जीवन परिचय प्रभुलाल गर्ग - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

demo-image

जीवन परिचय प्रभुलाल गर्ग

Share This
काका हाथरसी (Kaka Hathrasi) (वास्तविक नाम- प्रभुलाल गर्ग, 18 सितंबर1906हाथरसउत्तर प्रदेश; 18 सितंबर, 1995भारत के प्रसिद्ध हिन्दी हास्य कवि थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताए, जिन्हें वे 'फुलझडियाँ' कहा करते थे, सदैव हमे गुदगुदाती रहेंगी।

जीवन परिचय

काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर, 1906 ई. में उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवलाल गर्ग औरमाता का नाम बरफ़ी देवी था। जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी प्लेग की महामारी ने उनके पिता को छीन लिया और परिवार के दुर्दिन आरम्भ हो गये। भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्षा का समंवय बनाये रखा। काका हाथरसी के प्रपितामह गोकुलमहावन से आकर हाथरस में बस गए थे और यहाँ उन्होंने बर्तन-विक्रय का काम (व्यापार) प्रारम्भ किया था। बर्तन के व्यापारी को उन दिनों 'कसेरे' कहा जाता था। पितामह (बाबा) श्री सीताराम कसेरे ने अपने पिता के व्यवसाय को नियमित रूप से चलायमान रखा। उसके बाद बँटवारा होने पर बर्तन की दुकान परिवार की दूसरी शाखा पर चली गईं। परिणामत: काका जी के पिता को बर्तनों की एक दुकान पर मुनीमगीरी करनी पड़ी। काका का जन्म 1906 में ऐसे समय में हुआ था, जब प्लेग की भयंकर बीमारी ने हज़ारों घरों को उज़ाड़ दिया। यह बीमारी देश के जिस भाग में फैलती, उसके गाँवों और शहरों को वीरान बनाती चली जाती थी। शहर से गाँवों और गाँवों से नगरों की ओर व्याकुलता से भागती हुई भीड़ हृदय को कंपित कर देती थी। कितने ही घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएँ विधवा हो गईं। किसी-किसी घर में तो नन्हें-मुन्नों को पालने वाला तक नहीं बचा था। अभी काका केवल 15 दिन के ही शिशु थे, कि इनके पिताजी को प्लेग की बीमारी हो गयी। 20 वर्षीय माता बरफ़ी देवी, जिन्होंने अभी संसारी जीवन जानने-समझने का प्रयत्न ही किया था, इस वज्रपात से व्याकुल हो उठीं। मानों सारा विश्व उनके लिए सूना और अंधकारमय हो गया।

काका हाथरसी ने हास्य रस से ओत-प्रोत कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी पुस्तकें लिखी थी। उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियाँ' जैसे स्तम्भों के द्वारा अपने पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सचेत रहते थे। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना 1933 में "गुलदस्ता" मासिक पत्रिका में उनके वास्तविक नाम से छपी थी।

मुख्य रचनाएँ

काका हाथरसी के मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार हैं-
  • काका की फुलझड़ियाँ
  • काका के प्रहसन
  • लूटनीति मंथन करि
  • खिलखिलाहट
  • काका तरंग
  • जय बोलो बेईमान की
  • यार सप्तक
  • काका के व्यंग्य बाण
  • काका के चुटकुले

जीवन के संघर्षों के बीच हास्य की फुलझड़ियाँ जलाने वाले काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिये 'गर्ग ऐंड कम्पनी' की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में 'संगीत कार्यालय हाथरस' हुआ। भारतीय संगीत के सन्दर्भ में विभिन्न भाषा और लिपि में किये गये कार्यों को उन्होंने जतन से इकट्ठा करके प्रकाशित किया। उनकी लिखी पुस्तकें संगीत विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों के रूप में प्रयुक्त हुईं। 1935 से संगीत कार्यालय ने मासिक पत्रिका "संगीत" का प्रकाशन भी आरम्भ किया, जो कि अब तक अनवरत चल रहा है।

पुरस्कार व सम्मान

काका हाथरसी का मंचीय कवियों में एक विशिष्ट स्थान था। सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काका जी ने काव्य पाठ किया और अपनी छाप छोड़ दी। काका को 1957 में लाल क़िला दिल्ली पर होने वाले कवि सम्मेलन का बुलावा आया तो उन्होंने अपनी शैली में काव्य पाठ किया और अपनी पहचान छोड़ दी। काका को कई पुरस्कार भी मिले। 1966 में बृजकला केंद्र के कार्यक्रम में काका को सम्मानित किया गया। काका हाथरसी को 'कला रत्न' ने नवाजा गया। 1985 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 'पद्मश्री' की उपाधि से नवाजा। काका कई बार विदेश में काव्य पाठ करने गए। 1989 में काका को अमेरिका के वाल्टीमौर में 'आनरेरी सिटीजन' के सम्मान से सम्मानित किया गया। दर्जनों सम्मान और उपाधियाँ काका को मिली। यही नहीं काका ने फ़िल्म 'जमुना किनारे' में अभिनय भी किया। काका हास्य को टॉनिक बताते थे। काका हाथरसी नाम पर ही कवियों के लिये 'काका हाथरसी पुरस्कार' और संगीत के क्षेत्र में 'काका हाथरसी संगीत' सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में हास्य रसको भरपूर जिया था। वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है।
Comment Using!!

Pages

undefined