स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माधव श्रीहरि, - Study Search Point

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स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माधव श्रीहरि,

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माधव श्रीहरि अणे (Madhav Shrihari Aney,  29 अगस्त1880 -  26 जनवरी1968)भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। इनके पिता एक विद्वान व्यक्ति थे। माधव श्रीहरि अणे लोकमान्य तिलक से अत्यधिक प्रभावित थे। ये कुछ समय तक 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के सदस्य भी रहे। गाँधी जी के 'नमक सत्याग्रह' के समय इन्होंने भी जेल की सज़ा भोगी। 1943 से 1947 ई. तक ये श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त भी रहे। आज़ादी प्राप्त करने के बाद इन्हें बिहार का राज्यपाल भी बनाया गया था।  उनके विद्वान पिता श्रीहरि अणे ने पुत्र की शिक्षा पर समुचित ध्यान दिया था। बापूजी अणे ने 'कोलकाता विश्वविद्यालय' से उच्च शिक्षा प्राप्त की और1904 से 1907 ई. तक अध्यापन का कार्य भी करते रहे। फिर उन्होंने यवतमाल में वकालत आरम्भ कर दी। युवक अणे पर लोकमान्य तिलक के 'मराठा' और 'केसरी' पत्रों का भी बड़ा प्रभाव पड़ा। 1914 में जब तिलक जेल से छूटकर आये तो उनसे सर्वप्रथम मिलने वालों में अणे भी थे। तिलक के प्रभाव से वे राजनीति में भाग लेने लगे थे। उन्हें अपने ज़िले की कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। जब 'होमरूल लीग' की स्थापना हुई तो उसके उपाध्यक्षों में अणे भी थे। 1921 से 1930 तक उन्होंने विदर्भ प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता की। वे कुछ वर्षों तक 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। 'स्वराज्य पार्टी' की ओर से वे केन्द्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए और वहाँ अपने दल के मंत्री बने थे। 
उन्होंने 'नमक सत्याग्रह' के समय जेल यात्रा भी की। कुछ समय पश्चात धीरे-धीरे कांग्रेस की मुस्लिमपरक नीति के कारण माधव श्रीहरि अणे का और महामना मालवीयजी का उस संस्था से मतभेद होने लगा। उन्होंने मिलकर 'कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी' नामक एक नया दल बना लिया। 1941 में वाइसराय ने अणे को अपनी कार्यकारिणी का सदस्य नामजद कर लिया था, परन्तु 1943 में जबगांधी जी ने आगा ख़ाँ महल में अनशन आरम्भ किया और सरकार झुकने के लिए तैयार नहीं हुई तो विरोध स्वरूप अणे ने वाइसराय की कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दिया। अगस्त, 1943 से जुलाई 1947 तक वे श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त रहे। स्वतंत्रता के बाद वे संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे, किन्तु शीघ्र उन्हें बिहार के राज्यपाल का पदभार ग्रहण करना पड़ा। 1952 तक वे राज्यपाल रहे और 1959 से 1967 तक लोक सभा के सदस्य रहे। विचार भेद होते हुए भी गांधी जी और अणे के सम्बन्ध बड़े मधुर थे। मालवीय जी को तो वे देवोत्तर व्यक्ति मानते थे। उनका अनेक शिक्षा और सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बन्ध था। पूना के 'वैदिक शोधक मंडल' के वे अध्यक्ष थे। आस्तिक श्रीमाधव श्रीहरि अणे का संध्यावंदन और भागवत के अध्याय का संपुट पाठ नित्य का क्रम था। उन्होंने 12 हज़ार श्लोकों में संस्कृत में लोकमान्य तिलक का चरित्र लिखा है।
माधव श्रीहरि अणे की दीर्घकालीन सेवा के सम्मानस्वरूप राष्ट्रपति ने उन्हें 'पद्म विभूषण' की मानद पदवी से सम्मानित किया था।

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