उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण द्वारा कठिनता से उपलब्ध पदार्थ भी सहज में प्राप्त किए, जा सकते हैं तथा बहुत सी तकनीकी की विधियाँ, जो विशेष महत्व की हैं, इसी पर आधारित हैं। इनमें द्रव ग्लिसराइडों (तेलों) से अर्थ ठोस या ठोस वनस्पति बनाने की विधि अधिक महत्वपूर्ण है। तेल में द्रव ग्लिसराइड रहता है। हाइड्रोजनीकरण से वह अर्थ ठोस वनस्पति में परिवर्तित हो जाता है। मछली का तेल हाइड्रोजनीकरण से गंधरहित भी किया जा सकता है, जो उत्कृष्ट साबुन बनाने के काम आता है। नैफ्थलीन, फिनोल और बेंजीन के हाइड्रोजनीकरण से द्रव उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं जो महत्व के विलायक हैं। टर्पीन के उत्प्रेरकीय हाइड्रोजनीकरण से बहुत से महत्व के व्युत्पन्न, विशेषता मेंथोल, कैंफर (कपूर) आदि प्राप्त होते हैं। यूरोप में, जहाँ पेट्रोल की बड़ी कमी है, भूरे कोयले तथा विंटुमेनी कोयले के उच्च दबाव (700 वायुमंडलीय तक) पर हाइड्रोजनीकरण से पेट्रोलियम प्राप्त हुआ है। अलकतरे के हाइड्रोजनीकरण से भी ऐसे ही उत्पाद प्राप्त हुए हैं। ईंधन तेल, डीज़ल तेल तथा मोटर और वायुयानों के पेट्रोल का उत्पादन इस प्रकार किस जा सकता है। ऐसी विधि एक समय अमरीका में प्रचलित थी पर ऐसे उत्पाद के मँहगे होने के कारण इनका उपयोग आज सीमित है। यदि प्रयोग किया जानेवाला पदार्थ प्रयोगत्मक ताप पर गैसीय हो तो हाइड्रोजनीकरण के लिए उस पदार्थ और हाइड्रोजन के मिश्रण को, जिसमें हाइड्रोजन की मात्रा अधिक रहे, एक नली या आसवन फ्लास्क में रखे उत्प्रेरक से होकर प्रवाहित करने से उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं। असंतृप्त द्रवों का हाइड्रोजनीकरण सुगमता से तथा सरल रीति से संपन्न होता है। द्रव तथा सूक्ष्मकणात्मक उत्प्रेरक को एक आसवन फ्लास्क में भली भाँति मिलाकर तैल ऊष्मक में गरम करते और बराबर हाइड्रोजन प्रवाहित करते रहते हैं। यद्यपि इस प्रयोग में हाइड्रोजन अधिक मात्रा में लगता है, क्योंकि कुछ हाइड्रोजन यहाँ नष्ट हो जाता है, फिर भी यह विधि सुविधाजनक है। यदि इसमें एक प्रकार का यंत्र प्रयोग में लावें, जिससे अवशोषित हाइड्रोजन की मात्रा मालूम होती रहे, तो अच्छा होगा तथा इससे रसायनिक क्रिया किस अवस्था में है इसका ज्ञान होता रहेगा। कुछ हाइड्रोजनीकरण दबाव के प्रभाव में शीघ्रता से पूर्ण हो जाता है। इसके लिए पात्र ऐसी धातु का बना होना चाहिए जो दबाव को सहन कर सके।
साधारणत: ताप के उठाने से हाइड्रोजनीकरण की गति बढ़ जाती है। पर इससे हाइड्रोजन का आंशिक दबाव कम हो जाता है, जिसके फलस्वरूप विलायक का वाष्प दबाव बढ़ जाता है। अत: हर प्रयोग के लिए एक अनुकूलतम ताप होना चाहिए। हाइड्रोजनीकरण की गति और दबाव की वृद्धि में कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है। निकेल उत्प्रेरक के साथ देखा गया है कि दबाव के प्रभाव से उत्पाद की प्रकृति भी कुछ बदल जाती है। हाइड्रोजनीकरण पर उत्प्रेरक की मात्रा का भी कुछ सीमा तक प्रभाव पड़ता है। उत्प्रेरक की मात्रा की वृद्धि से हाइड्रोजनीकरण की गति में कुछ सीमा तक तीव्रता आ जाती है। कभी कभी देखा जाता है कि उत्प्रेरक के रहते हुए भी हाइड्रोजनीकरण रुक जाता है। ऐसी दशा में उत्प्रेरक को हवा अथवा ऑक्सीजन की उपस्थिति में प्रक्षुब्ध करते रहने से क्रिया फिर चालू हो जाती है। कुछ पदार्थ उत्प्रेरक विरोधी अथवा उत्प्रेरक विष होते हैं। गंधक, आर्सेनिक तथा इनके यौगिक और हाइड्रोजन सायनाइड उत्प्रेरक विष है। पारद और उसके यौगिक अल्प मात्रा में कोई विपरीत प्रभाव नहीं उत्पन्न करते पर बड़ी मात्रा में विष होते हैं। अम्ल थोड़ी मात्रा में क्रिया की गति को बढ़ाते हैं। आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि बेंज़ीन का हाइड्रोजनीकरण प्लेटिनम कालिख की उपस्थित में पीएच पर निर्भर करता है, अम्लीय अवस्था में अधिक तीव्र तथा क्षारीय दशा में प्राय: नहीं के बराबर होता है।
उत्प्रेरकों के प्रभाव में इतनी भिन्नता है कि इनके संबंध में कोई निश्चित मत नहीं दिया जा सकता। साधारण हाइड्रोजनीकरण के लिए प्लैटिनम, धातुओं के आक्साइड, पैलेडियम, स्ट्राशियम कार्बोनेट, सक्रियकृत कार्बनचूर्ण और नीकेल विशेष रूप से प्रयुक्त होते हैं। एल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल, एथिल ऐसीटेट उत्कृष्ट तथा अनुकूल माने जाते है।
हाइड्रोजनीकरण का महत्व
हाइड्रोजनीकरण बड़े महत्व का तकनीकी प्रक्रम आज बन गया है। पाश्चात्य देशों में तेलों में मारगरीन, भारत में तेलों से वनस्पति घी, कोयले से पेट्रोलियम, अनेक कार्बनिक विलायकों, प्लास्टिक माध्यम, लंबी शृंखलावाले कार्बनिक यौगिकों - जिनका उपयोग पेट्रोल या साबुन बनाने में आज होता है - हाइड्रोजनीकरण से तैयार होते हैं। ह्वेल और मछली के तेलों के इस प्रकार हाइड्रोजनीकरण से मारगरीन और मूँगफली के तेल से कोटोजेम, नारियल के तेल से फोकोजेम और मूँगफली के तेल से डालडा आदि बनते हैं। हाइड्रोजनीकरण के लिए एक निश्चित ताप 100रू सें. से 200रू सें. और निश्चित दबाप 10 से 15 वायुमंडलीय अच्छा समझा जाता है। एथिलीन सदृश युग्मबंधवाले, ऐसीटिलीन सदृश त्रिकबंधवाले और कीटोनसमूहवाले यौगिक शीघ्रता से हाइड्रोजनीकृत हो जाते हैं। ऐसे यौगिकों में यदि एल्किल समूह जोड़ा जाए तो हाइड्रोजनीकरण की गति उनके भार के अनुसार धीमी होती जाती है। ऐरोमैटिक वलय वाले यौगिक उतनी सरलता से हाइड्रोजनीकृत नहीं होते। उच्च ताप पर हाइड्रोजनीकरण से वलय के टूट जाने की संभावना रहती है। ऐसा कहा जाता कि ट्रांस रूप की अपेक्षा सिस रूप का हाइड्रोजनीकरण अधिक तीव्रता से होता है, पर इस कथन की पुष्टि नहीं हुई है।