1872- फ़्रांस के विख्यात कवि और लेखक टेनोफेल गोएटे का निधन हुआ। वे सन 1811 में जन्में थे। उन्होंने पेरिस में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने कुछ समय तक पत्रकारिता की और वे चित्रकार या संगीतकार बनने का प्रयास करते रहे किंतु अंतत: उन्हें साहित्य और शायरी से लगाव हो गया और फिर उन्होंने इस विषय में बड़ी ख्याति प्राप्त की और मूल्यवान रचनाए की।
1942- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उत्तरी मिस्र के क्षेत्र अलमैन में ब्रिटिश व जर्मन सेनाओं के मध्य इसी नाम से एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की कमान फील्ड मार्शल मोन्टेगमेरी के हाथ में और जर्मन सेना का नेतृत्व एडविन रोमेल के हाथ में था।
1956- हंग्री की जनता ने पूर्व सोवियत संघ के वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष आरंभ किया। उल्लेखनीय है कि 1953 में हंग्री कम्युनिस्ट पार्टी के बिखर जाने के बाद इस देश के राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री एमरे नागी के नेतृत्व में नई सरकार सत्ता में आई जो सोवियत संघ के अधीन न थी।
1983- लेबनान में मुसलमान संघर्षताओं द्वारा अमरीकी व फ़्रांसीसी अतिग्रहणकारियों के ठिकानों पर शहादतप्रेमी आक्रमणों में 241 अमरीकी और 58 फ़्रांसीसी सैनिक मारे गए। अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन और इटली की सेनाएं इस घटना के कुछ ही सप्ताह पूर्व लेबनान के गृह युद्ध में फ़लांजिस्टों के समर्थन में बैरुत पहुँची थीं और इन सेनाओं का बैरुत आगमान इस्राईल के अतिग्रहणकारी शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन भी समझा जा रहा था किंतु मुसलमान संघर्षकर्ताओं की ओर से विदेशी सैनिकों के ठिकानों पर आक्रमणों के बाद यह सेनाएं लेबनान से निकलने पर विवश हो गई।
1942- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उत्तरी मिस्र के क्षेत्र अलमैन में ब्रिटिश व जर्मन सेनाओं के मध्य इसी नाम से एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की कमान फील्ड मार्शल मोन्टेगमेरी के हाथ में और जर्मन सेना का नेतृत्व एडविन रोमेल के हाथ में था।
1983- लेबनान में मुसलमान संघर्षताओं द्वारा अमरीकी व फ़्रांसीसी अतिग्रहणकारियों के ठिकानों पर शहादतप्रेमी आक्रमणों में 241 अमरीकी और 58 फ़्रांसीसी सैनिक मारे गए। अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन और इटली की सेनाएं इस घटना के कुछ ही सप्ताह पूर्व लेबनान के गृह युद्ध में फ़लांजिस्टों के समर्थन में बैरुत पहुँची थीं और इन सेनाओं का बैरुत आगमान इस्राईल के अतिग्रहणकारी शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन भी समझा जा रहा था किंतु मुसलमान संघर्षकर्ताओं की ओर से विदेशी सैनिकों के ठिकानों पर आक्रमणों के बाद यह सेनाएं लेबनान से निकलने पर विवश हो गई।