हिन्दी : शब्द और उसके भेद, - Study Search Point

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हिन्दी : शब्द और उसके भेद,

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अक्षरों के समूह को, जिसका कि कोई अर्थ निकलता है, शब्द कहते हैं। उदाहरण के लिए क, म तथा ल के मेल से 'कमल' बनता है तथा इसका अर्थ भी निकलता है अतः 'कमल' एक शब्द है किन्तु 'लकम' भी इन्हीं तीनों अक्षरों के मेल से बनता है पर उसका कुछ भी अर्थ नहीं निकलने के कारण वह शब्द नहीं है। व्याकरण के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं- विकारी और अविकारी या अव्यय। विकारी शब्दों को चार भागों में बाँटा गया है- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। अविकारी शब्द या अव्यय भी चार प्रकार के होते हैं- क्रिया विशेषण, संबंध बोधक, संयोजक और विस्मयादि बोधक इस प्रकार सब मिलाकर निम्नलिखित 8 प्रकार के शब्द-भेद होते हैं -
संज्ञा 
किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, या भावना का नाम बताने वाले शब्द को संज्ञा कहते हैं। जैसे - गोविन्द, हिमालय, वाराणसी, त्याग आदि
संज्ञा में तीन भेद होते हैं - 1. व्यक्ति वाचक 2. जाति वाचक. 3. भाव वाचक.
सर्वनाम
वे शब्द जो संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त किये जाते हैं सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे - मैं, तुम, वह, वे लोग, यह आदि
सर्वनाम में कर्म रूप और सम्बन्ध रूप भी होते हैं, पर सम्बोधन रूप नहीं होता। सर्वनाम में लिंग-भेद नहीं होता।
विशेषण
वाक्य में संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे - काला कुत्ता। इस वाक्य में काला विषेषण है।
जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है उसे विशेष्य कहते हैं। उपरोक्त वाक्य में कुत्ता विशेष्य है।
विशेषण के चार प्रकार हैं- 1. गुणवाचक विशेषण, 2.संख्यावाचक विशेषण, 3.परिमाण-बोधक विशेषण और 4 सार्वनामिक विशेषण। इसके अतिरिक्त व्युत्पत्ति की दृष्टि से सार्वनामिक विशेषण के दो प्रकार हैं- 1.मूल सार्वनामिक विशेषण और 2.यौगिक सार्वनामिक विशेषण।
क्रिया
जिन शब्दों से किसी कार्य का करना या होना व्यक्त हो उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- रोना, खाना, चलना आदि
क्रिया के कई रूप होते हैं, जो प्रत्यय और सहायक क्रियाओं द्वारा बदले जाते हैं। क्रिया के रूप से उसके विषय संज्ञा या सर्वनाम के लिंग और वचन का भी पता चल जात है। क्रिया वह विकारी शब्द है, जिससे किसी पदार्थ या प्राणी के विषय में कुछ विधान किया जाता है। अथवा जिस विकारी शब्द के प्रयोग से हम किसी वस्तु के विषय में कुछ विधान करते हैं, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-
1. घोड़ा जाता है।
2. पुस्तक मेज पर पड़ी है।
3. मोहन खाना खाता है।
उपर्युक्त वाक्यों में जाता है, पड़ी है और खाता है क्रियाएँ हैं। क्रिया के साधारण रूपों के अंत में ना लगा रहता है। जैसे-आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना आदि। क्रिया के साधारण रूपों के अंत का ना निकाल देने से जो बाकी बचे उसे क्रिया की धातु कहते हैं। आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना क्रियाओं में आ, जा, पा, खो, खेल, कूद धातुएँ हैं। शब्दकोश में क्रिया का जो रूप मिलता है, उसमें धातु के साथ ना जुड़ा रहता है। ना हटा देने से धातु शेष रह जाती है। प्रयोग के आधार पर क्रिया के दो प्रकार होते हैं- अकर्मक क्रियाः तथा सकर्मक क्रिया। इन दोनों के भी भेद और उपभेद होते हैं। रचना की दृष्टि से क्रिया दो प्रकार की होती है-1. रूढ़ और 2. यौगिक।
क्रिया विशेषण
क्रिया शब्दों की विशेषता बताने वाले शब्द को क्रिया-विशेषण कहा जाता है।
जैसे -
  • राम तेज दौड़ता है। (यहाँ पर दौड़ना क्रिया है और तेज शब्द दॉडना क्रिया की विशेषता बताता है अतः "तेज" शब्द क्रिया-विशेषण है।)

संबंध बोधक

दो शब्दों के मध्य सम्बंध बताने वाले शब्द को सम्बंध बोधक शब्द कहलाता है। जैसे -
  • यह राम की पुस्तक है। (यहाँ की शब्द राम और पुस्तक के मध्य सम्बंध बताता है, अतः की सम्बंध सूचक शब्द है।)

 समुच्चय बोधक

दो शब्दों को जोड़ने वाले शब्द को समुच्चय बोधक कहा जाता है। जैसे -
  • राम और श्याम मित्र हैं। यहाँ पर और समुच्चय बोधक शब्द है।

विस्मायदि बोधक

विस्मय प्रकट करने वाले शब्द को विस्मयादिबोधक कहा जाता है। जैसे अहा! कितना सुन्दर दृश्य है। (यहाँ अहा विस्मयादिबोधक है।)
जिन शब्दों का रूप नही बदलता। जैसे धीरे-धीरे, आगे-आगे, आजकल आदि

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