भारत मे अवस्थित द्वीप - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

भारत मे अवस्थित द्वीप

Share This
भारतवर्ष कर्मप्रधान वर्ष है। इस वर्ष में जन्म लेने के लिये देवता भी लालायित रहते हैं। वे कहते हैं कि भारतवर्ष में जन्म लेने वाले प्राणी धन्य हैं। इस भारतवर्ष में अनेकों ऊँचे-ऊँचे रम्य पर्वत तथा नद-नदी विद्यमान हैं। इन पर्वतों पर और नदियों के तट पर बड़े-बड़े आत्मज्ञानी ऋषि आश्रम बनाकर रहते हैं। यहाँ पर जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल प्राप्त होता है। भारतवासी यज्ञादि कर्म करते समय भिन्न भिन्न देवताओं को हर्वि प्रदान करते हैं जिसे यज्ञपुरुष स्वयं पधार कर स्वीकार करते हैं। वे सकाम भाव वाले मनुष्यों की कामना पूर्ण करते हैं तथा निष्काम भाव वाले मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करते हैं।
महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं : -
  1. स्वर्णप्रस्थ
  2. चन्द्रशुक्ल
  3. आवर्तन
  4. रमणक
  5. मनदहरिण
  6. पाञ्चजन्य
  7. सिंहल तथा
  8. लंका



इस द्वीप के मध्य में सुवर्णमय सुमेरु पर्वत स्थित है। इसकी ऊंचाई चौरासी हजार योजन है< और नीचे काई ओर यह सोलह हजार योजन पृथ्वी के अन्दर घुसा हुआ है। इसका विस्तार, ऊपरी भाग में बत्तीस हजार योजन है, तथा नीचे तलहटी में केवल सोलह हजार योजन है। इस प्रकार यह पर्वत कमल रूपी पृथ्वी की कर्णिका के समान है।
सुमेरु के दक्षिण में
हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक वर्षपर्वत हैं, जो भिन्न भिन्न वर्षों का भाग करते हैं।
सुमेरु के उत्तर में
नील, श्वेत और शृंगी वर्षपर्वत हैं। इनमें निषध और नील एक एक लाख योजन तक फ़ैले हुए हैं। हेमकूट और श्वेत पर्वत नब्बे नब्बे हजार योजन फ़ैले हुए हैं। हिमवान और शृंगी अस्सी अस्सी हजार योजन फ़ैले हुए हैं।

तेरेसा द्वीप एक सुनसान द्वीप है, जो अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। यहाँ की सस्ती और लोकप्रिय वस्तुएँ काफ़ी प्रसिद्ध हैं। वर्ष 2004 में आई सुनामी के बाद यह द्वीप दो भागों में बंट गया। लगभग 2043 लोगों की आबादी वाले इस द्वीप पर सुनामी की तबाही के बावजूद यहाँ के निवासियों ने स्वयं यहाँ की वस्तुओं के लिए एक स्थिर बाज़ार कायम किया है। टापू पर इन वस्तुओं के साथ-साथ यहाँ के लोगों की जीवन शैली को देखना एक अलग अनुभव है। तेरेसा यद्यपि एक सुनसान द्वीप है, फिर भी यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या बहुत अधिक है।
इस द्वीप पर अधिकतर पर्यटक पश्चिम देशों से आते हैं। यहाँ पहुँचना थोड़ा मुश्किल अवश्य है, लेकिन सैलानी पोर्ट ब्लेयर से चोप्पर में सवार होकर लगभग डेढ़ घंटे का सफ़र तय कर तेरेसा द्वीप पहुँच सकते हैं। पर्यटक चाहें तो नेनकोय द्वीप होते हुए भी तेरेसा द्वीप जा सकते हैं, किंतु इसमें लगभग ढाई घंटे का समय लगेगा। तेरेसा द्वीप अपनी लकड़ी और मिट्टी से बनाई हुई वस्तुओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ लकड़ी के कैनोस और मिट्टी के बर्तन बनाये जाते हैं। इनकी सुन्दर और सस्ती चीजें पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय है। ये सारी वस्तुएँ लघु उद्योग या कुटीर उद्योगी कारखानों में हाथ से बनाई जाती हैं। तेरेसा द्वीप की एक और विशेषता यह भी है की 2004 में आई सुनामी के बाद यह दो हिसों में बट गया।

न्यूमूर द्वीप
न्यूमूर द्वीप भारत और बांग्लादेश के मध्य स्थित है। 9 किलोमीटर की परिधि वाले इस निर्जन द्वीप को लेकर भारत और बांग्लादेश में काफ़ी विवाद रहा है। इस द्वीप को बांग्लादेश में 'दक्षिणी तालपट्टी' और भारत में 'पुर्बासा' कहा जाता है। यह क्षेत्र 1954 के आंकड़ों के अनुसार समुद्र तल से 2-3 मीटर की ऊँचाई पर स्थित था, जो वर्तमान में लगभग समुद्र में विलीन हो गया है। भारत ने 1989 में नौसेना का जहाज़ और फिर बीएसएफ के जवानों को वहाँ तैनात करके वहाँ तिरंगा झंडा फहराया था।  छोटे से इस द्वीप का पता 1974 में चला, जब वैज्ञानिक उपग्रह से मिले कुछ चित्रों का अध्ययन कर रहे थे। 80 के दशक की शुरुआत में भारत और बांग्लादेश दोनों ही ने इस द्वीप पर दावेदारी जताई। वजह, यह द्वीप बंगाल के दक्षिण 24 परगना और बांग्लादेश के सातखीरा के बिल्कुल बीचोबीच उग आया था। इस ओर बंगाल की खाड़ी का समुद्र और उस ओर बांग्लादेश की नदी हरियाभांगा का डेल्टा। 1981 में भारत ने वहाँ राष्ट्रीय ध्वज लगाकर सीमा सुरक्षा बल की एक चौकी स्थापित कर दी और नौसेना ने भी गश्त लगाना शुरू कर दी। 1987 के बाद से इस द्वीप का कटाव होने लगा। वर्ष दो हजार आते-आते यह द्वीप वीरान हो चला था। बीएसएफ ने चौकी खाली कर दी थी। हालाँकि, नौसेना की गश्त भी जारी है। वर्ष 2009 के आखिर तक इसका अस्तित्व खत्म हो चला था। जाधवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विभाग और इसरो के मिले-जुले शोध में इस द्वीप के समुद्र में समा जाने की पुष्टि हो चुकी है। 1990 में यह द्वीप समुद्र से सिर्फ तीन मीटर की ऊँचाई पर था। न्यू मूर द्वीप के भी पहले 1996 में लोहाचारा द्वीप डूब चुका था। दिसंबर 2006 तक पानी में डूबा यह द्वीप दिखता भी था। फिर तो यहाँ पानी की गहराई दो-तीन मीटर तक पहुँच गई थी। इस द्वीप के अस्तित्व खत्म होने का शोक दुनिया भर में मनाया गया था। 2007 में ऑस्कर फिल्म समारोह में भी ट्रॉफी के साथ लोहाचारा का मॉडल भी दिया गया था, यह कहते हुए कि दुनिया का पहला द्वीप जो ग्लोबल वॉर्मिंग का शिकार बना। हालाँकि, जाधवपुर के समुद्र विज्ञान विभाग के शोधकर्ता तुहीन घोष का कहना है कि दो साल बाद 2008 में यह द्वीप पुन: प्रकट हुआ था लेकिन वह अल्प समय के लिए था।
दरअसल, दुनियाभर में समुद्र के बढ़ने का औसत 2.2 मिलीमीटर प्रति वर्ष का रहा है। घोड़ामारा में प्रतिवर्ष 3.12 मिमी की रफ्तार से पानी बढ़ रहा है। यहाँ अब भी दो हजार लोग जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। यहाँ के पंचायत प्रधान अजय कुमार पात्र के अनुसार, यहाँ चावल की फसल अच्‍छी होती रही है। 30-35 साल पहले सरकार ने दक्षिण 24 परगना के विभिन्न हिस्सों से लोगों को यहाँ चावल की खेती करने के लिए बसाया था। लेकिन अब नदी और समुद्र के कटान के चलते खेती की आधी से ज्यादा जमीन पानी में समा चुकी है। इसी तरह बंगाल की खाड़ी में स्थिति मौसुनी द्वीप भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हालाँकि, यहाँ नदी-समुद्र के कटान की अभी शुरुआत ही हुई है। 24 वर्ग किलोमीटर में फैले इस द्वीप की आबादी लगभग 20 हजार है। यहाँ नदी और समुद्र के कटान से बचने के लिए पश्चिमी और दक्षिणी किनारों पर बालू से अवरोधक लगाए गए हैं लेकिन पिछले साल के आइला में ये किसी काम नहीं आए थे। हो सकता है, घोड़ामारा के बाद नंबर मौसुनी द्वीप का आए। हम-आप ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लें लेकिन इस तथ्‍य से मुँह नहीं छुपाया जा सकता कि जिन द्वीपों का अस्तित्व खत्म हो चुका है या जो द्वीप धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं, वहाँ जिंदगी की लड़ाई कठिन होती जा रही है।

टोंगा दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित  द्वीप
टोंगा दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है। यह छोटे तथा बड़े 169 द्वीपों से मिलकर बना हुआ है। इन द्वीपों में से 36 द्वीप तो इस प्रकार के हैं, जिन पर आबादी बसी हुई है। टोंगा एक बहुत ही सुंदर स्थान है, जहाँ के बीच बहुत सुंदर हैं। बीचों पर दूर-दूर तक सफ़ेद रेत की चादर बिछी रहती है। बहुत-से लोग इन बीचों का आनंद लेने के लिए यहाँ प्रत्येक वर्ष आते हैं।



जॉलीबॉय द्वीप
जॉलीबॉय द्वीप अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। यह द्वीप 'महात्मा गाँधी राष्ट्रीय समुद्री उद्यान' में स्थित है। द्वीप प्रवाल भित्तियों और समुद्री जीवों को आश्रय प्रदान करता है। जॉलीबॉय द्वीप प्रकृति के सुन्दर तथा मनोरम जलगत दृश्य प्रदान करता है। यह स्नोर्कलिंग, समुद्र स्नान और सूर्य की किरणों से आच्छादित समूद्र तट पर सूर्य स्नान के लिए आदर्श स्थल है।

नन्कोव्री द्वीप निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है। यह द्वीप उत्तरी निकोबार द्वीप समूह के कार निकोबार से 160 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। इस द्वीप के नाम पर ही 'शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया' ने अपने समुद्री जहाज़ का नाम एम.वी.नन्कोव्री रखा है। नन्कोव्री द्वीप के दक्षिण में स्थित कर्मोटा द्वीप इसके साथ मिलकर नन्कोव्री बंदरगाह बनाता है, जो समुद्री व्यापार और वाणिज्य के लिए एकदम सही स्थान है। कहा जाता है कि किसी ज़माने में यहाँ समुद्री लुटेरों का दबदबा रहता था, लेकिन ब्रिटिश रॉयल नोसैना ने अपने आक्रमण से सारे समुद्री लुटेरों के जहाज़ों को नष्ट कर दिया। इस द्वीप में छाई हरियाली और इसके सुन्दर वातावरण में सैर करने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। यहाँ पर्यटकों और व्यापारियों पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लागू होते हैं, इसीलिए यात्रा से पहले काग़ज़ी करवाई सुनिश्चित कर लेनी चाहिए।

पौराणिक भूगोल की कल्पना के अनुसार पृथ्वी के सप्त महाद्वीपों में प्लक्षद्वीप की भी गणना की गयी है। विष्णु पुराण में प्लक्षद्वीप का सविस्तार वर्णन है, जिससे सूचित होता है कि विशाल प्लक्ष या पाकड़ के वृक्ष की यहाँ स्थिति होने से यह द्वीप 'प्लक्ष' कहलाता था। इसका विस्तार दो लक्ष योजन था। इसके सात मर्यादा पर्वत थे- गोमेद, चंद्र, नारद, दुंदुभि, सोमक, सुमना और वैभ्राज। यहाँ की सात मुख्य नदियों के नाम थे - अनुतप्ता, शिखी, विपाशा, त्रिदिवा, अक्लमा, अमृता और सुक्रता। यह द्वीप लवण या क्षार सागर से घिरा हुआ था। इस द्वीप के निवासी सदा निरोग रहते थे और पाँच सहस्त्र वर्ष की आयु वाले थे। यहाँ की जो आर्यक, कुरर, विदिश्य और भावी नामक जातियाँ थी, वे ही क्रम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थीं। प्लक्ष में आर्यकादि वर्णों द्वारा जगत्स्स्त्रष्ट्रा हरि का पूजन सोम रूप में किया जाता था। इस द्वीप के सप्त पर्वतों में देवता और गंधर्वों के सहित सदा निष्पाप प्रजा निवास करती थी।
बाली इंडोनेसिया का द्वीप
बाली इंडोनेसिया का, जावा के सन्निकट पर स्थित एक द्वीप है। जहाँ पर वर्तमान काल में भी प्राचीन हिन्दू धर्म और संस्कृति जीवित अवस्था में है। संम्भवत: गुप्तकाल चौथी पाँचवीं शती ई. में इस द्वीप में हिन्दू उपनिवेश एवं राज्य स्थापित हुआ था। कहा जाता है कि इस द्वीप का नाम पुराणों में प्रसिद्ध, पाताल देश के राजा बलि के नाम पर रखा गया है। चीन के लियांगवंश (502-556 ई.) के इतिहास में इस द्वीप का सर्वप्रथम ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है जहाँ इसे पोली कहा गया है। इस उल्लेख से विदित होता है कि बाली में इस काल में एक समृद्धशाली तथा उन्नत हिन्दू राज्य स्थापित था। यहाँ के राजा बौद्ध धर्म में भी श्रद्धा रखते थे। इस राज्य की ओर से 1518 ई. में चीन को एक राजदूत भेजा गया था। चीनी यात्री इत्सिंग लिखता है कि बाली दक्षिण समुद्र के उन द्वीपों में है जहाँ मूल सर्वास्तिवाद निकाय का सर्वत्र प्रचार है।

मध्य युग में जावा व अन्य द्वीपों में अरबों के आक्रमण हुए और प्राचीन हिन्दू राज्यों की सत्ता समाप्त हो गई किंतु बाली तक ये अरब न पहुँच सके। फलस्वरूप यहाँ की प्राचीन हिन्दू सभ्यता और संस्कृति व धार्मिक परंपरा वर्तमान काल तक प्राय: अक्षुण्ण बनी रही है। 18वीं शती में बाली पर डचों का राजनीतिक अधिकार हो गया था। किंतु उनका प्रभाव यहाँ के केबल राजनीतिक जीवन पर ही पड़ा और बाली निवासियों की सामाजिक और धार्मिक परंपरा में बहुत कम परिवर्तन हए थे। कहा जाता है कि इस द्वीप का नाम पुराणों में प्रसिद्ध, पाताल देश के राजा बलि के नाम पर रखा गया है। बाली देश की प्राचीन भाषा को कवि कहते है जो संस्कृत में बहुत अधिक प्रभावित है। बाली में संस्कृत भाषा में भी अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। रामायण और महाभारत का बाली के दैनिक जीवन में आज भी अमिट प्रभाव है।

यवद्वीप अथवा 'जावा द्वीप' का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण में उल्लेख है। गुजरात के राजकुमार 'विजय' ने सर्वप्रथम इस देश में भारतीय उपनिवेश की स्थापना 603 ई. में की थी।

बाराटांग द्वीप अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। बाराटांग द्वीप के आसपास स्थित बालू डेरा तट, लालाजी बे तट, मार्क बे तट, गिटार तट, स्पाइक द्वीप और पैरट द्वीप पर्यटन के लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण हैं। अब बाराटांग द्वीप लाइम स्टोन गुफा के लिए भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की गुफाएँ सबसे गहरी और सबसे विशाल मानी जाती है।


इस गुफा के अलावा यहाँ पर 'मड वोलकैनो' (कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी) भी हैं, जिसे लोग आश्चर्य से देखते हैं। फिलहाल इस द्वीप पर 8 ऐसे ज्वालामुखी हैं। अब अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में इस तरह के 11 कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी पाए गए हैं, जिनमें से 8 बाराटांग व मध्य अंडमान में एवं 3 डिगलीपुर (उत्तरी अंडमान) में स्थित हैं।

बैरन द्वीप (निर्देशांक : 12°16′N 93°51′E) भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। यह द्वीप लगभग 3 किमी. में फैला है। यहां का ज्वालामुखी 28 मई 2005 में फटा था। तब से अब तक इससे लावा निकल रहा है। यह अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग 500 किलोमीटर उत्तर पूर्व में बंगाल की खाडी में स्थित है| बैरन द्वीप अंडमान द्वीपों में सबसे पूर्वी द्वीप है। यह भारत ही नहीं अपितु दक्षिण एशिया का एक मात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। ज्वालामुखी हर किसी पहाड़ से नहीं निकलते हैं!

यह ज्यादातर वहां पाये जाते है जहाँ टेकटोनिक प्लाटों में तनाव हो या फिर पृथ्वी का भीतरी भाग बहुत गर्म हो। यह द्वीप भारतीय व बर्मी टेकटोनिक प्लाटों के किनारे एक ज्वालामुखी श्रृंखला के मध्य स्तिथ है। तीन किलोमीटर में फैले इस द्वीप का ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्ड सन 1787 का है। तब से अब तक यहाँ दस बार ज्वालामुखी फ़ट चुके है। आज भी यहाँ धूवाँ निकलता देख जा सकता है। 'बैरन' शब्द का मतलब होता है - बंजर, जहाँ कोई रहता नहीं हो। यह द्वीप अपने नाम पर गया है, यहाँ कोई मनुष्य नहीं रहता। कुछ बकरियां, चूहे और पक्षी ही यहाँ दिखेंगे। बैरन द्वीप आसपास का पानी दुनिया के शीर्ष स्कूबा डाइविंग स्थलों में प्रतिष्ठित है। स्कूबा डाइविंग से यहां के स्पष्ट पानी में मानता रे मछली, कोरल, और लावा से बनी चट्टानें देखी जा सकती हैं।


Pages