आँखो में होने वाली प्रमुख विमारियाँ, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

आँखो में होने वाली प्रमुख विमारियाँ,

Share This
आंख लाल होने की प्रमुख वजहें  : -
कंजंक्टिवाइटिस 
कॉर्नियल अल्सर 
काला मोतिया (ग्लूकोमा) 
आयराइटिस 
स्कलेराइटिस 
एपिस्केलराइटिस 
एंडोफ्थेलमाइटिस 
आंख में चोट लगना 

कंजंक्टिवाइटिस - 
-> आंख के ग्लोब के ऊपर (बीच के कॉर्निया क्षेत्र को छोड़कर) एक महीन झिल्ली चढ़ी होती है, जिसे कंजंक्टाइवा कहते है। कंजंक्टाइवा में किसी भी तरह के इंफेक्शन (बैक्टीरियल, वायरल, फंगल) या एलर्जी होने पर सूजन आ जाती है, जिसे कंजंक्टिवाइटिस कहा जाता है। 
-> सुबह के वक्त आंख चिपकी मिलती है और कीचड़ आने लगता है, तो यह बैक्टिरियल कंजंक्टिवाइटिस का लक्षण हो सकता है। इसमें ब्रॉड स्पेक्ट्रम ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप्स जैसे सिपरोफ्लॉक्सेसिन (Ciprofloxacin), ऑफ्लोक्सेसिन (Ciprofloxacin), गैटिफ्लोक्सेसिन (Ciprofloxacin), स्पारफ्लोक्सेसिन (Sparfloxacin) यूज कर सकते हैं। एक-एक बूंद दिन में तीन से चार बार डाल सकते हैं। दो से तीन दिन में अगर ठीक नहीं होते तो किसी आंखों के डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। 
-> अगर आंख लाल हो जाती है और उससे पानी गिरने लगता है, तो यह वायरल और एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है। वायरल कंजंक्टिवाइटिस अपने आप पांच से सात दिन में ठीक हो जाता है लेकिन इसमें बैक्टीरियल इंफेक्शन न हो, इसलिए ब्रॉड स्पेक्ट्रम ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। आराम न मिले तो डॉक्टर से सलाह लें। 
-> आंख में चुभन महसूस होती है, तेज रोशनी में चौंध लगती है, आंख में तेज खुजली होती है, तो यह एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकती है। क्लोरफेनेरामिन (Chlorphenaramine) और सोडियम क्रोमोग्लाइकेट (Sodium Cromoglycate) जैसी ऐंटिएलर्जिक आई-ड्रॉप्स दिन में तीन बार एक-एक बूंद डाल सकते हैं। दो से तीन दिन में आराम न मिले तो डॉक्टर की सलाह लें। 
-> कंजंक्टिवाइटिस होने पर मरीज को अपनी आंख दिन में तीन-चार बार साफ पानी से धोनी चाहिए। 
-> कंजंक्टिवाइटिस में स्टेरॉयड वाली दवा जैसे डेक्सामिथासोन (Dexamethasone), बीटामिथासोन (Betamethasone) आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर जरूरी है, तो सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही आई-ड्रॉप्स डालें और उतने ही दिन जितने दिन आपके डॉक्टर कहें। स्टेरॉयड वाली दवा के ज्यादा इस्तेमाल से काफी नुकसान देखने को मिल सकते हैं। 
-> ये सभी दवाएं जेनरिक हैं। दवाएं बाजार में अलग-अलग ब्रैंड नामों से उपलब्ध हैं। 

बचाव 
-> कंजंक्टिवाइटिस अगर इंफेक्शन की वजह से है तो ऐसे शख्स से हाथ नही मिलाना चाहिए, नहीं तो इंफेक्शन हाथ के जरिए स्वस्थ व्यक्ति की आंख में भी हो सकता है। 
-> ऐसे शख्स का तौलिया या रुमाल भी इस्तेमाल नही करना चाहिए। बरसात के मौसम में स्विमिंग पूल में नहीं जाना चाहिए वरना कंजंक्टिवाइटिस इंफेक्शन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने का खतरा रहता है। 
-> गर्मी के मौसम में अच्छी क्वॉलिटी का धूप का चश्मा पहनना चाहिए। चश्मा आंख को तेज धूप, धूल और गंदगी से बचाता है, जो एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के कारण होते हैं। 

कॉर्नियल अल्सर 

आंख के बीच में गोलाकार क्षेत्र को कॉर्निया (काला वाला गोल हिस्सा, जिसे पुतली भी कहते हैं) कहते हैं। कॉर्निया पर हुए घाव को कॉर्नियल अल्सर कहा जाता है। यह मरीज के लिए बेहद तकलीफदेह स्थिति होती है। कॉर्नियल अल्सर में आमतौर पर बैक्टीरियल, वायरल और फंगल इंफेक्शन होता है। 

लक्षण 
आंख लाल होना। 
तेज दर्द रहना। 
सूजन होना। 
आंख खोलने में दिक्कत। 
पानी आना। 
तेज रोशनी में चौंध लगना। 

इलाज 
-> कॉर्नियल अल्सर होने पर आंख की गर्म पानी में साफ और स्टरलाइज्ड रुई डालकर सिकाई करनी चाहिए। 
->ब्रॉड स्पेक्ट्रम ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप दिन में तीन से चार बार डालनी चाहिए। 
-> कॉर्नियल अल्सर आंख की एक गंभीर समस्या है इसलिए इसमें फौरन आंखों के डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए। इलाज में देरी करने से आंख में फुला या माड़ा (कॉर्नियल ओपेसिटी) होने और व्यक्ति के अंधा तक हो जाने की आशंका होती है। 
-> इसमें स्टेरॉयड वाली दवा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसी दवाएं कॉर्नियल ओपेसिटी की आशंका को बढ़ा देती हैं। 

काला मोतिया (ग्लूकोमा) 
काला मोतिया (ग्लूकोमा) में आंख के अंदर का दबाव (इंट्राऑक्युलर प्रेशर) बढ़ जाता है, जिससे आंख के पर्दे पर पाई जाने वाली नस (ऑप्टिक नर्व) सूखने (खराब होने) लगती हैं और व्यक्ति की नजर लगातार कम होती जाती है। काला मोतिया में आंख में पाया जाने वाला द्रव्य या तो ज्यादा बनने लगता है या उसके बहाव में रुकावट होने लगती है जिसके कारण आंख का दबाव (इंट्राऑक्युलर प्रेशर) बढ़ जाता है। 

लक्षण 
आंख लाल होना। 
आंख से पानी आना। 
रोशनी के क्षेत्र (फील्ड ऑफ विजन) का कम होना। 
आंख में तेज दर्द होना। 
सिर में दर्द होना, उल्टी आना। 
रोशनी के चारों तरफ इंद्रधनुषी रंगों का दिखाई देना। 
पढ़ने और पास का काम करने में दिक्कत होना। 

इलाज 
काला मोतिया में खुद इलाज नहीं करना चाहिए। यह आंखों की एक गंभीर बीमारी है। इसकी वजह से एक बार आंख की जो रोशनी चली जाती है, उसे वापस ला पाना संभव नही होता। प्राइमरी ओपन ऐंगल ग्लूकोमा में कोई लक्षण नहीं होता। जब तक बीमारी का पता चलता है, तब तक आंखों की रोशनी का काफी नुकसान हो चुका होता है। इसलिए 40 साल की उम्र के बाद आंखों का रेग्युलर चेकअप कराते रहना चाहिए। जिन लोगों के चश्मे का नंबर बार-बार बदल रहा है, डायबीटीज है या परिवार में किसी को काला मोतिया है, उन्हें साल में एक बार अपनी आंखों के प्रेशर और फील्ड ऑफ विजन की जांच कराते रहना चाहिए। अगर काला मोतिया निकलता है, तो डॉक्टर की देख-रेख में इसका इलाज कराना चाहिए। 

आयराइटिस 
आंख के कॉर्निया के पीछे आइरिस होती है। आइरिस में आई सूजन को आयराइटिस कहते हैं। आयराइटिस के बहुत से कारण होते है जैसे टीबी, लेप्रोसी, सिफलिस, बैक्टीरियल इंफेक्शन। कुछ मरीजों में तो कारण का पता भी नहीं लग पाता। 


लक्षण 
आंख में दर्द होना। 
तेज रोशनी में चौंध लगना। 
देखने में दिक्कत होना। 
आंख के अंदर पस होना। 
आंख के अंदर खून आना। 

इलाज 
आयराइटिस में खुद इलाज नहीं करना चाहिए। बिना समय गंवाए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इस बीमारी के दुष्प्रभाव से आंख में मोतियाबिंद या काला मोतिया हो सकता है, जो आंख की रोशनी के लिए खतरनाक स्थिति है। 

स्कलेराइटिस 
स्कलेराइटिस आंख की गंभीर बीमारी होती है। इसका अगर समय से सही इलाज न किया जाए तो यह बीमारी आंखों की रोशनी के लिए नुकसानदेह हो सकती है। आंख के सफेद हिस्से की कोई खास जगह लाल हो जाती है। रह्नयूमेटॉयड आर्थराइटिस जैसी जोड़ों की बीमारी वालों की आंखों में यह आमतौर पर देखने को मिलती है। इसके अलावा टीबी और कुष्ठ के मरीजों में भी यह बीमारी देखने को मिलती है। 

लक्षण 
आंख लाल रहना (कभी-2 एक खास जगह पर आंख लाल होती है) 
दर्द रहना, दर्द आंख से जबड़े की तरफ भी जाता महसूस होता है। 
आंख से पानी जाना। 
आंख की रोशनी कम होना। 

इलाज 
इलाज खुद नहीं करना चाहिए। डॉक्टर से मिलकर फौरन इलाज शुरू कर देना चाहिए। ऐसा न करने पर इस बीमारी के दुष्प्रभाव जैसे कॉर्निया पर सूजन (किरेटाइटिस), मोतियाबिंद या काला मोतिया होने की आशंका रहती है। 

एपीस्क्लेराइटिस 
एपीस्क्लेराइटिस, स्कलेरा (आंख का सफेद वाला हिस्सा) के ऊपर पाए जाने टेननस कैपसूल की सूजन को कहते है। एपीस्कलेराइटिस आमतौर पर जवान लोगों में देखने को मिलती है और महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है। यह गाउट, सोरायसिस और टीबी के मरीजों में आमतौर पर देखने को मिलती है। 

लक्षण 
जलन होना। 
चुभन महसूस होना। 
पानी जाना। 

इलाज 
एपीस्कलेराइटिस में खास इलाज की जरूरत होती है इसलिए इसका खुद इलाज नहीं किया जा सकता। किसी डॉक्टर से ही इसका इलाज कराना चाहिए। 

एंडोफ्थेलमाइटिस 
एंडोफ्थेलमाइटिस में आंख के अंदर इंफेक्शन हो जाता है। आंख के इंटीरियर चैंबर में पस पड़ जाता है, जिसके कारण आंख लाल हो जाती है, उसमें तेज दर्द होता है, सूजन आ जाती है और पानी आने लगता है। रोशनी भी कम हो जाती है। इस बीमारी के इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से आंख की रोशनी चले जाने का खतरा रहता है। 

Note : - आंख में चोट 
आंख में चोट लगने पर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। जरा-सी चोट किसी को अंधा बना सकती है। कई बार चोट लगने पर लक्षण सामान्य ही होते हैं जैसे आंख लाल होना, पानी जाना, दर्द होना आदि। आंख में चोट लगने पर आंखों के डॉक्टर से आंखों की जांच जरूर करानी चाहिए। चोट लगने से आंख में मोतियाबिंद, काला मोतिया या कॉर्नियल अल्सर हो सकता है। इसकी वजह से आंख का पर्दा अपनी जगह से खिसक सकता है, जिसे रेटिनल डिटैचमेंट कहते हैं। आंख में चोट लगने पर समय से जांच कराकर इलाज कराना चाहिए। 


साभार  : NavBhart News

Pages