फ़िरोज़ ख़ान (Feroz Khan, 25 सितंबर, 1939 – 27 अप्रैल, 2009) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे। फ़िरोज़ ख़ान अपनी ख़ास शैली, अलग अंदाज़ और किरदारों के लिए जाने जाते रहे। फ़िल्मों में कहीं वो एक सुंदर हीरो की भूमिका में हैं तो कहीं खूंखार विलेन के रोल में दोनों ही चरित्रों में फ़िरोज़ ख़ान जान डाल देते थे। फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बेंगलूर में हुआ था। अफ़ग़ानी पिता और ईरानी माँ के बेटे फ़िरोज़ बेंगलूर से हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे। उनके तीन भाई संजय ख़ान (अभिनेता-निर्माता), अकबर ख़ान और समीर ख़ान हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। फ़िरोज़ की भतीजी और संजय ख़ान की बेटी सुजैन ख़ान की शादी ऋतिक रोशन से हुई, जो फ़िल्मकार राकेश रोशन के पुत्र हैं। फ़िरोज़ ख़ान ने सुंदरी के साथ जिंदगी का सफर 1965 में शुरू किया। दोनों 20 साल तक साथ रहे। 1985 में उनके बीच तलाक हो गया। फ़िरोज़ ख़ान के पुत्र फ़रदीन ख़ान भी अभिनेता हैं।

फ़िरोज़ ख़ान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लाकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फ़िरोज़ ख़ान को हिंदी फ़िल्मों का काउ ब्वाय कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फ़िरोज़ ख़ान। फ़िरोज़ कभी सुपर स्टार नहीं रहे लेकिन उनकी स्टाइल के लोग दीवाने थे और उनकी फ़िल्मों का इंतज़ार करते थे। जब अपनी आखिरी फ़िल्म में जब वे लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर रहे थे तो दर्शकों को एहसास भी था कि उनकी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं। कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बाद भी उन्होंने 'वेलकम' फ़िल्म साइन की और अपना काम हंसते हुए किया। कहते हैं कि उन्होंने अभिनय की कोई फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी उन्हें यह पता था कि कैमरे के सामने कैसे खुद को लाना है। वे हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि 70 के दशक में उन्होंने उसी अंदाज़ को अपनी अभिनय की शैली में शामिल कर लिया
प्रमुख फिल्में
| वर्ष | फ़िल्म | चरित्र | |
|---|---|---|---|
| 2007 | वैलकम | सिकन्दर | |
| 2003 | जानशीन | ||
| 1992 | य़लगार | राजेश अश्विनी कुमार | |
| 1988 | दो वक्त की रोटी | शंकर | |
| 1988 | दयावान | ||
| 1986 | जाँबाज़ | इंस्पेक्टर राजेश सिंह | |
| 1982 | कच्चे हीरे | ||
| 1981 | खून और पानी | ||
| 1980 | कुर्बानी | ||
| 1977 | जादू टोना | ||
| 1977 | दरिन्दा | ||
| 1976 | नागिन | राज | |
| 1976 | शराफत छोड़ दी मैंने | ||
| 1975 | काला सोना | राकेश | |
| 1975 | धर्मात्मा | ||
| 1975 | रानी और लालपरी | ||
| 1974 | अंजान राहें | आनन्द | |
| 1974 | इंटरनेशनल क्लॉक | एस राजेश | |
| 1974 | गीता मेरा नाम | राजा | |
| 1974 | खोटे सिक्के | ||
| 1972 | अपराध | ||
| 1971 | एक पहेली | सुधीर | |
| 1970 | सफ़र | शेखर कपूर | |
| 1969 | प्यासी शाम | अशोक | |
| 1967 | रात और दिन | दिलीप | |
| 1966 | तस्वीर | ||
| 1965 | ऊँचे लोग | ||
| 1964 | सुहागन | शंकर | |
| 1962 | मैं शादी करने चला |
बतौर निर्देशक
| वर्ष | फ़िल्म | |
|---|---|---|
| 2003 | जानशीन | |
| 1998 | प्रेम अगन | |
| 1992 | य़लगार | |
| 1988 | दयावान | |
| 1986 | जाँबाज़ | |
| 1980 | कुर्बानी | |
| 1975 | धर्मात्मा | |
| 1972 | अपराध |
सम्मान एवं पुरस्कार
- उन्हें वर्ष 1970 में फ़िल्म 'आदमी और इंसान' के लिए फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार दिया।
- वर्ष 2000 में फ़िरोज़ को लाइफटाइम अचीवमेंट का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।