प्राण कृष्ण सिकंद (Pran Krishan Sikand, जन्म: 12 फ़रवरी, 1920 - मृत्यु: 12 जुलाई, 2013) हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने नायक, खलनायक और चरित्र अभिनेता थे। प्राण ऐसे अभिनेता थे जिनके चेहरे पर हमेशा मेकअप रहता है और भावनाओं का तूफ़ान नज़र आता है जो अपने हर किरदार में जान डालते हुए यह अहसास करा जाता है कि उनके बिना यह किरदार बेकार हो जाता। उनकी संवाद अदायगी की शैली को आज भी लोग भूले नहीं हैं।
जीवन परिचय -
प्राण का जन्म 12 फ़रवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में बसे एक रईस परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम 'प्राण कृष्ण सिकंद' था। उनका परिवार बेहद समृद्ध था। प्राण बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। बड़े होकर उनका फोटोग्राफर बनने का इरादा था। 1940 में जब मोहम्मद वली ने पहली बार पान की दुकान पर प्राण को देखा तो उन्हें फ़िल्मों में उतारने की सोची और एक पंजाबी फ़िल्म “यमला जट” बनाई, जो बेहद सफल रही। फिर क्या था, इसके बाद प्राण ने कभी मुड़कर देखा ही नहीं। 1947तक वह 20 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम कर चुके थे और एक हीरो की इमेज के साथ इंड्रस्ट्री में काम कर रहे थे। हालांकि लोग उन्हें विलेन के रुप में देखना ज़्यादा पसंद करते थे। अभिनेता प्राण को दशकों तक बुरे आदमी (खलनायक) के तौर पर जाना जाता रहा और ऐसा हो भी क्यों ना, पर्दे पर उनकी विकरालता इतनी जीवंत थी कि लोग उसे ही उसकी वास्तविक छवि मानते रहे, लेकिन फ़िल्मी पर्दे से इतर प्राण असल ज़िंदगी में वे बेहद सरल, ईमानदार और दयालु व्यक्ति थे। समाज सेवा और सबसे अच्छा व्यवहार करना उनका गुण था। प्राण की शुरुआती फ़िल्में हों या बाद की फ़िल्में उन्होंने अपने आप को कभी दोहराया नहीं। उन्होंने अपने हर किरदार के साथ पूरी ईमानदारी से न्याय किया। फिर चाहे भूमिका छोटी हो या बड़ी, उन्होंने समानता ही रखी। प्राण को सबसे बड़ी सफलता 1956 में 'हलाकू' फ़िल्म से मिली जिसमें उन्होंने डकैत हलाकू का सशक्त किरदार निभाया था। प्राण नेराज कपूर निर्मित-निर्देशित 'जिस देश में गंगा बहती है' में राका डाकू की भूमिका निभाई थी जिसमें उन्होंने केवल अपनी आँखों से ही क्रूरता ज़ाहिर कर दी थी। कभी ऐसा वक़्त भी था जब हर फ़िल्म में प्राण नज़र आते थे खलनायक के रूप में। उनके इस रूप को परिवर्तित किया थाभारत कुमार यानी मनोज कुमार ने, जिन्होंने अपनी निर्मित-निर्देशित पहली फ़िल्म 'उपकार' में उन्हें मलंग बाबा का रोल दिया। जिसमें वे अपाहिज की भूमिका में थे, भूमिका कुछ छोटी ज़रूर थी लेकिन थी बहुत दमदार। इस फ़िल्म के लिए उनको पुरस्कृत भी किया गया था। उन पर फ़िल्माया गया कस्में वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में छाया हुआ है। भूले भटके जब कभी यह गीत बजता हुआ कानों को सुनाई देता है तो तुरन्त याद आते हैं प्राण। ऐसा ही कुछ अमिताभ बच्चनअभिनीत ज़ंजीर में भी हुआ था। नायक के पठान दोस्त की भूमिका में उन्होंने अपने चेहरे के हाव भावों और संवाद अदायगी से जबरदस्त प्रभाव छो़डा था। इस फ़िल्म का गीत यारी है ईमान मेरा, यार मेरी ज़िन्दगी सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके नृत्य की वजह से याद किया जाता है।
यादगार फ़िल्में -
प्राण 1942 में बनी ‘ख़ानदान’ में नायक बन कर आए और नायिका थीं नूरजहाँ। 1947 में भारत आज़ाद हुआ और विभाजित भी। प्राण लाहौर से मुंबई आ गए। यहाँ क़रीब एक साल के संघर्ष के बाद उन्हें 'बॉम्बे टॉकीज' की फ़िल्म ‘जिद्दी’ मिली। अभिनय का सफर फिर चलने लगा। पत्थर के सनम, तुम सा नहीं देखा, बड़ी बहन, मुनीम जी, गंवार, गोपी, हमजोली, दस नंबरी, अमर अकबर एंथनी, दोस्ताना, कर्ज, अंधा क़ानून , पाप की दुनिया, मत्युदाता क़रीब 350 से अधिक फ़िल्मों में प्राण साहब ने अपने अभिनय के अलग-अलग रंग बिखेरे। इसके अतिरिक्त प्राण कई सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे और उनकी अपनी एक फुटबॉल टीम बॉम्बे डायनेमस फुटबॉल क्लब भी रही है।
नायकों पर भारी प्राण -
हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है... यह संवाद प्राण ने ही अपने एक फ़िल्म में कहा था, जो आज उनके अभिनय जीवन के सार पर भी सटीक बैठ रहा है। जीवंत अभिनय तथा बेहतरीन संवाद अदायगी के बलबूते दर्शकों के दिलों में खलनायक का भयावह रुप उकेरने वाले प्राण की अदाकारी को भी शब्दों में नहीं ढ़ाला जा सकता। ऐसे में उन्हें लेकर जितने भी शब्दजाल बिने जाये वो कमतर ही होंगे। तभी उनका डॉयलाग 'हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है' का ज़िक्र है, जो दर्शाता है कि प्राण ने अपने संवादों को रुपहले पर्दे पर ही नहीं बल्कि जीवन में भी उतारा। प्राण को दादा साहब फाल्के पुरस्कार की घोषणा शायद इस वजह से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि यह पहली बार परदे पर खलनायक की भूमिका अदा करने वाले एक अभिनेताको मिल रहा है। प्राण सिनेमा के परदे पर खलनायकी के पर्याय हैं। प्राण ने अपने कैरियर की शुरुआत पंजाबी फ़िल्म 'यमला जट' से 1940 में की थी। 1942 वाली हिंदी फ़िल्म 'खानदान' से उनकी छवि रोमांटिक हीरो की बनी। लाहौर से मुंबई आने के बाद 'जिद्दी' से उनके बॉलीवुड कैरियर की शुरुआत हुई। इसके बाद तो वह हिंदी फ़िल्मों के चहेते विलेन ही बन गए। प्राण नेहिंदी सिनेमा की कई पीढ़ियों के साथ अभिनय किया। दिलीप कुमार, देव आनंद और राजकपूर के साथ पचास के दशक में, साठ और सत्तर के दशक में शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार और धर्मेंद्र के साथ उनकी कई फ़िल्में यादगार रहीं। वह जो रोल करते, उसकी आत्मा में उतर जाते। लोग उन्हें विलेन और साधु, दोनों रूपों में सराहने लगे। 'पूजा के फूल' और 'कश्मीर की कली' जैसी फ़िल्मों से प्राण ने अपना नाता कॉमेडी से भी जोड़ लिया। अस्सी के दशक में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ उनकी कई यादगार फ़िल्में आईं। उनकी खलनायकी के विविध रूप 'आजाद', 'मधुमती', देवदास, 'दिल दिया दर्द लिया', 'मुनीम जी' और 'जब प्यार किसी से होता है' में देखे जा सकते हैं। उनकी हिट फ़िल्मों की फेहरिस्त भी बड़ी लंबी है। अपने समय की लगभग सभी प्रमुख अभिनेत्रियोंके साथ उनकी फ़िल्में आईं। पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में शिक्षित प्राण किसी भी ज़बान और लहजे को अपना बना लेते थे। उनकी अदा और डायलॉग डिलीवरी रील रोल को रियल बना देती थी। उनका डायलॉग -तुमने ठीक सुना है बरखुरदार, चोरों के ही उसूल होते हैं खूब चर्चित हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि चार सौ से अधिक फ़िल्में करने वाले प्राण ने खुद को कभी दोहराया नहीं। 'पत्थर के सनम' हो या 'जिस देश में गंगा बहती है', 'मजबूर' हो या 'हाफ टिकट' या फिर 'धर्मा', प्राण ने हर फ़िल्म में अपनी मौजूदगी का पूरा अहसास कराया।
प्रख्यात फ़िल्म समीक्षक अनिरूद्ध शर्मा कहते हैं ‘‘प्राण की शुरुआती फ़िल्में देखें या बाद की फ़िल्में, उनकी अदाकारी में दोहराव कहीं नज़र नहीं आता। उनके मुंह से निकलने वाले संवाद दर्शक को गहरे तक प्रभावित करते हैं। भूमिका चाहे मामूली लुटेरे की हो या किसी बड़े गिरोह के मुखिया की हो या फिर कोई लाचार पिता हो, प्राण ने सभी के साथ न्याय किया है।’’ फ़िल्म आलोचक मनस्विनी देशपांडे कहती हैं कि वर्ष 1956 में फ़िल्म हलाकू मुख्य भूमिका निभाने वाले प्राण ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में 'राका डाकू' बने और केवल अपनी आंखों से क्रूरता ज़ाहिर की। लेकिन 1973 में ‘जंजीर’ फ़िल्म में अमिताभ बच्चनके मित्र शेरखान के रूप में उन्होंने अपनी आंखों से ही दोस्ती का भरपूर संदेश दिया। वह कहती हैं ‘‘उनकी संवाद अदायगी की विशिष्ट शैली लोग अभी तक नहीं भूले हैं। कुछ फ़िल्में ऐसी भी हैं जिनमें नायक पर खलनायक प्राण भारी पड़ गए। चरित्र भूमिकाओं में भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है।
प्रमुख फिल्में -
वर्ष फ़िल्म
2002 तुम जियो हज़ार साल
1999 जय हिन्द
1998 बदमाश
1997 गुड़िया
1997 सलमा पे दिल गया है
1997 लव कुश
1996 तेरे मेरे सपने
1995 साजन की बाहों में
1994 भाग्यवान
1994 हम हैं बेमिसाल
1993 1942: अ लव स्टोरी
1993 गुरुदेव
1993 चन्द्रमुखी
1993 आजा मेरी जान
1992 इसी का नाम ज़िन्दगी
1992 इन्तेहा प्यार की
1992 माशूक
1991 सनम बेवफ़ा
1991 बंजारन
1991 लक्ष्मण रेखा
1990 रोटी की कीमत
1990 आज़ाद देश के गुलाम
1989 तूफान
1989 जादूगर
1989 दाता
1988 पाप की दुनिया
1988 गुनाहों का फ़ैसला
1988 मोहब्बत के दुश्मन
1988 शेरनी
1988 धर्मयुद्ध
1988 कसम
1988 औरत तेरी यही कहानी
1987 गोरा
1987 हिफ़ाज़त
1987 कुदरत का कानून
1987 ईमानदार
1987 मुकद्दर का फैसला
1986 धर्म अधिकारी
1986 लव एंड गॉड
1986 जीवा लाला
1986 बेटी रामू
1986 सिंहासन
1986 दिलवाला
1985 पाताल भैरवी
1985 कर्मयुद्ध
1985 माँ कसम
1985 बेवफ़ाई
1985 युद्ध
1985 होशियार
1985 सरफ़रोश
1984 हसीयत
1984 राज तिलक
1984 सोनी महिवाल
1984 लैला
1984 फ़रिश्ता
1984 इंसाफ कौन करेगा
1984 दुनिया
1984 राजा और राना
1984 मेरा फैसला
1984 जागीर
1984 शराबी
1983 फ़िल्म ही फ़िल्म
1983 नास्तिक
1983 वो जो हसीना
1983 अंधा कानून
1983 दौलत के दुश्मन
1983 सौतन
1983 नौकर बीवी का
1982 ताकत
1982 तकदीर का बादशाह
1982 जानवर
1982 जीओ और जीने दो
1981 खुदा कसम
1981 क्रोधी
1981 कालिया
1981 लेडीज़ टेलर
1981 खून का रिश्ता
1981 मान गये उस्ताद
1981 नसीब
1981 वक्त की दीवार
1980 ज़ालिम
1980 जल महल
1980 बॉम्बे 405 मील
1980 कर्ज़
1980 धन दौलत
1980 आप के दीवाने
1980 ज्वालामुखी
1980 दोस्ताना
1978 डॉन
1978 काला आदमी
1978 खून की पुकार
1978 अपना कानून
1978 दो मुसाफ़िर
1978 विश्वनाथ
1978 गंगा की सौगन्ध
1978 चोर हो तो ऐसा
1978 देश परदेस
1977 चक्कर पे चक्कर
1977 चाँदी सोना
1977 धर्मवीर
1977 हत्यारा
1977 अमर अकबर एन्थोनी
1976 दस नम्बरी
1976 शंकर दादा
1975 वारंट
1975 चोरी मेरा काम
1975 दो झूठ
1975 सन्यासी
1974 मज़बूर
1974 कसौटी
1973 ज़ंजीर
1973 जुगनू श्याम
1973 जोशीला
1973 बॉबी
1973 गद्दार
1972 यह गुलिस्ताँ हमारा
1972 परिचय
1972 विक्टोरिया नम्बर २०३
1972 जंगल में मंगल
1972 रूप तेरा मस्ताना
1972 एक बेचारा
1972 सज़ा
1972 बेईमान
1972 आन बान
1971 ज्वाला
1971 नया ज़माना
1971 जवान मोहब्बत
1970 हमजोली
1970 गोपी लाला
1970 यादगार
1970 जॉनी मेरा नाम
1970 पूरब और पश्चिम
1970 भाई भाई
1969 अंजाना
1969 सच्चाई
1969 भाई बहन
1969 आँसू बन गये फूल
1968 ब्रह्मचारी
1968 साधू और शैतान
1968 आदमी
1967 मिलन
1967 उपकार
1967 एराउन्ड द वर्ल्ड
1967 पत्थर के सनम
1967 राम और श्याम
1966 दस लाख
1966 दो बदन
1966 लव इन टोक्यो
1966 सावन की घटा
1965 खानदान
1965 मेरे सनम
1965 गुमनाम
1965 शहीद
1964 दूर की आवाज़
1964 राजकुमार
1964 पूजा के फूल
1963 फिर वही दिल लाया हूँ
1963 मेरे महबूब
1963 दिल ही तो है
1962 हाफ टिकट
1962 दिल तेरा दीवाना
1962 झूला
1962 मनमौजी
1961 जब प्यार किसी से होता है
1960 जिस देश में गंगा बहती है
1960 छलिया
1960 माँ बाप
1960 महलों के ख़्वाब
1959 बेदर्द ज़माना क्या जाने
1959 प्यार की राहें
1958 मधुमती
1958 अमर दीप
1957 आशा राज
1957 झलक
1957 मिस्टर एक्स
1956 इंस्पेक्टर
1956 चोरी चोरी
1955 आज़ाद
1955 पहली झलक
1955 मुनीम जी
1955 कुंदन
1954 लकीरें
1954 बिरज बहू
1953 आह
1951 बहार
1951 अफ़साना
1950 शीश महल
1948 ज़िद्दी
सम्मान एवं पुरस्कार -
प्राण को तीन बार 'फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता' का पुरस्कार मिला और 1997 में उन्हें फ़िल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट ख़िताब से नवाजा गया। आज भी लोग प्राण की अदाकारी को याद करते हैं। क़रीब 350 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय के अलग अलग रंग बिखेरने वाले प्राण को हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान के लिए 2001 में भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। सन् 2012 के लिए भारत सरकार ने प्राण को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।
1973 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - बेईमान
1970 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - आँसू बन गये फूल
1968 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - उपकार
पद्म भूषण
प्राण सिकंद को सन 2001 में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।