रसायन विज्ञान शब्द परिभाषा भाग - 5, - Study Search Point

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रसायन विज्ञान शब्द परिभाषा भाग - 5,

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प्राणु क्या है ?
प्राणु (प्रोटॉन) एक धनात्मक विध्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है। इस पर 1.602E−19 कूलाम्ब का धनावेश होता है। इसका द्रव्यमान 1.6726E−27 किग्रा होता है जो इलेक्ट्रॉन के द्रब्यमान के लगभग 1837 गुना है। प्राणु तीन प्राथमिक कणो दो अप-क्वार्क और एक डाउन-क्वार्क से मिलकर बना होता है। स्वतंत्र रुप से यह उदजन आयन H+ के रुप में पाया जाता है।
प्राणुफर्मिऑन होते है, जिनकी प्रचक्रण 1/2 होती है और यह तीन क्वार्क से मिलकर बने होते है अर्थात यह बेर्यॉन (हेड्रॉन का एक प्रकार) के रुप में होते है। इनके दो अप-क्वार्क एवं एक डाउन-क्वार्क आपस में सशक्त बल (strong force) से जुडे होते है जोग्लुऑन द्वारा लागू होते है। प्राणु और न्यूट्रॉन का जोडा न्युक्लिऑन कहलाता है जो किपरमाणु नाभिक में नाभकीय बल (nuclear force) से आपस में बंधे होते है। उदजन ही एक मात्र ऐसा तत्व है जिसके परमाणु नाभिक में प्राणु अकेला पाया जाता है अन्यथा अन्य सभी परमाणु के नाभिक में प्राणु न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता है। उदजनपरमाणु के नाभिक में केवल एक प्राणु होता हैन्यूट्रॉन नहीं होता है जबकि इसके दो भारी समस्थानिक ड्यूटेरियम में एक प्राणु व एक न्यूट्रॉन एवं ट्रिटियम में एक प्राणु व दो न्यूट्रॉन होते है।

 विषमांग मिश्रण क्या है ?
Hertogeneous Mixture रसायन विज्ञान में मिश्रण को अनिश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से विषमांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण एवं उनके संघटक भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे- बारूद, कुहासा आदि।

अकेलास ठोस क्या है ?
अकेलास ठोस (एमोर्फस सॉलिड / Amorphous solid) उन ठोस पदार्थों को कहते हैं जिनके अन्दर पर्याप्त दूरी तक परमाणुओं का कोई सुनिश्चित विन्यास नहीं होता। अकेलास ठोस गरम करने पर क्रमश नरम हो जाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनकी श्यानता (विस्कोसिटी) इतनी कम हो जाती है कि वे चल्य (मोबाइल) बनकर द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं। इन पदार्थों का कोई निश्चित गलनांक नहीं होता। ये पदार्थ ठीक-ठीक ठोस की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते। इसलिए इनको अत्यधिक श्यानता वाले अतिशीतलित (सुपरकूल्ड) द्रव भी कहा जाता है। काँच, मोम, वसा, अलकतरा (डामर) आदि अकेलास ठोस में से हैं। अधिकांश ठोस एमार्फस रूप में पाये जाते हैं या उन्हें एमॉर्फस रूप में बनाया जा सकता है।

मोल (mol) एक SI मूल इकाई है, जो पदार्थ की मात्रा मापन करता है। यह एक गण्य इकाई है। एक मोल में एवोगाद्रो संख्या के बराबर (लगभग 6.02214×1023) परमाणु, अणु, अन्य आरम्भिक कण होते हैं। एक मोल पदार्थ का ग्राम में भार, उस पदार्थ के एक परमाणु/अणु के AMU में भार की संख्या के बराबर होता है। उदाहरण के लिये, 1 mol ऑक्सीजन (O2) अणु का भार लगभग 32 ग्राम होता है, जबकि 1 अणु ऑक्सीजन बराबर होती है 32 AMU के।
एक मोल होता है, जैसे एक दर्जन, जिसमें दोनों ही विशुद्ध संख्याएं हैं, जिनमें कोई भी इकाई नहीं है। यह किसी भी प्रकर के मूलभूत पदार्थ की व्याख्या कर सकता है, (पदार्थ जो परमाणु से बना हो)। मोल का प्रयोग केवल आण्विक्, परमाण्विक और अन्तर-आण्विक कणों के मापन तक ही सीमित है। इसका परिमाण और अन्य पारम्परिक प्रयोग इसे अन्य प्रयोगों हेतु अव्यवहारिक बना देते हैं। व्यवहार में हम पदार्थ की मात्रा को प्रायः ग्राम-मोल में मापते हैं, जो कि उस पदार्थ की उस मात्रा के बराबर है, जिसका भार ग्राम में उसके सूत्र भार के बराबर है। अतः एक ग्राम-मोल कार्बन का भार है 12 ग्राम्, जबकि एक ग्राम-मोल जल क भार है 18.016 ग्राम। इसमें गण्य अस्तित्व एक परमाणु कार्बन में, या एक अणु जल (H2O में, आण्विक सूत्र भार = 2 H परमाणु + 1 O परमाणु ≈18)।

परमाणु क्या है ?
परमाणु (एटम) किसी तत्व का सबसे छोटा भाग है जिसमें उस तत्व के रासायनिक गुण निहित होते हैं। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है।
आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, गाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं।

परमाणु भार क्या है ?
किसी तत्व का परमाणु द्रव्यमान वह संख्या है जो यह प्रदर्शित करता है कि उस तत्व का एक परमाणुप्रांगार के एक परमाणु के 1/12 वें भाग से कितना गुना भारी है। परमाणु भार = तत्त्व के परमाणु का द्रव्यमान / कार्बन परमाणु का बारहवां भाग प्रकृत्ति में पाये जाने वाले अधिकांश तत्त्व अपने समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में होते हैं अतः परमाणु भार प्रायः भिन्नात्मक होते हैं।

परमाणु संख्या क्या है ?
परमाणु संख्या किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटानों की संख्या को व्यक्त करती हैं। इसे प्राय  से अंकित करते हैं |
परमाणु क्रमांक (Atomic Number) रसायन विज्ञान में किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को कहते हैं तथा इसे <math>\mathbf{z}</math> से प्रदर्शित करते हैं।
परमाणु क्रमांक = प्रोटॉनों की संख्या = इलेक्ट्रॉनों की संख्या

परमाणु द्रव्यमान क्या है ?
Atomic Mass किसी तत्व का परमाणु द्रव्यमान एक संख्या है, जो यह बतलाती है कि उस तत्त्व के एक परमाणु का द्रव्यमान कार्बन (परमाणु द्रव्यमान = 12) के एक परमाणु के 12वें भाग से कितना गुना भारी है।
परमाणु भार = तत्त्व के एक परमाणु का द्रव्यमान / <math>\frac{1}{12}</math> <math>\times</math> <math>\mathbf{C}</math>12 परमाणु का द्रव्यमान

ठोस (solid) पदार्थ की एक अवस्था है, जिसकी पहचान पदार्थ की संरचनात्मक दृढ़ता और विकृति (आकार, आयतन और स्वरूप में परिवर्तन) के प्रति प्रत्यक्ष अवरोध के गुण के आधार पर की जाती है। ठोस पदार्थों में उच्च यंग मापांक औरअपरूपता मापांक होते है। इसके विपरीत, ज्यादातर तरल पदार्थ निम्न अपरूपता मापांक वाले होते हैं और श्यानता का प्रदर्शन करते हैं। भौतिक विज्ञान की जिस शाखा में ठोस का अध्ययन करते हैं, उसे ठोस-अवस्था भौतिकी कहते हैं। पदार्थ विज्ञान में ठोस पदार्थों के भौतिक और रासायनिक गुणों और उनके अनुप्रयोग का अध्ययन करते हैं। ठोस-अवस्था रसायन में पदार्थों के संश्लेषण, उनकी पहचान और रासायनिक संघटन का अध्ययन किया जाता है।
ठोस अवस्था के अभिलक्षणिक गुणधर्म निन्नलिखित हैं।
  1. वे निश्चित द्रव्यमान, आयतन एवं आकार के होते हैं।
  2. अंतराआण्विक दूरियाँ लघु होती हैं।
  3. अंतराआण्विक बल प्रबल होते हैं।
  4. उनके अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों) की स्थितियाँ निश्चित होती हैं और यह कण केवल अपनी माध्य स्थितियों के चारों ओर दोलन कर सकते हैं।
  5. वे असंपीड्य और कठोर होते हैं।

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