अानुवांशिक रोग : सिकल सेल रोग, - Study Search Point

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अानुवांशिक रोग : सिकल सेल रोग,

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सिकल सेल रोग : -
भारत में सिकल सेल मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड, महाराष्ट्र,गुजरात, आंध्रप्रदेश,तेलंगाना, केरल, कर्नाटक एवं कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में पाया जाता है। हालांकि कुछ जातियों में यह 30 प्रतिशत तक देखा गया है। सिकल सेल जीन के इस अत्यधिक प्रसार के बावजूद भी, अधिकांश लोग माता-पिता से प्राप्त इस आनुवांशिक रोग के वैज्ञानिक आधार से अपरिचित हैं। यह हालात सिकल सेल रोगियों और उनके परिवार के लिये चिकित्सकीय बोझ के साथ-साथ गंभीर सामाजिक, मानसिक एवं आर्थिक कठनाई उत्पन्न करताहै। रोग से जुड़ा सामाजिक कलंक, उनकी पीड़ा को और अधिक बढ़ा देता है।
लाल रक्त कोशिकाएं, अस्थि-मज्जा में बनती हैं और इनकी औसत आयु 120 दिन होती है। सिकल सेल लाल रक्त कोशिकाएं का जीवन काल केवल 10-20 दिनों का होता है और अस्थि मज्जा उन्हें तेजी से पर्याप्त मात्रा में बदल नहीं पाती हैं। नतीजन शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की समान्य संख्या और हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। लाल रक्त कोशिकाएं के आकार में परिवर्तन हीमोग्लोबिन जीन के एक न्युक्लियोटाइड में उत्परिवर्तन से होता है।सिकल सेल रोग/एनीमिया सिकल सेल रोग माता-पिता से प्राप्त असामान्य जीन से उत्पन्न आनुवांशिक विकार है। सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्तवाहिकाओं में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं का आकार अर्धचंद्र/हंसिया(सिकल) जैसा हो जाता है। ये असामान्य लाल क्त कोशिकाएं (RBC)कठोर और चिपचिपी होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। अवरूद्ध रक्त प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और विभिन्न अंगो को क्षति पहुँचाता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में पाया गया है कि सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और सामान्यतः मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। जैव विकास के दौरान सिकल सेल जीन अफ्रीकी पूर्वजों में उत्पन्न हुआ और इसके मलेरिया प्रतिरोधी गुण के कारण अन्य मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में भी तेजी से फैल गया।

सिकल सेल एनीमिया का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालांकि रोग की जटिलताओं के और एनीमिया के  उपचार से रोगियों में लक्षण और रोग की जटिलताओं को कम किया जा सकता है। रक्त मज्जा और स्टेम सेल प्रत्यारोपण के द्वारा सीमित लोगों  का इलाज किया जा सकता है। सिकल सेल एनीमिया हर व्यक्ति में भिन्न होता है। कुछ लोगों को दीर्घावधि दर्द या थकान होती है। हालांकि स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार, उचित देखभाल और उपचार के द्वारा रोगियों के जीवन में सुधार लाया जा सकता हैं। सिकल सेल एनीमिया के कई रोगी ऐसे भी हैं जो उचित उपचार और देखभाल की वजह से चालीसवें/पचासवें वर्ष या उससे अधिक आयु में भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
मुख्यतः सिकल सेल रोग में हीमोलाइसिस और वैसो-ओक्क्लुसिव क्राइसिस होता है।जीन उत्परिवर्तन के कारण हीमोग्लोबीन प्रोटीन के β चेन के छठे अमीनो एसिड ग्लुटामिक एसिड का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है। जिससे हीमोग्लोबीन की संरचना एवं क्रियाओं में बदलाव हो जाता है और सिकल सेल रोग उत्पन्न करता है। इस उत्परिवर्तन के कारण, ऑक्सीजन के सामान्य स्तर की स्थिति में सिकल हीमोग्लोबीन की सेकेण्डरी, टरशियरी या क्वाटरनरी संरचना पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं होता है। लेकिन ऑक्सीजन की कम उपलब्धता में सिकल हीमोग्लोबीन पोलीमेराइज होकर एक लम्बी तथा रस्सी जैसी संरचना बना लेती है। इस कारण आर.बी.सी. (R.B.C.) का आकार बदलकर हँसिये जैसा हो जाता है।
हीमोलाइसिस के परिणामस्वरुप एनीमिया तथा नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी हो जाती है जो वेस्कुलर इण्डोथेलियल क्षति, पल्मोनरी हाइपरटेंशन, प्रायपिज्म और स्ट्रोक के रूप में जटिलताओं को जन्म देती है।
वेसो-ओक्लुसन के कारण इस्चिमिया, तेज दर्द और अंगों में क्षति होती है। सिकल सेल रोग, सिकल सेल एनीमिया के अलावा कम्पाउण्ड हेटेरोजाइगोटिक स्थिति को भी संदर्भित करता है।
कम्पाउण्ड हेटेरोजाइगोटिक स्थिति में एक β ग्लोबीन जीन में HbC, HbS β थेलेसेमिया HbD या HbO का उत्परिवर्तन होता है। सिकल सेल रोग में HbS कुल हीमोग्लोबिन का 50% से ज्यादा होता है।
तब प्रत्येक बच्चे में दोनो सामान्य जीन के विरासत में मिलने की संभावना 25% एक सामान्य और एक उत्परिवर्तित 50% तथा दोनो उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन जीन मिलने की संभावना 25% होती है।ऐसे व्यक्ति जो माता पिता से एक सामान्य और दूसरा असामान्य हीमोग्लोबिन जीन प्राप्त करता है उसे सिकल सेल ट्रेट कहते है। ऐसे व्यक्ति के शरीर में दोनों ही सामान्य और सिकल हीमोग्लोबिन बनता है और आम तौर पर कुछ लक्षणों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करता है।

रोगी की पहचान -
➤ शारीरिक विकास में अवरूद्धता, वजन और उँचाई सामान्य से कम
➤ सामान्य कमजोरी की शिकायत के साथ कमजोर शरीर
➤ अत्यधिक खून की कमी और गंभीर एनीमिया
➤ पीली त्वचा, रंगहीन नाखून
➤ त्वचा एवं आंखों में पीलापन (पीलिया)
➤ फ्लैट बोन (माथे की)
➤ सतत्‌ हल्का बुखार एवं दीर्घकालिक बुखार का रहना
➤ सांस लेने में तकलीफ/छोटी-छोटी सांस लेना
➤ सामान्य से अधिक थकावट
➤ बार-बार पेशाब जाना, मूत्र का गाढ़ापन
➤ हडि्‌डयों और पसलियों में दर्द
➤ चिड़चिड़ापन हाथ और पैरो में सजू न
➤ प्रायपिज्म (priapism)
➤ बांझपन
➤ बार-बार वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण
➤ परामर्शः आहार प्रबंधन
➤ अधिक मात्रा में फाइबर एवं रेद्गोदार आहार लें।
➤ अधिक प्रोटीनयुक्त आहार लें ।
➤ एंटी-ओक्सिडेंट युक्त आहार चुनें ।
➤ तेल और वसायुक्त, मसालेदार खाद्य पदार्थों से परहेज करें।
➤ खूब पानी पियें।

क्या करें/क्या न करें -
➤ पानी अधिक मात्रा में पियें।
➤ दैनिक आहार की आदतों में संद्गाोधन करें।
➤ शांत चित्त रहे एवं आराम करें।
➤ अत्यधिक तापमान से बचें।
➤ संक्रमण से बचें।
➤ नियमित रुप से खेल खेलें।

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