में मिले हैं।
➠ मध्य
पुरापाषाण तथा आरंभिक पुरापाषाण के स्थल लगभग समान ही रहे हैं।
➠ पुरापाषाण
मध्ययुग में शिल्प सामग्री नर्मदा नदी के किनारे-किनारे एवम् तुंगभद्रा नदी के
दक्षिणवर्ती कई स्थानों में भी मिले हैं।
➠ ऊपरी
(उच्च) पुरापाषाण अवस्था में आद्रता कम थी, इस युग की
विश्वव्यापी संदर्भ में दो विशेषताएं प्रमुख रही है -
१- नए चकमक उद्योग
की स्थापना।
२- आधुनिक प्रारूप
में मानव (होमोसेपियंस) का उदय।
➠ आंध्र
प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केंद्रीय मध्य प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश,
बिहार का पठार में फलको और तश्यनियों (ब्लैड्स और ब्यूरिंस) का
प्रयोग रहा था।
➠ पहाड़ी
ढालों और नदी घाटियों में पुरापाषण स्थल मिले हैं, किंतु
सिंधु और गंगा के कछारी मैदान में इनका पता नहीं चलता।
मध्य
पाषाण युग (मेसोलिथिक) -
आखेट एवं पशुपालन
सामाजिक संरचना -
➠ 9 हजार
ईसा पूर्व ऊपरी (उच्च) पुरापाषाण का अंत हिम युग के अंत साथ आरंभ हुआ।
➠ जलवायु
गर्म तथा शुष्क हो गई, जीव जंतुओं पेड़ पौधों में भी
परिवर्तन हुए और मानव के लिए नए क्षेत्रों की ओर अग्रसर होना संभव हुआ।
➠ मध्य
पाषाण युग के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर, खाद्य वस्तुएं बटोर कर पेट भरते, जो आगे चलकर
पशुपालन भी करने लगे।
➠ मध्य
पाषाण युग के विशिष्ट औजार है जो सूक्ष्म पाषाण (पत्थर के पतले और छोटे औजार)
माइक्रोलिथस का उपयोग करते।
➠ राजस्थान,
दक्षिण उत्तर प्रदेश, मध्य पूर्वी भारत
में तथा दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के दक्षिण में मध्य पाषाण के स्थल स्थित हैं।
➠ सूक्ष्म
पाषाण फलको के उद्योग राजस्थान के बागोर में स्थित थे। यहां पर भली-भांति उत्खनन
किया गया है, यहां बस्ती ईसा पूर्व पांचवी सहस्त्रब्द के
आरंभ से 5 हजार वर्षों तक रही।
➠ मध्य
प्रदेश में आदमगढ़ एवं राजस्थान के बागोर से प्राचीनतम पशुपालन के साक्ष्य मिले
हैं। इसका समय 5 हजार ईसा पूर्व तक निर्धारित किया जा सकता
है।
➠ मध्य
पाषाण काल मोटे तौर पर 9 हजार ईसा पूर्व से 4 हजार ईसा पूर्व तक बना रहा।
प्राचीनतम
कलाकृतियों -
➠ पुरापाषाण
तथा मध्य पाषाण युग के लोग चित्र बनाते थे, जिसमें मध्य
प्रदेश का भीमबटका स्थल विशेष महत्वपूर्ण वाला है।
➠ भीमबेटका
स्थल दक्षिण विंध्य पर्वत में स्थित है। यहां की कलाकृतियों में चित्रित अधिकांश
पशु एवं पक्षी है, जिनका शिकार जीवन निर्वाह के लिए किया
जाता था।
➠ गुफा में
अनाज पर जीने वाले पर्चिंग पक्षी को इन चित्रों में नहीं पाया गया है, क्योंकि यह चित्र अवश्य ही आंखे खाद्य संग्रह पर आश्रित अर्थव्यवस्था से
संबंधित होंगे।
➠ मिर्जापुर
जिले के बेलन घाटी में विंध्य पर्वत के उत्तरी छोर तथा नर्मदा नदी घाटी के मध्य
भाग में पुरापाषाण काल की तीन अवस्थाएं एक के बाद एक देखने को मिलती है।
➠ मध्य
पाषाण के बाद नव पाषाण संस्कृति आई, जो लौह युग के आरंभ 1000
ईसा पूर्व तक जारी रही।
नवपाषाण
युग (नियोलिथिक) -
खाद्य उत्पादक,
सामाजिक संरचना -
➠ नवपाषाण
युग का आरंभ 9 हजार ईसा पूर्व से माना जाता है।
➠ भारतीय
उपमहाद्वीप में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित मेहरगढ़ नवपाषाण स्थल
का समय 7000 ईसा पूर्व माना जाता है।
➠ 5000 ईसा
पूर्व के लोग मृदभांडों का प्रयोग नहीं करते थे। विंध्य पर्वत के उत्तरी पृष्ठों
में नवपाषाण स्थल 5000 ईसा पूर्व तथा दक्षिण भारत में
नवपाषाण स्थल 2500 ईसा पूर्व के है।
➠ नवपाषाण
में पालिश दार पत्थर के औजारों का प्रयोग किया जाता था।
➠ पत्थर की
कुल्हाडियों का मुख्य रूप से प्रयोग किया गया।
➠ उत्तर
पूर्वी समूह में वक्रधार की कुल्हाड़ी पाई जाती है यह पालिश दार होती थी। इनमें
आयताकार दस्ता लगा होता था, कभी-कभी कंधेदार खंतियों (शोलदर्ड
हो) स्कंअंधी लगी होती थी।
➠ दक्षिण
समूह की कुल्हाडियों की बगलें अंडेकार तथा हत्था नुकीला होता था।
➠ नवपाषाण
काल में उत्तर पश्चिम तथा कश्मीर की संस्कृति में गर्तावास (गड्ढा घर) मृदभांड की
विविधता, पत्थर तथा लकड़ी के औजार सूक्ष्म पाषाण का पूर्ण
अभाव था।
➠ यहां का
महत्वपूर्ण स्थल बर्जाहोम (भूर्ज वृक्ष का स्थान) यह श्रीनगर से उत्तर पश्चिम की
ओर 16 किलोमीटर की दूरी में स्थित, यहां
नवपाषाण युगीन लोग एक झील के किनारे जमीन के नीचे घर बनाकर रहते थे यह शिकार और
मछली पर जीते थे तथा ये खेती से परिचित भी थे। अन्य नवपाषाण स्थल गुफकराल
जिसका अर्थ कुम्हार की गुहा। यह लोग पशुपालन और कृषि दोनों कार्य
करते थे।
➠ भारत में
चिराग ही एकमात्र ऐसा स्थल है जहां पर हड्डी के अनेक उपकरण मिले हैं। यहां से हिरण
के सींग के उपकरण मिले हैं तथा परवर्ती नवपाषाण प्रवेश में 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाए गए हैं। चिराग बिहार के पटना जिले
से 40 किलोमीटर दूरी पश्चिम दिशा में स्थित है।
➠ बुर्जाहोम
के लोग रुखडे धूसर मृदभांड का प्रयोग करते थे। बुर्जाहोम वास स्थान सबसे पूर्व की तिथि 2700 पूर्व है,
वहीं चिराग में मिली हड्डियों की तिथि 2000 सा
पूर्व से पहले कि नहीं बताई जा सकती।
➠ नवपाषाण
का दूसरा समूह दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में रहता था। (ग्रेनाइट के
ऊंचे पठारी भागों में) ये लोग भी गाय, बैल, बकरी तथा पेड़ पालते थे। यह सिलबट्टे का भी प्रयोग करते थे, जिससे लगता है कि यह अनाज उगाना जानते थे।
➠ नवपाषाण
का तीसरा स्थल समूह असम की पहाड़ियों के क्षेत्र में मिलता है तथा औजार उत्तर
पूर्वी सीमा की मेघालय की गारों पहाड़ियों से प्राप्त किए जा सकते हैं।
➠ नवपाषाण
काल के उत्खनन क्षेत्र कर्नाटक में मस्की (मास्की) ब्रह्मगिरि, हल्लूर, कोङ्क्कल, पिकलीहल,
संगेंनकल्लु, टी.नरसीपुर और तैक्कलककोट और
तमिलनाडु में पैयमपल्ली तथा आंध्र प्रदेश में उतनूर प्रमुख हैं। इनसे जान पड़ता है कि दक्षिण भारत में नव पाषाण अवस्था 2000 और उसे 1000 ईसा पूर्व तक जारी रही।
➠ कर्नाटक
के पिकलीहल निवासी पशुपालक थे। तथा उन्हें खुटे गाड़ कर बाडे में बांधते, उनके बीच मौसमी शिविर में रहते थे। यहीं से राख के ढेर और निवास स्थान
दोनों मिलते हैं।
➠ नवपाषाण
युग के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय थे। डंडों से जमीन को खोजते थे, पालिश दार पत्थरों का प्रयोग सूक्ष्म पाषाण पलकों का प्रयोग, मिट्टी के बने तथा सरकंडे के बने गोलाकर या आयताकार घरों में रहते थे।
➠ गोलाकार
घरों पर रहने वालों की संपत्ति पर सामुदायिक स्वामित्व होता था। यह लोग रागी तथा
कुल्थी पैदा करते थे।
➠ मेहरगढ़
में बसे नवपाषाण युग के लोग अधिक उन्नत थे, यह कच्ची ईंटों
के घरों में रहते थे। गेहूं, जौ और रुई का उत्पादन करते थे।
➠ नवपाषाण
युग के सेल्ट कुल्हाड़ी या बसूले छेनी आदि औजार उड़ीसा, छोटा
नागपुर के पठार क्षेत्र से भी मिलते हैं।
➠ मध्य
प्रदेश के कुछ क्षेत्र तथा उत्तरी दक्कन के कुछ क्षेत्रों में नवपाषाण बस्तियों का
आभास बहुत कम होता है।
➠ 9000 ईसा
पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के बीच पश्चिम एशिया में भारी
तकनीकी विकास हुआ, जिससे खेती, बुनाई,
कुंभकारी, भवन निर्माण, पशुपालन,
लेखन कौशल विकसित हुए।
➠ भारतीय
उपमहाद्वीप में नवपाषाण युग ईसा पूर्व छ्ठी सहस्राब्दी के आसपास शुरू हुआ है। इस
समय चावल, गेहूं, जौ आदि प्रमुख फसलें
पैदा की जाने लगी थी।
➠ प्रस्तर
युग के लोगों की एक भारी लाचारी थी, वह पूर्णत: पत्थर के
औजारों और हथियारों पर आश्रित थे, इसलिए वे पहाड़ी इलाकों से
दूर जाकर बस्ती बस्ती या नहीं बस बस आ सके।
अगले
अंक मे - ताम्र पाषाण संस्कृति .,
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