हिमकारी मिश्रण क्या है ?
रसायन विज्ञान में किसी ठोस को उसके द्रवणांक पर गलने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होगी जो उसकी गुप्त ऊष्मा होगी। यह ऊष्मा असाधारणतः बाहर से मिलती है, जैसे जल में बर्फ़ का टुकड़ा मिलाने पर बर्फ़ गलेगी, परन्तु गलने के लिए द्रवणांक पर वह जल से ऊष्मा लेगी जिससे जल का तापमान घटने लगेगा और मिश्रण का ताप घट जायेगा। हिमकारी मिश्रण का बनना इसी सिद्धांत पर आधारित है। उदाहरण के लिए घर पर आइसक्रीम जमाने के लिए नमक का एक भाग एवं बर्फ़ का तीन मिलाया जाता है, इससे मिश्रण का ताप -22॰C प्राप्त होता है।
वाष्प दाब क्या है ?
वाष्प दाब या साम्यावस्था वाष्प दाब, एक वाष्प जो उसके गैर वाष्प चरण के साथ साम्यावस्था मे हो, का दाब होता है। सभी द्रवों और ठोसों की अपनी अवस्था से गैस अवस्था और हर गैस की अपनी अवस्था से वापस मूल अवस्था (द्रव या ठोस अवस्था) में संधनित होने की प्रवृति होती है। किसी विशेष वस्तु के लिए, किसी दिए गये ताप पर एक नियत दाब होता है जिस पर उस वस्तु की गैस अवस्था उसकी द्रव या ठोस अवस्था के साथ गतिज साम्यावस्था मे होती है, यह दाब उस वस्तु का उस ताप पर वाष्प दाब होता है। साम्यावस्था वाष्प दाब, किसी द्रव की वाष्पीकरण की दर को इंगित करता है। यह कणों किसी द्रव (या एक ठोस) से पलायन करने की प्रवृत्ति से संबंधित है। सामान्य तापमान पर एक उच्च वाष्प दाब वाले पदार्थ को अक्सर वाष्पशील पदार्थ कहा जाता है।
समावयवता क्या है ?
रासायनिक यौगिकों का जब सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया, तब देखा गया कि यौगिकों के गुण उनके संगठन पर निर्भर करते हैं। जिन यौगिकों के गुण एक से होते हैं उनके संगठन भी एक से ही होते हैं और जिनके गुण भिन्न होते हैं उनके संगठन भी भिन्न होते हैं। बाद में पाया गया कि कुछ ऐसे यौगिक भी हैं जिनके संगठन, अणुभार तथा अणु-अवयव एक होते हुए भी, उनके गुणों में विभिन्नता है। ऐसे विशिष्टता यौगिकों को समावयवी (Isomer, Isomeride) संज्ञा दी गई और इस तथ्य का नाम समावयवता(Isomerism) रखा गया।
रसायन विज्ञान में किसी ठोस को उसके द्रवणांक पर गलने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होगी जो उसकी गुप्त ऊष्मा होगी। यह ऊष्मा असाधारणतः बाहर से मिलती है, जैसे जल में बर्फ़ का टुकड़ा मिलाने पर बर्फ़ गलेगी, परन्तु गलने के लिए द्रवणांक पर वह जल से ऊष्मा लेगी जिससे जल का तापमान घटने लगेगा और मिश्रण का ताप घट जायेगा। हिमकारी मिश्रण का बनना इसी सिद्धांत पर आधारित है। उदाहरण के लिए घर पर आइसक्रीम जमाने के लिए नमक का एक भाग एवं बर्फ़ का तीन मिलाया जाता है, इससे मिश्रण का ताप -22॰C प्राप्त होता है।
वाष्प दाब या साम्यावस्था वाष्प दाब, एक वाष्प जो उसके गैर वाष्प चरण के साथ साम्यावस्था मे हो, का दाब होता है। सभी द्रवों और ठोसों की अपनी अवस्था से गैस अवस्था और हर गैस की अपनी अवस्था से वापस मूल अवस्था (द्रव या ठोस अवस्था) में संधनित होने की प्रवृति होती है। किसी विशेष वस्तु के लिए, किसी दिए गये ताप पर एक नियत दाब होता है जिस पर उस वस्तु की गैस अवस्था उसकी द्रव या ठोस अवस्था के साथ गतिज साम्यावस्था मे होती है, यह दाब उस वस्तु का उस ताप पर वाष्प दाब होता है। साम्यावस्था वाष्प दाब, किसी द्रव की वाष्पीकरण की दर को इंगित करता है। यह कणों किसी द्रव (या एक ठोस) से पलायन करने की प्रवृत्ति से संबंधित है। सामान्य तापमान पर एक उच्च वाष्प दाब वाले पदार्थ को अक्सर वाष्पशील पदार्थ कहा जाता है।
रासायनिक यौगिकों का जब सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया, तब देखा गया कि यौगिकों के गुण उनके संगठन पर निर्भर करते हैं। जिन यौगिकों के गुण एक से होते हैं उनके संगठन भी एक से ही होते हैं और जिनके गुण भिन्न होते हैं उनके संगठन भी भिन्न होते हैं। बाद में पाया गया कि कुछ ऐसे यौगिक भी हैं जिनके संगठन, अणुभार तथा अणु-अवयव एक होते हुए भी, उनके गुणों में विभिन्नता है। ऐसे विशिष्टता यौगिकों को समावयवी (Isomer, Isomeride) संज्ञा दी गई और इस तथ्य का नाम समावयवता(Isomerism) रखा गया।
केशिकत्व क्या है ?
केशिकत्व से अभिप्राय है कि "किसी ठोस पदार्थ के संपर्क में रहने वाले द्रव की वह क्रिया जिसमें द्रव के अणुओं के एक-दूसरे के प्रति और ठोस के अणुओं के प्रति आकर्षण के फलस्वरूप द्रव का पृष्ठ उठता या गिरता है। यदि पानी के गिलास में एक पतली खुली नलिका डाली जाए तो केशिकत्व के कारण ही नली में पानी का स्तर गिलास के पानी के स्तर से ऊपर होगा।
हाइड्रोजन के समस्थानिक क्या है ?
हाइड्रोजन या उदजन (H) (मानक परमाणु भार: 1.00794(7) u) के तीन प्राकृतिक उपलब्ध समस्थानिक होते हैं:१H, २H, and ३H। अन्य अति-अस्थायी नाभि (४H से७H) का निर्माण प्रयोगशालाओं में किया गया है, किंतु प्राकृतिक रूप में नहीं मिलते हैं। हाइड्रोजन एकमात्र ऐसा तत्त्व है, जिसके समस्थानिकों को इसके नाम से स्वतंत्र अलग नाम मिले हुए हैं। इनके लिए चिह्न D एवं T का प्रयोग होता है (बजाय २H एवं३H के)। आईयूपीएसी चाहे ये प्रयोगा प्रचलन में है, किंतु अनुमोदित नहीं है।
वाष्पीकरण क्या है ?
वाष्पीकरण (Vaporization) अर्थात रसायन विज्ञान में द्रव से वाष्प में परिणत होने कि क्रिया 'वाष्पीकरण' कहलाती है। वाष्पीकरण की दर ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक तथा मानसून में आमतौर पर काफ़ी कम होती है।
वाष्पीकरण की क्रिया दो प्रकार की होती है -- वाष्पन (Evaporation)
- क्वथन (Boiling)
वाष्पन क्या है ?
जल के मृदा से वायुमण्डल में जाने की प्रक्रिया। इसमें जल के पौधे से होकर वायुमण्डल की ओर निष्कासन की वाष्पन उत्सर्जन प्रक्रिया तथा मृदा एवं वनस्पति सतह से जल के वाष्पन की प्रक्रिया शामिल हैं। वह संपूर्ण आर्द्रता जो भूतल (जलाशय) से होने वाले वाष्पीकरण (evaporation) और पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की क्रिया द्वारा वायु में मिलती है। वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन की दर मुख्यतः तापमान पर आधारित होती है। जलवायविक अध्ययन में यह एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि इसके द्वारा ही समस्त वायुमंडलीय दशाएं निर्धारित होती हैं।वाष्पन की क्रिया
वाष्पन की क्रिया निम्न बातों पर निर्भर करती है-
- क्वथनांक का कम होना :- क्वथनांक जितना कम होगा, वाष्पन की क्रिया उतनी ही अधिक तेज़ी से होगी।
- द्रव का ताप :- द्रव का ताप अधिक होने पर वाष्पन अधिक होगा।
- द्रव का क्षेत्रफल :- द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पन तेजी से होगा।
- द्रव के पृष्ठ पर :- द्रव के पृष्ठ पर वायु बदलने पर वाष्पन तेज़ होगा। द्रव के पृष्ठ पर वायु का दाब जितना ही कम होगा वाष्पन उतनी ही तेज़ी से होगा। द्रव के पृष्ठ पर वाष्प दाब जितना बढ़ता जाएगा वाष्पन की दर उतनी ही घटती जाएगी।