मौर्योत्तर युग में शिल्प, व्यापार और नगर., - Study Search Point

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मौर्योत्तर युग में शिल्प, व्यापार और नगर.,

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शिल्प एवं वाणिज्य -
➤ शकों कुषणो और सातवाहनों का (200 ईसा पूर्व से 300 ईसवी) और प्रथम तमिल राज्यों का युग प्राचीन भारत के शिल्प और वाणिज्य के इतिहास में चरम उत्कर्ष का काल रहा था।
 मौर्य पूर्व काल के दीधनिकाय में लगभग 24 प्रकार के व्यवसायों का उल्लेख मिलता है, तो इसी काल में महावस्तु में राजगीर में रहने वाले 36 प्रकार के व्यवसायियों का उल्लेख मिलता है।
 मिलिंदपन्हो या मिलिंदप्रश्न में तो 75 व्यवसाय गिनाए गए हैं, जिनमे 60 विविध प्रकार के शिल्पो से सम्बद्ध हैं, लेकिन यह शिल्पी नगरों के अलावा गांवों में भी बसते थे।
➤ तेलंगाना स्थित करीमनगर के एक गांव में बढ़ाई, लोहार, सुनार, कुम्हार आदि अलग-अलग टोलों में रहा करते थे।
➤ सोना, चांदी, शीसा, टिनतांबा, पीतल, लोहा और रत्न के काम करने वाले 8 शिल्पी या रत्नकार मिलते है। लोहा बनाने की तकनीकी तकनीकी ज्ञान में भारी प्रगति हुई।
➤ छुरी, कांटे सहित भारतीय लोहे के उत्पाद और इस्पात का निर्यात आबसीनियाई बंदरगाहों को किया जाता था, और पश्चिम एशिया में इनकी भारी प्रतिष्ठा थी।
 मथुरा शाटक नामक विशेष प्रकार के वस्त्र के निर्माण का बड़ा केंद्र हो गया था, तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली नगर के उपांतवर्ती उरैयुर में ईंटों का बना रंगाई का हौज मिलता है, अरिकमेडु  में भी इसी तरह के फौज मिलते हैं।
➤ कोल्हू के प्रचलन से तेल के उत्पादन में वृद्धि हुई, सीप या शंख शिल्प का काम भी उन्नति पर चढ़ा।
➤ भारतीय दंत शिल्प की वस्तुएं अफगानिस्तान और रोम में भी मिलती हैं, जिसका संबंध दक्कन के सातवाहनों के उत्खनन स्थलों पर मिली दंत शिल्प की वस्तुओं से जोड़ा जाता है।
 रोम की कांच की वस्तुएं तक्षशिला और अफगानिस्तान में मिलती है, परंतु भारत ने कांच ढालने की जानकारी ईस्वी सन के आरंभ में आकार प्राप्त की।
➤ इस काल में तरह-तरह के सिक्के ढालने का कार्य भी मशहूर थाशिल्पी लोग नकली रोमन सिक्के भी बना लेते थे।
➤ सातवाहन स्तर के एक सांचे से पता लगता है, कि इससे सिक्के एक ही बार में निकाले जाते थे, इसके साथ ही हस्तशिल्पों में पक्की ईंटों की सुंदर-सुंदर मूर्तिकाएं भी बनाई जाती थी।
 नालगोंडा जिले के येल्लश्वरम का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है, जहां मूर्तिकाएं और उनके निर्माण के सांचे सबसे अधिक संख्या में मिलते हैं।
➤ मूर्तिकाएं और उनके सांचे हैदराबाद से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर कोंडापुर में भी मिल मिले हैं।
➤ गुप्तोत्तर काल में नगर पतन के साथ ही मूर्तिकाएं और उनके निर्माण की संख्या घटती चली गई। शिल्पी लोग आपस में संगठित होते थे, और उनके संगठन का नाम श्रेणी था।
➤ इस समय लगभग 24 से 25 श्रेणियों के शिल्पी प्रचलित थे, अभिलेखों से ज्ञात अधिकतम शिल्पी लोग मथुरा में तथा पश्चिमी दक्कन में जमे (निवास करते) थे।
➤ इसी काल की सबसे बड़ी आर्थिक प्रक्रिया थी, भारत और पूर्वी रोमन साम्राज्य के बीच फलता फूलता व्यापार।
➤ ईरान के पार्थियन लोग भारत से लोहा एवं इस्पात का निर्यात करते थे, लेकिन वह ईरान के पश्चिमी इलाकों से भारत के व्यापार में बाधा डालते थे।
 ईसा की पहली सदी में व्यापार मुख्यतः समुद्री मार्ग से होने लगा, पश्चिमी समुद्र तट पर भडौच और सोपारा तथा पूर्वी तट पर अरिकमेडु और ताम्रलिप्त बंदरगाहों पर मानसून की जानकारी होने पर ईसा सन के आरंभ बाद आसानी से पहुंचा जाने लगा। भडौच इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह रहा था।
➤ शक और कुषाण लोग भी पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत से पश्चिमी समुद्र तट तक दो मार्गों से जाते थे, जो दोनों मार्ग आगे तक्षशिला में मिलते थे।
➤ यह मार्ग मध्य एशिया से गुजरने वाला रेशम मार्ग से जुड़े थेपहला मार्ग उत्तर से सीधे दक्षिण की ओर जाता था, तक्षशिला को निचली सिंधु घाटी से जोड़ता था और वहां से भड़ौच चला जाता था।
➤ दूसरा मार्ग जो उत्तरपथ नाम से विदित है अधिक चालू था जो तक्षशिला से पंजाब यमुना के पश्चिमी तट तथा दक्षिण की ओर मथुरा तक जाता था जहां से मालवा, उज्जैन पश्चिमी समुद्र तट से भड़ौच पहुंचा जाता था।
विदेशी व्यापार -
➤ रोमन के लोगों ने सबसे पहले भारत देश के सुदूर दक्षिणी हिस्से से व्यापार आरंभ किया, इसीलिए उनके सबसे पहले सिक्के तमिल राज्यों में मिलते हैं। वह मुख्यतः मसालों का आयात करते थे
➤ लोहे की वस्तुएं, खासकर बर्तन, रोमन साम्राज्य में भेजी जाने वाली महत्वपूर्ण वस्तुएं थी। रेशम चीन से सीधे रोमन साम्राज्य को अफगानिस्तान और ईरान से गुजरने वाले रेशम मार्ग से भेजा जाता था।
➤ रोमन से भारत को शराब, शराब के दो हत्थे वाले कलश और मिट्टी के अनेक प्रकार के पात्र भेजे जाते थे, यह वस्तुएं पश्चिम बंगाल के तामलुक, पांडुचेरी के निकट अरिकमेडु और दक्षिण भारत के कई अन्य स्थानों में खुदाई से मिलती है, कभी-कभी यह वस्तुएं गुवाहाटी (असम क्षेत्र) तक पहुंच जाया करती थी।
➤ सातवाहन शीशे के सिक्कों के लिए शीशा रोमन साम्राज्य से लपेटी पट्टियों की शक्ल में मंगाया करते थे, जब 115 ईसवी में मेसोपोटामिया को जीतकर रोमन साम्राज्य का प्रांत बना लिया गया तो इस व्यापार में और अधिक सहूलियत होने लगी।
➤ रोम के सम्राट ट्राजन  ने न केवल मस्कट पर विजय प्राप्त की बल्कि फारस की खाड़ी का पता भी लगाया।
➤ काबुल से 72 किलोमीटर दूर उत्तर बिग्राम में इटली, मिस्र और सीरिया के बने कांच के बड़े-बड़े मर्तबान मिलते हैं, साथ ही कटोरे, कांसे के गोड़ा, पश्चिमी बांट, इस्पात का पैमाना, छोटी-छोटी रोमन यूनानी मर्तीकाएं, सुराहियां और सिलखड़ी भी मिलती है।
➤ आधुनिक सिरपक (तक्षशिला में) से यूनानी रोमन कांस्य मूर्तियों के उत्कृष्ट नमूने भी प्राप्त होते हैं।
भारत में पाए गए रोमन सोने, चांदी के सिक्कों की संख्या 6000 से अधिक है, समूचे उप-महादेश में इन सिक्कों के 150 से भी अधिक जखीरे प्रकाश में आए हैं, यह अधिकतर विंध्य के दक्षिण में पाए गए हैं।
➤ रोमन लेखक प्लिनी ने 77 ईसवी में लैटिन भाषा में लिखी “नेचुरल हिस्ट्री” में अफसोस प्रकट किया है, कि रोमन साम्राज्य ने भारत के व्यापार में अपना पूरा स्वर्ण भंडार लुटा दिया।
➤ पश्चिम के लोगों को भारतीय गोल मिर्च इतनी प्रिय थी कि संस्कृत में गोल मिर्च का नाम ही यवन प्रिय पड़ गया।

अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक स्तर -
➤ उत्तर में हिंद यूनानी (इंडो - ग्रीक) शासकों ने कुछ एक स्वर्ण मुद्राएं जारी की लेकिन कुषाणों ने काफी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं चलाई।
➤ पांचवी सदी ईसा पूर्व में भारत ने ईरानी साम्राज्य को नजराने के तौर पर 320 टैलेट सोना दिए जाने की जानकारी मिलती है।
➤ रोम से संपर्क के फलस्वरुप कुषाणों ने दिनार सदृश्य स्वर्ण मुद्रा जारी की जो गुप्तों के शासनकाल में खूब प्रचलित हुई, परंतु यह रोजमर्रा के जीवन में लेनदेन के रूप में उपयोग में नहीं लाई जाती थी।
➤ आंध्र प्रदेश में शीशे तथा ताबे की खानें पाई गई, कर्नाटक से सोना मिलता था। आंध्र (सातवाहनों) ने दक्कन में शीशे और पोटीन के सिक्के बड़ी संख्या में जारी किए, तांबे और कांसे के सिक्के भारी मात्रा में कई देसी राजवंशों ने भी जारी किए।
➤ इन राजवंशों में मध्य भारत पर राज करने वाले नागवंश, पूर्वी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में शासन करने वाले यौधेय वंश, कौशांबी, मथुरा, अवंती और अहिछत्रा (बरेली जिले में स्थित) में राज करने वाले मित्र राजवंश रहे।
➤ बिहार के  चिरांद, सोनपुर और बक्सर आदि, पूर्वी उत्तर प्रदेश में खैराडीह और मासोन कुषाण काल में उन्नति (संमद्ध) के स्थल रहे थे।
➤ उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के निकट श्रृंगवेरपुर, सोहगौरा, भीटा और कौशांबी तथा इसके पश्चिमी जिलों में अतरंजिखेरा और कई अन्य स्थल कुषाण काल में उन्नत अवस्था पर थे।
➤ श्रृंगवेरपुर और चिराद दोनों स्थलों पर बहुत सी कुषाण कालीन ईट संरचनाएं मिलती है, मथुरा में सोख के उत्खनन में कुषाण काल के सात स्तर दिखाई देते हैं, जबकि गुप्त युग का एक स्तर दिखाई देता है।
➤ पजाब के अंतर्गत जालंधर, लुधियाना और रोपण में कई स्थलों पर कुषाण कालीन संरचनाएं मिलती हैं।
➤ उज्जैयिनी महत्वपूर्ण नगर था, यहां दो मार्ग मिलते थे, कौशांबी से आने वाला और मथुरा से आने वाला। यहां अंगेट और इंद्रगोप (कार्नेलियन) पत्थरों का निर्माण होता था। उत्खनन से पता चलता है कि यहां 200 ईसा पूर्व के  बाद मणि मनके बनाने के लिए गोमेद, इंद्रगोप और सूर्यकांत (जैस्पर) रत्नों का काम बड़े पैमाने पर होता था।
➤ शक कुषाण काल की ही तरह सातवाहन राज्य उन्नति पर रहा इसके प्रमुख नगर तगर (तेर), पैठन, धान्यकटक, अमरावती, नागार्जुनकोंड, भड़ौच, सोपरा, अरिकमेडु, और कवेरीपट्टनम उन्नत नगर थे।
➤ तेलंगाना में सातवाहनों की कई बस्तियों खुदाई से प्राप्त होती है, जिनमे से कुछ तो सातवाहनो के दीवार घिरे 30 नगरों का वर्णन प्लिनी ने भी किया है, जिनका उदय आंध्र के तटीय शहरों में काफी पहले हुआ था।
➤ भारत में अधिकतर कुषाण नगर मथुरा से तक्षशिला जाने वाले पश्चिमोत्तर मार्ग या उत्तरपथ पर पडते थे, इन मार्गों पर सुरक्षा का प्रबंध किया गया था।
➤ दक्कन में खुदाई से पता चला है कि सातवाहनों के बाद से नगर बस्तियों का ह्रास होना लक्षित होता है।

अगले अंक में पढ़ें : गुप्त साम्राज्य का उद्भव एवं विकास।

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