सीताबेंगरा गुफ़ा
सीताबेंगरा गुफ़ा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर रामगढ़ में स्थित है। अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली यह गुफ़ा देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है। सीताबेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है। यह गुफ़ा प्रसिद्ध जोगीमारा गुफ़ा के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। माना जाता है कि यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था। रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू. होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना 'मेघदूत' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्नमहाकवि कालिदास के समय भी थे। कालीदास की रचना 'मेघदूत' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।
भीमबेटका गुफ़ाएँ
भीमबेटका गुफ़ाएँ (Bhimbetka Rock Shelters) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन ज़िले में स्थित है। ये गुफ़ाएँभोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में मौजूद है। गुफ़ाएँ चारों तरफ़ से विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका संबंध 'नव पाषाण काल' से है। भीमबेटका गुफ़ाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।भीमबेटका को भीम का निवास भी कहते हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथ महाभारत के अनुसार पांच पाण्डव राजकुमारों में से भीम द्वितीय थे। ऐसा माना जाता है कि भीमबेटका गुफ़ाओं का स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है और इसी से इसका नाम 'भीमबैठका' भी पड़ा गया। ये गुफ़ाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं। इनकी खोज वर्ष 1957-1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' द्वारा की गई थी।
वाघ की गुफ़ाएं
वाघ की गुफ़ाएं मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास धार में स्थित हैं। वाघ की गुफ़ाएं प्राचीन भारत के स्वर्णिम युग की अद्वितीय देन हैं। वाघ की गुफ़ाएं इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 90 मील की दूरी पर, बाधिनी नामक छोटी सी नदी के बायें तट पर और विन्ध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित हैं। बाघ-कुक्षी मार्ग से थोड़ा हटकर बाघ की गुफ़ाएं बाघ ग्राम से पाँच मील दूर हैं। यह स्थल उस विशाल प्राचीन मार्ग पर स्थित है, जो उत्तर से अजन्ता होकर सुदूर दक्षिण तक जाता है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी और ईस्वी सन् की 7वीं शताब्दी के मध्य, जब भारत के पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म अपनी ख्याति की पराकाष्ठा पर था। इसी समय चीन के बौद्ध धर्म के महान विद्वान यात्री हुएनसांग, फ़ाह्यान और सुआनताई मध्य और पश्चिमी भारत आये थे। इसमें कुल 9 गुफ़ाएँ हैं, जिनमें से 1,7,8 और 9वीं गुफा नष्टप्राय है तथा गुफा संख्या 2 'पाण्डव गुफ़ा' के नाम से प्रचलित है जबकि तीसरी गुफा 'हाथीखाना' और चौथी रंगमहल के नाम से जानी जाती है। इन गुफा का निर्माण सम्भवतः 5वी-6वीं शताब्दी ई. में हुआ होगा। लगभग 1600 वर्ष पूर्व बाघ की गुफ़ाएं भगवान बुद्ध की दिव्यवार्ता प्रतिपादित करने हेतु निर्मित एवं चित्रित की गयी थीं। धार्मिक सौरभ, सौंदर्यानुभूति का स्पन्दन, सरिता की सुगम स्थिति और उसके लयपूर्ण प्रवाह से प्रभावित भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त सहजता से एक आदर्श ढांचे में ढलता रहा तथा निष्ठावान उपासकों को अभूतपूर्व परिपक्वता प्राप्त होती रही। विहारों को नैतिक उन्नति एवं निर्देशन के उद्देश्य की पूर्ति करने वाले भित्ति-चित्र पर्याप्त समय से सुसज्जित करते रहे हैं। विहारों में चित्र अलंकरण का वर्णन मूल सरवास्तिवादिन सम्प्रदाय के विनय में पाया जाता है। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि चित्रकला का पूर्ण प्रचार बुद्ध जीवनकाल में ही हो चुका था। भित्तिचित्रों में फूल, पक्षी व पशुओं का चित्रण महत्त्वपूर्ण है। कमल पुष्प मूर्ति तथा चित्रकला दोनों में ही लोकप्रिय है, जो पवित्रता के अतिरिक्त यह शुद्धता व सद्गुंण का प्रतीक है। बाघ की गुफ़ाओं में बुद्ध, बोघिसत्व चित्रों के अतिरिक्त राजदरबार, संगीत दृश्य, पुष्पमाला दृश्य आदि का चित्रण महत्त्वपूर्ण है।
शिव खोड़ी
शिव खोड़ी शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निर्मित शिव-लिंग विद्यमान है। शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है। शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निर्मित शिव-लिंग विद्यमान है। शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है।
वसिष्ठ गुफा
गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसे ऋषिकेश में वसिष्ठ गुफा प्रमुख पर्यटन स्थल है। ऋषिकेश से 22 किलोमीटर की दूरी पर 3000 साल पुरानी वसिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं को विश्राम और ध्यान लगाए देखा जा सकता है। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वसिष्ठ का निवास स्थल था। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।व्योमासुर की गुफ़ा
पहाड़ी के मध्य में व्योमासुर की गुफ़ा है। यहीं पर कृष्ण ने व्योमासुर का वध किया था। इसे मेधावी मुनि की कन्दरा भी कहते हैं। मेधावी मुनि ने यहाँ कृष्ण की आराधना की थी। पास में ही पहाड़ी नीचे श्रीबलदेव प्रभु का चरणचिह्न है। जिस समय श्रीकृष्ण व्योमासुर का वध कर रहे थे, उस समय पृथ्वी काँपने लगी। बल्देव जी ने अपने चरणों से पृथ्वी को दबाकर शान्त कर दिया था। उन्हीं के चरणों का चिह्न आज भी दर्शनीय है।
महाकाली गुफाएं
महाकाली गुफाएं मुंबई में अंधेरी के पश्चिम में बौद्ध मठ के पास स्थित है। महाकाली गुफाएं में 19 गुफ़ाओं से मिलकर बनाई गयी है और इसका निर्माण लगभग 1 शताब्दी से 6 वीं शताब्दी के बीच हुआ है। महाकाली गुफ़ा के बीच में एक शिव मन्दिर है, इस मंदिर में एक विशाल शिवलिंग है जिसकी लम्बाई क़रीब आठ फीट है। इस मन्दिर के परिसर की दीवार पर कुछ देवी देवताओं के चित्र बने हुए थे। महाकाली गुफ़ा में 9वीं गुफ़ा सबसे बड़ी है, इस गुफ़ा में बौद्ध की पौराणिक कथा और बुद्ध की सात चित्र बने हुए हैं।
पीतलखोरा की गुफा
पीतलखोरा की गुफा महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में स्थित है। यहाँ पर कुल 13 गुफाऐं है। यहाँ के चैत्य में लकड़ी के प्रयोग के स्थान पर पत्थर का अधिक प्रयोग हुआ है। पत्थर की चट्टानों को काटकर इनका निर्माण किया गया है। गुफा संख्या 3 चैत्य गृह और गुफा संख्या 4 विहार हैं। 37 अठपहलू स्त्म्भों में से 12 बचें है, तथा शेष ये स्तूप विनष्ट हो गये हैं। अवशेषों के आधार पर पीतलखोरा का चैत्य गृह 15 मीटर लम्बा, 10.25 मीटर चौड़ा और 6.10 मीटर ऊँचा रहा होगा। इसका निर्माण सम्भवतः द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में होने का अनुमान है।
बोर्रा गुफ़ाएँ
बोर्रा गुफ़ाएँ अथवा बुर्रा गुफ़ाएँ आंध्र प्रदेश राज्य में विशाखापत्तनम से 90 किमी और अराकू घाटी से 30 किमी की दूरी पर स्थित हैं।भारत के पूर्वी तट पर 'अनन्तगिरि' पहाडियों में बनी ये गुफ़ाएँ देश की सब से बड़ी गुफ़ाओं में से एक है। यह पूर्वी घाट में दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। दस लाख साल पुरानी ये गुफ़ाएं समुद्रतल से 1400 फुट ऊंचाई पर है। तेलुगु में बोर्रा का अर्थ है- 'मस्तिष्क'। बोर्रा शब्द का एक अर्थ 'ज़मीन में गहरा खुदा हुआ' भी है। यह गुफ़ाएँ विलियम किंग जोर्जे नामक एक अंग्रेज़ ने सन् 1807 में खोज कर निकाली थी। भूवैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट गुफ़ाएं गोस्थानी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। हालांकि अब नदी की मुख्यधारा गुफ़ाओं से कुछ दूरी पर स्थित है लेकिन माना यही जाता है कि कुछ समय पहले यह नदी गुफ़ाओं में से होकर और उससे भी पहले इनके ऊपर से होकर गुजरती थी। स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कोई खनिज पानी के साथ मिलकर प्राकृतिक रूप से जम जाता है। नदी के पानी के प्रवाह से कालांतर में लाइमस्टोन घुलता गया और गुफ़ाएं बन गई। अब ये गुफ़ाएं अराकू घाटी का प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।
जोगेश्वरी या योगेश्वरी) का विशाल गुफ़ा मन्दिर
महाराष्ट्र के शहर मुंबई में गोरेगाँव स्टेशन से 21 मील दक्षिण में अंबोली ग्राम के निकट, जोगेश्वरी (जोगेश्वरी या योगेश्वरी) का विशाल गुफ़ा मन्दिर है जो एलोरा के कैलाश मंदिर के अतिरिक्त भारत का सबसे विशाल गुहामंदिर माना जाता है। जोगेश्वरी की गुफ़ा तक पहुँचने के लिए चर्च गेट से 45 मिनट की यात्रा करनी होती है। जोगेश्वरी की गुफ़ा मंदिर में विशाल केंद्रीय हॉल भी है। इसके अतिरिक्त हनुमान, देवी माता जोगेश्वरी और गणेशजी की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थित है। जोगेश्वरी की गुफ़ा 1500 साल पुरानी है। इसका निर्माण काल 7वीं-8वीं शती ई. (उत्तर गुप्तकाल) है। गुफ़ा का अधिकांश भूगर्भ में बना है। इसका पत्थर भुरभरा है और इसी कारण अनेक मूर्तियाँ और गुहास्तंभ आदि समय के प्रवाह में नष्ट-भ्रष्ट हो गए हैं। गुहा मेंशिव आदि हिन्दू देवों की सुन्दर मूर्तियों से स्थापित किया जा सकता है।जोगेश्वरी की गुफ़ा में जलनिर्यात का सुन्दर प्रबंध किया गया था।
जेनलन गुफ़ाएँ
जेनलन गुफ़ाएँ ब्लू माउंटेन पठार, न्यू साउथ वेल्स के पश्चिमी किनारे पर सिल्यूरिन चूने के पत्थर वाले प्रदेश में, चौड़े भूभाग पर उत्तर से दक्षिण की ओर फैली हुई हैं। ये गुफ़ाएँ सिडनी नगर से 70 मील दूर पश्चिम की ओर स्थित हैं। इन गुफ़ाओं के सौंदर्य को देखकर 1866 ई. में यहाँ की सरकार ने इन्हें भ्रमण केंद्र का रूप दे दिया था। अब ये गुफ़ाएँ रंग-बिरंगे विद्युत के प्रकाश से सुशोभित कर दी गई हैं। चार-पाँच स्तरों पर फैली हुई इन गुफ़ाओं की संख्या लगभग 12 है, जिनमें कई अवशैल तथा गुलाबी और बैंगनी रंग के ऊँचे-ऊँचे भृगु (cliffs) बड़े ही मनमोहक हैं। संपूर्ण जेनलन गुफ़ाएँ जेनोलन नदी के पानी में सिल्यूरियन चूने के पत्थर घुलने से बनी हैं। सबसे पुरानी गुफ़ा जेनोलन नदी के तट से 250 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पर बना 400 फुट ऊँचा प्राकृतिक महराब है, जो प्राकृतिक सुरंग का काम देता है। इसके भीतर से होकर सड़क गई है। इन गुफ़ाओं के अवलोकनार्थ प्रति वर्ष लगभग 10,00,000 भ्रमणार्थी आते हैं।
बेलम गुफ़ाएँ
बेलम गुफ़ाएँ आंध्र प्रदेश राज्य के कुर्नूल से 106 किमी दूर स्थित हैं। मेघालय की गुफ़ाओं के बाद ये भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफ़ाएँ हैं। इस का नाम, संस्कृत में प्रयुक्त 'बैलम' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'गुफ़ाओं'। तेलुगू में ये गुफ़ाएँ 'बेलम गुहलु' नाम से जानी जाती हैं। इन्हें मूल रूप से तो 1884 में एच.बी. फुटे ने खोजा था लेकिन दुनिया के सामने 1982 में यूरोपीय गुफ़ाविज्ञानियों की एक मंडली ने इन्हें मौजूदा स्वरूप में पेश किया। हालांकि इनका रास्ता पुरातत्व विभाग ने खोज निकाला था। ज़मीन से गुफ़ाओं तक 3 कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद गुफ़ा के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल होता है। लगभग 20 मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफ़ा ज़मीन के नीचे फैल जाती हैं।
जोगीमारा गुफाएँ
जोगीमारा गुफाएँ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक हैं। ये गुफ़ाएँ अम्बिकापुर (सरगुजा ज़िला) से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ स्थान में स्थित है। यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं। इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर विभिन्न चित्र अंकित हैं। ये शैलकृत गुफ़ाएँ हैं, जिनमें 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर निश्चित किया है। सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं। विश्वास किया जाता है कि देवदासी सुतनुका ने इन भित्तिचित्रों का निर्माण करवाया था। चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है। एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है। यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। चित्रित विषय सुन्दर है तथा तत्कालीन समाज के मनोविनोद को दिग्दर्शित करते हैं। इन गुफ़ाओं का सर्वप्रथम अध्ययन असित कुमार हलधर एवं समरेन्द्रनाथ गुप्ता ने 1914 में किया था।