लगभग सभी 50,000 या इससे अधिक तारकीय स्पेक्ट्रमों को जिनका अध्ययन किया जा चुका है इन्हें इस प्रकार नियमित क्रम से व्यवस्थित किया गया है जिसमें उनके अनेक गुण धीरे धीरे बदलते हैं। ऐसे गुण, प्रभावी ताप, रंग, अवशोषणरेखाओं या पट्टियों की आपेक्षिक तीव्रता आदि हैं। स्पेक्ट्रम के वर्गीकरण की जितनी भी प्रणालियाँ प्रस्तावित की गई हैं उनमें ऐनी कैनन (Annie Cannon) द्वारा प्रस्तुत हार्वर्ड वर्गीकरण संतोषजनक रूप से स्वीकृत है। ये वर्ग है - शून्य (o), बी (B), ए (A), एफ (F), जी (G), के (K) और एम (M)। ऐसे अपेक्षाकृत कम तारे हैं जो मुख्य क्रम से के (K) पर शाखा बनाते हैं; वे एन (N) और यस (S) के नाम से जाने जाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पुन: अंतर्विभाजन होता है जिसके लिए अक्षरों या 9 तक के अंकों का उपयोग किया जाता है। जिन तारों का स्पेक्ट्रम ज्ञात हो चुका है उनमें 90% से अधिक ए (A), एफ (F), जी (G) और के (K) वर्ग के हैं।
वर्ग शून्य - इसमें 30,000 एंग्स्ट्रॉम से अधिक प्रभावी तापवाले नीलेश्वेत तारे हैं जिनके स्पेक्ट्रम में चमकीले बैंड पाए जाते हैं। ये बैंड धुँधली संतत पृष्ठभूमि पर आरोपित हाइड्रोजन, आयनित हीलियम दुबारा और तिबारा आयनित और नाइट्रोजन के कारण हैं, जैसे टी प्यूपिस (T. Pupis), वाल्फ राये (Wolf Rayet) तारे।
वर्ग बी - इसमें लगभग 20,000 एंग्स्ट्रॉम ताप के श्वेत तारे है जिनके स्पेक्ट्रम में प्रबल हाइड्रोजन रेखाएँ होती हैं। हीलियम अनुपस्थित होता है। एच (H) और के (K) रेखाएँ कुछ-कुछ दिखाई देती हैं। वर्धित धात्विक रेखाएँ भी पाई जाती हैं परंतु वे दुर्बल होती हैं, जैसे लुब्धक (Sirius), अभिजित (Vega) तथा फोमलहॉट (Fomalhaut)।
वर्ग एफ - इसमें वे तारे हैं जिनका ताप लगभग 7,500 एंग्स्ट्रॉम है और जिनके स्पेक्ट्रम में प्रबल एच (H) तथा के (K) रेखाएँ न्यून प्रबल हाइड्रोजन रेखाएँ और अधिक संख्याओं में सुस्पष्ट धात्विक रेखाएँ पाई जाती हैं, जैसे अगस्त्य (Canopus) तथा प्रोसियन (Procyon)।
वर्ग जी - ये सूर्य की किस्म के पीले तारे हैं जिनका प्रभावी ताप 6,000 एंग्स्ट्रॉम है। इनके स्पेक्ट्रम में प्रबल एच (H) तथा के (K) रेखाएँ और अनेक सूक्ष्म धात्विक रेखाएँ पाई जाती हैं, जैसे सूर्य, कैपेला (Capella) और ठ्ठ सेंटारी (a-Centauri)।
वर्ग के - ये नारंगी रग के तारे हैं जो जी और एम वर्ग के मध्य में होते हैं। इनका ताप लगभग 4,200 एंग्स्ट्रॉम के होता है। इनके स्पेक्ट्रम में धातुओं की उदासीन रेखाएँ प्रबल और एच एवं के रेखाएँ भी बड़ी प्रबल होती है।हाइड्रोजन रेखाएँ अपेक्षाकृत निर्बल होती हैं। संतत स्पेक्ट्रम की चमक बैंगनी में शीघ्रता से कम हो जाती है, जैसे सूर्यकलंक, स्वाती (Arcturus)।
वर्ग एम - लगभग 3,000 एंग्स्ट्रॉम ताप के ये लाल तारे हैं। इनके स्पेक्ट्रम के (K) तारों के स्पेक्ट्रम के समान ही होते हैं पर अंतर केवल इतना ही है कि इनमें टाईटेनियम ऑक्साइड के सुस्पष्ट बैंड पाए जाते हैं, जैसे ज्येष्ठा (Antares), आर्द्रा (Betelgeuse)।
वर्ग एन - ये लाल तारे हैं जिनका ताप लगभग 3,000 एंग्स्ट्रॉम होता है। इन्हें कार्बन तारे भी कहते हैं। संतत स्पेक्ट्रम पर, जो बैंगनी में बहुत दुर्बल होता है, आणविक कार्बन के कारण काले हंस बैंड (dark Swan bands) अध्यारोपित रहते हैं, जैसे वाई कैनम (Y-Canum), बैनाटिकी रम, (19 Pisces)।
वर्ग आर - इस किस्म के तारों के स्पेक्ट्रम में एन वर्ग के तारों की भाँति ही बैंड होते हैं परंतु स्पेक्ट्रम बैंगनी तक फैला रहता है। ये तारे बड़े धुँधले हैं और कुछ ही ज्ञात हैं।
वर्ग एस - इन तारों के स्पेक्ट्रम एम (M) वर्ग के समान होते हैं। अंतर यही है कि टाईटेनियम ऑक्साइड के स्थान पर जरकोनियम ऑक्साइड के बैंड रहते हैं। इन तारों की संख्या बहुत थोड़ी है और ये बड़े धुँधले होते हैं।
वोल्फ राये तारे
1867 ई. में पैरिस वेधशाला के वोल्फ और राये ने एक चाक्षुष स्पेक्ट्रमलेखी की सहायता से सिग्नस (Cygnus) के बड़े तारामेध में तीन बड़े असाधारण तारकीय स्पेक्ट्रमों का पता लगाया। अन्य स्पेक्ट्रमों से ये स्पेक्ट्रम इस बात में भिन्न थे कि इनमें चौड़े उत्सर्जन बैंड थे। कुछ बैंड अभी तक पहचाने नहीं गए थे। प्रत्येक बैंड दोनों ओर समान रूप से धुँधला होता गया था। उसमें रेखाएँ नहीं थीं और सभी बैंड धुँधले संतत स्पेक्ट्रम पर अध्यारोपित थे। इनपर हाइड्रोजन और आयनित हीलियम की चमकीली रेखाएँ थीं। अभी तक इस किस्म के लगभग 100 तारों का आकाशगंगा (milky way) और मैलैनीय मेघों (Magelleanic clouds) में पता लगा है। वोल्फ राये तारे शून्य वर्ग में निचली श्रेणी के अंतर्गत आते है और ज्ञात तारों में उष्णतम हैं। इन तारों का ताप 1,00,000 एंग्स्ट्रॉम क्रम का है। अनेक एम तारों के स्पेक्ट्रमों में संतत स्पेक्ट्रम पर दूसरी काली रेखाओं के मध्य में चमकीली हाइड्रोजन रेखाएँ दिखाई देती हैं। इन तारों को उत्सर्जन तारे कहते हैं और इन्हें एम ई (Me) से प्रकट करते हैं। एम-ई तारों की चमक परिवर्ती (Variable) होती है।
उपर्युक्त स्पेक्ट्रम वर्गों के अतिरिक्त दो और वर्ग हैं जिन्हें पी (P) और क्यू (Q) अक्षरों से प्रकट करते हैं। गैसीय नीहारिकाओं (Nebulae) के स्पेक्ट्रमों को, जिनमें चमकीली रेखाएँ पाई जाती हैं, पी (P) वर्ग में तथा नवताराओं (Nova) के स्पेक्ट्रमों को क्यू (Q) वर्ग में रखते हैं। नवताराओं के स्पेक्ट्रम और पी सिगनी (P-cygani) किस्म के तारों में प्राय: दोहरी रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं जिनमें एक चौड़ा उत्सर्जक घटक (Component) और एक तीव्र अवशोषण घटक होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये तारे शीघ्रता से बढ़ती हुई पट्टिका या खोल (Shell) द्वारा घिरे रहते हैं। कुछ बी (B) किस्म के तारे भी हैं जिनमें ऐसी उत्सर्जन रेखाएँ पाई जाती हैं जिनमें से प्रत्येक एक अवशोषणरेखा द्वारा खंडित रहती है। यह तारों के चारों ओर घूर्णी गैसीय खोल (Shell) के कारण होता है। उत्सर्जन रेखाएँ खोल (Shell) द्वारा उत्पन्न होती हैं और अपने विभिन्न भागों के डॉपलर विस्थापन (Shift) द्वारा चौड़ी की जाती हैं। केंद्रीय धुंधली रेखा की उत्पत्ति खोल के उस भाग से होती है जो तारे और तारे के विकिरण का अवशोषण करनेवाले प्रेक्षक की दृष्टिरेखा के आर पार घूमता है। यह आवृत्ति इस स्पेक्ट्रम की अपनी विशेषता है।
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