भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक विशिष्ट पहलू : कृषि मजदूर, - Study Search Point

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भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक विशिष्ट पहलू : कृषि मजदूर,

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कृषि मजदूर : -
भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक विशिष्ट पहलू, फसल उत्पादन में कृषि मजदूरों का उपस्थिति होना है। कृषि मजदूरों के सन्दर्भ में बेरोजगारी, अविकास तथा अतिरिक्त मजदूरी की समस्या देखने को मिलती है। भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि मजदूरों की दशा सबसे दयनीय है। इन मजदूरों की आय बहुत कम है तथा इन्हें रोजगार प्राप्त करने में भी समस्या होती है। क्योंकि इन मजदूरों के पास ट्रेनिंग के अभाव में अतिरिक्त कुशलता नहीं होने के कारण, किसी दूसरी जगह रोजगार पाने की भी समस्या होती है। 
कृषि मजदूर की परिभाषा: ऐसे किसी मजदूर को जो पूर्ण या आंशिक रूप से पूरी या वर्ष के कुछ दिनों में कृषि क्षेत्रा में मुख्य या सहायककर्ता के रूप में, मजदूरी पर कार्य करता है, उसे कृषि मजदूर कहा जाता है।
    
कृषि मजदूर का भूमि पर कोई अधिकार नहीं होता है, उत्पादन पर भी कोई अधिकार नहीं होता है। कृषि मजदूर उत्पादन की प्रक्रिया में सम्मिलित खतरे से भी दूर रहता है अर्थात कृषि उत्पादन में निहित खतरे में कृषि मजदूर की कोई भूमिका नहीं होती है। कृषि मजदूर की परिभाषा में वे मजदूर भी शामिल हैं जो ऐसी जगह रोजगारकृत हंै जो कृषि पर आधारित है, जैसे- पशुपालन, डेयरी, मुर्गीपालन आदि। कृषि मजदूरी जाँच समिति के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसकी आय का मुख्य साधन या जो अपनी आय कृषि फार्म पर काम करके मजदूरी के रूप में कमाता है, कृषि मजदूर कहलाता है। 
कृषि मजदूर को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - 
भूमिहीन कृषि मजदूर: वो मजदूर जिनके पास भूमि नहीं होती है, को भूमिहीन कृषि मजदूर कहते हैं। भूमि कृषि मजदूरों को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। स्थायी भूमिहीन कृषि मजदूर अस्थायी भूमिहीन कृषि मजदूर स्थायी भूमिहीन कृषि मजदूर किसी अनुबंध के तहत कृषि फार्म पर मजदूरी करता है। मजदूरी किसी परम्परा के अनुसार निश्चित की जाती है। 
अस्थायी भूमिहीन कृषि मजदूर वो मजदूर है, जो कृषि में केवल कुछ समय के लिए कार्य करते हैं। रोजगार अस्थायी है तथा मजदूरी बाजार में प्रचलित दरों के अनुसार रहती है। मजदूर किसी जमींदार के साथ जुड़े हुए नहीं होते हैं। 
औद्योगिक मजदूरों से अलग कृषि मजदूर की परिभाषा देना कठिन है| इसका कारण है कि जब तक कृषि क्षेत्र में पूंजीवाद बना रहेगा तब तक इस क्षेत्र में एक ऐसे वर्ग का उत्थान  जो कि सिर्फ़ मज़दूरी पर निर्भर हो पता करना कठिन है| हालाँकि पूंजीवाद अब हुमारे देश में मात्र उन क्षेत्रों में ही है जो विकसित नही हैं, क्योकि  स्पष्ट वर्ग अब तक विकसित नही हो पाया है| कृषि मजदूरों की परिभाषा दे पाना इसलिए भी कठिन है क्योकि कई हाशिए के तथा छोटे कृषक भी अपनी आय को बढ़ने के लिए इस क्षेत्र में कार्यरत हैं| अतः किस स्तर तक उन्हे कृषि मजदूर समझा जाए यह एक कठिन प्रश्न है|
प्रथम कृषि मजदूर निरीक्षण आयोग ने इसके निम्न रूप बताए हैं :
1) संलग्न मजदूर
2) अनौपचारिक मजदूर
यह वह मजदूर हैं जो की किसी कृषक परिवार से किसी भी प्रकार के मौखिक या लिखित अनुबंध के द्वारा जुड़े होते है| इसमें इनका रोज़गार स्थाई होता है| वहीं दूसरी तरफ इस प्रकार के मजदूर किसी भी कृषक के खेतों में कार्य करने के लिए स्वतंत्र होते हैं| इस प्रकार के मजदूर अक्सर दैनिक रूप से लगे होते हैं|

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