➤ पूर्वोत्तर
भारत में छोटे-छोटे रजवाड़े मगध में विलय हो गए, वहीं पश्चिमोत्तर भारत की
स्थिति कुछ भिन्न रही थी।
➤ ईसा
पूर्व छठी सदी (पूर्वार्द्व) में कंबोज गंधार एवं मद्र आपस में लड़ते रहे, यह
संगठित ना हो सके।
➤ मगध
साम्राज्य के विस्तार के समय से ही ईरान के हखमनी शासन भी
अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे।
➤ ईरानी
शासक दारयवहु (डेरियस) 516 ईसा
पूर्व पश्चिमोत्तर भारत में घुस आया, साथ ही पंजाब सिंध नदी के
पश्चिमी इलाकों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया।
➤ भारत
में यह जीता क्षेत्र फारस (ईरान) का 20 वां प्रांत (क्षत्रपी)
बना, फारस के कुल 28 प्रांत थे।
➤ भारत
का यह पश्चिमी प्रांत उपजाऊ क्षेत्र था, इससे 360 टैलेंट
(मुद्रा तथा भार का प्राचीन माप) सोना
राजस्व आता था। यह फारस के अन्य एशियाई प्रांतों का एक 1/3 भाग
था।
➤ दारयवहु
के उत्तराधिकारी क्षयार्ष (जरसिस) ने
यूनानियों के खिलाफ लंबी लड़ाई में भारतीयों को अपनी सेना में शामिल किया।
➤ सिकंदर
के आक्रमण तक पश्चिमोत्तर भारत ईरानी शासकों के पास ही रहा।
➤ भारत
ईरान का संपर्क करीब 200 वर्षों
तक जारी रहा।
➤ ईरानी
लिपिकार (काबित) भारत में लेखन का एक खास रूप ले आए जो आगे चलकर खरोष्ठी नाम से
विख्यात हुआ। यह लिपि अरबी की तरह दाएं से बाएं ओर लिखी जाती थी।
➤ मौर्य
वास्तु कला पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट देखने को मिलता है, अशोक
कालीन स्मारक विशेषकर घंटा के आकार के गुंबज कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूप पर आधारित
है।
➤ ईरानी
शब्दों का भी विशेष प्रयोग रहा, ईरानी शब्द दिपी को अशोक कालीन लेखों
में लिपि शब्द का प्रयोग के रूप में देखने को मिलता है।
➤ यूनानियों
को ईरानी अभिलेखों से ही भारत में अपार संपत्ति की जानकारी मिलती है।
सिकंदर का आक्रमण -
➤ ईसा
पूर्व चौथी सदी में यूनानियों एवं ईरानियों के बीच संघर्ष हुआ। सिकंदर ने एशिया
माइनर तुर्की और इराक, ईरान
को जीता
एवं भारत की ओर बढ़ा।
➤ हिरोडोट्स
(इतिहास का पिता) अन्य
यूनानी लेखकों ने भारत का वर्णन अपार संपत्ति वाला देश के रूप में किया है। जिसके
चलते सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया।
➤ इस काल
में पश्चिमोत्तर भारत में दो ही सुविख्यात शासक रहे थे। तक्षशिला का राजा आंभि, तथा
पोरस जिसका राज्य झेलम और चेनाब नदी के बीच में स्थित था।
➤ ईरान
विजय के बाद सिकंदर काबुल की ओर बढ़ा और खैबर दर्रा पार करते हुए, वह 326 ईसा
पूर्व में भारत पहुंचा, उसे
सिंधु नदी तक पहुंचने में 5 माह
लगे।
➤ तक्षशिला
के राजा आंभि ने तुरंत सिकंदर के सामने घुटने टेक दिए, और
आत्मसमर्पण कर दिया।
➤ झेलम
नदी के किनारे पहुंचने पर सिकंदर का सामना पहले शक्तिशाली राजा पोरस से हुआ, सिकंदर
ने पोरस की बहादुरी और साहस का सम्मान करते हुए उसका राज्य से लौटा दिया।
➤ आगे
बढ़कर सिकंदर व्यास नदी पर पहुंचा और युद्ध से थकी हारी सेना ने आगे बढ़ने से मना
कर दिया, साथ ही
सिंधु के किनारे से उन्हें भारतीय शौर्य का भी आभास मिल चुका था।
➤ यूनानी
इतिहासकार एरियन ने लिखा कि युद्ध कला में भारतीय अन्य तकनीकी जनों से सर्वश्रेष्ठ
थे।
➤ सिकंदर
भारत में 19 महीने
रहा, (326 ईसा पूर्व से 325 ईसा पूर्व) इस
दौरान उसने केवल युद्ध एवं विजय में ही अपना समय लगाए रखा।
आक्रमण के परिणाम -
➤ सिकंदर
के आक्रमण से प्राचीन यूरोप को प्राचीन भारत के समीप आने संपर्क के अवसर मिले।
➤ भारत
तथा यूनान के बीच अनेक क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित हुए, सिकंदर
अभियान के तहत चार भिन्न-भिन्न स्थल मार्गों, जल मार्गों के द्वार खुले।
व्यापार की तकनीकी सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई।
➤ झेलम के तट पर बुकेफॉल और सिंध में सिकंदरिया प्रमुख शहर
बसाए गए।
➤ सिकंदर
ने नियारकस के नेतृत्व में सिंधु नदी के मुहाने से फरात नदी के मुहाने तक जलमार्ग
और बंदरगाह का पता लगाने के लिए एक दल भेजा।
➤ सिकंदर
के इतिहासकारों से हमें पश्चिमोत्तर भारत के में सती प्रथा, गरीबी
के कारण मां बाप द्वारा अपनी लड़कियों को बेचना, उत्तम नस्ल की गाय, बैलों
की जानकारी मिलती है।
➤ इस समय
भारत की बढ़ाईगिरी सबसे उन्नत दस्तकारी थी।
➤ चंद्रगुप्त
ने सिकंदर के सैन्य तंत्र की जानकारी और कार्यप्रणाली से ही नंद वंश की सत्ता को
उखाड़ फेंकने में सहायता मिली थी।
अगले अंक में पढ़ें :
बुद्ध काल में राज्य एवं वर्ण व्यवस्था।
woow nice article about the topic. यूनानी स्वतन्त्रता युद्ध पर टिप्पणी लिखीए
जवाब देंहटाएं