प्रश्न : जाति आधारित असमानता समकालीन समय में एक सामाजिक वास्तविकता है। आधुनिक समय में जाति आधारित भेदभाव कैसे प्रदर्शित होता है? गंभीर विश्लेषण करें।
उत्तर : भारतीय समाज, विशेषकर हिंदुओं में जाति के प्रश्न बहुत पुराने हैं। इसका सहारा लेकर कथित ऊंची जातियां शताब्दियों से निम्नस्थ जातियों का शोषण करती आई हैं। इस कारण कुछ आलोचक जाति–प्रथा को भारतीय समाज का कलंक मानते हैं। वे गलत नहीं हैं। आज भी समाज में जो भारी असमानता और ऊंच–नीच है, आदमी–आदमी के बीच गहरा भेदभाव है, जाति उसका बड़ा कारण है। समाजार्थिक समानता के लक्ष्य की यह आज भी सबसे बड़ी बाधा है। जातीय उत्पीड़न के शिकार समाज के दो–तिहाई से अधिक लोग,निरंतर इसकी जकड़बंदी से बाहर आने को छटपटाते रहे हैं। मगर आत्मविश्वास की कमी और बौद्धिक दासता की मनःस्थिति उन्हें इस जकड़बंदी से मुक्त नहीं होने दे रही है।भारतीय समाज में जाति–विधान इतना अधिक प्रभावकारी है कि सिख और इस्लाम जैसे धर्म भी, जिनमें जाति के लिए सिद्धांततः कोई स्थान नहीं है, इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं। इनमें सिख धर्म का तो जन्म ही जाति और धर्म पर आधारित विषमताओं के प्रतिकार–स्वरूप हुआ था, जबकि इस्लाम की बुनियाद बराबरी और भाईचारे पर रखी गई थी। भारत में आने के बाद इस्लाम पर भी जाति–भेद का रंग चढ़ चुका है।
जाहिर है मनुष्य अपने गुण–कर्म और प्रवृत्तियां समाज में रहते हुए ग्रहण करता है। जाति–व्यवस्था के अनुसार मान लिया जाता है कि फलां शिशु ‘पंडित’ के घर में जन्मा है, इसलिए उसमें जन्मजात पांडित्य है। जबकि शूद्र के घर में जन्म लेने वाले शिशु सामान्य बुद्धि–विवेक से भी वंचित मान लिए जाते हैं। हिंदू धर्म की यही विडंबना समय–समय पर उसके बौद्धिक एवं राजनीतिक पराभव का कारण बनी है। आज भी समाज में जो भारी असमानता और असंतोष है, उसके मूल में भी जाति ही है।
ये बहुत शर्म की बात है कि, अब 21वीं शताब्दी में भी और इस आयु और समय में जबकि मानव समाज ने वैज्ञानिक तौर पर इतनी तरक्की की है कि लोग मंगल ग्रह पर भी जमीन खरीदने की योजना बना रहे हैं, भारतीय समाज तब भी जाति प्रथा जैसी प्राचीन व्यवस्था में विश्वास रखता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, मुख्य रुप से चार प्रकार के वर्णों की व्यवस्था है जो हिन्दू समाज को, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में बांटती है। इन चार वर्णों के अलावा जो एक अन्य वर्ग जो सभी से नीचे माना जाता था, वो थे ‘अस्पृश्य’, बाहरी जाति, क्योंकि वो कहे गये वर्णों का भाग नहीं माने जाते थे। इन अस्पृश्यों को कुछ इस तरह के कार्यो को करना पड़ता था जो अस्वच्छ और प्रदूषित होते थे जैसे: शौचालयों और मरे हुये पशुओं की खाल को साफ करना। ये सबसे ज्यादा भेदभाव और शोषित करने वाला कार्य है, ये सभी चारों वर्ण इनसे दूरी बनाकर रखते हैं। और यदि इन अछूत जाति वालों की छाया भी किसी पर पड़ जाये तो ये पाप माना जाता था। इस बुराई का समाज से पूरी तरह से उन्मूलन करने और हटाने में सबसे बड़ी समस्या इसके लिये आम सामाजिक स्वीकृति है। और जब तक इस में कोई बदलाव नहीं होता, तब तक कोई उम्मीद नहीं है। क्योंकि कानून केवल शोषण से सुरक्षा प्रदान कर सकता है लेकिन ये तथाकथित ऊंची जाति वालों के व्यवहार में बदलाव नहीं ला सकता। केवल युवा और आधुनिक पीढ़ी से ही शायद बदलाव की एक उम्मीद है कि वो ही सही अर्थों में हमारे देश में सामाजिक न्याय ला सकेंगें।
आधुनिक समय में जाति आधारित भेदभाव -
आधुनिक समय में भी यदि ग्रामीण परिवेश की बात करें तो चाहे वह क्षत्रिय ही क्यूँ न हों परन्तु उनमे भी ऊंचे वाले ठाकुर, नीचे वाले ठाकुर, ब्राह्मण में भी ऊंचे वाले ब्राह्मण, नीचे वाले ब्राह्मण, इत्यादि। जिनके पास अधिक खेती है वो बड़े काश्तकार, जिनके पास कम खेती है वो छोटे काश्तकार, बड़े व्यापारी, छोटे व्यापारी, इत्यादि। इस प्रकार से सामाजिक वर्गीकरण हर जगह है और वर्गीकरण शास्वत है केवल बड़े समूहों में ही नहीं परन्तु इनका स्वरुप उन समाजों के भी अन्दर कई रूपों में उपस्थित है। भेदभाव (Stratification) शास्वत है और हमेशा रहेगा अतः हमें समाज में जातिगतता को सामान्य रूप में लेना चाहिए। आरक्षण का मुद्दा भी बार-बार जातिगत समूहों के द्वारा सरकार के समक्ष असमानता के रूप में खड़ा हो जाता है और उसकी प्रासंगिगता का स्वर भी उभर पड़ता है। विदित हो कि डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि किसी भी राष्ट्र में आरक्षण की व्यवस्था हमेशा रहे, यह भी ठीक नहीं है। बाकी सबको अवसर अधिक दिए जाए, शिक्षा मिले। इसके आगे आरक्षण देना अलगाववाद को बढ़ावा देना है। जो पिछड़े है उन्हें अच्छी शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि इन्हें आगे बढ़ने का असवर मिले। इन कारणों पर भी ध्यान देना चाहिए कि आखिर आजादी के 70 साल बाद भी हमारे देश में गरीब और पिछड़े क्यों है?
हमें जातिगत सामाजिक बुराई का विरोध करना चाहिए और उसे समाज से निकालने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए। सामाजिक बुराई समाज में जब तक रहेगीं केवल नुकसान ही पहुचाती रहेंगी। हमें अपने सोच को भी दुरुस्त रखना पड़ेगा और आधुनिक समाज के अनुसार अपनी सोच में बदलाव का प्रयास भी करना चाहिए।
साभार - ऑनलाइन तैयारी
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