डॉ॰ बिधान चंद्र राय (जुलाई 1, 1882 - जुलाई 1,1962) चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री थे, 14जनवरी 1948 से उनकी म्रत्यु तक 14 वर्ष तक वे इस पद पर थे। उनका जन्म खजान्ची रोड बन्कीपुर,पटना, बिहार मे हुआ था। खजान्ची रोड स्थित उन्के जन्म स्थान को वर्तमान मे अघोर प्रकाश शिशु सदन नामक विधालय मे परिवर्तित कर दिया गया है। उन्होने कलकत्ता विश्वविघालय के कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उनके जन्मदिन 1 जुलाई को भारत मे चिकित्सक दिवस के रुप मे मनाया जाता है। उन्हे वर्ष 1961 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। भारत में 1 जुलाई 2014 को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया गया. यह दिवस प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. बिधान चंद्र रॉय जिनका जन्म और मृत्यु की सालगिरह एक ही दिन पर पड़ती है, को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है. उन्होंने 4 फ़रवरी 1961 को भारत रत्न प्राप्त किया. डॉक्टर दिवस हमारे दैनिक जीवन में डॉक्टर की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने एवं एक अवसर है जब सेवा में समर्पित लाखों डॉक्टरों को सम्मान देने का एक मौका है|
शुरुआत
चिकित्सकों का महत्त्व रेखांकित करने की आवश्यकता अमेरिका के जॉर्जिया निवासी डॉ. चार्ल्स बी आल्मोंद की पत्नी यूदोरा ब्राउन आल्मोंद ने महसूस की थी। उनके प्रयासों से ही पहली बार 30 मार्च, 1930 को अमेरिका में 'डॉक्टर्स डे' (चिकित्सक दिवस) मनाया गया। इस दिन को मनाने के पीछे चिकित्सकों का दैनिक जीवन में महत्त्व बताने की भावना प्रमुख थी। इसके लिए 30 मार्च की तारीख़ इसलिए चुनी गई थी, क्योंकि जॉर्जिया में इसी दिन डॉ. क्राफोर्ड डब्ल्यू लोंग ने पहली बार ऑपरेशन के लिए एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया था। इसीलिए तब से 'चिकित्सक दिवस' मनाने का चलन शुरू हो गया। अलग-अलग देशों में 'चिकित्सक दिवस' अलग-अलग तिथि को मनाया जाता है। भारत में 1 जुलाई का दिन चिकित्सकों के लिए समर्पित है।वर्ष 1991 से भारत में इस दिन को 'राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस' के रूप में मनाने की शुरूआत हुई थी। 1 जुलाई को देश के प्रख्यात चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवी डॉ. बिधान चन्द्र राय का जन्मदिन और पुण्य तिथि दोनों ही हैं। 1 जुलाई, 1882 को बिहारमें जन्मे बिधान चन्द्र राय 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम' के एक अहम सिपाही रहे थे। आज़ादी के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन अपने व्यवसाय यानि चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया। पश्चिम बंगाल में अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने कई अहम विकास कार्य किए। अपने अथक प्रयासों और समाज कल्याण के कार्यों के लिए उन्हें 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया था। 1 जुलाई, 1962 को उनका निधन हुआ। चिकित्सक धरती पर भगवान का दूसरा रुप होता है। भगवान तो एक बार जीवन देता है, किंतु डॉक्टर हमारी अमूल्य जान को बार-बार बचाता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ डॉक्टरों ने भगवान से भी बढ़कर काम किया है। बच्चे को जन्म देना हो या किसी वृद्ध को बचाना हो, चिकित्सक की मदद हमेशा मुसीबतों से मानव को बचाती है। यही एक ऐसा पेशा है, जहाँ दवा और दुआ का अनोखा संगम देखने को मिलता है, इंसान को भगवान भी यहीं बनाया जाता है। चिकित्सकों ने मानव जाति के लिए बहुत समर्पण किया है। यदि भारतकी बात की जाए तो देखेंगे कि यहाँ आज भी चिकित्सकों और वैद्यों का विशेष आदर-सत्कार किया जाता है। आधुनिक युग में तो चिकित्सकों की मांग और भी बढ़ गई है। चिकित्सक के इसी समर्पण और त्याग को याद करते हुए 1 जुलाई का दिन भारत में 'राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। चिकित्सक दिवस मनाने का सबसे बड़ा महत्त्व यह है कि सभी चिकित्सक अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और लोगों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित दु:ख, तकलीफ और रोग आदि के प्रति सजग रहें।
भारत में बिधान चन्द्र राय के जन्म दिन पर हर वर्ष 'राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस' 1 जुलाई को मनाया जाता है, लेकिन इस परंपरा से परे अब चिकित्सा पेशे का वह पहले जैसा सम्मान नहीं रह गया है, साथ ही यह भी कहना होगा कि दूसरे पेशों का सम्मान भी समाज और देश में बढ़ते भ्रष्टाचार और मूल्यों में गिरावट के चलते कम हुआ है। चूँकि डॉक्टरी को लोग एक पेशे से परे ईश्वर की तरह का दर्ज़ा देते थे, इसलिए उससे अधिक निराशा होना भी स्वाभाविक था और उसकी बदनामी भी अधिक होनी थी। एक तरफ़ चिकित्सा के काम में नई तकनीक, उद्योग और बाज़ार के तौर-तरीक़ों के मुताबिक बड़ा पूंजीनिवेश और महंगा इलाज़, इन सबका आना और पैर जमाना हुआ, तो दूसरी तरफ़ इस पेशे से चिकित्सक और मरीज़ के इंसानी संबंध कुछ कमज़ोर हो गए। जब भी कोई पेशा कारोबार में तब्दील होता है तो उसके तरीक़े भी बदल जाते हैं। एक वक़्त आज़ादी की लड़ाई में बहुत छोटी-छोटी सी मशीनों पर मालिक-संपादक अख़बार निकालते थे और जेल जाते थे। वे लौटकर आते थे और फिर सरकार के ख़िलाफ़ लड़ते थे और फिर जेल जाते थे। लेकिन अब अख़बार मीडिया हो गए, बड़े-बड़े कारोबार हो गए, और उनके नीति-सिद्धांत कमज़ोर हो गए। अब किसी बहुत बड़े और ताक़तवर के ख़िलाफ़ छपने की गुंजाइश कम रह गई है। यही हाल राजनीति और चुनाव के महँगे होते चले जाने से नेताओं का हो गया, इसलिए सिर्फ़ चिकित्सको को कोसने से बात न्यायसंगत नहीं कही जा सकती।
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