आनन्द कुमारस्वामी (Ananda Coomaraswamy, पूरा नाम: 'आनन्द केंटिश कुमारस्वामी' इनका जन्म कोलुपित्या, कोलंबो (श्रीलंका) में 22 अगस्त 1877 को हुआ था। उनके पिता सर मुतु कुमारस्वामी प्रथन हिंदू थे जिन्होंने 1863 ई. में इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास की थी। वे पालि के विद्वान थे। उन्होने मिस एलिजाबेथ क्ले नामक अंग्रेज महिला से विवाह किया था। इस विवाह के चार ही वर्ष बाद वे दिवंगत हो गए। आनन्द कुमारस्वामी इन्हीं दोनों की संतान थे। पिता की मृत्यु के समय आनंद केवल दो साल के थे। उनका पालन-पोषण उनकी अंग्रेज माँ ने किया। 12 वर्ष की अवस्था में वे वाइक्लिफ़ कालेज में दाखिल हुए। 1900 ई. में लंदन विश्वविद्यालय सेभूविज्ञान तथा वनस्पतिशास्त्र लेकर उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी. एस-सी. (आनर्स) पास किया और यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन में कुछ काल फ़ेली रह लेने के बाद वे श्रीलंका के मिनरालाजिकल सर्वे के निदेशक नियुक्त हुए। खोज मिट्टी के भीतर से आरम्भ हुई और इसी क्रम में उन्होने भारत का भ्रमण किया। यहाँ पश्चिम में शिक्षित इस महान अन्तश्चेतना को सबसे अधिक भारतीय शिल्पी की साधना ने आकृष्ट किया।
भारत घूमते-घूमते वे स्वदेशी आन्दोलन से परिचित हुए। तीन वर्ष श्रीलंका में रहकर उन्होंने 'सीलोन सोशल रिफ़ार्मेशन सोसाइटी' का संगठन किया और यूनिवर्सिटी आंदोलन का नेतृत्व किया। 1906 में लंदन से डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत वे ललित कलाओं की ओर झुके और भारत तथा दक्षिणपूर्वी एशिया का भ्रमणकर प्राचीन मूर्तियों और चित्रों का अध्ययन किया। विज्ञान के विचक्षण विद्यार्थी होकर एवं लंका के मिनरालाजिकल सर्वे का सर्वोच्च पद छोड़ उन्होंने अपनी विशिष्ट अभिरुचि ललितकला के प्रति जागृत की और आज उस दिशा में उनका प्रयत्न इतना गहरा और सिद्ध है कि किसी को गुमान तक नहीं होता कि उनका संबंध विज्ञान से भी हो सकता था।
संसार में बहुत कम विद्वान ऐसे हुए हैं जिनकी प्रतिभा इतनी बहुमुखी रही हो जितनी आनंद कुमारस्वामी की थी। उनकी खोज दर्शन, पराविद्या, धर्म, मूर्ति और चित्रकला, भारतीय साहित्य, इस्लामी कला, संगीत, विज्ञान आदि के विविध क्षेत्रों में लब्धप्रतिष्ठ हुई। प्रत्येक क्षेत्र में जिस मौलिकता का उन्होंने परिचय दिया वह अन्यत्र दुर्लभ है। उपनिषदों के भावतत्व का उन्होंने निरूपण कर कला के संदर्भ में उसकी जो अभिव्यंजना की वह सर्वथा नया दृष्टिकोण था। 1910 में कलकत्ते की इंडियन सोसाइटी ऑव ओरिएंटल आर्ट के तत्वावधान में उन्होंने मुगल औरराजपूत चित्रकला पर जो भाषण दिया, वह उनके असाधरण ज्ञान का परिचायक था। 1911 में इंग्लैंड जाकर उन्होंने अन्य विद्वानों के साथ लंदन की इंडिया सोसाइटी की नींव डाली जो आज 'रायल इंडिया पाकिस्तान ऐंड सीलोन सोसाइटी' के नाम से विख्यात है। 1917 में वे बोस्टन के ललितकला संग्रहालय के भारतीय विभाग के संग्रहाध्यक्ष नियुक्त हुए और मृत्यु तक वहीं रहे। 1920 में उन्होंने विश्वभ्रमण किया और अगले साल श्रीलंका में भारतीय तथा प्राचीन सिंहली कला पर व्याख्यान दिए। 1924 में न्यूयार्क में इंडियन कल्चर सेंटर की नींव डाली जिसके वे प्रथम प्रधान भी हुए। अमरीका में उसके बाद उनके व्याख्यानों की परंपरा बन गई और 1938 में वाशिंगटन की संस्था नैशनल कमिटी फ़ार इंडियाज फ़्रीडम के वे अध्यक्ष बने।
1908 में उनकी प्रसिद्ध कृति ‘द एम्स ऑव इंडियन आर्ट’ प्रकाशित हुई और दो वर्ष बाद 'आर्ट ऐंड स्वदेशी'। 1913 में 'आर्ट्स ऐंड क्रैफ्ट्स ऑव इंडिया ऐंड सीलोन' और अगले ही साल भगिनी निवेदिता के साथ ‘मिथ्स ऑव हिंदूज़ ऐंड बुद्धिस्ट्स’ प्रकाशित हुआ। तदनंतर ‘बुद्ध ऐंड दि गास्पेल ऑव बुद्धिज्म', 'द डांस ऑव शिव’ और बोस्टन संग्रहालय के विविध कैटलाग प्रकाशित हुए। 1923 में ‘इंट्रोडक्शन टु इंडियन ऐंड इंडोनेशियन आर्ट’ छपी। इसी बीच डॉ॰ कुमारस्वामी ने फ्रेंच में भी कलासंबंधी तीन पुस्तकें प्रकाशित की जिनके नाम हैं : ‘लेज़ार ए मातिए द लींद ए द सिलान’, ‘पूर कोंप्रांद लार ईन्दू’ और ‘ले मिनियातूर ओरियांताल द ला कलेक्सी ओ गुलूबे’। 1930 से कुमारस्वामी का रुझान दर्शन की ओर विशेष हो गई और सन् 33 में उन्होंने वेदों के अध्ययन स्वरूप ‘ए न्यू ऐप्रोच वेदाज़ : ऐन एस्से इन ट्रांसलेशन ऐंड एक्सिजेसिस’ प्रकाशित करते रहे। पर कुमारस्वामी का संबंध जीवन के अंत तक कला से बना रहा और वे ललितकलाओं पर अपने विचार दार्शनिक स्तर से प्रकाशित करते रहे। ‘एलिमेंट्स ऑव बुद्धिस्ट आइकानोग्राफी’ (1937) तथा ‘ह्वाई एग्ज़िविट वर्क्स ऑव आर्ट?'(1934), इसी प्रकार के चिंतन के परिणाम थे। 1944 में 70 वर्ष की अवस्था में उनकी मृत्यु हुई। मृत्यु के बाद उनकी कृति ‘लिविंग थाट्स ऑव गोतम दि बुद्धा’ प्रकाशित हुई।
उनकी कृतियों की सूची निम्नलिखित है :-
- Figures of Speech or Figures of Thought?: The Traditional View of Art, (World Wisdom 2007)
- Introduction To Indian Art, (Kessinger Publishing, 2007)
- Buddhist Art, (Kessinger Publishing, 2005)
- Guardians of the Sundoor: Late Iconographic Essays, (Fons Vitae, 2004)
- History of Indian and Indonesian Art, (Kessinger Publishing, 2003)
- Teaching of Drawing in Ceylon] (1906, Colombo Apothecaries)
- "The Indian craftsman" (1909, Probsthain: London)
- Viśvakarmā ; examples of Indian architecture, sculpture, painting, handicraft (1914, London)
- Vidyāpati: Bangīya padābali; songs of the love of Rādhā and Krishna], (1915, The Old Bourne press: London)
- The mirror of gesture: being the Abhinaya darpaṇa of Nandikeśvara] (with Duggirāla Gōpālakr̥ṣṇa) (1917, Harvard University Press; 1997, South Asia Books,)
- Indian music] (1917, G. Schirmer; 2006, Kessinger Publishing,
- A catalog of sculptures by John Mowbray-Clarke: shown at the Kevorkian Galleries, New York, from May the seventh to June the seventh, 1919]. (1919, New York: Kevorkian Galleries, co-authored with Mowbray-Clarke, John, H. Kevorkian, and Amy Murray)
- Rajput Painting, (B.R. Publishing Corp., 2003)
- Early Indian Architecture: Cities and City-Gates, (South Asia Books, 2002) I
- The Origin of the Buddha Image, (Munshirm Manoharlal Pub Pvt Ltd, 2001)
- The Door in the Sky, (Princeton University Press, 1997)
- The Transformation of Nature in Art, (Sterling Pub Private Ltd, 1996)
- Bronzes from Ceylon, chiefly in the Colombo Museum, (Dept. of Govt. Print, 1978)
- Early Indian Architecture: Palaces, (Munshiram Manoharlal, 1975)
- The arts & crafts of India & Ceylon, (Farrar, Straus, 1964)
- Christian and Oriental Philosophy of Art, (Dover Publications, 1956)
- Archaic Indian Terracottas, (Klinkhardt & Biermann, 1928)
- Hinduism And Buddhism, (Kessinger Publishing, 2007; Golden Elixir Press, 2011)
- Myths of the Hindus & Buddhists (with Sister Nivedita) (1914, H. Holt; 2003, Kessinger Publishing)
- Buddha and the gospel of Buddhism (1916, G. P. Putnam's sons; 2006, Obscure Press,)
- A New Approach to the Vedas: An Essay in Translation and Exegesis, (South Asia Books, 1994)
- The Living Thoughts of Gotama the Buddha, (Fons Vitae, 2001)
- Time and eternity, (Artibus Asiae, 1947)
- Perception of the Vedas, (Manohar Publishers and Distributors, 2000)
- Metaphysics, (Princeton University Press, 1987)
- Am I My Brothers Keeper, (Ayer Co, 1947)
- "The Dance of Shiva - Fourteen Indian essays" Turn Inc., New York; 2003, Kessinger Publishing],
- The village community and modern progress] (12 pages) (1908, Colombo Apothecaries)
- Bugbear of Literacy], (Sophia Perennis, 1979)
- What is Civilisation?: and Other Essays. Golgonooza Press, (UK),
- Spiritual Authority and Temporal Power in the Indian Theory of Government, (Oxford University Press, 1994)
- Yaksas, (Munshirm Manoharlal Pub Pvt Ltd, 1998)
- Coomaraswamy: Selected Papers, Traditional Art and Symbolism, (Princeton University Press, 1986)
- The Essential Ananda K. Coomaraswamy , (2003, World Wisdom)
पारम्परिक कलाएँ