फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन डे (महिला जननांग विकृति के विरुद्ध शून्य सहनशीलता के अंतरराष्ट्रीय दिवस) : 6 फरवरी., - Study Search Point

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फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन डे (महिला जननांग विकृति के विरुद्ध शून्य सहनशीलता के अंतरराष्ट्रीय दिवस) : 6 फरवरी.,

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महिला जननांग विकृति के विरुद्ध शून्य सहनशीलता के अंतरराष्ट्रीय दिवस (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन डे) -
महिला जननांग विकृति (एफजीएम) ऐसा घृणित मानवाधिकार उल्लंघन है, जिससे विश्व की अनेक महिलाएं और लड़कियां प्रभावित हैं। यह कुप्रथा उन्हें गरिमा प्रदान करने से भी इनकार करती है, उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है और उन्हें गैरजरूरी दर्द और तकलीफ भी देती है- कई बार इस प्रथा के कारण उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
शुरुवात - 
महिला जननांग विकृति (एफजीएम) के शिकार यूरोपीय संघ के पीड़ितों के अधिकारों को दिलाने के लिए 4 अक्टूबर 2012, जो स्पष्ट रूप से लिंग आधारित हिंसा के एक घोषणा पत्र के रूप में FGM को संदर्भित करता है, दिसंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (संयुक्त राष्ट्र) ने महिला जननांग विकृति की समाप्ति की घोषणा का प्रस्ताव पारित किया।
उद्देश्य - यह दिन सतत विकास लक्ष्य 2030 तक महिला जननांग विकृति को समाप्त करने का आह्वान करते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने हेतु समग्र और समेकित प्रयासों को सहयोग देने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने विश्वस्तरीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संगठनों से मिलकर कार्य कर रहा है। महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए भारत ने यूरोपीय संघ के सहयोग से "स्पॉटलाइट इनीशिएटिव" कार्यक्रम शुरू किया है। जिसका एफजीएम को समाप्त करना इसके मुख्य उद्देश्यों में से एक है।
➤ संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA - Founded : 1969) और #Dysturb द्वारा आयोजित, न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसे : "68 मिलियन गर्ल्स एट रिस्क" नाम दिया था,  जो महिला जननांगों को छोड़ने के लिए तत्काल वैश्विक लड़ाई में पिछले दशकों में प्राप्त सफलताओं का जश्न मनाती है। उत्परिवर्तन (FGM)। इसका उद्देश्य एफजीएम के बारे में जागरूकता बढ़ाना और कार्रवाई को प्रोत्साहित करना और एफजीएम के परित्याग के लिए एक सम्मोहक तर्क प्रस्तुत करना है। यह प्रदर्शन 6 फरवरी - 25 मार्च 2019 तक प्रदर्शित किया गया।
महिला जननांग विकृति का आधार लैंगिक असमानता और ताकत का असंतुलन है- और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं और लड़कियों को उन अवसरों से वंचित रखा जाता है जिनसे वे अपने अधिकारों और पूर्ण क्षमता के प्रति जागरूक बन सकें। वर्तमान में लगभग 20 करोड़ महिलाएं और लड़कियां इस हानिकारक कुप्रथा की शिकार हैं। इसके अतिरिक्त हर वर्ष लगभग 40 लाख लड़कियों के शिकार होने का खतरा है।


कौन देश ज़ोखिम में है?
अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के अठाईस देशों  में धार्मिक प्रक्रिया के नाम पर एफजीएम किया जाता है। कुछ प्रमुख देश : ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क, जर्मनी, स्पेन, फिनलैंड, फ्रांस, आयरलैंड, इटली, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्वीडन और ब्रिटेन है। यह प्रक्रिया तीस देशों में दो सौ मिलियन से अधिक लड़कियों और महिलाओं पर की जा चुकी है; और प्रतिवर्ष लगभग तीन मिलियन से ज़्यादा लड़कियां को एफजीएम से पीड़ित होने का ज़ोखिम होता है। महिला जननांग विकृति के कारणों में परिवारों और समुदायों के भीतर सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक कारक शामिल होते है।

➠ यह लिंग के बीच गहरी-असमानता को दर्शाता है तथा महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ़ अत्यधिक भेदभाव के प्रकार का निर्माण करता है। यह उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और शारीरिक समग्रता के अधिकारों का भी उल्लंघन करता है, उन्हें यातना और क्रूरता, अमानवीय कृत्य या अपमानजनक उपचार से मुक्त होने का अधिकार है। उन्हें जीवन का अधिकार है, जबकि इस प्रक्रिया का परिणाम मृत्यु है।
एफटीएम में स्वस्थ और सामान्य महिला के जननांग ऊतकों को निकालना और हानि पहुँचाना शामिल है, इस तरह यह लड़कियों और महिलाओं की सामान्य शारीरिक प्रक्रिया को बाधित करता है। इससे कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं है, और यह कई स्वास्थ्य समस्याओं के साथ लड़कियों और महिलाओं को हानि पहुँचाता है।

स्वास्थ्य समस्याएं (जटिलताएं) -
तात्कालिक जटिलताएं: गंभीर दर्द, आघात, रक्तस्राव (खून बहना), टेटनस या सेप्सिस (जीवाणु संक्रमण), पेशाब संबंधी समस्याएं, जननांग के पास खुला घाव और जननांग के आसपास के ऊतकों में क्षति और मृत्यु हो सकती है।
 
दीर्घकालिक
स्वास्थ्य समस्याएं (परिणाम) हैं : -
•    पेशाब संबंधी समस्याएं (पेशाब करते समय दर्द, मूत्र मार्ग में संक्रमण);
•    योनि संबंधी समस्याएं (स्राव, खुजली, बैक्टीरियल वेज़िनोसिस और अन्य संक्रमण);
•    मासिक धर्म संबंधी समस्याएं (माहवारी में दर्द, मासिक धर्म के दौरान रक्त पारित होने में परेशानी)।
•    निशान और कीलोइड गठन;
•    बांझपन;
•    यौन समस्याएं (संभोग के दौरान दर्द, संतोष में कमी);
•    प्रसव संबंधी जटिलताएं (प्रसव में परेशानी, अत्यधिक रक्त बहना, शल्य चिकित्सा से प्रसव, बच्चे को पुन: पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है) और नवजात शिशु की मृत्यु के ज़ोखिम में बढ़ोत्तरी होती है।
•    बाद में सर्जरी की आवश्यकता; तथा
•    मनोवैज्ञानिक समस्याएं (जैसे कि अवसाद, चिंता, पोस्ट-ट्रोमैटिक तनाव विकार, आत्मसम्मान में कमी)।

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