‘शहीद दिवस’ : 30 जनवरी., - Study Search Point

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‘शहीद दिवस’ : 30 जनवरी.,

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शहीद दिवस’ पर विशेष -
संत का अंत नहीं होता बल्कि संत देहमुक्त होकर अनंत हो जाता है।
आज मनुष्य-
मनुष्य के बीच नफरत, जाति-जाति के बीच दुश्मनी और घृणा तथा मुल्क-मुल्क के बीच आतंक, तनाव और एक-दूसरे को मिटा देने की कट्टरता व्याप्त है। आखिर इतने सारे धर्म, मजहब पालने वाले दुनिया की छः अरब आबादी के लोगों ने अपने संतों से क्या पाया, क्या सीखा और क्या समझा?
सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पूरी दुनिया के आदर्श रहे हैं। इस मार्ग पर चल कर उन्होंने  भारत में करीब 200 साल से शासन कर रहे ब्रिटिश साम्राज्य से भी आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई।
सत्याग्रह व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी -
महात्मा गांधी का पूरा नाम था मोहनदास करमचंद गांधी, उनका जन्म 2 अक्तूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में हुआ। उनकी माता का नाम पुतलीबाई और पिता का नाम करमचंद गांधी था। अपने पिता के जोर देने पर वे वकालत का अध्ययन करने के लिए 18 साल की उम्र में लंदन गए। वहां उन्हें भारतीय होने के कारण रंगभेद का सामना करना पड़ा। वहां एक अंग्रेज के हाथों अपमानित होने के बाद महात्मा गांधी ने अहिंसा की वो जंग छेड़ी, जिसने पूरी दुनिया को नया हथियार दे दिया। उन्होंने वहां ‘द नेटाल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना की और वहां रह रहे भारतीयों को एकजुट कर सत्याग्रह और अहिंसा का बिगुल बजा दिया।

1915 में महात्मा गांधी के भारत लौटने पर ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों के ऊपर किए जाने वाले अत्याचार से वे विचलित हुए और उन्होंने भारत से इनका सफाया करने की ठान ली। उन्होंने भारत में उस समय पैर जमा चुके ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’, ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’, सत्याग्रह आदि आंदोलनों की शुरुआत कर दी। देश से अंग्रेजों को खदेड़ने की जंग में गांधी जी जेल भी गए। अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए उन्हें जेल में सात साल बिताने पड़े। 1942 में उनके ‘अंग्रेजो भारत छोड़ों’ आंदोलन ने तो ब्रिटिश शासकों को 15 अगस्त 1947 को भारत छोड़ कर जाने के लिए मजबूर कर दिया और भारत स्वतंत्र हुआ। यह दुर्भाग्य ही था कि अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति के कारण देश दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। दंगे रोकने और शांति बनाए रखने के लिए गांधी जी को विभाजन की शर्त मंजूर करनी पड़ी। कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया। 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस (गांधी स्मृति प्रतिष्ठान) में गांधी जी की हत्या हो गई। 

गांधी जी जब सुबह की प्रार्थना सभा में हजारों लोगों के साथ जा रहे थे, तभी नाथूराम गोडसे ने पिस्तौल से गोली मार कर उनकी हत्या कर दी। 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

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