मराठों के राज्य का केंद्रीय प्रशासन., - Study Search Point

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मराठों के राज्य का केंद्रीय प्रशासन.,

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मराठा राज्य ने हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त किया और फारसी की जगह मराठी को राजभाषा का दर्जा दिया। उन्होंने राजकीय प्रयोग हेतु ‘राज व्याकरण कोश’ नाम से स्वयं का एक शब्दकोश निर्मित किया। मराठा साम्राज्य का अध्ययन निम्नलिखित तीन शीर्षकों के तहत किया जा सकता है-केंद्रीय प्रशासन,राजस्व प्रशासन और सैन्य प्रशासन।

केंद्रीय प्रशासन :
इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा समर्थ प्रशासनिक प्रणाली हेतु की गयी थी जोकि मुख्यतः दक्कन की  प्रशासनिक शैली से प्रेरित था। अधिकतर प्रशासनिक सुधारों की प्रेरणा अहमदनगर में मालिक अम्बर द्वारा किये प्रशासनिक सुधारों से मिली थी।
राजा सर्वोच्च पदाधिकारी था जिसकी सहायता ‘अष्टप्रधान’ नाम से जाना जाने वाला आठ मंत्रियों का समूह करता था।

अष्टप्रधान -
पेशवा या प्रधानमंत्री - यह सामान्य प्रशासन की देख-रेख करता था।
अमात्य या मजूमदार - यह लेखा प्रमुख था जो बाद में राजस्व एवं वित्त मंत्री बन गया।
सचिव या शुरु-नवीस - इसे चिटनिस भी कहा जाता था और ये राजकीय पत्राचार का कार्य देखता था।
सुमंत या दबीर - यह राजकीय समारोहों और  विदेश मामलों का प्रमुख मंत्री था।
सेनापति या सर-ए-नौबत - यह सेना प्रमुख था जो सैन्य भर्ती,प्रशिक्षण एवं अनुशासन की देख-रेख करता था।
मंत्री या वाकिया-नवीस - यह आसूचना,राजा की निजी सुरक्षा एवं अन्य गृह-कार्यों का प्रमुख था।
न्यायाधीश - यह न्याय प्रशासन का प्रमुख था।
पंडितराव - यह राज्य के धर्मार्थ एवं धार्मिक कार्यों का प्रमुख था और जनता के नैतिक उत्थान के लिए कार्य करता था।
पेशवा,मंत्री एवं सचिव नाम के तीन मंत्रियों को अपने विभागीय दायित्वों के अतिरिक्त बड़े  प्रान्तों के प्रभारी का दायित्व भी सौंपा जाता था।
न्यायाधीश और पंडितराव को छोड़कर बाकि सभी मंत्रियों को अपने असैनिक दायित्वों के अतिरिक्त सैनिक कमान भी संभाली होती थी।

मंत्री को निम्नलिखित आठ मुंशियों/लिपिकों द्वारा सहयोग प्रदान किया जाता था -
दीवान - सचिव,
मजुमदार - लेखा परीक्षक एवंलेखाकार,
फडनीस - उप-लेखा परीक्षक,
सबनीस या दफ्तरदार - दफ्तर का प्रमुख,
चिटनिस - पत्राचार लिपिक,
जामदार - कोषाधिकारी,
पोतनीस - रोकड़ अधिकारी,
कारखानीस - प्रतिनिधि,
शिवाजी ने अपने संपूर्ण राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया और प्रत्येक प्रान्त एक राज-प्रतिनिधि (वायसराय) के अधीन होता था। उसने प्रान्तों(सूबों) को पुनः परगनों और तालुकों में विभक्त किया। परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी जिसका मुखिया पाटिल(पटेल) होता था।
स्रोत - विकिपीडिया
राजस्व प्रशासन :
शिवाजी ने जमींदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और उसकी जगह रैय्यतवारी प्रणाली लागू की और देशमुख, देशपांडे, पाटिल और कुलकर्णी नाम से प्रसिद्ध वंशानुगत राजस्व कर्मचारियों की स्थिति में परिवर्तन किया।
शिवाजी ने मिरासदारों,जिनके पास भूमि के वंशानुगत अधिकार थे,पर कड़ी निगरानी रखी।
राजस्व प्रणाली मालिक अम्बर की काठी प्रणाली पर आधारित थी। इस प्रणाली के अनुसार, भूमि के प्रत्येक भाग की माप छड़ी या काठी से की जाती थी।
चौथ और सरदेशमुखी उनकी आय के अन्य स्रोत थे। चौथ कुल राजस्व का चौथाई भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से ,मराठा आक्रमण से बचने के एवज में, मराठों द्वारा वसूला जाता था। सरदेशमुखी एक अतिरिक्त कर था जो आय का दस प्रतिशत होता था और राज्य से बाहर स्थित क्षेत्रों से वसूला जाता था।

सैन्य प्रशासन :
शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना तैयार की। सामान्य सैनिकों को नकद भुगतान किया जाता था ,लेकिन बड़े-बड़े सरदारों और सेनापति को भुगतान जागीर अनुदान(सरंजाम या मोकासा) के रूप में किया जाता था।
सेना में पैदल सेना (जैसे-मावली सैनिक), घुड़सवार (जैसे-बारगीर एवं सिलेदार),साजो-सामान ढोनें वाले और नौसेना शामिल थी।
सैन्य अधिकारी/कर्मचारी -
सर-ए-नौबत(सेनापति)- सेना प्रमुख,
किलादार- किलों का अधिकारी,
पायक- पैदल सैनिक,
नायक- पैदल सेना की एक टुकड़ी का प्रमुख,
हवलदार- पांच नायकों का प्रमुख,
जुमलादार- पांच हवलदारों का प्रमुख,
घुराव- बंदूकों से लदी नाव,
गल्लिवत- 40-50 खेवैयों द्वारा खेने वाली नाव

मराठा राज्य ,जहाँ त्वरित सैन्य अभियान महत्वपूर्ण थे, की नीतियों के निर्धारण में सेना एक प्रभावी उपकरण थी। केवल वर्षा ऋतु में सेना आराम करती थी अन्यथा पूरे साल अभियानों में व्यस्त रहती थी।
पिंडारियों को सेना के साथ जाने की अनुमति थी जिन्हें “पाल-पट्टी”,जोकि युद्ध में लुटे गए माल का 25 प्रतिशत थी ,को वसूलने की अनुमति प्रदान की गयी थी।
निष्कर्ष : मराठों की प्रशासनिक प्रणाली बहुत हद तक दक्कन राज्यों के प्रशासनिक व्यवहारों से प्रभावित थी। फिर भी मराठों का अपने समकालीन राज्यों ,विशेष रूप से बीजापुर और अहमदनगर, के संदर्भ में प्रशासनिक एवं सैन्य प्रणाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान था।

मराठों के अधीन पेशवा -
मराठा एक अत्यधिक लड़ाकू/हिंसक जाति थी जिसने दक्कन क्षेत्र में शक्तिशाली संघ की स्थापना की| मुग़ल शासक औरंगजेब की मृत्यु के बाद वे राजनीति और सत्ता के केंद्र में आ गए| स्थानीय नेता शिवाजी ने 1674 ई. में स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की| उनकी प्रशासनिक प्रणाली हिन्दू और मुस्लिम संस्थाओं का मिश्रण थी. पेशवा राज की स्थापना के बाद मराठों की प्रशासनिक प्रणाली में कई परिवर्तन किये गए|
मराठा संघ :
मराठा संघ के उदय में राजाराम द्वारा मराठा सरदारों को जागीरें प्रदान करने के कदम का महत्वपूर्ण योगदान था| इस संघ की आधार का निर्माण बाजीराव प्रथम के समय में हुआ जब शाहू ने विभिन्न मराठा सरदारों को अलग अलग क्षेत्रों पर चौथ व सरदेशमुखी वसूलने के अधिकार प्रदान कर दिए |
मराठा संघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण मराठा सरदार निम्नलिखित थे - 1. बरार के भोंसले 2. बड़ोदरा के गायकवाड़ 3. इंदौर के होलकर 4. ग्वालियर के सिंधिया 5. पूना के पेशवा |

मराठों के अधीन पेशवा -
पेशवा मराठों के प्रति वफादार मंत्री थे जिनकी नियुक्ति राजा को विभिन्न प्रशासनिक एवं राजनितिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए की गयी थी| कुल सात पेशवाओं में सर्वाधिक योग्य पेशवा बाजीराव प्रथम था।
बालाजी विश्वनाथ (1713-1721 ई.) - वह 1713 ई. में शाहूजी द्वारा पेशवा के रूप नियुक्त किया था ताकि साम्राज्य को संगठित किया जा सके| उसने लगभग सभी सरदारों पर जीत  हासिल कर मराठा साम्राज्य का विस्तार किया और पेशवा के पद को अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया|
बाजीराव प्रथम (1721-1740 ई.) - वह बालाजी विश्वनाथ का बड़ा पुत्र था और बीस वर्ष की आयु में ही अपने पिता के बाद पेशवा का पद ग्रहण किया| वह शिवाजी के बाद गुरिल्ला तकनीक का सबसे बड़ा प्रतिपादक था|
बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई.) – वह नाना साहब के नाम से भी जाना जाता था जो अपने पिता बाजीराव की मृत्यु के बाद पेशवा बन था| पानीपट के तृतीय युद्ध में अपने पुत्र (विश्वास राव) और चचेरे भाई (सदाशिव राव) की मृत्यु के सदमे के कारण 1761 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी|
माधव राव प्रथम(1761-1772 ई.) – बालाजी बाजीराव की मृत्यु के बाद उनका सत्रह वर्षीय पुत्र माधव राव प्रथम पेशवा बना और पेशवा परिवार के सबसे बड़े सदस्य रघुनाथ राव को अल्पवयस्क पेशवा का संरक्षक बनाया गया| माधव राव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा पद का महत्व कम हो गया|

पेशवाओं का प्रशासन -
पूना में स्थित पेशवा का सचिवालय ‘हुजुर दफ्तर’ कहलाता था| पेशवा काल में सामंत अपनी जागीरों पर स्वतंत्र रूप से शासन करते थे| उन्होंने ग्राम को छोटी इकाइयों में बाँट दिया जिसका प्रमुख ‘पाटिल’ कहलाता था और कुलकर्णी ग्रामीण दस्तावेजों के रख-रखाव में उनकी मदद करते थे|’पोतार’ नकदी/रोकड़ का निरीक्षण करता था|
बलूटे प्रणाली के तहत किसानों को भुगतान माल के रूप में करना पड़ता था लेकिन ज्यादातर समय उन्हें प्रतिवर्ष फसल के बाद कृषि उत्पादों का भुगतान करना पड़ता था| भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए उन्होंने देशमुख ,देशपांडे और दराख्दारों की नियुक्ति की|


निष्कर्ष : स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना का राजनीतिक आधार मुगल सेनाओं के दक्षिण की ओर बढने के साथ ही तैयार हो गया था खानदेश का पतन ,अहमदनगर का धीरे-धीरे ख़त्म होते जाने और दक्कन क्षेत्र में मुग़ल सुबेदारी व्यवस्था ने मराठों के जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया और शिवाजी के नेतृत्व में मराठों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया| लेकिन दुर्भाग्य से, मराठा संघ ब्रिटिश साम्राज्य के सामने टिक नहीं पाया और समाप्त हो गया|

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