हमारे ग्रह : बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल - Study Search Point

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हमारे ग्रह : बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल

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बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173°C; −280°F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों मे दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रुप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब 130), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रहअपसौर पर उपसौर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रुप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है।
बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा ( शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है।

अपने छोटे आकार व 59-दिवसीय-लंबे धीमे घूर्णन के बावजुद बुध का एक उल्लेखनीय और वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र है। मेरिनर 10 द्वारा लिए गए मापनों के अनुसार यह पृथ्वी की तुलना में लगभग 1.1% सर्वशक्तिशाली है। इस चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति बुध के विषुववृत्त पर करीब 300 nT है। पृथ्वी की तरह बुध का भी चुंबकीय क्षेत्र दो ध्रुवीय है। पृथ्वी के उलट, बुध के ध्रुव ग्रह के घूर्णी अक्ष के करीब-करीब सीध में है। अंतरिक्ष यान मेरिनर-10 व मेसेंजर दोनों से मिले मापनों ने दर्शाया है कि चुंबकीय क्षेत्र का आकार व शक्ति स्थायी है। ऐसा लगता है कि यह चुंबकीय क्षेत्र एक डाइनेमो प्रभाव के माध्यम द्वारा उत्पन्न हुआ है। इस लिहाज से यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समान है। यह डाइनेमो प्रभाव ग्रह के लौह-बहुल तरल कोर के परिसंचरण का नतीजा रहा होगा। विशेष रूप से ग्रह की उच्च कक्षीय विकेंद्रता द्वारा उप्तन्न शक्तिशाली ज्वारीय प्रभाव ने कोर को तरल अवस्था में रखा होगा जो कि डाइनेमो प्रभाव के लिए आवश्यक है।
रोचक तथ्य : -
  • बुध ग्रह ( Mercury ) सूर्य से सबसे पहला / पास का ग्रह है और द्रव्यमान में आंठवा सबसे बड़ा ग्रह है और गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की अपेक्षा एक चौथाई है। यह सौर मंडल का सबसे छोटा ग्रह है, जिसके पास कोई उपग्रह नहीं है। बुध ग्रह का व्यास 4880 किमी जो सौर मंडल में दो चन्द्रमा गुरु का गेनीमेड और शनि का टाईटन व्यास में बुध से बडे है लेकिन द्रव्यमान में आधे हैं। बुध सामान्यतः नंगी आंखो से सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से ठीक पहले ( दो घंटा पहले ) देखा जा सकता है। बुध सूर्य के काफ़ी समीप होने से इसे देखना मुश्किल होता है।
  • बुध की कक्षा काफ़ी ज़्यादा विकेन्द्रीत ( eccentric ) है, इसकी सूर्य से दूरी 46,000000 किमी ( perihelion ) से 70,000000 किमी ( aphelion ) तक ( कक्षा = 57,910,000 किमी ( 0.38 AU ) सूर्य से ) रहती है। जब बुध सूर्य के नजदिक होता है तब उसकी गति काफ़ी धिमी होती है। 19 वी शताब्दि में खगोलशास्त्रीयो ने बुध की कक्षा का सावधानी से निरिक्षण किया था लेकिन न्युटन के नियमो के आधार पर वे बुध की कक्षा को समझ नहीं पा रहे थे। बुध की कक्षा न्युटन के नियमो का पालन नहीं करती है। निरिक्षित कक्षा और गणना की गयी कक्षा में अंतर छोटा था लेकिन दशको तक परेशान करनेवाला था। पहले यह सोचा गया कि बुध की कक्षा के अंदर एक और ग्रह (वल्कन) हो सकता है जो बुध की कक्षा को प्रभवित कर रहा है। काफ़ी निरिक्षण के बाद भी ऐसा कोई ग्रह नहीं पाया गया। इस रहस्य का हल काफ़ी समय बाद आईन्स्टाईन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत ( General Theory of Relativity ) ने दिया। इस सिद्धांत से गणना करने पर आये आंकडे ,निरिक्षण से प्राप्त आंकडो से मेल खा रहे थे। बुध की कक्षा की सही गणना इस सिद्धांत के स्वीकरण की ओर पहला क़दम था।
  • बुध 48 किलोमीटर ( 29 मील ) प्रति सेकंड की रफ्तार से यह 88 दिनों में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है, जो सबसे कम समय है। इसे अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 60 दिन लगते हैं। 1962 तक यही सोचा जाता था कि बुध का एक दिन और वर्ष एक बराबर होते है जिससे वह अपना एक ही पक्ष सूर्य की ओर रखता है। यह उसी तरह था जिस तरह चन्द्रमा का एक ही पक्ष पृथ्वी की ओर रहता है। लेकिन डाप्लर सिद्धाण्त ने इसे ग़लत साबीत कर दिया। अब यह माना जाता है कि बुध के दो वर्ष में तीन दिन होते हैं। अर्थात बुध सूर्य की दो परिक्रमा में अपनी स्व्यं की तीन परिक्रमा करता है। शुक्र की तरह बुध का घुर्णन धीमा है। बुध और मंडल में अकेला पिंड है जिसका कक्षा / घुर्णन का अनुपात 1.1 नहीं है। ( वैसे बहुत सारे पिंडो में ऐसा कोई अनुपात ही नहीं है। )
  • बुध की कक्षा में सूर्य से दूरी में परिवर्तन के तथा उसके कक्षा / घुर्णन के अनुपात का बुध की सतह पर कोई निरिक्षक विचित्र प्रभाव देखेगा। कुछ अक्षांसो पर निरिक्षक सूर्य को उदित होते हुये देखेगा और जैसे जैसे सूर्य क्षितिज से उपर शीर्षबिंदू तक आयेगा उसका आकार बढता जायेगा। इस शीर्षबिंदू पर आकर सूर्य रूक जायेगा और कुछ देर विपरित दिशा में जायेगा और उसके बाद फिर रूकेगा और दिशा बदल कर आकार में घटते हुये क्षितिज में जाकर सूर्यास्त हो जायेगा। इस सारे समय में तारे आकाश में सूर्य से तिन गुना तेजी से जाते दिखायी देंगे। निरिक्षक बुध की सतह पर विभिन्न स्थानो अलग अलग लेकिन विचित्र सूर्य की गति को देखेगा।
  • बुध की सतह पर तापमान 90 डीग्री केल्वीन से 700 डीग्री केल्वीन तक जाता है। शुक्र पर तापमान इससे गर्म है लेकिन स्थायी है। बुध पर एक हल्का ( पतला ) वातावरण है जो मुख्यतः सौर हवा से लगातार प्राप्त होते परमाणुओ से बना है। बुध बहुत गर्म है जिससे इस ग्रह पर ये परमाणु टिक नहीं पाते है और परमाणु उड़कर अंतरिक्ष में चले जाते हैं। जहां पृथ्वी और शुक्र के वातावरण स्थिर है वंही पर बुध के वातावरण का पुननिर्माण होते रहता है।
  • बुध को हमारे चन्द्र्मा का भाई कहा जा सकता है दोनो की सतह पर उलकापात से बने ढेर सारे गढ्ढे ( क्रेटर ) है। लेकिन बुध का घनत्व चन्द्रमा के घनत्व से कहीं ज़्यादा है ( 5.43 ग्राम / घन सेमी और 3.34 ग्राम / घन सेमी ) । बुध की सतह स्थायी है, उस पर परतो में कोई गतिविधी नहीं है। बुध का घनत्व 5.43 ग्राम / सेमी है और यह पृथ्वी के बाद सारे सौर मण्ड्ल में सबसे ज़्यादा घनत्व वाला पिंड है। पृथ्वी का घनत्व उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण ज़्यादा है अन्यथा बुध का घनत्व सबसे ज़्यादा होता, बुध का घनत्व उसके लोहे की कोर के कारण है। इससे ऐसा प्रतित होता है कि बुध का लौह केन्द्र पृथ्वी के लौह केन्द्र से बड़ा है, शायद बाकि सभी ग्रहो के के केन्द्र से भी ज़्यादा। बुध की सतह पर सीलीकेट की एक बारीक पपड़ी है। बुध के केन्द्र में 1800 किमी से 1900 किमी व्यास की एक लोहे की गुठली है। सीलीकेट की परत ( पृथ्वी जैसे ही ) 500 किमी से 600 किमी मोटी है। सतह की पपड़ी 100 से 300 किमी की है। शायद लोहे का केन्द्र का कुछ भाग पिघला हुआ है।
  • बुध की सतह पर गढ्ढे काफ़ी गहरे है, कुछ सैकड़ो किमी लम्बे और तीन किमी तक गहरे है। ऐसा प्रतित होता है कि बुध की सतह लगभग 0.1% संकुचित हुयी है। बुध की सतह पर कैलोरीस घाटी है जो लगभग 1300 किमी व्यास की है। यह चन्द्रमा के मारीया घाटी के जैसी है। शायद यह भी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के टकराने से बनी है। इन गड्डो के अलाबा बुध ग्रह में कुछ सपाट पठार भी है जो शायद भूतकाल के ज्वालामुखिय गतिविधीयो से बने है। मैरीनर से प्राप्त आंकड़े बताते है कि बुध पर कुछ ज्वालामुखिय गतिविधीयां है लेकिन इसे प्रमाणित करने कुछ और आंकड़े चाहिये। आश्चर्यजनक रूप से बुध के उत्तरी ध्रुवो के गड्डो में पानी की बर्फ़ के प्रमाण मीले है। बुध पर हल्का सा चुंबकिय क्षेत्र है जो पृथ्वी के चुंबकिय क्षेत्र की क्षमता का 1% है। बुध का कोई भी ज्ञात चन्द्रमा नहीं है।

कुछ अनसुलझे प्रश्न


1. बुध का घनत्व पृथ्वी के घनत्व के जैसा 5.43 ग्राम/सेमी ज़्यादा है। लेकिन यह हमारे चंद्रमा से ज़्यादा मिलता जूलता है। क्या किसी टक्कर से इसकी चटटाने नष्ट हो गयी थी ?
2. बुध की सतह पर लोहे की उपस्थिती नहीं है लेकिन इसकी कोर लोहे की बनी है। यह विचित्र है। क्या बुध अन्य चट्टानी ग्रहो से अलग है ?
3. बुध के समतल पठार कैसे बने ?
4. क्या बुध के उस हिस्से में कुछ आश्चर्य छीपा है जिसे हम देख नहीं पाये है? कम गुणवत्ता की तस्वीरो में ऐसा कुछ नहीं पाया है लेकिन ?

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है | ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है | चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है | इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लए पर्याप्त उज्जवलता है | चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है | शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है | यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है | शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है | शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है | हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है | शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है| जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है | इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है | ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है | 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है | कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है | शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते है! लेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे | पानी की अधिकांश संभावना प्रकाश-वियोजित(Photodissociation) रही होने की, व, ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के अभाव की वजह से, मुक्त हाइड्रोजन सौर वायु द्वारा ग्रहों के बीच अंतरिक्ष में बहा दी गई है। शुक्र की भूमी बिखरे शिलाखंडों का एक सूखा मरुद्यान है और समय-समय पर ज्वालामुखीकरण द्वारा तरोताजा की हुई है।

रोचक तथ्य : -
  1. शुक्र पृथ्वी का निकटतम ग्रह, सूर्य से दूसरा और सौरमण्डल का छठवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। शुक्र पर कोई चुंबकिय क्षेत्र नहीं है। इसका कोई उपग्रह ( चंद्रमा ) भी नहीं है। आकाश में शुक्र को नंगी आंखो से देखा जा सकता है। यह आकाश में सबसे चमकिला पिंड है।
  1. शुक्र ग्रह को प्रागैतिहासिक काल से जाना जाता। यह आकाश में सूर्य और चन्द्रमा के बाद सबसे ज़्यादा चमकिला ग्रह / पिंड है। बुध के जैसे ही इसे भी दो नामो भोर का तारा (Eosphorus ) और शाम का तारा / आकाशीय पिण्ड के ( Hesperus ) नाम से जाना जाता रहा है। ग्रीक खगोलशास्त्री जानते थे कि यह दोनो एक ही है। शुक्र भी एक आंतरिक ग्रह है, यह भी चन्द्रमा की तरह कलाये प्रदर्शित करता है। गैलेलीयो द्वारा शुक्र की कलाओं के निरिक्षण कोपरनिकस के सूर्यकेन्द्री सौरमंडल सिद्धांत के सत्यापन के लिये सबसे मज़बूत प्रमाण दिये थे।
  2. यह सूर्य की परिक्रमा 224 दिन में करता है और सूर्य से इसका परिक्रमा पथ 108200000 किलोमीटर लम्बा ( कक्षा : 0.72 AU या 108,200,000 किमी ) है। शुक्र ग्रह व्यास 121036 किलोमीटर और द्रव्यमान 4.869e24 किग्रा है। इसकी कक्षा लगभग वृत्ताकार है। यह अन्य ग्रहों के विपरीत दक्षिणावर्त ( Anticlockwise ) चक्रण करता है।
  3. शुक्र का घुर्णन काफ़ी अजीब है क्योंकि यह काफ़ी धीमा है। वह एक घुर्णन करने में 243 पृथ्वी दिवस लगाता है मतलब कि शुक्र का एक दिन पृथ्वी के 243 दिनो के बराबर होता है। जो कि शुक्र के सुर्य की परिक्रमा में लगने वाले समय से भी थोडा ज़्यादा है। शुक्र पर एक शुक्र दिन शुक्र के एक वर्ष से बड़ा होता है। शुक्र की परिक्रमा और घुर्णन में इतने समकालिक है कि पृथ्वी से शुक्र का केवल एक ही हिस्सा दिखायी देता है।
  4. शुक्र पर वायुदाब भी पृथ्वी के वायुमंडल दबाव से 90 गुना है। जोकि पृथ्वी पर सागरसतह से 1 किमी गहराई के तुल्य है। वायुमंडल में सर्वाधिक कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा पाई जाती है। शुक्र के यह कई किलोमिटर मोटे सल्फ्युरिक अम्ल के बादलो से घीरा हुआ है। यह बादल शुक्र ग्रह की सतह ढंक लेते है जिससे हम उसे देख नहीं पाते हैं। इस वातावरण से शुक्र पर ग्रीनहाउस प्रभाव पडता है जो कि तापमान को 400 सेल्सीयस से 740 सेल्सीयस तक बढा देता है। इस तापमान पर सीसा भी पिघल जाता है। शुक्र की सतह बुध की सतह से भी ज़्यादा गर्म है, जबकि शुक्र बुध की तुलना में सूर्य से दूगनी दूरी पर है। शुक्र के बादलो में उपरी सतह में लगभग 350 किमी प्रति घण्टा की गति से हवायें चलती है जबकि निचली सतह में ये कुछ ही किमी प्रति घण्टा की गति से चलती है। शुक्र पर किसी समय पानी उपस्थित था जो उबलकर अंतरिक्ष में चला गया। शुक्र अब काफ़ी सूखा ग्रह है। पृथ्वी यदि सूर्य से कुछ और नजदिक ( कुछ किमी ) होती तब पृथ्वी का भी यही हाल होता।
  5. शुक्र की सतह से अधिकांश रोलिंग मैदानों हैं। वहां काफ़ी सारे समुद्र जैसे गहरे क्षेत्र है जैसे अटलांटा, गुयेनेवेरे, लावीनिया। कुछ उंचे पठारी क्षेत्र है जैसे ईश्तर पठार जो उत्तरी गोलार्ध में है और आस्ट्रेलीया के आकार का है; अफ्रोदीते पठार जो भूमध्यरेखा पर है और दक्षिण अमरीका के आकार का है। इश्तर पठार का क्षेत्र उंचा है, इसमे एक क्षेत्र लक्ष्मी प्लेनम है जो शुक्र के पर्वतो से घीरा है। इनमे से एक महाकाय पर्वत मैक्सवेल मान्टेस है।
  6. शुक्र का व्यास ( पृथ्वी के व्यास का 95 %), द्रव्यमान ( पृथ्वी के द्रव्यमान का 80 % ) एवं आकार पृथ्वी से थोड़ा ही छोटा है। दोनो ग्रहो में क्रेटर ( उल्कापार से बने विशाल गढ्ढे ) कम है। दोनो का घनत्व और रासायनिक संयोजन समान है। इसलिए इसे पृथ्वी का जुडंवा ग्रह तथा भगिनी / बहन भी कहते हैं। इन समानताओ से यह सोचा जाता था कि बादलो के निचे शुक्र ग्रह पृथ्वी के जैसे होगा और शायद वहां पर जिवन होगा। लेकिन बाद के निरिक्षणो से ज्ञात हुआ कि शुक्र पृथ्वी से काफ़ी अलग है और यहां जिवन की संभावना न्युनतम है।
  7. ग्रीक मिथको के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम और सुंदरता की देवी है। यह नाम शुक्र ग्रह के सभी ग्रहो में सबसे ज़्यादा चमकिले होने के कारण दिया गया है। ( इसे यूनानी में Aphrodite तथा बेबीलोन निवासी में Ishtar कहते थे। ) हिन्दू मिथको / पुराणों के अनुसार शुक्र असुरो के गुरु है। इनके पिता का नाम कवि और इनकी पत्नी का नाम शतप्रभा है। दैत्य गुरु शुक्र दैत्यों की रक्षा करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। ये बृहस्पति की तरह ही शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और कवि हैं। इन्हें सुंदरता का प्रतीक माना गया है।
  8. 1962 में शुक्र ग्रह की यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्ष यान मैरीनर 2 था। उसके बाद 20 से ज़्यादा शुक्र ग्रह की यात्रा पर जा चुके हैं; जिसमे पायोनियर, वीनस और सोवियत यान वेनेरा 7 है जो कि किसी दूसरे ग्रह पर उतरने वाला पहला यान था।

3- बृहस्पति  (Jupiter)
बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनियुरेनस और नेप्चून के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)।

बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है। अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को 17 वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम 64 चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् 1610 में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी 2007 में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं।

बृहस्पति  ग्रह की कुछ विशेषताएँ  : -

  1. यह सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है, जिसका रंग पीला है।
  2. इस ग्रह को अंग्रेज़ी में Jupiter कहते हैं।
  3. इसमें सर्वाधिक हाइड्रोजन पाया जाता है।
  4. हल्के पदार्थो से निर्मित होने के कारण इसका वायुमंडल बहुत ठंडा है।
  5. इसे अपनी धुरी पर चक्कर लगाने में 10 घंटा (सबसे कम) और सूर्य की परिक्रमा करने में 12 वर्ष लगते हैं।
  6. इसके उपग्रहों की ज्ञात संख्या अबतक 64 है, जिसमें ग्यानीमीड सबसे बड़ा उपग्रह है।
4- मंगल (Mars)
मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। 1965 में मेरिनर 4 के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था मे जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं।

मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है।
  • वैज्ञानिक अध्ययनों ने साबित कर दिया कि मंगल भी हमारी पृथ्वी की तरह एक ठोस ग्रह है और यहाँ की सतह रूखी और पथरीली हैं। मंगल की सतह पर मैदान, पहाड़ और घाटियां हैं। वहां धूल के भयंकर तूफ़ान उठते रहते हैं। चाँद की तरह मंगल ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध में उच्चभूमि है और उत्तरी गोलार्ध में मैदान हैं। इस ग्रह के भीतरी भाग में 1700 किलोमीटर रेडियस का कोर ( त्रिज्या का केन्द्रक ) है, उसके चारो पिघली चट्टानो का पिघला मैन्टल है जो पृथ्वी से मैंटल से ज़्यादा घना है, इनके बाहर एक पतला भूपृष्ठ है। मार्स ग्लोबल सर्वेयर के आंकड़ो से भूपृष्ठ की मोटाई दक्षिणी गोलार्ध में 80 किलोमीटर मोटा है लेकिन उत्तरी गोलार्ध में केवल 35 किलोमीटर मोटा है। चट्टानी ग्रहों में मंगल का कम घनत्व यह दर्शाता है कि इसके केन्द्रक में सल्फर की मात्रा लोहे की मात्रा से ज़्यादा है। मंगल का दक्षिणी गोलार्ध चन्द्रमा के जैसे क्रेटरों से भरा हुआ उठा हुआ और प्राचीन है। इसके विपरित उत्तरी गोलार्ध नये पठारो का बना और निचला है। इन दोनो की सीमा पर उंचाई में एक आकस्मिक उंचाई में बदलाव दिखायी देता है। इस आकस्मिक उंचाई में बदलाव के कारण अज्ञात है। मार्श ग्लोबल सर्वेयर यान ने जो 3 आयामी मंगल का नक्शा बनाय है इन सभी रचनाओ को दिखाता है। मंगल के दोनों ध्रुवो पर बर्फ़ की परत है। यह बर्फ़ की परत पानी और कार्बन डाय आक्साईड की बर्फ़ है। उत्तरी गोलार्ध की गर्मीयो में कारबन डायाअक्साईड की बर्फ़ पिघल जाती है और पानी की बर्फ़ की तह रह जाती है। मार्स एक्सप्रेस ने यह अब दक्षिणी गोलार्ध में भी देखा है। अन्य स्थानो पर भी पानी की बर्फ़ के होने की आशा है।
  • मंगल पर ज़मीन खिसकने की घटनाएँ भी आम तौर पर होती हैं, मंगल ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण भी पृथ्वी के मुक़ाबले काफ़ी कम है। बुध और चन्द्रमा की तरह मंगल में भी क्रियाशील प्लेट टेक्टोनिक्स नहीं है क्योंकि मंगल में मोड़दार पर्वत (पृथ्वी पर हिमालय) नहीं है। प्लेट की गतिविधी ना होने से सतह के नीचे के गर्म स्थान अपनी जगह रहते हैं, तथा कम गुरुत्व के कारण थारसीस उभार जैसे उभारो तथा ज्वालामुखी की संभावना ज़्यादा रहती है। हालिया ज्वालामुखीय गतिविधी के कोई प्रमाण नहीं मीले है। मार्स ग्लोबल सर्वेयर के अनुमानो से मंगल में किसी समय टेक्टानिक गतिविधी रही होंगी। इतिहास में मंगल पृथ्वी जैसा रहा होगा।

  • पृथ्वी पर सारी कार्बन डाय आक्साईड कार्बोनेट चट्टान में उपयोग में आ गयी थी, लेकिन मंगल पर प्लेट टेक्टानिक्स नहीं होने से मंगल पर कार्बन डाय आक्साईड के उपयोग और उत्सर्जन का चक्र पूरा नहीं हो पाता है। इन कारणों से मंगल पर तापमान बढाने लायक़ ग्रीन हाउस प्रभाव नहीं बन पाता है (यह तापमान को 5 डीग्री केल्विन तक ही बढा़ पाता है जो पृथ्वी और शुक्र की तुलना में काफ़ी कम है)। इस कारण मंगल की सतह पृथ्वी की तुलना में ठंडी है। मंगल का वायुमंडल बहुत ही विरल ( पृथ्वी की तुलना में पतला ) है। उसमें 95.3 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड (सबसे बड़ा हिस्सा), 2.7 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.6 प्रतिशत आर्गन, सूक्ष्म मात्रा में ( 0.15 प्रतिशत ) ऑक्सीजन तथा जल ( 0.03 प्रतिशत ) पाया जाता है। औसत वायुमंडलीय दबाव 7 मीलीबार है, जो पृथ्वी के 1% के बराबर है लेकिन यह गहराईयो में 9 मीलीबार से ओलम्पस मान्स पर 1 मीलीबार तक रहता है। लेकिन यह वातावरण तेज़ हवाओ और महिनो तक चलने वाले धूल के अंधड़ पैदा करने में सक्षम है।
  • मंगल की सतह (पाथ फाईण्डर द्वारा ली गयी तस्वीर) : - मंगल की सतह पर क्षरण के साफ़ प्रमाण मीले है जिसमे बाढ़ द्वारा क्षरण या छोटी नदीयो द्वारा क्षरण का समावेश है। किसी समय मंगल पर कोई द्रव पदार्थ ज़रूर रहा होगा। द्रव जल की संभावना ज़्यादा है लेकिन अन्य संभावना भी है। यानो द्वारा भेजे गये आंकड़े बताते है कि मंगल पर बड़ी झीले या सागर भी रहे होंगे। ये आंकड़े क्षरण की इन नहरो की उम्र 5 अरब वर्ष बताते हैं। मार्स एक्स्प्रेस द्वारा भेजी गयी एक तस्वीर में जमा हुआ समुद्र दिखायी देता है हो 50 लाख वर्ष पहले द्रव रहा होगा। वैलेस मारीनेरीस घाटी द्रव के बहने से नहीं बनी है। यह थारसीस उभार द्वारा भूपटल में आयी दरारो से बनी है। मंगल पर भूदृश्य काफ़ी रोचक और विविधताओ से भरा है। मंगल पर सौरमण्डल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलिपस मेसी एवं सौरमण्डल का सबसे ऊँचा पर्वत निक्स ओलपिया ( Nix Olympia ) जो कि माउण्ट ऐवरेस्ट से तीन गुना अधिक ऊँचा है जिसकी ऊंचाई 24 किमी ( 78,000 फीट ) है, आधार पर व्यास में 500 किलोमीटर से अधिक है। उस पर एक 4000 किलोमीटर चौड़ा और 10 किलोमीटर ऊंचा एक विशाल थारसीस उभार (पठार) है। उसकी वेलीज मेरिनेरिस (Valles Marineris) घाटी 4000 किलोमीटर लंबाई और 2 - 7 किलोमीटर गहरी घाटीयो की एक प्रणाली है। दक्षिणी गोलार्ध में हेलाज प्लेनिटिया नामक विशाल क्रेटर है जिसकी चौड़ाई 2000 किलोमीटर और गहराई लगभग 6 किलोमीटर है। और यहाँ घाटियाँ इतनी बड़ी हैं कि अगर यह पृथ्वी पर होती, तो यह न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स तक फैला होता। मंगल की सतह काफ़ी पूरानी है और क्रेटरो से भरी हुयी है, लेकिन वहां पर कुछ नयी घाटीया, पहाड़ीयां और पठार भी है। यह सब जानकारीयां मगंल भेजे गये यानो ने दी है। पृथ्वी की दूरबीने ( हब्बल सहित ) यह सब देख नहीं पाते हैं।
  • मंगल ग्रह के दो उपग्रह (चांद) है : - फोबोस और डीमोस। फोबोस मंगल ग्रह के मध्यबिन्दु से 9000 किलोमीटर के फासले पर है और डीमोस 23000 किलोमीटर की दूरी पर। फोबोस का रेडियस 11 किलोमीटर है और डीमोस का 6 किलोमीटर। फोबस पश्चिम से उगता है और दिन में दो बार पूर्व में ढलता है। डीमोस बहुत छोटा - सा चांद है। फोबोस का द्रव्यमान ( किलो ) 1.08e1611 है और डीमोस का 1.80e156 है। इन दोनो उपग्रहो को 1877 में हॉल ने खोजा था।
  • मंगल यानि लाल ग्रह कँपकँपा देने वाली ठंड, धूल भरी आँधी का गुबार और फिर बवंडर, पृथ्वी के मुक़ाबले ये सब मंगल पर कहीं ज़्यादा है, हालाँकि यह पृथ्वी की तरह जीवन से भरा पूरा नहीं है, लेकिन मंगल की भौगोलिक स्थिति काफ़ी अच्छी है। लेकिन इन सभी अंतरों के बावजूद मंगल सौर परिवार में किसी अन्य ग्रह की तुलना में काफ़ी कुछ पृथ्वी जैसा ही है, यही कारण है कि पृथ्वी के बाद मंगल में जीवन की सम्भावना देखी जाती है क्योकि यहाँ वायुमंडल है और पृथ्वी के समान दो ध्रुव पाए जाते है तथा इसका कक्षातली 25º के कोण पर झुका हुआ है, जिसके कारण यहाँ पृथ्वी के समान ऋतु परिवर्तन होता है। इसके दिन का मान एवं अक्ष का झुकाव पृथ्वी के समान ही है। यही कारण है कि मंगल ग्रह पर अभियान तेज़ होने लगे हैं और यहाँ जीवन की तलाश की जा रही है, अभी भी मंगल ग्रह के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि जितनी भी जानकारी अभी है, वो कम है। क्या मंगल पर पृथ्वी जैसा ही बड़ा महासागर है, क्या वहाँ किसी रूप में जीवन है और क्या मनुष्य कभी मंगल पर जाकर स्थायी रूप से रह सकेंगे, इन सब सवालों का जवाब अभी मिलना बाकी है।
  • वाइकिंग यानो ने मंगल पर जीवन की तलाश की थी लेकिन वैज्ञानिको का मानना है कि मंगल पर जीवन नहीं है। भविष्य में कुछ प्रयोग और किये जायेंगे। 6 अगस्त1996 को, डेविड मैके एट अल की घोषणा की है कि उल्का ALH84001 में के सूक्ष्मजीव मंगल ग्रह पर जीवन के सबूत हो सकते हैं। हालांकि अभी भी कुछ विवाद है, वैज्ञानिक समुदाय के बहुमत ने इस निष्कर्ष को स्वीकार नहीं किया। अगर मंगल ग्रह पर जीवन था, वह हम अभी यह नहीं मिला है। मंगल पर कमज़ोर चुंबकीय क्षेत्र कुछ हिस्सों में मौजूद है। यह खोज मार्श ग्लोबल सर्वेयर ने की थी। मंगल पर भी (पृथ्वी की तरह ही सर्वत्र नही) चुंबकीय क्षेत्र पाये जाते हैं। शायद यह क्षेत्र किसी समय मंगल पर रहे सार्वनिक चुंबकीय क्षेत्र के अवशेष हैं। यह भी यह मंगल पर किसी प्राचीन काल में जीवन की संभावना का संकेत है।
  • मंगल ग्रह 27, 28, 29 जनवरी 2010 को हमारी पृथ्वी के काफ़ी क़रीब था। पृथ्वी से उसकी दूरी इन दिनों केवल 9.8 किलोमीटर रह गई थी। सूर्यास्त के बाद पूर्व से आसमान में आगे बढ़ते नारंगी - लाल रंग के मंगल ग्रह को आसानी से पहचाना जा सकता था। बल्कि, वैज्ञानिकों का कहना है कि 29 जनवरी2010 को मंगल सर्वाधिक चमकदार दिखाई था। उसकी चमक आसमान के सबसे चमकदार तारे ‘सिरियस’ यानी व्याध (लुब्धक) से बस नाममात्र को ही कम था। नीली आभा लिए लुब्धक, नारंगी - लाल मंगल और श्वेत चंद्रमा को एक साथ देखना एक अपूर्व अनुभव था।


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