शिवाजी और उनके राज्य का प्रशासन., - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

शिवाजी और उनके राज्य का प्रशासन.,

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सत्रहवी सदी के प्रारंभिक वर्षों में जब पूना जिले के भोंसले परिवार ने स्थानीय निवासी  होने का लाभ उठाते हुए अहमदनगर राज्य से सैनिक व राजनीतिक लाभ प्राप्त किये तो एक नई लड़ाकू जाति का उदय हुआ जिसे ‘मराठा’ कहा गया। उन्होंनें बड़ी संख्या में मराठा सरदारों और सैनिकों को अपनी सेनाओं में भर्ती किया। शिवाजी शाह जी भोंसले और जीजा बाई  के पुत्र थे। शिवाजी का पालन-पोषण पूना में उनकी माता और एक योग्य ब्राह्मण दादाजी कोंडदेव के देख-रेख में हुआ था। दादाजी कोंडदेव ने शिवाजी को एक अनुभवी योध्दा और सक्षम प्रशासक बनाया। शिवाजी गुरु रामदास के धार्मिक प्रभाव में भी आये,जिसने उनमे अपनी जन्मभूमि के प्रति गौरव भाव जाग्रत किया। 

शिवाजी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ -
तोरण की विजय : यह मराठा सरदार के रूप में शिवाजी द्वारा कब्जाया गया पहला किला था, जिसने सोलह वर्षा की उम्र में ही उनमें निहित पराक्रम,दृढ़निश्चय और शासकीय गुणों का परिचय दे दिया। इस जीत ने उन्हें रायगढ़ और प्रतापगढ़ जैसे किलों पर कब्ज़ा करने के लिये  प्रेरित किया। शिवाजी की इन जीतों से परेशां होकर बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता शाहजी को कैद में डाल दिया। 1659 ई. में,जब शिवाजी ने पुनः बीजापुर पर आक्रमण करने का प्रयास किया,तो बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापति अफजल खान को शिवाजी को पकड़ने के लिये भेजा लेकिन शिवाजी भागने में सफल रहे और अफजल खान की,अपने ‘बाघनख’ या ‘शेर का पंजा’ कहे जाने वाले खतरनाक हथियार से,हत्या कर दी। अंततः 1662 ई. में बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ शांति समझौता कर लिया और शिवाजी को उनके द्वारा जीते गए क्षेत्रों का स्वतंत्र शासक बना दिया।
कोंडाना किले की जीत : यह किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था जिसके लिए मराठा शासक शिवाजी के सेनापति तानाजी मालसुरे और जय सिंह के अधीन किलेदार उदयभान राठौर के बीच युद्ध हुआ।
शिवाजी का राज्याभिषेक : 1674 ई. में रायगढ़ में शिवाजी ने खुद को मराठा राज्य का स्वतंत्र शासक घोषित किया और ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। उनका राज्याभिषेक मुग़ल आधिपत्य को चुनौती देने वाले लोगों के उत्थान का प्रतीक था। राज्याभिषेक के बाद उन्होंने नव-निर्मित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ के शासक के रूप में ‘हैन्दव धर्मोद्धारक’ (हिन्दू आस्था का संरक्षक) की उपाधि धारण की। इस राज्याभिषेक ने शिवाजी को भू-राजस्व वसूलने और लोगों पर कर लगाने का वैधानिक अधिकार प्रदान कर दिया।
गोलकुंडा के कुतुबशाही शासकों के साथ गठबंधन : इस गठबंधन के सहयोग से उन्होंने बीजापुर,कर्नाटक (1676-79ई.) पर चढाई की और जिंजी,वेल्लोर और कर्नाटक के कई अन्य किलों को जीता।
शिवाजी का प्रशासन -
शिवाजी का प्रशासन दक्कन के प्रशासन से काफी प्रभावित था। उसने आठ मंत्रियों को नियुक्त किया जिन्हें ‘अष्टप्रधान’ कहा जाता था। ‘अष्टप्रधान’ उसे प्रशासनिक कार्यों के सम्बन्ध में सलाह प्रदान करते थे।
‘पेशवा’ सबसे प्रमुख मंत्री था जो वित्त और सामान्य प्रशासन की देख-रेख करता था।
‘सेनापति’(सर-ए-नौबत) सेना की भर्ती,संगठन,रसद आपूर्ति की देख-रेख करता था।
‘मजमुआदर’ आय-व्यय के लेखों की जाँच करता था।
‘वाकिया-नवीस’ आसूचना एवं गृह कार्यों की देख-रेख करता था।
‘शुर-नवीस’ या ‘चिटनिस’ राजा को राजकीय पत्र-व्यवहार में सहयोग प्रदान करता था।
‘दबीर’ राजा को विदेश कार्यों में सहायता प्रदान करता था।
‘न्यायाधीश’ और ‘पंडितराव’ न्याय और धर्मार्थ अनुदानों के प्रमुख थे।
उसने भूमि पर भू-राजस्व के एक-चौथाई की दर से शुल्क लगाया जिसे ‘चौथ’ या ‘चौथाई’ कहा गया। शिवाजी ने स्वयं को न केवल एक कुशल रणनीतिकार,योग्य सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ के रूप में साबित किया बल्कि देशमुखी की शक्तियों का प्रयोग कर एक शक्तिशाली राज्य की नींव रख दी।

निष्कर्ष - अतः मराठों का उदय सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक और संस्थागत कारकों का सम्मिलित परिणाम था। जहाँ तक शिवाजी की बात है तो वे एक प्रसिद्ध शासक थे जिन्होंने मुग़ल अतिक्रमण के विरुद्ध जन-आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया। हालाँकि मराठा प्राचीन जाति थी लेकिन सत्तरहवीं सदी ने उन्हें स्वयं को शासक के रूप में स्थापित होने का अवसर प्रदान किया।

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