हमारे देश की कानून प्रणाली से लगभग सभी अच्छी तरह परिचित है। यह प्रणाली गरीबों के लिए काफी विषम और अमीरों के लिए काफी सरल साबित होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि इन दोनों के लिए कानून अलग-अलग है, लेकिन सच्चाई यही है कि यह गरीबों के लिए काफी विपरित है। हाल ही में एक अलग तरह का अध्ययन किया गया। इसमें पिछले 15 सालों के भीतर मौत की सजा पाए कुल 373 अपराधियों का साक्षात्कार लिया गया जिसमें पाया गया कि इनमें तीन-चौथाई ऐसे अपराधी है जो या तो धार्मिक अल्पसंख्यक है या फिर पिछड़े वर्गों से सम्बंध रखते है। इनमें से भी 75 फीसदी ऐसे थे जो आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से आते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि पैसों की कमी के कारण पिछड़े वर्ग से आने वाले ये अपराधी अच्छे वकीलों तक नहीं पहुंच पाते। इसके कारण अदालत में कमजोर दलीलों की वजह से यह बहुत ही जल्दी अपना केस हार जाते हैं और इनपर दोष सिद्ध हो जाता है।
आतंकी गतिविधियों के लिए मौत की सजा पाए इन अपराधियों में 93 फीसदी ऐसे है या तो दलित हैं या फिर धार्मिक अल्पसंख्यक। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्रों ने विधि आयोग के सहयोग से इस अध्ययन को अंजाम दिया। विधि आयोग वर्तमान में मौत की सजा के मुद्दे पर विभिन्न हितधारकों के साथ एक व्यापक विचार-विमर्श में लगा हुआ है। आयोग इस बात को जानने की कोशिश कर रहा है कि यह (मौत की सजा को) समाप्त कर दिया जाना चाहिए या नहीं। छात्रों ने मौत की सजा पाए सभी अपराधियों का साक्षात्कार लिया और उनकी आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि पर रिपोर्ट तैयार की। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि मौत की सजा से पहले इन लोगों को काफी मनोवैज्ञानिक प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ा है। इनमें से कई ऐसे है जिन्होंने कई बार तो कोर्ट की सुनवाई में हिस्सा ही नहीं लिया। इस अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इनमें से कई लोग कोर्ट में चल रही सुनवाई को समझ ही नहीं पाते थे जबकि उनके पास अपने वकील से बातचीत का पूरा अवसर होता था। मौत की सजा पाए अपराधियों को जेल के अंदर अलग बैरक में एकदम एकांत में रखा जाता है। उनको न तो दूसरे कैदियों के साथ काम करने दिया जाता है और ना ही किसी से घुलने मिलने दिया जाता है। इससे इनमें कई मानसिक विकार पैदा हो जाते हैं। साक्षात्कार के दौरान के कई कैदियों ने जल्दी मरने की इच्छा प्रकट की और कहा की उन्हें बिना किसी देरी के फांसी पर लटका देना चाहिए। उनमें मानसिक रूप से मजबूत कुछ कैदियों ने कहा कि अगर उनका कोई मजबूती से प्रतिनिधित्व करे तो वह फांसी से बच सकते हैं।
साल 2000 से 2015 के बीच, नीचली अदालतों ने कुल 1,617 अपराधियों को मौत की सजा सुनाई है। इनमें 42 फीसदी मामले ऐसे है जो केवल यूपी और बिहार से आते हैं। वहीं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह आंकड़ा 17.5 और 4.9 फीसदी ही है। मौत की सजा पाए अधिकतर लोगों की सजा को या तो आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया या फिर मुक्त कर दिया गया।
( AMAR UJAL )
आतंकी गतिविधियों के लिए मौत की सजा पाए इन अपराधियों में 93 फीसदी ऐसे है या तो दलित हैं या फिर धार्मिक अल्पसंख्यक। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्रों ने विधि आयोग के सहयोग से इस अध्ययन को अंजाम दिया। विधि आयोग वर्तमान में मौत की सजा के मुद्दे पर विभिन्न हितधारकों के साथ एक व्यापक विचार-विमर्श में लगा हुआ है। आयोग इस बात को जानने की कोशिश कर रहा है कि यह (मौत की सजा को) समाप्त कर दिया जाना चाहिए या नहीं। छात्रों ने मौत की सजा पाए सभी अपराधियों का साक्षात्कार लिया और उनकी आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि पर रिपोर्ट तैयार की। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि मौत की सजा से पहले इन लोगों को काफी मनोवैज्ञानिक प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ा है। इनमें से कई ऐसे है जिन्होंने कई बार तो कोर्ट की सुनवाई में हिस्सा ही नहीं लिया। इस अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इनमें से कई लोग कोर्ट में चल रही सुनवाई को समझ ही नहीं पाते थे जबकि उनके पास अपने वकील से बातचीत का पूरा अवसर होता था। मौत की सजा पाए अपराधियों को जेल के अंदर अलग बैरक में एकदम एकांत में रखा जाता है। उनको न तो दूसरे कैदियों के साथ काम करने दिया जाता है और ना ही किसी से घुलने मिलने दिया जाता है। इससे इनमें कई मानसिक विकार पैदा हो जाते हैं। साक्षात्कार के दौरान के कई कैदियों ने जल्दी मरने की इच्छा प्रकट की और कहा की उन्हें बिना किसी देरी के फांसी पर लटका देना चाहिए। उनमें मानसिक रूप से मजबूत कुछ कैदियों ने कहा कि अगर उनका कोई मजबूती से प्रतिनिधित्व करे तो वह फांसी से बच सकते हैं।
साल 2000 से 2015 के बीच, नीचली अदालतों ने कुल 1,617 अपराधियों को मौत की सजा सुनाई है। इनमें 42 फीसदी मामले ऐसे है जो केवल यूपी और बिहार से आते हैं। वहीं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह आंकड़ा 17.5 और 4.9 फीसदी ही है। मौत की सजा पाए अधिकतर लोगों की सजा को या तो आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया या फिर मुक्त कर दिया गया।
( AMAR UJAL )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें