भौतिक विज्ञान परिभाषा शब्दकोश भाग - 5, - Study Search Point

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भौतिक विज्ञान परिभाषा शब्दकोश भाग - 5,

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गति  किसे कहते है?
यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है। दूरी (distance): किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक (+ve) होती हैं।
विस्थापन (displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को विस्थापित कहते है। यह सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है।
चाल (speed): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को चाल कहते हैं। अथार्त चाल = दूरी / समय यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी/से है।

वेग (velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की दूरी को वेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी/से है।
त्वरण (acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। इसका S.I. मात्रक मी/से2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं।

गतिज ऊर्जा किसे कहते है?
गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) किसी पिण्ड की वह अतिरिक्त ऊर्जा है जो उसके रेखीय वेग अथवा कोणीय वेग अथवा दोनो के कारण होती है। इसका मान उस पिण्ड को विरामावस्था से उस वेग तक त्वरित करने में किये गये कार्य के बराबर होती है। यदि किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा E हो तो उसे विरामावस्था में लाने के लिये E के बराबर ऋणात्मक कार्य करना पड़ेगा।[1]
गतिज ऊर्जा (रेखीय गति) = (1/2) * m * v * v ; m = द्रब्यमान, v = रेखीय वेग
गतिज ऊर्जा (घूर्णन गति) = (1/2) * I * w * w ; I = जडत्वाघूर्ण, w = कोणीय वेग गतिज उर्जा हर जगह भिन्न होती है प्रथ्वी में अलग प्रथ्वी के बाहर अलग होती है

कार्य किसे कहते है?
भौतिकी में कार्य (work) होना तब माना जाता है जब किसी वस्तु पर कोई बल लगाने से वह वस्तु बल की दिशा में कुछ विस्थापित हो। दूसरे शब्दों में, कोई बल लगाने से बल की दिशा में वस्तु का विस्थापन हो तो कहते हैं कि बल ने कार्य किया। कार्य, भौतिकी की सबसे महत्वपूर्ण राशियों में से एक है। कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। कार्य करने या कराने से वस्तुओं की ऊर्जा में परिवर्तन होता है। किसी वस्तु पर F बल लगाने पर वह वस्तु बल की दिशा में d दूरी विस्थापित हो जाय तो किया गया कार्य
W = Fd.
होगा।
उदाहरण : -
10 न्यूटन (F = 10 N) का बल किसी वस्तु पर दक्षिण दिशा में लगता है और वह वस्तु दक्षिण दिशा में 2 मीटर (d = 2 m) विस्थापित हो जाती है तो बल द्वारा किया गया कार्य W = (10 N)(2 m) = 20 N m = 20 J हुआ। किसी वस्तु पर 5 न्यूटन का बल लगाकर उसे 4 मीटर विस्थापित करने पर भी 20 J ही कार्य होगा (5 N x 4 m = 20 J) कार्य का मात्रक 'जूल' है। इसे संक्षेप में J से निरूपित किया जाता है। 1 जूल = 1न्यूटन-मीटर। कार्य एक अदिश राशि है। यदि किसी वस्तु पर एक नियत बल लगाया जाय और वह सीधी रेखा में (बल की दिशा में या बल की दिशा से अलग दिशा में) गति करे तो किया गया कार्य निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है-
W = \vec{F}\cdot\vec{s} = F s \cos \alpha
जहाँ : -
\vec{F} – बल
\vec{s} – विस्थापन

किन्तु यदि बल का मान नियत न हो (अर्थात् परिवर्तनशील हो) और विस्थापन भी एक दिशा में न होकर अलग-अलग दिशाओं एं हो तो इस स्थिति में कार्य की मात्रा निकालने के लिये बल और विस्थापन के सदिश गुणनफल का समाकलन करना पड़ता है। अर्थात्
W_L = \int_{L} \mathrm{d} W  =\int_{L} \vec{F} \cdot \mathrm{d}\vec{s}
जहाँ : -
W – कार्य
L – विस्थापन-मार्ग को सूचित करता है। उपरोक्त समाकलन की गणना विस्थापन-मार्ग के सन्दर्भ में की जायेगी।
\vec{F} – बल
\mathrm{d}\vec{s} – विस्थापन (सदिश)
α – किसी स्थान पर बल तथा विस्थापन के बीच का कोण

आवेग किसे कहते है?
शास्त्रीय (क्लासिकल) यांत्रिकी में आवेग (impulse) की परिभाषा समय के सापेक्ष बल का समाकलन (इन्टीग्रल) के रूप में की जाती है। अर्थात
\mathbf{I} = \int \mathbf{F}\, dt
जहाँ : -
I आवेग है (प्राय: इसे J से भी प्रदर्शित किया जाता है),
F बल है और
dt सूक्ष्मतम् (infinitesimal) समयान्तराल है।
जब किसी वस्तु पर बल लगाया जाता है तो इसके कारण वस्त के संवेग में परिवर्तन होता है। एक छोटा बल अधिक समय तक लगाकर अथवा एक बड़ा बल कम समय तक लगाकर बराबर मात्रा में संवेग परिवर्तन प्राप्त किया जा सकता है। इसी लिये संवेग परिवर्तन की दृष्टि से केवल बल का महत्व न होकर बल का समय के सापेक्ष समाकलन (अर्थात् आवेग) का महत्व है। आवेग टक्करों के विश्लेषण में बहुत अहम है। इसके अलावा जब कोई बड़ा परिवर्तन अत्यल्प समय में घटित होता है (जैसे क्रिकेट की गेंद पर बल्ले का बल) उस स्थिति में आवेग की बात की जाती है।

गुरुत्व किसे कहते है?
Gravity न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है। यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण बल को 'गुरुत्व' कहते हैं। अर्थात् गुरुत्व वह आकर्षण बल है जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। यही कारण है कि मुक्त रूप से ऊपर की ओर फेंकी गई वस्तुयें पृथ्वी की सतह पर आकर गिरती है। उल्लेखनीय है कि किसी वस्तु पर लगने वाला गुरुत्वीय बल ही उसका भार अकहलाता है। सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है।

गुरुत्व विभव किसे कहते है?
गुरुत्व विभव या गुरुत्वीय विभव (Gravitational potentialचिरसम्मत यांत्रिकी में उस कार्य को कहा जाता है जो किसी इकाई द्रव्यमान वाली वस्तु को प्रेक्षण बिन्दु तक लाने गुरुत्वीय बल के विरूध करना पडता है। यह विद्युत विभव के समान ही है, केवल आवेश के स्थान पर यहाँ द्रव्यमान का उपयोग होता है। इसकी विमा विद्युत विभव के समान नहीं होती। 
चूँकि गुरुत्वीय विभव (V) इकाई द्रव्यमान के लिए गुरुत्वीय ऊर्जा (U) के समान होता है, अतः
U = m V
जहाँ m वस्तु का द्रव्यमान है। 
अनन्त से किसी बिन्दु (प्रेक्षण बिन्दु) तक बिन्दु द्रव्यमान m को M द्रव्यमान वाले बिन्दु द्रव्यमान के गुरुत्वीय क्षेत्र में, इसके गुरुत्वीय क्षेत्र में लाने में किया गया कार्य उस बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव (V) होता है:
V(x) = \frac{W}{m} = \frac{1}{m} \int_{\infty}^{x} F \ dx = \frac{1}{m} \int_{\infty}^{x} \frac{G m M}{x^2} dx =  -\frac{G M}{x}
यहाँ G गुरुत्वीय नियतांक है जिसका अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में मान 6.67384×10-11घन मीटर प्रति किलोग्राम प्रति वर्ग सैकण्ड होता है।

साभार - Wikipedia,

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