बहादुरपुर का युद्ध एक संघर्ष है जो 24 फरवरी 1658 को हुआ। यह युद्ध भारत के मुग़ल बादशाह शाहजहां (शासनकाल:1628-57/58) के बेटों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई का निर्णय करने में सहायक रहा। 1657 में शाहजहां के बीमार पड़ने पर उनके चारों पुत्र दारा शिकोह, शाहशुजा, औरंगज़ेब व मुराद बख़्श सत्ता के लिए लड़ने लगे। दूसरे पुत्र शुजा ने तुरंत स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र प्रशासक घोषिक कर दिया । दारा के पुत्र सुलेमान शिकोह ने शुजा को उत्तर प्रदेश में वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) के पूर्वोत्तर में 8 किलोमीटर दूर स्थित बहादुरपुर में हरा दिया। सुलेमान शिकोह को बाद में उनके चाचा औरंगज़ेब ने क़ैद करके फांसी दे दी। औरंगज़ेब ने 1658 में शाहजहां को कैद कर एक महीने बाद स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया। उन्होंने दारा, मुराद और शुजा (जो फ़रार होकर 1660 में म्यांमार (भूतपूर्व बर्मा) में मरे) को भी हराया।
वाडीवाश का युद्ध वर्ष 1760 में अंग्रेज़ों और फ़्राँसीसियों के मध्य लड़ा गया था। युद्ध में फ़्राँसीसियों की हार हुई और उन्हें पाण्डिचेरी अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा। बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेज़ों ने वाडीवाश का युद्ध छेड़ा और फ्राँसीसियों को पराजित किया। इस विजय के साथ ही अंग्रेज़ों ने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। वाडीवाश का युद्ध फ़्राँसीसियों के लिए निर्णायक युद्ध था, क्योंकि फ़्राँसीसियों की समझ में यह बात पूर्ण रूप से आ चुकी थी कि वे कम से कम भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रहते सफल नहीं हो सकते। चाहे वह उत्तर-पूर्व हो या पश्चिम या फिर दक्षिण भारत। 1763 ई. में सम्पन्न हुई 'पेरिस सन्धि' के द्वारा अंग्रेज़ों ने चन्द्रनगर को छोड़कर शेष अन्य प्रदेश, जो फ़्राँसीसियों के अधिकार में 1749 ई. तक थे, वापस कर दिये और ये क्षेत्र भारत के स्वतंत्र होने तक इनके पास बने रहे।
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