त्वचा के आम रोग, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

त्वचा के आम रोग,

Share This
आँतों और फेफड़ों जैसे त्वचा का भी लगातार कीटाणुओ, परजीवियों, एलर्जी करने वाले तत्वों और चोट से सामना होता रहता है। इसलिए त्वचा के रोग बहुत आम हैं। गॉंव में त्वचा के संक्रमण और रोग बहुत ज़्यादा होते है। पामा, स्कैबीज़, दाद, जूँ आदि से प्रभावित होना, पायोडरमा और कुष्ठरोग काफी आम है। कुष्ठरोग का अध्याय अलग दिया हुआ है। कही कही स्कैबीज़, दाद और जुँए इतने आम हैं कि लोग इन पर ध्यान भी नहीं देते। इसके अलावा त्वचा पर चोटें लगना और एलर्जी भी काफी आम है। त्वचा के ज़्यादातर संक्रमण तो रहने के हालात सुधरने से ही कम हो सकते हैं। नहाने धोने के लिए पर्याप्त पानी मिलना, पहनने के लिए ज़्यादा कपड़े मिलना, बेहतर घर और स्वच्छता के बारे में बेहतर समझ बनना महत्वपूर्ण है। चूँकि त्वचा के रोग आसानी से दिखाई देते हैं, इनसे डर और घृणा होती है। इनमें से कई बीमारियों बार-बार होती है। इन बीमारियों में स्टीरॉएडस का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल होता है क्योंकि स्टीरॉइड जल्दी से आराम पहुँचाते हैं। स्टीरॉइड जो उस समय तो बीमारी में अस्थाई आराम दिला देते है, परन्तु दीर्घ काल के लिए असल में बीमारी बढ़ा देते हैं।
त्वचा रोगो के उपयुक्त निदान और इलाज तभी सम्भव है अगर हमारे पास पर्याप्त जानकारी और अनुभव हो। स्कैबीज और दाद जैसी आम बीमारियों का भी अक्सर ठीक से निदान और उपचार नहीं हो पाता। ज़ाहिर है त्वचा की अलग अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग इलाजों की ज़रूरत होती है। जैसे कि स्कैबीज, फफूँद रोधी दवाई से ठीक नहीं हो सकता और एलर्जी रोगाणु नाशक दवाइयों से ठीक नहीं हो सकती।

bullet त्वचा की परते
त्वचा की दो परतें होती हैं। बाहय एपीडर्मिस में कोशिकाओं की पॉंच तहे होती हैं। ये कोशिकाएँ घिसती रहती हैं अत - शरीर से इनका बार-बार बदलते रहना ज़रूरी होता है। एपीडर्मिस में न तो खून की पहुँच होती है और न ही तंत्रिकाएँ। एपीडर्मिस पोषक तत्वों को ग्रहण करने के लिए और तंत्रिका कार्यों के लिए नीचे की परत यानि डर्मिस पर निर्भर रहती है।

bullet एपीडर्मिस और मैलेनिन
एपीडर्मिस में मैलेनिन नाम का एक रंजक होता है और त्वचा का रंग इसी रंजक के कारण होता है। जितनी ज़्यादा मैलेनिन की मात्रा होती है त्वचा का रंग उतना ही ज़्यादा गहरा होता है। त्वचा में कितना मैलेनिन होगा ये व्यक्ति के गुणसूत्रों से तय होता है। सूर्य की रोशनी से कुछ हद तक ही मैलेनिन की मात्रा बढ़ती है। इसलिए एक ठण्डे देश में रह रहे किसी काले व्यक्ति की त्वचा गोरी नहीं हो सकती हालॉंकि त्वचा का रंग थोड़ा हल्का हो सकता है। इसी तरह गर्म देश में रह रहा एक गोरे व्यक्ति की त्वचा का रंग काला नहीं हो सकता, थोड़ा गहरा ज़रूर हो सकता है। साधारणतय सभी प्रजातियों में औरतों में पुरूषों के मुकाबले औरतोँ में कम मैलेनिन होता है। त्वचा का रंग कैरोटनि से भी नियंत्रित होता है। कैरोटेन त्वचा के नीचे स्थित वसा की परत में पाया जाता है। इससे रंग में थोड़ा सा पीलापन आ जाता है। दूसरी परत के खून के संचरण से भी त्वचा को रंग और चमकीलापन मिलता है।
bullet डर्मिस
डर्मिस में कोशिकाएँ और रेशे दोनों होते है। इसमें धमनियों और खून की सूक्ष्म नलियों का जाल, तंत्रिकाएँ, पसीने की ग्रंथियॉं, और तेल स्त्रावित करने वाली तेलीय ग्रंथियॉं, बालों और पेशियों के जाल सभी होते हैं। इन सभी के कुछ न कुछ खास काम होते हैं। पसीने की ग्रंथियॉं शरीर में पानी की मात्रा और तापमान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कुछ ग्रंथियॉं एक तेलीय पदार्थ स्त्रवित करती है। यह त्वचा पर फैल जाता है और उसको सूखने व चटखने से बचाता है। साबुन इस परत को हटा देते हैं और त्वचा को सुखा देते हैं। तंत्रिकाएँ दवाब, गर्मी, सर्दी और दर्द की संवेदना को ग्रहण करती है।
अलग-अलग जगहों जैसे हथेलियॉँ, तलवे, चेहरे और शरीर के आगे व पीछे के भाग की त्वचा की मोटाई अलग-अलग होती है। इन सब जगहों में त्वचा की संवेदनशीलता भी अलग-अलग होती है। हमें शरीर के सामने के हिस्से में मच्छर के काटने का अहसास शरीर के पिछले भाग की तुलना में ज़्यादा जल्दी व ज़्यादा तीव्रता से होता है क्योंकि यहॉं की त्वचा के तंत्रिकाएँ ज़्यादा होती हैं।

Pages