विदेशी पूंजी को रियायती प्रवाह या गैर रियायती समर्थन को रूप में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में प्राप्त किया जा सकता है या विदेशी निवेश के रूप में प्राप्त किया जा सकता है!
इस संदर्भ में रियायती प्रवाह के अंतर्गत अनुदान,ऋण आदि को अति कम व्याज पर प्राप्त किया जाता है! जिसकी परिपक्वता अवधि लम्बी होती है! यह सहयोग अक्सर द्विस्तरीय तौर पर सरकार से सरकार को दिया जाता है! जब कोइ विदेशी कम्पनी भारत की किसी कम्पनी मे पूंजी निवेश करती है तो उसे विदेशी पूंजी निवेश कहा जाता है। वेदेशी पूंजी निवेश दो पप्र्कर का होता है -
- फौरेन डाइरेक्ट इंवेस्ट्मेंट
- फौरेन इंस्टिट्यूश्नल इंवेस्ट्मेंट
पिछ्ले वर्शो मे भारत मे विदेशी पूंजी निवेश मे काफी बढोत्तरी हुई है।
विदेशी पूंजी की जरूरत
- निवेश के एक उच्च स्तर को कायम रखना.
- तकनीकी गैप.
- प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग.
- प्रारंभिक जोखिम उपक्रम
- बुनियादी आर्थिक ढांचे का विस्तार
- भुगतान की स्थिति के संतुलन में उन्नयन
विदेशी पूंजी के प्रति भारत सरकार की नीति
- विदेशी और भारतीय पूंजी के बीच किसी भी प्रकार के पक्षपात से बचना
- मुनाफा कमाने के लिए पूर्ण अवसरों की उपलब्धता
- मुआवजे की गारंटी
क्षेत्र जिसमे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्जित है:
- मल्टी ब्रांड रिटेल
- परमाणु ऊर्जा
- लॉटरी कारोबार
- जुआ और सट्टेबाजी
- चिट फंड का व्यापार
- निधि कंपनी
- हस्तांतरणीय विकास अधिकार में व्यापार
- गतिविधि/सेक्टर के वे निजी क्षेत्र जिन्हें निवेश के लिए खोला नहीं जा सकता
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