भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा डायस्पोरा है। प्रवासी भारतीय समुदाय अनुमानतः 2.5 करोड़ से अधिक है। जो विश्व के हर बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं। फिर भी किसी एक महान भारतीय डास्पोरा की बात नहीं की जा सकती। प्रवासी भारतीय समुदाय सैंकड़ों वर्षों में हुए उत्प्रवास का परिणाम है और इसके पीछे विभिन्न कारण रहे हैं जैसे वाणिज्यवाद, उपनिवेशवाद और वैश्वीकरण। इसके शुरू के अनुभवों में कोशिशों, दुःख-तकलीफों और दृढ़ निश्चय तथा कड़ी मेहनत के फलस्वरूप सफलता का आख्यान है। 20वीं शताब्दी के पिछले तीन दशकों के उत्प्रवास का स्वरूप बदलने लगा है और "नया डायस्पोरा" उभरा है जिसमें उच्च कौशल प्राप्त व्यावसायिक पश्चिमी देशों की ओर तथा अकुशल/अर्धकुशल कामगार खाड़ी, पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया की और ठेके पर काम करने जा रहे हैं।
इस प्रकार, प्रवासी भारतीय समुदाय एक विविध विजातीय और मिलनसार वैश्विक समुदाय है जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करता है। एक आम सूत्र जो इन्हें आपस में बांधे हुए है, वह है भारत और इसके आंतरिक मूल्यों का विचार। प्रवासी भारतीयों में भारतीय मूल के लोग और अप्रवासी भारतीय शामिल हैं और ये विश्व में सबसे शिक्षित और सफल समुदायों में आते हैं। विश्व के हर कोने में, प्रवासी भारतीय समुदाय को इसकी कड़ी मेहनत, अनुशासन, हस्तक्षेप न करने और स्थानीय समुदाय के साथ सफलतापूर्वक तालमेल बनाये रखने के कारण जाना जाता है। प्रवासी भारतीयों ने अपने आवास के देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है और स्वयं में ज्ञान और नवीनता के अनेक उपायों का समावेश किया है।
मंत्रालय और उसके जनादेश -
प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय (एमओआईए) सभी अनिवासी भारतीयों (एनआरआई), भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) और भारत के विदेशी नागरिकों (ओसीआई) से संबंधित मामलों के लिए नोडल मंत्रालय है। इसका उद्देश्य भारत और विदेशी भारतीयों के बीच पारस्परिक रूप से लाभप्रद और प्रतीकात्मक संबंध बनाए रखना और बढ़ावा देना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एमओआईए चार प्रमुख सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है:
- विदेशों में भारतीय समुदाय के विभिन्न अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए समाधान प्रस्ताव
- प्रवासी भारतीयों के साथ भारत के संबंधों को एक सामरिक आयाम
- ज्ञान और संसाधन के मामले में प्रवासी निवेश समुदाय से संपर्क
- राज्य में सभी प्रवासियों की पहल के लिए आमंत्रण
प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय ने प्रवासी भारतीय समुदाय की बेहतरी के लिए कार्यक्रमों/पहलों की श्रृंखला पेश की है।
प्रवासी भारतीय दिवस -
9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मान्यता दी गई है क्योंकि इसी दिन 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और अंततः दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों और औपनिवेशिक शासन के तहत लोगों के लिए और भारत के सफल स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरणा बने। यह दिन हर साल प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) सम्मेलन के रूप में मनाया जाता है। प्रवासी भारतीय दिवस प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय का प्रमुख कार्यक्रम है।
छठवें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार तथा भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा संयुक्त रूप से 7-9 जनवरी, 2009 को चेन्नई में किया गया। चार विषयों - 'उभरती शक्ति भारत- प्रवासी फैक्टर', 'वर्तमान आर्थिक संकट का प्रभाव - प्रवासियों की चिंता', 'राज्यों के साथ प्रवासियों का संवाद' तथा 'प्रवासी भारतीय- भाषा और संस्कृत का संरक्षण' पर विस्तृत चर्चा इस सम्मेलन में की गई। वहीं 'पुल निर्माण- व्यापार और निवेश', 'प्रवासी मानव विज्ञान', 'शिक्षा और प्रवासी ज्ञान संजाल', 'मीडिया और मनोरंजन', 'प्रवासी महिलाओं से बेहतर संवाद' और 'सबके लिए स्वास्थ्य- प्रवासियों की भूमिका' जैसे छः समकालीन विषयों पर भी चर्चा सम्मेलन के दौरान हुई। खाड़ी, एशिया-प्रशांत, अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा, कैरेबियाई और यूरोप पर केंद्रित क्षेत्रीय कार्य सत्रों का भी आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में दुनिया के 54 देशों से लगभग 1800 प्रतिनिधियों ने शिरकत की।
सम्मेलन का उद्घाटन भारत के माननीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने किया। भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने 9 जनवरी को समापन सत्र में भारतीय मूल के 13 व्यक्तियों को प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किए। प्रवासी भारतीय सम्मान पाने वालों का चयन भारत के माननीय उपराष्ट्रपति की अध्यक्षता में गठित ज्यूरी सह अवॉर्ड समिति द्वारा किया गया।
प्रवासी भारतीय दिवस 2009 में सूरीनाम के उपराष्ट्रपति रामदीन सरदजोई मुख्य अतिथि थे।
प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार (पीबीएसए)
प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार, प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का हिस्सा है। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा 2003 से दिया जा रहा है। प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार, प्रवासी भारतीयों को दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित सम्मान है।
प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार की संशोधित मार्गदर्शिकाओं के अनुसार यह पुरस्कार किसी अप्रवासी भारतीय, भारतीय मूल के व्यक्ति अथवा संगठन अथवा संस्थान, जिसे अप्रवासी भारतीयों अथवा भारतीय मूल के लोगों द्वारा स्थापित किया गया हो, और जिसने निम्नलिखित कार्य किए हों:
- भारत की विदेशों में बेहतर सूझबूझ के प्रति योगदान और भारत के उद्देश्यों और चिंताओं के प्रति वास्तिवक रूप में सहायता
- डायस्पोरा के कल्याण के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान
- लोकोपकार और धर्मार्थ कार्य तथा भारत और विदेशों में सामाजिक और मानवीय कार्यों में उल्लेखनीय योगदान
- आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भारत और इसके डायस्पोरा के बीच संबंधों को सुदृढ़ बनाने में उल्लेखनीय योगदान
- किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य में अपनी अलग पहचान, जिससे उनके निवास के देश मे भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी हो
अपने कौशल से अपनी पहचान, जिससे उस देश में भारत का सम्मान बढ़ा हो (गैर व्यावसायिक कामगारों के लिए)।
पुरस्कार के लिए नामांकन विदेशों में भारतीय राजयनिकों मिशनों के प्रमुखों, प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष, प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय द्वारा यथानिर्णित राष्ट्रव्यापी स्तर की प्रमुख एसोसिएशन और प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार के प्राप्तकर्ताओं द्वारा किए जा सकते हैं।
भारतीय मूल के 81 व्यक्तिओं और एक प्रवासीय भारतीय संगठन राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति संघ, त्रिनिडाड एवं टोबेगो को इस सम्मान से सुशोभित किया गया है।
मिनी-पीबीडी
'पीबीडी सिंगापुर' नाम के एक मिनी पीबीडी का आयोजन सिंगापुर भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसआईसीसीआई) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की भागीदारी और सिंगापुर सरकार की सहायता से 9-11 अक्टूबर, 2008 के दौरान सिंगापुर में किया गया। समारोह का शीर्षक "पीबीडी सिंगापुर: गतिशील भारतीय डायस्पोरा की ओर" रखा गया था। सिंगापुर के राष्ट्रपति श्री एसआर नाथन, प्रधानमंत्री श्री ली हसिएन लूंग, उपप्रधानमंत्री प्रोफेसर एस. जयकुमार, वरिष्ठ मंत्री श्री गोचोक टोंग, मंत्री मेन्टर, श्री ली कुवान येव और वरिष्ठ राज्यमंत्री श्री एस ईश्वरन ने समारोह में हिस्सा लिया। केंद्रीय मंत्री श्री कपिल सिब्बल और श्री वयालार रवि के अलावा मारीशस के प्रधानमंत्री और मलेशिया के वरिष्ठ मंत्रियों ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
"पीबीडी यूरोप" नाम के एक अन्य मिनी पीबीडी का आयोजन 19 सितंबर, 2009 को नीदरलैंड में किया जा रहा है। भारत के प्रवासी नागरिकों के लिए बाहरी नागरिकता (ओसीआई) योजना
प्रवासी भारतीयों की दोहरी नागरिकता की लगातार मांग खासकर उत्तर अमेरिका और अन्य विकसित देशों के प्रवासी भारतीयों की मांग को देखते हुए तथा सरकार की प्रवासी भारतीयों की आशाओं ओर अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को निभाते हुए अगस्त, 2005 में प्रवासी भारतीयों के लिए "दोहरी नागरिकता" योजना के नागरिकता आधिनियम, 1995 में संशोधन के बाद लागू किया गया। इस योजना का शुभारंभ हैदराबाद में वर्ष 2006 में आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान किया गया था। इस योजना के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा केंद्र सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में निर्दिष्ट किए जाने वाले देश को छोड़कर सभी देशों के भारतीय मूल के सभी व्यक्तियों, जो कि भारत के नागरिक थे अथवा 26 जनवरी, 1950 अथवा उसके बाद भारत के नागरिक बनने के लिए पात्र थे, को प्रवासी भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकरण कराने की सुविधा देने की व्यवस्था है।
भारत के पंजीकृत प्रवासी नागरिकों को बहु-प्रवेश, बहुआयामी भारत भ्रमण के लिए आजीवन वीजा की पात्रता है। भारत के पंजीकृत प्रवासी नागरिक को क्षेत्रीय विदेश पंजीकरण अधिकारी अथवा विदेश पंजीकरण अधिकारी के यहां किसी भी अवधि तक भारत में रहने के लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी। उसे अप्रवासी भारतीय के समान आर्थिक, वित्तीय तथा शैक्षणिक क्षेत्रों में सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी।
मंत्रालय पंजीकृत प्रवासी भारतीयों के लाभ के लिए अन्य कार्य भी कर रहा है। मंत्रालय ने अधिसूचित किया है कि उन्हें भारत के अंदर घरेलू क्षेत्र में हवाई टिकट शुल्क में, नेशनल पार्क तथा अभ्यारण्य देखने के शुल्क में तथा देश में भारतीय बच्चा गोद लेने के मामले में अप्रवासी भारतीयों के समान माना जाएगा। जुलाई 2008 तक भारतीय मूल के 2,81,000 लोगों ने पंजीकरण करवाया है।
5 जनवरी, 2009 से निम्न मामलों के संबंध में प्रवासी भारतीय नागरिकता को अप्रवासी भारतीयों के समान माना जाएगा—
- भारत में तीन राष्ट्रीय स्मारकों, ऐतिहासिक स्थलों तथा संग्रहालयों के लिए प्रवेश शुल्क
- संबंधित अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार भारत में निम्न कार्य करने पर-
- डॉक्टर, दंत-चिकित्सक, नर्स तथा फार्मासिस्ट
- वकील
- वास्तुविद
- चार्टर एकाउंटेंट
- संबंधित अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उन्हें दाखिले के लिए आल इंडिया प्री-मेडिकल तथा ऐसी ही परीक्षाओं में बैठने की अनुमति होगी।
अधिसूचना के उचित तथा सुचारू कार्यान्वयन के लिए संबद्ध मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों को आवश्यक प्रावधान करने के लिए कहा गया है।
भारतीय प्रवासी नागरिकता को दोहरी नागरिकता नहीं समझना चाहिए। इससे उस व्यक्ति की राजनैतिक अधिकार नहीं मिलते। भारतीय प्रवासी नागरिकता योजना की प्रक्रिया तथा विस्तृत जानकारी मंत्रालय की वेबसाइट www.mha.nic.in पर उपलब्ध है। 31 जुलाई, 2009 तक भारतीय मूल के 4.56 लाख व्यक्तियों ने भारतीय प्रवासी नागरिकता के तहत पंजीकरण कराया।
प्रवासी भारतीय बच्चों के लिए छात्रवृत्ति योजना -
शैक्षिक सत्र 2006-07 में इस योजना का शुभारंभ किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत में उच्च शिक्षा को प्रवासी भारतीयों के बच्चों की पहुंच में लाना और भारत को शिक्षा के लिए केंद्र के रूप में संवर्धित करना है।
वर्तमान में मंत्रालय द्वारा भारतीय मूल के व्यक्तियों और प्रवासी भारतीय के 100 बच्चों को इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, कला, वाणिज्य, प्रबंधन, पत्रकारिता, होटल प्रबंधन, कृषि, पशुपालन इत्यादि क्षेत्र में छात्रवृत्तियां दी जा रही हैं। अभी तक इस योजना के अंतर्गत 205 छात्रों को लाभ प्राप्त हुआ है। इस योजना के अंतर्गत संस्थान की कुल आर्थिक लागत (जिसमें ट्यूशन फीस, होस्टल फीस इत्यादि) का 75 प्रतिशत का वित्त पोषण, जिसमें 3600 अमरीकी डालर प्रति छात्र प्रति शिक्षा सत्र की सीमा तक, किया जाता है। विद्यार्थियों का चयन एडू सीआईएल द्वारा एक प्रवेश परीक्षा के आधार पर 40 चिन्हित देशों, जिनमें प्रवासी भारतीयों की संख्या काफी अधिक है, में किया जाता है।
भारतीय मूल के लोगों के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना
प्रवासी भारतीय के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति की संस्तुति तथा उच्चतम स्तर पर दी गई वचनबद्धता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रवासी भारतीयों के बच्चों को लाभान्वित करने के लिए एक भारतीय मूल के लोगों अनिवासी भारतीय के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय का स्तर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत "डीम्ड विश्वविद्यालय" का होगा। इस विश्वविद्यालय की स्थापना कर्नाटक, बंगलौर में मणिपाल उच्च शिक्षा ट्रस्ट अकादमी, मणिपाल द्वारा की जाएगी। भारत में विभिन्न शहरों (बंगलौर के अलावा) चार और पीआईओ/एनआरआई विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए प्रस्ताव पास हुए हैं। ये प्रस्ताव एक विज्ञापन के संदर्भ में मिले हैं, जिसमें इस प्रयोग के लिए हित प्रदर्शित करने की मांग की गई थी।
भारत को जाने कार्यक्रम
मंत्रालय द्वारा प्रत्येक वर्ष 2 से 3 भारत जानों कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम पहले "इनटर्नशिप प्रोग्राम फॉर डायस्पोरा यूथ" के नाम से जाना जाता था। यहर 18-26 वर्ष की आयु वालों के लिए प्रशिक्षु कार्यक्रम है जिसके तहत भारत में हो रही औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक और वन्य क्षेत्रों में हो रहे विकास के साथ भारत में जीवन के विभिन्न पक्षों की जानकारी देना, भारत की मिश्रित विशेषताओं के अलावा देश के विभिन्न पक्षों की जानकारी देना, भारत की मिश्रित विशेषताओं के अलावा देश के विभिन्न क्षेत्रो के युवाओं से उनका परस्पर विचार-विमर्श करना शामिल है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य युवा प्रवासी भारतीयों को उनके वंशजों की भूमि के नजदीक लाना और समसामयिक भारत से उनके जुड़ाव को बढ़ावा देना है। इस कार्यक्रम के तहत भारतीय वाले प्रमुख 39 देशों से प्रतिभागियों को तीन हफ्ते के कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया तथा उन्हें राष्ट्रपति, प्रवासी भारतीय मामले मंत्री, युवा एवं खेल मंत्री और अन्य से मिलवाया गया। अभी तक आठ ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जा चुका है। 11 ऐसे भारत जानो कार्यक्रम 21 मार्च, 2009 से 12 अप्रैल, 2005 के बीच आयोजित किये गये। 11 देशों के 34 अप्रवासी भारतीय इसमें शामिल हुए। अभी तक इस कार्यक्रम के तहत 235 युवा लाभान्वित हुए हैं।
उत्प्रवास की प्रवृत्तियां
विश्वभर में लगभग 55 लाख प्रवासी भारतीय कामगार हैं। इसमें से 90 प्रतिशत से अधिक कामगार प्रवासी भारतीय खाड़ी के देशों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं। वर्ष 2007 के दौरान लगभग 8.09 लाख भारतीयों के उत्प्रवास स्वीकृति के साथ उत्प्रवास किया। इनमें लगभग 3.12 लाख, 1.95 लाख, 95 हजार और 48 हजार कामगार क्रमशः संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ओनान कतार और कुवैत में गए। यह उत्प्रवासी मुख्यतः तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के थे।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में उत्प्रवासी कामगारों का पलायन मुख्यतः खाड़ी देशों में हुआ है जहां अनुमानतः लगभग 40 लाख कामगार नियोजित हैं। उत्प्रवासियों की बहुतायत मध्य-पूर्व जिनमें खाड़ी देश शामिल हैं, अर्धकुशल और अकुशल श्रमिकों की है और उनमें से अधिकांश अस्थाई उत्प्रवासी हैं जो अपने रोजगार की संविदा पूरी होने पर भारत लौट आते हैं। 2003 के बाद से विदेशों में रोजगार के लिए उत्प्रवास संरक्षी के 8 कार्यालयों द्वारा दी जाने वाली उत्प्रवास स्वीकृतियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। जो 2003 में 4.66 लाख से बढ़कर 2007 में 8.07 लाख पहुंच गयी है। संयुक्त अरब अमेरिका कामगारों के लिए उत्प्रवास का मुख्य स्थान है इसके बाद सऊदी अरब का नंबर आता है। 2005 तक खाड़ी क्षेत्र के बाहर भारतीय जनशक्ति को मलेशिया द्वारा प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण और निरंतर वृद्धि हुई है। 2006 और 2007 में काफी कमी देखने में आई है। इन देसों में भारतीय कामगारों के लिए रोजगार की काफी संभाव्यता है।
प्रस्थान पूर्व ओरिएंटेशन और कौशल उन्नयन
प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर 2006-07 के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रस्थान पूर्व ओरिएंटेशन और कुशलता उन्नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाजार की आवश्यकताओं को पूरा करने और विश्व स्तर पर प्रतियोगिता करने लायक बनाने में श्रमिकों की मदद करना है।
वर्ष 2007-08 के दौरान, इस योजना को विस्तार कर इसमें कई अन्य एजेंसियों जैसे सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम मंत्रालय, सीआईआई, फिक्की, एसोचैम, और स्वयं सेवी संगठनों को शामिल किया गया है। संभावित उत्प्रवासियों के लिए प्रस्थान पूर्व ओरिएंटेशन और कौशल उन्नयन योजना को और अधिक संशोधित किया गया है तथा प्रति इकाई व्यय पहले के 1350 रुपये से बढ़ाकर 5500 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। नए संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार यह योजना 100 प्रतिशत केंद्रीय सरकार द्वारा वित्त पोषित है। पिछले वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए राज्य सरकारों को 5.00 करोड़ रुपये जारी किए गए।
प्रवासी भारतीय केंद्रों की स्थापना
सरकार ने विदेशों में काम कर रहे भारतीय मजदूरों को चिकित्सा, कानूनी और वित्तीय परामर्श उपलब्ध कराने के लिए दुबई, कोआलालम्पुर तथा न्यूयार्क में तीन भारतीय केंद्र स्थापित करने की स्वीकृति प्रदान की है।
वाशिंगटन, दुबई और कुआलालम्पुर के भारतीय मिशनों में प्रवासी भारतीय कार्य मामले केंद्र क्षेत्रीय संगठन के रूप में स्थापित किए गए हैं। इनमें परामर्शक सामुदायिक मामले (विकास) के तीन पदों को स्वीकृत किया गया है। वाशिंगटन स्थित परामर्शक अमेरिका और कनाडा में, दुबई स्थित परामर्शक खाड़ी देशों और कुआलालम्पुर स्थित परामर्शक मलेशिया, सिंगापुर और ब्रुनेई में प्रवासी भारतीय समुदाय के हितों की रक्षा करेंगे। स्वास्थ्य, कानूनी और वित्तीय क्षेत्रों में जुड़े क्षेत्रीय पेशेवर इन परामर्शक की सहायता करेंगे। इन कार्यालयों में इन सेवाओं को अनुभव के आधार पर अन्य देशों में भी शुरू किया जाएगा।
अबुधाबी और वाशिंगटन में परामर्शकों (समुदाय कार्य) ने कार्यभार संभाल लिया है और इन केंद्रों ने काम करना शुरू कर दिया है।
मानव श्रम पर द्विपक्षीय समझौता
खाड़ी देशों से भारतीय कामगारों की समस्याओं की शिकायतें मिलती रहती है। इनमें प्राय मजदूरी न दिए जाने अथवा देर से दिए जाने, कामकाज और रहने की कठिन परिस्थितियां, कामगारों के अनुबंध में एकपक्षीय बदलाव, नियोक्ता द्वारा पासपोर्ट अपने पास रखना, दलालों द्वारा धोखा देना, शारीरिक और यौन उत्पीड़न इत्यादि प्रमुख हैं।
इन समस्याओं से प्रवासियों को संरक्षण देने के लिए श्रमिकों की नियुक्ति के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग की आवश्यकता है। भारत में 1980 के दशक में जोर्डन और कतर के साथ इस आशा से श्रम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। आपसी हितों की सुरक्षा के लिए भारत और कतर के बीच मौजूदा श्रम समझौते के अतिरिक्त एक समझौते पर हाल ही में नवंबर, 2007 में हस्ताक्षर किए गए।
भारतीय श्रमिकों के संरक्षण और उनकी खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय ने संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, बहरीन और मलेशिया के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं।
सऊदी अरब ने अभी समझौता ज्ञापन पर बातचीत करने के लिए मंजूरी नहीं दी। समझौता ज्ञापनों में मोटे तौर पर निम्नलिखित सिद्धांतों को शामिल किया गया हैः
- रोजगार के अवसर बढ़ाने और कामगारों के संरक्षण और कल्याण में द्विपक्षीय सहयोगी की अपनी इच्छा की घोषणा।
- व्यापक प्रक्रिया का विवरण जिसे विदेशी नियोक्ता भारतीय कामगारों की भर्ती के लिए अपनाएंगे।
- समझौता ज्ञापन के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त कार्यकारी दल गठित किया जाएगा और द्विपक्षीय श्रम समस्याओं के समाधान के लिए बैठक नियमित रूप से होगी।
- भर्ती और रोजगार की शर्तें दोनों देशों के कानूनों के अनुरूप होंगी।
- मेजबान देश संगठित क्षेत्र में कामगारों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए वैधानिक और प्रशासनिक उपाय करेंगे।
द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौते
अधिकांश विकसित देशों में कानून द्वारा शासित देश एक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली कवच है। इसका वित्त पोषण सभी कार्यरत लोगों और उनके नियोक्ताओं (एक निर्धारित अनुपात में) द्वारा कर के रूप में अनिवार्य अंशदान द्वारा किया जाता है ताकि वृद्धावस्था पेंशन, उत्तरजीवी की पेंशन, विकलांगता पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और बेरोजगारी बीमा आदि, विविध लाभ प्रदान किए जा सके। सामान्यतः यह सामाजिक सुरक्षा कर अधिकतम एक मुश्त सीमा के आधार पर आय के प्रतिशत के रूप में होता है। सभी प्रवासी कामगारों को उस देश के कानून के अनुसार भी सामाजिक सुरक्षाकर अदा करना होता है।
प्रायः हमारे कामगार व्यावसायिक हैं जिन्हें उनके भारतीय नियोक्ताओं द्वार इन देशों में अल्पावधि के लिए भेजा जाता है। इस अवधि के दौरान वे भारतीय कानून के अनुसार भारत में सामाजिक सुरक्षा अंशदान करते रहते हैं। इस प्रकार उन्हे इस अवधि के दौरान देशों में अपने-अपने कानूनों के अंतर्गत भुगतान करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। भारतीय कामगारों को प्रायः उनके द्वारा विदेशों में किए गए सामाजिक सुरक्षा अंशदान का कोई लाभ नहीं मिलता, जब वे स्वदेश लौटते हैं अथवा अपनी संविदा अवधि पूरी होने पर किसी अन्य देश में जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि अधिकांश देश सामाजिक सुरक्षा लाभ के निर्यात की अनुमति नहीं देते हैं। इसी प्रकार इन देशों में स्वरोजगार में लगे भारतीयों को भी समूचे सक्रिय जीवन में योगदान के बावजूद वृद्धावस्था में वापस भारत आने के मामले में सामाजिक सुरक्षा लाभ से वंचित होना पड़ता है। भारतीयों को अक्सर वृद्धावस्था में स्वदेश लौटना पड़ता है। आमतौर पर मेजबान देश के कानून के अंतर्गत अंशदान की न्यूनतम अवधि निर्धारित होती है, जिसे पूरा करने पर ही सामाजिक सुरक्षा लाभ का पात्र समझा जाता है। किंतु उस अवधि से कम अवधि के लिए मेजबान देश में रहने और सामाजिक सुरक्षा अंशदान करने की स्थिति में श्रमिक को समूचे अंशदान से हाथ धोना पड़ता है। इसका एक नुकसान यह भी है कि सामाजिक सुरक्षा कर की ऊंची दर होने के कारण इन देशों में परियोजनाओं के लिए बोली लगाते समय भारतीय कंपनियों को कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौतों से दोतरफा आधार पर श्रमिकों को मेजबान देश के कानून के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा योगदान से छूट मिल सकती है (बशर्त श्रमिक स्वदेश मे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के अंतर्गत आता हो और विदेश में नियुक्ति के दौरान उसने उस प्रणाली के तहत अपना अंशदान निरंतर किया हो), और अन्य श्रेणियों के उन श्रमिकों के लिए पेंशन के निर्यात की व्यवस्था की जा सकती है जिन्होंने मेजबान देश के कानून के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा अंशदान किया हो। न्यूनतम अंशदान अवधि के नाम पर अंशदान की क्षति रोकने के लिए उन्हें दोनों देशों के कानूनों के अंतर्गत अंशदान अवधियों को जोड़ने की सुविधा दी जाएगी। ऐसे समझौतों से दोनों अनुबंधकर्ता देशों की कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने में मदद मिलेगी क्योंकि उनके कर्मचारियों के संदर्भ में सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिलने पर लागत में महत्त्वपूर्ण कमी आयेगी।
प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय ने हाल ही में बेल्जियम के साथ द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत-बेल्जियम समझौता बेल्जियम में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों को पारस्परिक आधार पर निम्नांकित लाभ प्रदान करता है
- बेल्जियम में 60 महीनों तक नियुक्त उत्प्रवासियों की बेल्जियम कानून के तहत सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिलेगी बशर्ते वे भारत में सामाजिक सुरक्षा अंशदान करते रहे हों।
- बेल्जियम के कानून के तहत अंशदान करने वालों का अनुबंध समाप्ति अथवा अवकाश प्राप्ति पर सामाजिक सुरक्षा लाभों को भारत अथवा किसी तीसरे देश जहां वे बस गए हैं,वहां भेजा जा सकता है।
- ये सभी लाभ किसी भारतीय कंपनी द्वारा किसी अन्य देश से बेल्जियम में नियुक्त भारतीय कामगारों को भी उपलब्ध होंगे।
- बेल्जियम में स्वरोजगार में लगे भारतीय जो कि बेल्जियम सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में अंशदान करते हैं, भी भारत या किसी तीसरे देश में बसने की स्थिति में अपने लाभों को निर्यात करने के हकदार होंगे।
- पेंशन प्राप्त करने की पात्रता के लिए दोनों देशों में रोजगार की अवधि जोड़ी जाएगी।
- भारतीय कंपनियां बेल्जियम में और अधिक स्पर्धात्मक हो पाएंगी क्योंकि उनके कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा अंशदान में छूट प्राप्त होगी जिससे उनके व्यय में काफी कमी आयेगी।
फ्रांस और जर्मनी के साथ भी द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
मंत्रालय ने नीदरलैंड, चेक गणराज्य, लक्समबर्ग, स्वीजरलैंड और हंगरी गणराज्य के साथ ऐसे ही समझौते करने के बारे में बातचीत पूरी कर ली है और यह समझौतों को अंतिम रूप दिया जा चुका है, जिन पर शीघ्र हस्ताक्षर किए जाएंगे। कनाडा, आस्ट्रेलिया, डेनमार्क और स्वीडन के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। कई अन्य देशों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की गई है। अमेरिका के साथ भी संभावनाएं तलाशने के लिए दो दौर की बातचीत हो चुकी है।
प्रवासियों का बीमा
2003 में प्रवासी भारतीय दिवसे के अवसर पर सरकार ने रोजगार के लिए विदेश जा रहे प्रत्येक प्रवासी के लिए अनिवार्य बीमा योजना की घोषणा की। इस घोषणा के अनुपालन में 25 दिसंबर, 2003 से प्रवासी भारतीय बीमा योजना (पीबीबीवाई) 2003 को लागू किया गया।
पीबीबीवाई, 2003 को अद्यतन करके प्रवासी भारतीय बीमा योजना, 2006 बना दिया गया है। इसके अंतर्गत उत्प्रवासी कामगारों को और अधिक कवरेज प्राप्त होगी। पीबीबीवाई, 2006 एक फरवरी, 2006 से लागू हो चुकी है। 28 फरवरी, 2008 के आदेश के अंतर्गत इस योजना को और उन्नत किया गया है ताकि प्रवासी श्रमिकों को अधिक लाभ दिया जा सके। प्रवासी कामगारों को अब कम से कम 10 लाख रुपये का बीमा कवर (5 लाख रुपये के बजाय) मिलेगा और यह पॉलिसी रोजगार अनुबंध की समूची अवधि के लिए लागू होगी। इसके अतिरिक्त उनके रोजगार से संबंधित कानूनी खर्चों के लिए 30 हजार रुपये का अतिरिक्त कवर भी मिलेगा। योजना के अंतर्गत 75 हजार रुपये तक के चिकित्सा तथा 25 हजार रुपये मातृत्व लाभ खर्चों को भी कवर किया जाएगा।
भारतीय प्रवासी रोजगार परिषद
मंत्रालय ने प्रवासी रोजगार संवर्धन के लिए एक परिषद की स्थापना की है। इसका संशोधित नाम भारतीय प्रवासी रोजगार परिषद (आईसीओई) रखा गया है। यह परिषद बाजार अनुसंदान करने, अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाजार में रोजगार के अवसरों का पता लगाने, बाजार में मांग को देखते हुए कौशल विकसित करने,गतिशील अंतरराष्ट्रीय श्रम बाजार के प्रत्युत्तर में नीतियां तय करने और वैश्वीकरण के जनसांख्यिक लाभों को भारतीय प्रवासियों तक पहुचानें के लिए "थिंक टैंक" यानी वैचारिक संगठन के रूप में कार्य करेगी। परिषद का गठन एक पंजीकृत परिषद के रूप में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत किया गया है।
कल्याण कोष
मंत्रालय ने सभी एसीआर देशों के भारतीय मिशनों की इच्छानुसार ''भारतीय समुदाय कल्याण कोष (आईसीडब्ल्यूएफ)''की स्थापना की है। इससे भारतीय मिशन प्रवासी भारतीय नागरिकों के कल्याण से संबंधित गतिविधियों पर किए जाने वाले आकस्मिक व्यय को पूरा कर सकेंगे। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय सभी 17 इमिग्रेशन क्लीअरेंस रेकवायर्ड (ईसीआर) देशों में भारतीय मिशनों को वितीय सहायता प्रदान करेगा। ताकि वे मेजबान देशों में संकट में फंसे श्रमिकों के कल्याण के लिए खर्च कर सकें।
प्रस्तावित कोष का उद्देश्य आवश्यकतानुसार निम्नांकित सेवाओं के लिए धन की व्यवस्था कर रहे हैं
- घरेलू पारिवारिक क्षेत्रों और अर्धकुशल कारीगरों में से व्यथित प्रवासी भारतीय के लिए-रहने की व्यवस्था के लिए।
- दिवंगत प्रवासी भारतीय के पार्थिव शारीर को, जबकि उनका प्रायोजक इसका खर्चा उठाने की क्षमता न रखता हो अथवा वह खर्च उठाना न चाहता हो,तथा उनका परिवार भी इस खर्च को उठाने की क्षमता न रखता हो,भारत अथवा शमशान भूमि/कब्रिस्तान तक ले जाने का खर्च कोष से दिया जाएगा।
- जरूरतमंद प्रवासी भारतीयों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए।
- किसी देश में फंसे प्रवासी भारतीय को हवाई जहाज द्वारा निकालने के लिए।
- आवश्यक मामलों में जरूरतमंद प्रवासी भारतीय को प्राथमिक क़ानूनी सहायता प्रदान करने के लिए।
श्रम गतिशीलता भागीदारी
श्रम गतिशीलता भागीदारी के जरिए द्विपक्षीय सहयोग के लिए एक प्रभावकारी फ्रेमवर्क बनाया जा सकता है जिससे श्रम गतिशीलता का अधिकतम लाभ उठाने के लिए द्विपक्षीय सहयोग किया जा सकता है और जोखिम को कम से कम किया जा सकता है। इसके जरिए लक्षित देशों के सरोकारों,जैसे अनियमित आब्रजन और एकीकरण संबंधी समस्याओं, से भी प्रभावकारी ढंग से निपटा जा सकेगा। यह दोनों भागीदारों को एक ऐसा अवसर प्रदान करेगा कि वे श्रमिकों के आब्रजन में बेहतर पद्धतियों का संयुक्त रूप से विकास कर सकेंगे और उन्हें लागू कर सकेंगे।
प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय यूरोपीय संघ में महत्वपूर्ण लक्षित देशों के साथ श्रम गतिशीलता भागीदारी कायम करने के लिए उपयुक्त उपाय कर रहा है। हाल ही में श्रम गतिशीलता भागीदारी के लिए डेनमार्क के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए मंत्रालय ने स्वीडन और फ़्रांस के साथ भी श्रम गतिशीलता समझौतों के लिए बातचीत कि प्रक्रिया प्रारंभ कि है।
चूँकि भारत और यूरोपीय संघ के देशों की जरूरतें पूरक हैं,इसलिए प्रस्तावित श्रम गतिशीलता भागीदारी से दोनों पक्षों को व्यापाक लाभ होगा। मंत्रालय भारत-यूरोपीय संघ के बीच श्रम गतिशीलता भागीदारी के लिए बातचीत के उपाय भी कर रहा है।
प्रवासी भारतीय सुविधा केंद्र (ओआइएफ़सी)
प्रवासी भारतीय सुविधा केंद्र(ओआइएफ़सी) एक अलाभकारी संस्था है। इसकी स्थापना भारतीय उद्योग परिसंघ की भागीदारी से की गई है। यह केंद्र भारत में प्रवासी भारतीयों के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एकल खिड़की के रूप में काम करता है और प्रवासी भारतीयों को विविध प्रकार की व्यापार परामर्श सेवाएं और ज्ञान नेटवर्किंग की सुविधा प्रदान करता है।
इस केंद्र के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- प्रामाणिक और सम-सामयिक जानकारी प्रदान करते हुए भारत में प्रवासी भारतीय निवेश को प्रोत्साहित करना।
- निवेश संबंधी समस्त जानकरी के लिए क्लीयरिंग हाउस में कार्य करना। आईसीटी प्लेटफार्म के जरिए वास्तविक समयाधार पर जानकारी प्रोसेस करके इस कार्य को अंजाम दिया जाएगा।
- प्रवासी भारतीयों,जो ज्ञान डायस्पोरा के रूप में काम करेंगे और जिनके ज्ञान संसाधनों का इस्तेमाल आईसीटी प्लेटफार्म द्वारा किया जा सकेगा,के बारे में डाटा बेस कायम करते हुए एक डायस्पोरा ज्ञान नेटवर्क (डीकेएन) की स्थापना करना और उसका संचालन करना।
- बुनियादी ढांचा और सामाजिक क्षेत्रों में प्रवासी भारतीयों के निवेश अवसरों को प्रदर्शित करने में भारत में राज्यों की सहायता करना। ओआइएफ़सी का उदेश्य भारतीय राज्यों,भारतीय व्यापारियों और संभावित प्रवासी निवेशकों को समान प्लेटफार्म पर लाना तथा निवेशकों को निवेश के अवसर की पहचान में मदद पहुचाना है।
- पीआईऑ और एनआरआई को परामर्श सेवाएं प्रदान करना। इनमे वाणिज्य दूतावास संबंधी सवाल,भारत में प्रवास,निवेश और वित्तीय मुददों आदि से संबंधित सेवाएं शामिल हो सकती हैं।
2008 के दौरान ओआइएफ़सी ने सिंगापूर में मिनी पीबीडी में एक बाजार स्थल का आयोजन किया। संभावित निवेशकों के साथ आमने-सामने बैठकें कराई गई। पीबीडी 2009 में ऐसे ही बाजार स्थल का आयोजन चेन्नई में किया गया।
भारत में निवेश लाने का उद्देश्य हासिल करने के लिए ओआइएफ़सी ने आठ क्षेत्रों में 'निवेशक जानकारी बैठकों' के आयोजन की योजना बनाई,ताकि भारतीय कंपनियों से विभिन्न श्रेणियों के विशेष उत्पादों और परियोजनाओं को प्रवासी भारतीयों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके और भू-संपदा प्रबंधन,स्वास्थ्य देखभाल आदि में उनसे निवेश प्राप्त किया जा सके। पहचान किए गए क्षेत्रों में मध्य पूर्व,दक्षिण अफ्रीका,आस्ट्रेलिया,ब्रिटेन,नीदरलैंड,कनाडा,अमेरिका और मलेशिया शामिल है। ऐसी पहली बैठक नवंबर,2008 में ओमान में आयोजित की गई। इसका संभावित निवेशकों पर रचनात्मक प्रभाव पड़ा।
ओआईएफसी ने प्रवासी भारतीयों के लाभ के लिए अद्यतन प्रकाशनों-हैंडबुक फॉर ओवरसीज इंडियन और कम्पेंदियम ऑन द इन्वेस्टमेंट ऑपरच्युनिटीज इन इंडिया-को भी प्रकाशित किया।
प्रवासी भारतीयों का भारत फांउडेशन
प्रवासी भारतीयों की भारत विकास फांउडेशन,एक अलाभकारी न्यास के रूप में काम करती है। यह एक पंजीकृत संगठन है जो प्रवासी भारतीय परोपकारिता को भारत के सामाजिक विकास में योगदान के लिए एक भरोसेमंद खिड़की प्रदान करता है। फांउडेशन का लक्ष्य प्रवासी भारतीयों को परोपकारिक गतिविधियों में सुविधा पहुंचाना है। इसके लिए नवीन परियोजनाओं और साधनों का सहारा लिया जाता है,जैसे ग्रामीण उद्यमियों के लिए लघु ऋण,महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए स्वयं सहायता समूह,प्राथमिक शिक्षा में उत्कृष्ट पद्धति उपाय और ग्रामीण वितरण में प्रौद्योगिकी संबंधी उपाय।
फांउडेशन का संचालन प्रमुख न्यासियों के बोर्ड द्वारा किया जाता है और सरकार इस पर नियंत्रण रखती है। फांउडेशन का उदेश्य दानकर्ताओं और भारत में सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले भरोसेमंद गैर सरकारी और अलाभकारी स्वयंसेवी संगठनों के बीच भागीदारी कायम करते हुए प्रमुख प्रवासी भारतीयों की परोपकारिता पूंजी को भारत के सामाजिक क्षेत्र में लाना है।
न्यास के प्रमुख उद्देश्य इसप्रकार हैं:
- प्रवासी भारतीय परोपकारियों को भारत में प्रेरित करना,एकल खिड़की सुविधा के जरिए भागीदारी में मदद पहुँचाना और सरकारी-निजी भागीदारी कायम कराना।
- भारत में 'सामाजिक पूंजी और परोपकारिता नेटवर्क' की स्थापना और उसका रख-रखाव, जो भरोसेमंद संस्थानों,परियोजनाओं और कार्यक्रमों की सूची प्रदान कर सके।
- परोपकारिता संबंधित जानकारी के लिए क्लीयरिंग हाउस के रूप में कार्य करना।
- भारत में राज्यों से भागीदारी और भरोसेमंद भारतीय प्रोपकारिक संगठनों को प्रोत्साहित करना ताकि वे ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण सहित ऐसे शहरों में प्रवासी भारतीयों के समक्ष सामाजिक विकास के अवसरों को प्रदर्शित कर सके,जो राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से बेहतर ढंग से मेल खाते हो।
- डायस्पोरा परोपकारिता में जवाबदेही और 'बेहतर पद्धतियों' को प्रोत्साहित करना।
वैfश्विक-भारतीय जानकारी नेटवर्क (ग्लोबल आईएनके)
हाल के वर्षों में विशवभर में महत्वपूर्ण डायस्पोरा के उदय से दो महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान केंद्रित हुआ है। पहला यह कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से बड़ी संख्या में कुशल लोगों की आबादी विकसित देशों से प्रवासित हुई है।दूसरे,प्रवासित समुदाय मूल देशों के विकास के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हो सकते हैं और जुटा सकते हैं। उच्च प्रशिक्षित और कम प्रशिक्षित श्रमिकों का विकसित अर्थव्यवस्थाओं से अधिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में जाना और वापस आना विकास के कई नए अवसर प्रदान कर सकता है। शिक्षित, प्रशिक्षित और कुशल लोगों के प्रवास के लंबे समय से 'प्रतिभा पलायन' कहा जाता रहा है,लेकिन अब मूल देश उतरोत्तर यह समझने लगे हैं कि उनकी डायस्पोरा विविध क्षेत्रों में ज्ञान के प्रतिनिधि हैं और ज्ञान के इस खजाने को 'प्रतिभा प्राप्ति के रूप में वापस लाया जा सकता है।
विस्तृत और विविध प्रवासी भारतीय समुदाय के ज्ञान,विशेषज्ञता,कौशल और संसाधनों को मूल देश के विकास प्रयासों में उपयोग करने के लिए उनके साथ स्थाई संबंध कायम करने के वास्ते एक संस्थागत फ्रेमवर्क कायम पर अवश्य ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इस तरह के फ्रेमवर्क में डायस्पोरा को 'ज्ञान'भागीदारों,भारत में सस्थानों को 'संबंद्ध पक्ष' भागीदारों और सरकारों को 'सुविधा प्रदाता' के रूप में रखा जा सकेगा। इस दिशा में,ज्ञान हस्तांतरण के लिए गतिशील इलेक्ट्रोनिक प्लेटफार्म के रूप में 'ग्लोबल इंडियन नॉलेज नेटवर्क' कि स्थापना,जो प्रवासी भारतीय ज्ञान भागीदारों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रमों और यात्राओं से समर्थित हो,वास्तव में डायस्पोरा और भारत के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण लक्ष्य भारतीय डायस्पोरा का इलेक्ट्रिक नॉलेज बेस कायम करना और भारत में लक्षित एंव व्यापाक नतीजों के साथ भलीभांति डिजाइन कि गई परियोजनाओं के जरिए विभिन्न विषयों और क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी तथा मौलिकता का उपयोग करना है।
उपरोक्त लक्ष्य पूरा करने के लिए प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय ने 'ग्लोबल इंडियन नॉलेज ऑफ नॉलेज' (ग्लोबल आईएनक) नाम के एक डायस्पोरा ज्ञान नेटवर्क के विकास की पहल की है।
'ग्लोबल इंडियन नॉलेज ऑफ नॉलेज' (ग्लोबल आईएनक), एक इलेक्ट्रोनिक मंच है जो विविध विषयों की दृष्टि से भारतीय मूल के लोगों को जोड़ेगा जैसे विदेश में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक,अपने-अपने क्षेत्र में न केवल निवास के देश में बल्कि वैशविक रूप में भी अग्रदूत के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति,भारत में राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों पर ज्ञान के इस्तेमालकर्ता। यह नेटवर्क एक महत्वपूर्ण 'वास्तविक वैचारिक'बिंदु के रूप में काम करेगा। इसका अंतिम लक्ष्य विकास के बारे में विचारों का सृजन, विकास और चुनौतियों को पूरा करने में महत्वपूर्ण तत्वों की पहचान और मौलिक एंव प्रौद्योगिकी संबंधी उपायों के जरिए समाधानों का विवरण और उनकी रुपरेखा तैयार करना है।
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