पूर्वी #सिंहभूमजिले के डुमरिया प्रखंड का लखाईडीह गांव हर मामले में आदर्श है। यहां कोई शराब का सेवन नहीं करता। गांव के आसपास किसी की हिम्मत नहीं कि पेड़ों को काट दे और पत्थरों का #अवैधखनन कर सके। चोरी और मारपीट की घटना तो यहां कभी होती ही नहीं है। #पुलिस और कोर्ट से यहां के लोगों का दूर-दूर तक नाता नहीं है। भीषण गर्मी में गांवों और शहरों में जहां जलस्तर नीचे चला गया, वहीं तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित# लखाईडीह गांव का एक भी कुआं नहीं सूखा।
इस गांव में शायद ही कोई बीमारी से पीड़ित महिला-पुरुष या बच्चा मिलेगा। जंगल के अंदर रहते हुए कभी किसी को जंगली जीव-जंतुओं ने नुकसान नहीं पहुंचाया। #पपीता, #आम, अमरूद जैसे #फलदार पेड़ सभी घरों के सामने मिल जाएंगे। यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि अपने जंगल और पहाड़ की सुरक्षा यहां के लोग स्वयं करते हैं। हर रोज आठ लोगों की ड्यूटी लगती है इसके लिए। #डुमरिया प्रखंड के आखिरी छोर पर तीन पहाड़ियों के बीच बसा है लखाईडीह गांव। कुछ दिनों पहले ही यहां पक्की सड़क बनी है। बादलगोड़ा से लखाईडीह जाने के लिए बारह किलोमीटर की ऊंची चढ़ाई तय करनी पड़ती है। हो, संथाल, मुंडारी और सबरों के 73 परिवारों का बसेरा इन्हीं ऊंची-नीची पहाड़ियों पर रहता है।
गांव के प्रधान कान्हूराम टुडू दसवीं तक पढ़े हैं। उन्होंने बताया कि यहां के सबर मेहनत-मजदूरी करते हैं और इनके चार बच्चे मैट्रिक पास हैं। हर बार भीषण गर्मी में हर जगह लोगों को #जलसंकट से जूझना पड़ता है। लखाईडीह इससे अछूता कैसे है? पूछे जाने पर ग्राम प्रधान मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं प्रकृति ने हमें जो सौगात दी है, उससे प्रेम रखा जाए तो कभी कोई संकट नहीं होगा। उनकी मानें तो आसपास के #जंगलों में दो सौ से ज्यादा जड़ी-बूटियां उपलब्ध हैं। तबीयत खराब होने पर लोग इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं।
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