भारत में मानसून का आगमन, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

भारत में मानसून का आगमन,

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मानसून कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आधी से ज्यादा खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर ही निर्भर करती है। लेकिन जहां सिंचाई के साधन हैं भी, वहां भी मानसूनी बारिश जरूरी है, क्योंकि बारिश नहीं होगी तो नदियां-झीलें भी सूख जाएंगी जहां से सिंचाई के लिए पानी आता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानसून समृद्धि का ही नहीं, बल्कि संस्कृति का भी सूचक है। यह सांस्कृतिक रूप से भी हमारी जीवनशैली में रचा-बसा है। हमारे पौराणिक ग्रंथों एवं कथाओं में मानसून का जिक्र है। इसलिए आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में संगीत, वेशभूषा, मकानों की बनावट व खान-पान पर मानसून का प्रभाव साफ दिखता है। मानसून जब देश में दस्तक देता है, तो उस समय करीब-करीब सारा भारत तप रहा होता है और मानसून की फुहारें तन और मन को राहत प्रदान करती हैं। इसलिए मानसून इंसान को ही नहीं, बल्कि हर प्राणी को गर्मी से राहत प्रदान करता है।
मानसून का मतलब :-
अरबी शब्द मौसिम से मानसून निकला जिसका अर्थ है हवाओं का मिजाज। 16वीं सदी में मानसून शब्द का सबसे पहले प्रयोग समुद्र मार्ग से होने वाले व्यापार के संर्दभ में हुआ। उस दौरान भारतीय व्यापारी शीत ऋतु में इन हवाओं के सहारे व्यापार के लिए अरब व अफ्रीकी देश जाते थे और ग्रीष्म ऋतु में अपने देश वापस लौटते थे। शीत ऋतु में हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। उधर, ग्रीष्म ऋतु में हवाए इसके विपरीत बहती हैं, जिसे दक्षिण पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है। इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी। इसलिए इन्हें व्यापारिक हवाएं या  ट्रेड विंड भी कहा जाता है। एक और रोचक बात, पुराने जमाने में नावों में इंजन नहीं होते थे और वे मानसूनी हवाओं के सहारे चलती थीं। आज इंजन वाली नौकाएं एवं जहाज आ गए हैं। लेकिन ट्रेड विंड आज भी यात्रा में कारगर हैं। यदि विंड पैटर्न के हिसाब से कोई जहाज चल रहा है तो वह कम ईंधन खर्च करके ज्यादा गति से चल सकता है।
कैसे शुरू होता है मानसून : -
ग्रीष्म ऋतु में जब हिन्द महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनता है। इस प्रक्रिया में समुद्र गरमाने लगता है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। वहीं उस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है। ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय होती हैं। ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती हैं। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से जमीन की ओर बहनी शुरू हो जाती हैं। ये हवाएं समुद्र के जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर उठती हैं और वर्षा देती हैं। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में झमाझम पानी बरसने लगता है।
मानसून का पूर्वानुमान ? :-
देश में गर्मी की शुरुआत होते ही किसान मानसून पर टकटकी लगाकर बैठ जाते हैं। लेकिन मानसून एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है। कारण यह है कि  भारत में विभिन्न किस्म के जलवायु जोन और उप जोन हैं। हमारे देश में 127 कृषि जलवायु उप संभाग हैं और 36 संभाग हैं। हमारा देश विविध जलवायु वाला है। समुद्र, हिमालय और रेगिस्तान मानसून को प्रभावित करते हैं। इसलिए मौसम विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद मौसम के मिजाज को सौ फीसदी भांपना अभी भी मुश्किल है।
मानसून विभाग अप्रैल के मध्य में मानसून को लेकर दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी करता है। इसके बाद फिर मध्यम अवधि और लघु अवधि के पूर्वानुमान जारी होते हैं। इधर, ‘नाऊ कास्ट’ करके मौसम विभाग ने अब कुछ घंटे पहले भी मौसम की भविष्यवाणी करनी आरंभ कर दी है। मौसम विभाग की भविष्यवाणियों में हाल के वर्षों में सुधार हुआ है। इधर, देश भर में कई जगहों पर डाप्लर राडार लगाए जाने हैं जिससे आगे स्थिति और सुधरेगी। अभी मध्यम अवधि की भविष्यवाणियां जो 15 दिन से एक महीने की होती हैं, 70-80 फीसदी तक सटीक निकलती है। हां, लघु अवधि की भविष्यवाणियां जो अगले 24 घंटों के लिए होती हैं करीब 90 फीसदी तक सही होती हैं। अलबत्ता, नाऊ कास्ट की भविष्यवाणियां करीब-करीब 99 फीसदी सही निकलती हैं।
एक और रोचक बात।  पुराने जमाने में मानसून को जानने के लिए न तो सैटेलाइट थे, और न ही समुद्र में लगने वाले उपकरण। लेकिन विशेषज्ञ तब भी पक्षियों के व्यवहार, हवाओं के पैटर्न तथा पेड़-पौधों के आधार पर मानसून के आगमन का आभास पा लेते थे। तब के पूर्वानुमान आज के आधुनिक पूर्वानुमानों से खराब नहीं होते थे।
अलनीनो और ला नीना :-
वैज्ञानिकों के अनुसार प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरु वाले क्षेत्र में यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गरम होनी शुरू हो जाए तो अलनीनो बनता है। यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है। इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली ट्रेड विंड कमजोर पड़ने लगती हैं। यही हवाएं मानसूनी हवाएं हैं जो भारत में बारिश करती हैं।
ला नीना - प्रशांत महासागर में उपरोक्त स्थान पर कभी-कभी समुद्र की सतह ठंडी होने लगी है। ऐसी स्थिति में अल नीनो के ठीक विपरीत घटना होती है जिसे ला नीना कहा जाता है। ला नीना बनने से हवा के दबाव में तेजी आती है और ट्रेड विंड को रफ्तार मिलती है, जो भारतीय मानसून पर अच्छा प्रभाव डालती है। मसलन, 2009 में अल नीनो के कारण कम बारिश हुई जबकि 2010 एवं 2011 में ला नीना से अच्छी बारिश हुई। दूसरी तरफ 1997 में अल नीनो प्रभाव के बावजूद देश में अच्छी बारिश हुई।
सामान्य मानसून के फायदे :-
खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा - बारिश अच्छी होने से कृषि पर सबसे अच्छा प्रभाव पड़ता है। जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहां बारिश होने से फसल अच्छी हो सकेगी। जहां सिंचाई के साधन हैं भी, तो समय पर अच्छी बारिश होने से किसानों को नलकूप नहीं चलाने पड़ेंगे। उनके डीजल की बचत होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि उनकी लागत घटेगी। अच्छे उत्पादन से किसानों को फायदा होगा। खाद्यान्नों की मूल्यवृद्धि भी नियंत्रित रहेगी। कृषि का अर्थव्यवस्था में योगदान है, इसलिए पूरी अर्थव्यवस्था को मानसून मजबूती प्रदान करता है।
बिजली संकट कम होगा - मानूसन के चार महीनों में झमाझम बारिश से नदियों, जलाशयों का जलस्तर बढ़ता है। इससे बिजली उत्पादन अच्छा रहता है। यदि बारिश कम हो और जलस्तर कम हो जाए तो बिजली उत्पादन भी प्रभावित होता है। बिजली कटौती बढ़ जाती है।
पानी की कमी दूर होगी - अच्छे मानसून से पानी की समस्या का भी काफी हद तक समाधान होता है। एक तो नदियों, तालाबों में पर्याप्त पानी हो जाता है। दूसरे, भूजल का भी पुनर्भरण होता है। यदि मानूसन अच्छा रहे तो अगले साल गर्मियों तक पानी के स्रोतों पर इसका सकारात्मक प्रभाव रहता है।
गर्मी से राहत - मानसून की बारिश जहां एक ओर खेती-बाड़ी, जलाशयों, नदियों को पानी से लबालब कर देती हैं, वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी से तप रहे देश को भी गर्मी से राहत प्रदान करती है।
मानसून से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
हिन्द महासागर में उत्‍पन्‍न होता है और मई के दूसरे सप्ताह में बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीपों में मानसून दस्तक देता है। एक जून को केरल में आगमन होता है।यदि हिमालय पर्वत नहीं होता तो उत्तर भारत के मैदानी इलाके मानसून से वंचित रह जाते। मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती हैं और हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों को भिगोती हैं।देश में मानसून के चार महीनों में 89 सेटीमीटर औसत बारिश होती है। 80 फीसदी बारिश मानसून के चार महीनों जून-सितंबर के दौरान होती है।देश की 65 फीसदी खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर निर्भर है। बिजली उत्पादन, भूजल का पुनर्भरण, नदियों का पानी भी मानसून पर निर्भर है।पश्चिम तट और पूर्वोत्तर के राज्यों में 200 से एक हजार सेमी बारिश होती है जबकि राजस्थान और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां मानसूनी बारिश सिर्फ 10-15 सेमी बारिश होती है।केरल में मानसून जून के शुरू में दस्तक देता है और अक्टूबर तक करीब पांच महीने रहता है, जबकि राजस्थान में सिर्फ डेढ़ महीने ही मानसूनी बारिश होती है। वहीं से मानसून की विदाई होती है।
देश में मानसून के आगमन की तिथियां
स्थान            तिथि            
केरल              1 जून
हैदराबाद        5 जून
गुवाहाटी         5 जून
मुंबई              10 जून
रांची              10 जून                        
पटना            11 जून                        
गोरखपुर      13 जून                        
वाराणसी      15 जून                        
लखनऊ       18 जून
देहरादून      20 जून
आगरा         20 जून
जयपुर         25 जून                  
दिल्ली         29 जून      
श्रीनगर        1 जुलाई

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