➠ ईसा
पूर्व छठी सदी से पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग
होने से बड़े-बड़े प्रादेशिक या जनपद राज्यों का उदय हुआ।
➠ बुद्ध
के समय हम 16 बड़े
महाजनपदों को अस्तित्व में देखते हैं।
➠ मगध, कोसल, वत्स
और अवंती में चार बड़े शक्तिशाली राज्य (महाजनपद) स्थापित हुए।
ईसा पूर्व में अंग जनपद (आधुनिक मुंगेर और भागलपुर जिले में) जिसकी
राजधानी राजधानी चंपा थी।
➠ अंग के
पड़ोस में मगध शक्तिशाली राज्य था, मगध आधुनिक पटना और गया जिले
तथा शाहाबाद के कुछ हिस्सों में फैला था।
➠ गंगा
के ऊपर में आज के तिरहुत प्रमंडल में वज्जियों का
राज्य था, यह 8 जनों
का एक संघ था, जिसमें
सबसे प्रबल लिच्छवी रहे थे, लिच्छवी
की राजधानी वैशाली थी।
➠ पुराणों
में वैशाली को प्राचीन नगरी बताया गया है, परंतु इसके पुरातत्व साक्ष
उपलब्ध नहीं हुए हैं।
➠ लिच्छवी
(वैशाली) राज्य के पश्चिम में काशी जनपद था, जिसकी राजधानी वाराणसी थी।
➠ राजघाट
में हुई खुदाई से पता चलता है कि 500 ईसा पूर्व यहां सबसे पुराने
वास के साक्ष्य मिलते हैं।
➠ काशी
एक शक्तिशाली राज्य था, जिसे
बाद में कोसल के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था, कोसल जनपद में पूर्वी उत्तर
प्रदेश पड़ता था, कोसल की राजधानी श्रावस्ती थी, जिसकी पहचान गोंडा एवं बहराइच
जिले की सीमा पर स्थित सहेत महेत स्थान से की जाती है।
➠ कोसल
की महत्वपूर्ण नगरी अयोध्या थी, अयोध्या राम की जन्मभूमि भी रही है, पर
पुरातत्व साक्ष्यों से 500 ईसा
पूर्व नाम मात्र आबादी रहने का प्रमाण मिलता है।
➠ कोसल
में शाक्यों का कपिलवस्तु गणराज्य भी शामिल था, कपिलवस्तु की राजधानी बस्ती जिले में पिपरहवा स्थान के रूप
में पहचान
की जाती है।
➠ कोसल
के पड़ोस में मल्लो का गणराज्य था, मल्ल गणराज्य की उत्तरी सीमा
से वज्जि राज्य जुड़ा हुआ था। मल्लों की राजधानी
कुशीनगर थी।
➠ कुशीनगर
मे महात्मा
बुद्ध की मृत्यु हुई थी, कुशीनगर
की पहचान देवरिया जिले के कसिया नामक स्थान में की गई है।
➠ पश्चिम
की ओर यमुना के तट पर वत्स जनपद था, वत्स जनपद की राजधानी
इलाहाबाद कौशांबी में थी। वत्स के लोग वही कुरूजन थे जो हस्तिनापुर क्षेत्र को
छोड़कर कौशांबी आए हुए थे।
➠ अवंति
राज्य मध्य मालवा और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती नगरों में क्षेत्रों में फैला था।
➠ अवंति
राज्य के दो भाग थे, उत्तरी अवंति राज्य की राजधानी उज्जैन थी, दक्षिणी अवंति राज्य की राजधानी महिष्मति थी। इन
दोनों नगरों का महत्व ईसा पूर्व छठी सदी में रहा था।
➠ लोहा
कर्म का विकास से उज्जैन का महत्त्व इसकी स्थिति मजबूत और किलेबंदी देखने को मिलती
है।
➠ भारत
के राजनीतिक इतिहास में इन राज्यों के बीच प्रभुत्व के लिए संघर्ष का इतिहास है, जिसमें
अंततः मगध राज्य ने सब पर वर्चस्व स्थापित किया।
मगध साम्राज्य की
स्थापना और विस्तार -
➠ बिंबिसार
के शासनकाल में मगध ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।
➠ बिंबिसार हर्यक कुल का शासक था, यह
महात्मा बुद्ध के समकालीन रहा था।
➠ बिंबिसार द्वारा
विजय एवं विस्तार की नीति अपनाई गई थी, अशोक के कलिंग विजय के उपरांत
यह नीति समाप्त हुई थी।
➠ बिंबिसार
ने अंग देश को जीतकर उसका शासन अपने पुत्र अजातशत्रु को दिया था।
➠ बिंबिसार
के तीन विवाह थे, पहली
पत्नी कोसल राज्य की पुत्री और प्रसेनजीत की बहन थी, काशी दहेज के रूप में इसे
प्रदान किया गया था। काशी ग्राम से एक लाख की आय प्राप्त होती थी।
➠ दूसरी
पत्नी वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना थी, जिससे अजातशत्रु का जन्म हुआ
था।
➠ तीसरी
पत्नी रानी पंजाब के मद्र कुल के प्रधान की पुत्री थी। वैवाहिक संबंध से मगध की
राजनीतिक प्रतिष्ठा और अधिक उन्नत हुई।
➠ मगध की
असली शत्रुता अवंति राज्य से थी, उज्जैन अवंति की राजधानी थी। इसके
राजा चंड प्रद्योत महासेन की बिंबिसार से लड़ाई भी हुई थी, किंतु
बाद में दोनों दोस्त बन गए, राजा
चंड प्रद्योत
महासेन को पीलिया रोग होने पर राज वैद्य जीवक को चंड प्रद्योत के
इलाज के लिए बिंबिसार ने अवंती भेजा था।
➠ गांधार
के साथ युद्ध में चंड प्रद्योत को विजय नहीं मिल पाई थी, किंतु
गांधार इसी राजा ने बिंबिसार के पास एक पत्र और दूमंंडल भेजा था।
➠ मगध की पहली राजधानी राजगृह (राजगीर) रही थी, उस समय
इसे गिरिब्रज कहा जाता था।
➠ राजगीर स्थल
पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ था, और पत्थरों से बने दीवारों से यह
अभेद्य दुर्ग के रूप में विख्यात रहा था।
➠ बौद्ध
ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार ने लगभग 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा
पूर्व तक 52 वर्ष
तक शासन किया।
अजातशत्रु ने (492 ईसा पूर्व से 460 पूर्व) अपने
पिता की हत्या कर सिहासन प्राप्त किया था।
➠ बिंबिसार में
अपने जीवन काल में केवल दो लड़ाइयां लड़ी, और तीसरी लड़ाई की तैयारी की।
समूचे शासनकाल मे बिंबिसार ने विस्तार और आक्रमण की काम लिया, जिस
कारण काशी और कोसल राज्यों ने मिलकर मुकाबला किया।
➠ मगध और
तथा कोसल के बीच लंबे समय तक संघर्ष जारी रहा, जो अजातशत्रु के समय समाप्त
हुआ और मगध साम्राज्य में कोसल को मिला लिया गया।
➠ अजातशत्रु
ने रिश्तेदारी का लिहाज न रखते हुए लिच्छवी राज्य पर भी
आक्रमण किया और बहाना ढूंढा की लिच्छवी राज्य कोसल का
मित्र है।
➠ लिच्छवी
राज्य में फूट डालने तथा वैशाली को नष्ट करने में 16 साल
लंबा समय लगा।पत्थर फेंकने वाली यंत्र से यह सफलता मिली थी।
➠ अजातशत्रु
के प्रतिद्वनदियों में अवंति का शासक अधिक शक्तिशाली रहा था। अवंती के राजा ने
कौशांबी के वत्सों को पराजित किया था।
➠ अजातशत्रु
के बाद उदियन (460 ईसा पूर्व से 444 ईसा पूर्व तक) मगध का
शासक बना।
➠ उदियन
ने पटना में गंगा एवं सोन नदियों के संगम पर एक किला बनवाया, जो
पाटलिपुत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ, यह मगध का केंद्र बिंदु था।
➠ उदियन
बाद शिशुनाग वंश का शासन शुरू हुआ, कुछ समय के लिए वैशाली
राजधानी बनाई गई।
➠ शिशुनागों
ने अवंति राज्य की शक्ति को तोड़ दिया, इनकी इस बड़ी उपलब्धि से मगध
की 100 साल
पुरानी शत्रुता खत्म हुई।
➠ शिशुनागों
के बाद नंदो का शासन शुरू हुआ।
➠ नंदो
ने कलिंग को जीतकर मगध की शक्ति को बढ़ाया, विजय स्मारक के रूप में कलिंग
से जिन की मूर्ति को मगध में (पाटलिपुत्र) लाया गया, यह घटना महापद्मा नंद के
शासनकाल की रही है। इसने अपने को एकराट कहा
है।
➠ विद्रोह
करने वाले कोस राज्य को भी जीत लिया गया।
➠ नंद
शासक परम धनी एवं शक्तिशाली थे, इनकी सेना में 2 लाख
पैदल सेना, 20 हजार घुड़सवार 3 हजार से 6 हजार
हाथी थे।
➠ कर
संग्रह से यह सैन्य व्यवस्था संभव हो पाई थी, नंद शासक दुर्बलता तथा
अलोकप्रिय अत्याचारी के चलते अपना अस्तित्व खो बैठे।
मगध की सफलता के
कारण -
➠ मौर्यों
के उत्थान से पहले की दो सदियों में मगध के साम्राज्य के विकास का दौर रहा था, समकालीन
ईरानी साम्राज्य के दौर के समान लौह युग में मगध की भौगोलिक स्थिति बड़ी उपयुक्त
रही थी।
➠ 500 ईसा
पूर्व के आसपास उज्जैन में लोहे गलाने और ढालने का कार्य होने लगा।
➠ पाटलिपुत्र
तथा राजगीर मगध की दोनों राजधानियां सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही। जहां राजगीर
पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ स्थान था, तो वही पाटलिपुत्र गंगा, गंडक
एवं सोन नदियों के संगम पर स्थित रहा था।
➠ सोन
एवं गंगा नदी इसे पश्चिम और उत्तर की ओर से घेरे और पुन पुन नदी दक्षिण तथा पूरब
से घेरे हुई थी।
➠ पूर्वोत्तर
भारत में व्यापार वाणिज्य की वृद्धि के कारण शासक चुंगी कर वसूल करते थे।
➠ मगध ही
पहला राज्य था जिसने अपने पड़ोसियों के विरुद्ध सर्वप्रथम बड़े पैमाने पर हथियारों
का प्रयोग किया। देश के पूर्वोत्तर से मगध शासकों के लिए हाथी आते थे।
➠ यूनानी
स्रोतों के आधार पर नंद सेना में 6 हजार हाथी शामिल थे।
➠ मगध
साम्राज्य रूढ़ि विरोधी था, कट्टर
ब्राह्मण यहां बसे किरात एवं मगध वासियों को निम्न कोटि का माना जाने लगा।
➠ परंतु
वैदिक लोगों के आने से यहां जातिय सुखद मिश्रण रहा।
अगले अंक में
पढ़ें : ईरानी एवं मकदूनियाई आक्रमण।
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