भारतीय परिषद अधिनियम-1861 ई. ., - Study Search Point

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भारतीय परिषद अधिनियम-1861 ई. .,

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1861 का भारतीय परिषद अधिनियम भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण और युगांतकारी घटना है। यह दो मुख्य कारणों से महत्वपूर्ण है। एक तो यह कि इसने गवर्नर जनरल को अपनी विस्तारित परिषद में भारतीय जनता के प्रतिनिधियों को नामजद करके उन्हें विधायी कार्य से संबद्ध करने का अधिकार दिया। दूसरा यह कि इसने गवर्नर जनरल की परिषद की विधायी शक्तियों का विकेन्द्रीकरण कर दिया अर्थात बम्बई और मद्रास की सरकारों को भी विधायी शक्ति प्रदान की गयी। गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया। 1865 के अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को प्रेसीडेन्सियों तथा प्रांतों की सीमाओं को उद्घोषणा द्वारा नियत करने तथा उनमें परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया। इसी तरह 1869 के अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को विदेश में रहने वाले भारतीयों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया। 1873 के अधिनियम के द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी को किसी भी समय भंग करने का प्रावधान किया गया। इसी के अनुसरण में 1 जनवरी, 1874 को ईस्ट इंडिया कम्पनी को भंग कर दिया गया। भारतीय परिषद अधिनियम-1861 का निर्माण देश के प्रशासन में भारतीयों को शामिल करने के उद्देश्य से बनाया गया था| इस अधिनियम ने सरकार की शक्तियों और कार्यकारी व विधायी उद्देश्य हेतु गवर्नर जनरल की परिषद की संरचना में बदलाव किया| यह प्रथम अवसर था जब गवर्नर जनरल की परिषद के सदस्यों को अलग-अलग विभाग सौंपकर विभागीय प्रणाली की शुरुआत की| इस अधिनियम के अनुसार बम्बई व मद्रास की परिषदों को अपने लिए कानून व उसमें संशोधन करने की शक्ति पुनः प्रदान की  गयी जब कि अन्य प्रान्तों में अर्थात बंगाल में 1862 में,उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में 1886 में और बर्मा व पंजाब में 1897 में इन परिषदों की स्थापना की गयी|

अधिनियम के मुख्य बिंदु -
• तीन अलग-अलग प्रेसीडेंसियों(बम्बई,मद्रास और बंगाल) को एक सामान्य प्रणाली के तहत लाया गया|
• इस अधिनियम द्वारा विधान परिषदों की स्थापना की गयी|
• इस अधिनियम द्वारा वायसराय की परिषद् में विधिवेत्ता के रूप में एक पांचवें सदस्य को शामिल किया गया|
•  वायसराय की परिषदों का विस्तार किया गया और कानून निर्माण के उद्देश्य से अतिरिक्त सदस्यों की संख्या न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 तक कर दी गयी| ये सदस्य गवर्नर जनरल द्वारा नामित किये जाते थे और इनका कार्यकाल दो साल था|अतः कुल सदस्य संख्या बढ़कर 17 हो गयी|
• इन नामांकित सदस्यों के कम से कम आधे सदस्य गैर-सरकारी होना जरुरी था|
•  इस अधिनियम के अनुसार बम्बई व मद्रास की परिषदों को अपने लिए कानून व उसमें संशोधन करने की शक्ति पुनः प्रदान की  गयी जब कि अन्य प्रान्तों में अर्थात बंगाल में 1862 में,उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में 1886 में और बर्मा व पंजाब में 1897 में इन परिषदों की स्थापना की गयी|
कैनिंग ने 1859 ई. में विभागीय प्रणाली की शुरुआत की जिसके तहत गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों को अलग-अलग विभाग सौंपे गए| कोई भी सदस्य अपने विभाग से सम्बंधित मामलों में अंतिम और निर्णायक आदेश जारी कर सकता था|
लॉर्ड कैनिंग ने 1862 ई. में तीन भारतीय सदस्यों को अपनी परिषद् में शामिल किया जिनमें बनारस के राजा, पटियाला के राजा और सर दिनकर राव शामिल थे|

निष्कर्ष : भारतीय परिषद् अधिनियम-1861 भारतीयों को प्रशासन में भागीदारी प्रदान कर और भारत में कानून निर्माण की त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया को सुधार कर भारतीय आकांक्षाओं की पूर्ति की |अतः इस अधिनियम द्वारा भारत में प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की गयी जोकि भारत में ब्रिटिश शासन के अंत तक जारी रही|

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