(Geography) भारत में अवस्थित गुफ़ाएँ - 2 - Study Search Point

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(Geography) भारत में अवस्थित गुफ़ाएँ - 2

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एलोरा गुफ़ा 
एलोरा या एल्लोरा (मूल नाम वेरुल) एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारत में औरंगाबादमहाराष्ट्र से 30 कि.मि. (18.6 मील) की दूरी पर स्थित है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। अपनी स्मारक गुफाओं के लिये प्रसिद्ध, एलोरा युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है। एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहां 34 "गुफ़ाएं" हैं जो असल में एक ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफ़ा मन्दिर बने हैं। ये पांचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहां 12 बौद्ध गुफ़ाएं (1-12), 17 हिन्दू गुफ़ाएं (13-29) और 5 जैन गुफ़ाएं (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। एलोरा के 34 मठ और मंदिर औरंगाबाद के निकट 2 किमी के क्षेत्र में फैले हैं, इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं। दुर्गम पहाड़ियों वाला एलोरा 600 से 1000 ईसवी के काल का है, यह प्राचीन भारतीय सभ्यता का जीवंत प्रदर्शन करता है। बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म को भी समर्पित पवित्र स्थान एलोरा परिसर न केवल अद्वितीय कलात्मक सृजन और एक तकनीकी उत्कृष्टता है, बल्कि यह प्राचीन भारत के धैर्यवान चरित्र की व्याख्या भी करता है। यह यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है।

अजंता की गुफ़ाएं

चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य महाराष्ट्रपश्चिमी भारत में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। औरंगाबाद से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं। लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और विहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत हैं, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। बौद्ध तथा जैन सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुएमहाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक झुंड बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।

कन्हेरी गुफाएं
कन्हेरी गुफाएं मुंबई शहर के पश्चिमी क्षेत्र में बसे में बोरीवली के उत्तर में स्थित हैं। ये संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में ही स्थित हैं और मुख्य उद्यान से 6 कि.मी और बोरीवली स्टेशन से 7 कि.मी दूर हैं। ये गुफ़ाएं बौद्ध कला दर्शाती हैं। कन्हेरी शब्द कृष्णागिरी यानी काला पर्वत से निकला है। इनको बड़े बड़े बेसाल्ट की चट्टानों से तराशा गया है। कन्हेरी का यह गिरिमंदिर बंबई से लगभग 25 मील दूर सालसेट द्वीप पर अवस्थित पर्वत की चट्टान काटकर बना बौद्धों का चैत्य है। हीनयान संप्रदाय का यह चैत्यमंदिर आंध्रसत्ता के प्राय: अंतिम युगों में दूसरी शती ई. के अंत में निर्मित हुआ था। यह बना प्राय: कार्ले की परंपरा में ही हैं, उसी का सा इसका चैत्य हाल है, उसी के से स्तंभों पर युगल आकृतियों इसमें भी बैठाई गई हैं। दोनों में अतंर मात्र इतना है कि कन्हेरी की कला उतनी प्राणवान्‌ और शालीन नहीं जितनी कार्ली की है। कार्ले की गुफा से इसकी गुफा कुछ छोटी भी है। फिर, लगभग एक तिहाई छोटी यह गुफा अपूर्ण भी रह गई है। इसकी बाहरी दीवारों पर जो बुद्ध की मूर्तियाँ बनी हैं, उनसे स्पष्ट है कि इसपर महायान संप्रदाय का भी बाद में प्रभाव पड़ा और हीनयान उपासना के कुछ काल बाद बौद्ध भिक्षुओं का संबंध इससे टूट गया था जो गुप्त काल आते-आते फिर जुड़ गया, यद्यपि यह नया संबंध महायान उपासना को अपने साथ लिए आया, जो बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों से प्रभावित है। इन मूर्तियों में बुद्ध की एक मूर्ति 25 फुट ऊँची है।

एलिफेंटा की गुफ़ाएँ 
एलिफेंटा की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में पौराणिक देवताओं की अत्यन्त भव्य मूर्तियों के लिए विख्यात है। इन मूर्तियों में त्रिमूर्ति शिव की मूर्ति सर्वाधिक लोकप्रिय है। ये गुफ़ाएँ मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुम्‍बई महानगर के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्‍द्र हैं। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ 7 गुफ़ाओं का सम्मिश्रण हैं, जिनमें से सबसे महत्‍वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफ़ा। एलिफेन्टा के गुहा मन्दिर राष्ट्रकूटों के समय में बने। एलिफेन्टा की पहाड़ी में शैलोत्कीर्ण करके उमा महेश गुहा मन्दिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया।
पुर्तग़ाल के यात्री वाँन लिंसकोटन के 'डिस्कोर्स आव वायेजेज' नामक ग्रंथ से सूचित होता है कि 16वीं शती में (1579 ई. के लगभग) यह द्वीप पोरी अथवा पुरी नाम से प्रसिद्ध था। द्वीप की पहाड़ियों में 5वीं-6वीं शती ई. में बनी हुई और पहाड़ियों के पार्श्व में तराशी हुई पांच गुफाएं हैं। इनमें हिंदू धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियां, विशेषकर, शिव की मूर्तियां गुप्तकालीन कला के उत्तम उदाहरण हैं। इन गुफ़ाओं को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी। पुर्तग़ालियों ने इसका उल्लेख भी किया है। एलिफेंटा पर 16वीं शती में मुम्बई तट पर बसने वाले पुर्तग़ालियों का अधिकार था। इन कलाशून्य व्यापारियों ने इस द्वीप की सुंदर गुफाओं का गोशालाओं, चारा रखने के गोदामों, यहां तक कि चांदमारी के लिए प्रयोग करके इनका कलावैभव नष्टप्राय कर दिया। 16वीं शती ई. तक राजघाट नामक स्थान पर हाथी की एक विशाल मूर्ति अवस्थित थी। इसी कारण पुर्तग़ालियों ने द्वीप को एलिफेंटा का नाम दिया था।

कुण्ड गुफ़ा 
कुण्ड गुफ़ा झारखण्ड राज्य के चतरा के बेहतरीन पर्यटक स्थलों में से एक मानी जाती है। कुण्ड गुफ़ा के पास कुण्ड महल भी है जो जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। लेकिन पर्यटकों को महल की अपेक्षा गुफ़ा ज़्यादा आकर्षित करती हैं। कुण्ड गुफ़ा पर्यटकों को बहुत पसंद आती है क्योंकि इसके शांत वातावरण में कुछ क्षण बिताना उनकी थकान को दूर देता है। कुण्ड गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए पर्यटकों को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि इसका प्रवेश द्वार काफ़ी सकरा है। कुण्ड गुफ़ा के अन्दर एक बड़ा हॉल भी है जहाँ बहुत अंधेरा रहता है। हॉल में एक शिवलिंग भी है। इस शिवलिंग की स्थापना एक सन्न्यासी ने की थी जो लगभग पचास वर्ष पहले यहाँ आया था। गुफ़ा की दीवारों पर कुछ लिखा भी गया है लेकिन इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं गया है। फाल्गुन की 14 तारीख को यहाँ पर भगवान शिव को समर्पित भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में पर्यटक और स्थानीय निवासी समान रूप से भाग लेते हैं।

उदयगिरि गुफ़ाएँ
बेसनगर या प्राचीन विदिशा (भूतपूर्व ग्वालियर सियासत) के निकट उदयगिरि विदिशा नगरी ही का उपनगर था। एक अन्य गुफ़ा में गुप्त संवत् 425-426 ई. में उत्कीर्ण कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल का एक अभिलेख है। इसमें शंकर नामक किसी व्यक्ति द्वारा गुफ़ा के प्रवेश-द्वार पर जैन तीर्थ कर पार्श्वनाथ की मूर्ति के प्रतिष्ठापित किए जाने का उल्लेख है! यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख में इस सुप्रसिद्ध पहाड़ी का वर्णन है। यहाँ पर बीस गुफ़ाएँ है। जो हिन्दू और जैन मूर्तिकारी के लिए प्रसिद्ध हैं। मूर्तियाँ विभिन्न पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध हैं और अधिकांश गुप्तकालीन हैं। मूर्तिकला की दृष्टि से पाँचवीं गुफ़ा सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसमें वराह अवतार का दृश्य अंकित वराह भगवान का बाँया पाँव नाग राजा के सिर पर दिखलाया गया है। जो सम्भवतः गुप्तकाल में सम्राटों द्वारा की गये नाग शक्ति के परिहास का प्रतीक है। छठी गुफ़ा में दो द्वारपालों, विष्णु, महिष-मर्दिनी एवं गणेश की मूर्तियाँ हैं। गुफ़ा छः से प्राप्त लेख से ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र पर सनकानियों का अधिकार था। उदयगिरि के द्वितीय गुफ़ा लेख में चन्द्रगुप्तके सचिव पाटलिपुत्र निवासी वीरसेन उर्फ शाव द्वारा शिव मन्दिर के रूप में गुफ़ा निर्माण कराने का उल्लेख है। वह वहाँ चन्द्रगुप्त के साथ किसी अभियान में आया था। तृतीय उदयगिरि गुफ़ा लेख में कुमार गुप्त के शासन काल में शंकर नामक व्यक्ति द्वारा गुफ़ा संख्या दस के द्वार पर जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति को प्रतिष्ठित कराये जाने का उल्लेख है।

कुटुम्बसर गुफ़ा
कुटुम्बसर गुफ़ा छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के निकट स्थित है। यह गुफ़ा मानव द्वारा निर्मित है, जिसे 'केम्पीओला शंकराई गुफ़ा' भी कहा जाता है। इस गुफ़ा के अंधेरे में कई रहस्य छुपे हुए हैं, जिनका पता आज भी लगाया जा रहा है। यह माना जाता है कि कभी कुटुम्बसर गुफ़ा में आदिमानवों का बसेरा था। कुटुम्बसर गुफ़ा में अंधी मछलियाँ पाई जाती हैं। कई वैज्ञानिकों तथा जन्तु विज्ञान शास्त्रियों ने यहाँ पर अपना शोध कार्य किया है, जिसे लेकर पूरे विश्व में इस गुफ़ा की प्रसिद्धि है। इस गुफ़ा की खोज 1951 में प्रसिद्ध भूगोल वैज्ञानिक डॉ. शंकर तिवारी ने की थी। स्थानीय भाषा में 'कोटमसर' का अर्थ "पानी से घिरा क़िला" है। भू-गर्भ शास्त्रियों ने इस गुफ़ा में प्रागैतिहासिक मनुष्यों के रहने के अवशेष भी पाए हैं। उनके अध्ययन के अनुसार पूर्व में यह समूचा इलाका पानी में डूबा हुआ था और कोटमसर की गुफ़ाओं के बाहरी और आंतरिक हिस्से के वैज्ञानिक अध्ययन से इसकी पुष्टि भी होती है। गुफ़ा का निर्माण भी प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पानी के बहाव के कारण ही हुआ है। लाइम स्टोन से बनी इस गुफ़ा की बाहरी और आन्तरिक सतह का अध्ययन बताता है कि इसका निर्माण लगभग 250 करोड़ वर्ष पूर्व का हुआ है। 'फ़िजीकल रिसर्च लेबोरेटरी',अहमदाबाद; 'बीरबल साहनी इंस्टीटयूट ऑफ़ पेल्कोबाटनी', लखनऊ और 'भू-गर्भ अध्ययनशाला'. लखनऊ के भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में 'कार्बन डेटिंग प्रणाली' से अध्ययन कर इस गुफ़ा में प्रागैतिहासिक मानवों के रहने की भी बात की है।

घारापुरी एलिफेंटा 
घारापुरी एलिफेंटा द्वीप का प्राचीन नाम है, जो बंबई के निकट स्थित है। एलिफेंटा की गुफ़ाओं को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है, जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी।

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